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कविता

पेड़

सुभाष राय


जैसे पेड़ मरता नहीं
मर-मर कर जीवित हो उठता है
जमीन पर गिरे हुए अपने बीजों में
उसी तरह मैं भी बार-बार मरना चाहता हूँ
नई जमीन में नये सिरे से उगने के लिए
मैं जानता हूँ कि मृत्यु का
सामना करके ही मैं
जीवित रह सकता हूँ हमेशा


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