hindisamay head


अ+ अ-

कविता

स्वागत नहीं

सर्वेंद्र विक्रम


वे आधुनिकता के पुरोधा माने जाते लेकिन
सुरक्षा कारणों से उनकी मेहमाननवाजी के लिए
चुना गया एक पुराना बंद किला
जो शायद उनकी दुनिया का एक प्रतिरूप भी था

मैं खास बुद्धिवादी तो नहीं हूँ पर सोचता हूँ
जिसने घर उजाड़े सपनों का खून किया
बमों से बंजर बनाया धरती को

जिससे मनुष्यता को खतरा है उसे किससे खतरा है

वे रिश्तों की नई व्याख्याएँ प्रस्तुत करने वाले हैं
खोलने वाले हैं संबंधों के सुनहरे द्वार
उनकी प्रशंसा में तैयार की जा रही थीं नई धुनें
हाथ हिलाने और पलकें झपकाने की अदाएँ

किले की प्राचीर से सुनने वाले थे उनका ऐतिहासिक संबोधन
पड़ोस के चिड़ियाघर में बाड़ों में बंद जानवर
सुरक्षा घेरों में जीने वाले धनी अभिजन
कंपनियों के बड़े ओहदेदार

यात्रा में उनके राजघाट जाने की भी खबर है
फंतासी ही सही, अगर लगे कि वहाँ फूलों की जगह
उलट दिया गया हो रक्त का कटोरा समाधि पर
क्या बीतेगी लाखों करोड़ों दिलों पर
स्मृतियों में किस तरह उथल पुथल होगी

ताकतवर का विरोध भले ही राजनीतिक रूप से सही न हो
भले ही हम ऐसा कर न पाएँ
हमारे वश में क्या है और क्या नहीं है, दुविधा के बावजूद
हमारे वश में है आवाज तो उठाएँ

कुछ लोगों ने उसे आमंत्रित भले ही किया हो
उसका स्वागत नहीं है इस घर में 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में सर्वेंद्र विक्रम की रचनाएँ