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कविता

जितना आप मुझे जानते हैं

सर्वेंद्र विक्रम


मैं नाचती नहीं हूँ
सोती हूँ गैर मर्दों के सपनों में
मेरे माँ बाप कौन थे
उन्होंने मुझे खारिज कर दिया होगा
मैं कभी कभी पहनती हूँ बादल हवाएँ आँधी पानी
मेरी बाईं जाँघ पर एक निशान है जो बर्थमार्क नहीं है

मुझ पर भरोसा नहीं है
मैं सब कुछ भुला देती हूँ लेकिन भूलती नहीं कुछ
आपकी तसल्ली के लिए बता दूँ

मैं उतना ही नहीं हूँ जितना आप जानते हैं

मैं दबी छिपी रहती हूँ
मुझे ऊँचाइयाँ पसंद हैं
खेल भी
लेकिन अपने साथ नहीं

मुझे लगता है मैं इससे कुछ ज्यादा भी हूँ


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