तेरी तस्बीह[1] को जिसने दुरो-मरजाँ[2] से भरा
उसी रब ने मेरे ज़ुन्नार[3] को बख़्शी है सफ़ा[4]
जिसने पुरनूर किया काबे की दीवारों को
उसके ही रंग में रंगीं है बुतों की दुनिया
जिसने भेजे थे कई राहबरे राहे हरम[5]
बनके ख़ुद पीरे मुग़ाँ[6] बादाक़दे[7] में आया
जिसका फ़र्मान है शायस्तगिये तौफ़े हरम[8]
हुक्मे मख़मूरिये ख़म्मार[9] वहीं से आया
चश्मे तौफ़ीक़ जिसे पीरे-मुग़ाँ ने बख़्शी
उसने काबे को इसी बादाक़दे में देखा
[8]
का,बे की शिष्टतापूर्वक परिक्रमा
[9]
मधुशाला की मस्ती का हुक्म