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कविता

क के बारे में

सर्वेंद्र विक्रम


क को जब किसी तरह आराम नहीं हुआ
तो उसे परीक्षणों से गुजरना पड़ा

उसका खून उतना लाल नहीं निकला
जितना जरूरी समझा जाता था गर्म होने के लिए
इससे हालाँकि यह खतरा नहीं था कि वह मौके बेमौके
कई चीजों के खिलाफ लोहे जैसा सख्त रवैया अपना लेगा

मसलन यही कि उसके बच्चों की माँ के दूध में
एक तरह का रसायन विष क्यों पाया जा रहा है
कि नदी को नाली की तरह बजबजाने
क्रमशः मरने के लिए किसने मजबूर किया है
फेफड़ों में उतनी हवा नहीं समा रही है
हड्डियों में इतना भी फास्फोरस नहीं बचा
एक तीली बना सके गांधी प्रतिमा पर दीपक जलाने के लिए
नसें सिकुड़ गई हैं और उनसे गुजर नहीं पा रहा है ट्रैफिक

जरा सा भी हिलने डुलने से खुल जाते हैं घाव
अंदर रिसता रहता है

उसे न भूलने की एक जो बीमारी है
बताया गया बीमारी नहीं लक्षण है
उसके दिमाग का एक हिस्सा सूखने के उलट फैल रहा है
और विस्फोट का खतरा है

उसके सीटी स्कैन से पता नहीं चलता
क्यों हर वक्त बारिश जैसी टिपटिप होती रहती है

उसे सलाह दी गई हदों में रहने के बारे में
उसे दिखता नहीं, निगाह कमजोर है
तो अपने आसपास की चिंता करने की क्या जरूरत है?
दूर तक सोचना चाहिए कि वहाँ पहुँचने पर क्या क्या मिलेगा

उसे बचकर रहना चाहिए उबाल और छानकर पीना चाहिए
बेहतर हो शामिल करे वह अपने खानपान में डिब्बाबंद विचार
उसे चिल्लाकर नहीं बोलना चाहिए
हमेशा के लिए चली जाएगी आवाज

उसने सोचा आवाज? किसकी आवाज?
उसे याद नहीं आया
कितने दिन हुए अपनी सी आवाज सुने हुए
उसकी आवाज है भी?

वह हँसा, अपरिचितों के बीच सी हँसी
जिसका आशय यह भी था कि
उसके कथन में मौलिक कुछ भी नहीं है

उसकी रिपोर्ट में भी कोई नयापन नहीं है
सन् 47 के बाद यह उसकी शायद चौसठवीं रिपोर्ट है
और उसके पहले के सारे दस्तावेज
उसने जला दिए उस दिन आधी रात की खुशी में
सब पुराना समझकर

उसके अंदर जो गिनती के लोग बसे हुए हैं
अब उन्हें बेदखल करने की तैयारी है।


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