सफर पर निकले हैं दो पाँव
क्या खूबसूरत संगत है दोनों के बीच
बायाँ पैर दाएँ को आगे करके
खुद को खींच लेता है पीछे
ठीक अगले ही पल
दायाँ भी यही दोहराता है
पैरों का अंर्तसंबंध और राग-अनुराग
यहीं से समझ आता है
यह सच तब और मनभावन हो जाता है
जब एक के चोट या मोच खाने पर
देह का पूरा भार
दूसरा खुशी-खुशी अपने उपर उठाता है
इस ख्याल के साथ कि
दर्द दूसरे पैर को छू न जाए
हाँ, पैर जब बीच सफर में
कहीं सुस्ताएँगे
या सफर से घर लौटकर आएँगे
बराबरी से पूरे फैलाव के साथ
आमने-सामने बैठकर, लेटकर
एक दूसरे से बतियाएँगे
उस सफर का विस्तार
जो तय किया है
दोनों ने साथ-साथ