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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 48 विधि अलंकार पीछे     आगे


लक्षण (लावनी) :- पहिले के कवनो सिद्ध बस्तु/ केहु करत दुबारा सिद्ध हवे।|
तब विधि नामक अलंकार आ जात उहाँ अप्रसिद्ध हवे॥
तर्क उहाँ मौजूद पुरनका अथवा नया दियात हवे॥
सिद्ध दुबारा कइल इहाँ केवल आवश्यदक बात हवे॥
 
उदाहरण (लावनी) :- सीधा अपना चार पाँव पर खड़ा रहत दिन रात हवे।
अत: चारपाई एके अन्वयर्थक नाम दियात हवे॥
अपना माथा पर सजी सृष्टि के धरत सदा जे भार हवे।
धरा धरीत्री धरनी ओकर नाम सही साधार हवे॥
जौन दूर के दृश्य ले आके दिखा देत नजदीक हवे।
ओकर नाम दूरदर्शन हमरा जाने में ठीक हवे॥
सिंह आलसी जन्तुन हवे मिहनत ना ओकरा भावेला।
सिंहिनी के पकड़ल शिकार के बइठल भोग लगावेला ॥
बन के रक्षा करे न ऊ झूठे बन राज कहावेला।
नर ज्या दे तिकड़म जानेला एसे श्रेष्ठे कहावेला॥
एक देह में नर आ सिंह दूनू स्था न जब पावेला।
तब ऊ मूर्ति पूज्यि बनि जाले पूजा लोग चढ़ावेला॥
ऊ नरसिंह मूर्ति ज्योंद ज्योंज पूजा जनता से पावेले।
त्योंि त्योंद जनता के अपना अँगुरी पर सदा नचावेले॥
केहू के ना चलत हवे अइसन उपाय अपनौले बा।
कि नर के का बात हवे नारायण के घतियौले बा॥
उनहूँ के ना चलत हवे ओकरा से ना आँटत बाड़े।
आ चुपचाप बइठि के आपन दिन कइसों काटत बाड़े॥
का करिहे शंकर दयालु जब ऊहो भाँग चढ़ावेले।
आ जाले तब उहो लहर में जग के सुधि बिसरावेले॥
अकस्मा त देबी एगो यू . पी. खातिर उपरा गइली।
आ माया रचि के पूरा सत्ता यू.पी. के पा गइली॥
देवी के विरोध नरसिंहा कइले पर असफल भइले।
ताकत सजी लगा के आपन केवल ताकत रहि गइले॥
देखते देखत बाँहि नरमकी नरसिंहा के टूटि गइले।
माया देवी का माया का आगे हिम्म त छूटि गइल॥


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