hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम मर्दूदे महफ़िल पीछे     आगे

निकाला गया यूँ मैं उस अंजुमन से

खिंचे खाल जैसे किसी के बदन से

मैं आवारा बे नाम मर्दूदे महफ़िल

फिरूँ जैसे निकली हुई जान तन से

नहीं दुश्मनों की रविश[1] से शिकायत

है टूटा ये दिल बस तेरी बाँकपन से

मेरे मुँह को जैसे कलेजे के टुकड़े

ख़याले हज़ीं[2] आये किस अंजुमन से?



[1] तरीक़ा

[2] ग़मगीन ख़याल


>>पीछे>> >>आगे>>