hindisamay head


अ+ अ-

कविता

क्या पता

सर्वेंद्र विक्रम


खेती-बाड़ी शादी ब्याह मरनी-करनी के बगल
चिट्ठी में लिखा है : वजीर चले गए

जब वे हमारे यहाँ आते तो माँ से बतियाते
उन्हें दिया जाता पानी और पान

बचपन के उस पाठ्यक्रम में कई चीजें शामिल नहीं थीं
सिखाई पढ़ाई नहीं जाती थीं भेद की बातें
इसमें भाषा की भी भूमिका थी शायद

हारी-बीमारी में वजीर बना देते थे ताबीज
नमाज के बाद पढ़ देते थे दुआ, आ जाता आराम

भरभराकर निकल पड़ी हैं मधुमक्खियाँ
तब शहद की कल्पना, वजीर अली के बिना !
आते ही चट से धर देते हथेली पर

तब लगता था अंडे उनकी थैली में से निकलते होंगे
जिनका स्वाद इसलिए भी था कि छिपाकर खिलाए जाते थे
पता नहीं कहाँ होंगी वे सुस्त बतखें कुड़कुड़ाती मुर्गियाँ
हमेशा जैसे तैयारी में दिखते थे लदे-फँदे नंगे पाँव

आते-जाते किसी के मायके किसी की ससुराल
बहुत सारे आस्वाद ढोते रहे
इससे उन्हें क्या मिलता होगा कितना

फूस की टोपी लगाए खपरैल के सामने
कलँगी की तरह सहजन का जवान पेड़
धीरे-धीरे बदलते भूगोल में अपना कच्चा सा इतिहास छोड़
वजीर अली चले गए

कंधे पर अँगोछा दाएँ-बाएँ बदलते रहते
शायद यही ढंग रहा हो प्रतिक्रिया व्यक्त करने का
सोचने और मोहलत लेने का
जाने से पहले उन्होंने ऐसा किया होगा कई बार

अवधी की पुरानी प्रेम कथाओं के पार
क्या पता वजीर किधर निकल गए !


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में सर्वेंद्र विक्रम की रचनाएँ