hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जब व्यथा

आल्दा मेरीनी

अनुवाद - सरिता शर्मा


जब व्यथा बदले की कूची की तरह
अँधेरी आत्मा के भीतर
अपने रंग फैलाती है,
मैं एक पुरातन भूख की कली को खिलकर
शरमाते और धूसर होते
और आने वाले कल के प्रकाश को मरते हुए महसूस करती हूँ।
और, मेरे खिलाफ उठी, निर्जीव वस्तुएँ
जिन्हें मैंने पहले बनाया था
मुझसे शरण और लाभ की इच्छुक
मेरी प्रज्ञा के हृदय में
फिर से मरने आ जाती हैं,
एक भिखारी से दोबारा धन की भीख माँगती हुई।


End Text   End Text    End Text