वे शायद बहुत थके हुए हैं
थोड़ी देर और सोने देने की प्रार्थना कर रहे हैं औंधे मुँह
उन्हें लगता है वे प्रेम में हैं
उन्हें प्रेम है अपने आप से पड़ोसियों से दुनिया से
वे शायद जीवित हैं अपने सपनों में
सभाओं, सभ्य बाजारों, रात के मेलों में
बीवी बच्चों समेत खाते पीते दिखते हैं
भाषणों बयानों घोषणाओं पर बहस करते हुए
बात बात पर हाथ मलते, हथेलियाँ रगड़ते
सब एक जैसे चेहरे राख पुते सफेद
जहाँ भी जाता हूँ वे मिल जाते हैं
जैसे अभी उठ खड़े होंगे और बोलने लगेंगे
या तो उन्होंने चुप्पी साध रखी है
या उनकी आवाज खो गई है
गाड़ियों पर लदकर आते हैं
देखकर लगता है वे हँस रहे हैं और खुश हैं
अब जब उनमें किसी बदलाव की गुंजाइश नहीं हैं
उन्हें दफनाया या जलाया जाएगा
या चील कौवों के लिए खुला छोड़ दिया जाएगा,
शायद अंतिम न्याय की आशा में
मुर्दों के पास नहीं है विकल्प