सामने जीवन था नंगी जमीन पर पसरा हुआ
किसी न किसी छेद से कटखनी हवा घुस कर कँपाने लगती
कभी लगता अस्तर गल गया है और इसे बदले बगैर काम नहीं चलेगा
उसने साथ दिया बुरे दिनों सी ठंड से बचने में
एक दिन उसे उधेड़ दिया गया
धुनिये आए
उनके मन में कोई और ही धुन चल रही थी धुनते हुए
और रुई के स्तूप को उन्होंने रेशा रेशा अलग कर दिया
फिर से भर दिया गया लिहाफ
मुकाबले के लिए फिर से तैयार
जद्दोजहद चल रही है
दुखों को धुन कर रेशा रेशा अलग करने की
कहीं कोई धुनिया होगा जरूर