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कविता

असहमतियाँ

प्रताप सोमवंशी


एक

जब सहमतियों का दम घुटने लगे
अस्वीकार और इनकार
सिर उठाकर जीने की तैयारी कर दें
आसपास देखना
अपने तर्क और विचारों से लैस
मौजूद मिलेगीं असहमतियाँ
बहुत जरूरी है इनकी कद्र करना
जहाँ कहीं भी दिखे अहमतियों का आदर
समझ लेना
बहुत कुछ रचा जाना संभव है उस जगह

दो

असहमतियों का एक कद्रदान
नेपोलियन बोनापार्ट
कहता है अपने सेनापतियों से
जो हैं सहमत मुझसे
वो सभी जाएँ सभा से बाहर
इसमें निहित है एक चेतावनी भी
सभा में आए तो विचार के साथ
आज्ञा पालन के लिए
झुके हुए सर के साथ नहीं
सहमत के लिए बने हैं आदेश
जो असहमतों की सभा में
संवाद और संघर्ष से उपजते हैं
सच है कि अगर
नहीं होती असहमतियाँ
तो नहीं फूटते विचार
नहीं उगते सवाल
नहीं तलाशते हम उनके उत्तर
नहीं नजर आता है नया रास्ता
ऐसे दौर मे सबकुछ ठप दिख रहा हो
और दिमाग ठस
तो तलाशनी चाहिए असहमतियाँ
कि ताकि कह सकें हम
पूरी ताकत के साथ
सुनो नेपोलियन,
शर्त के साथ नही बनाए जा सकते
सहमति और असहमति के मापदंड


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