hindisamay head


अ+ अ-

कविता

ओवरकोट

आल्दा मेरीनी

अनुवाद - सरिता शर्मा


एक ओवरकोट हमारे घर पर लंबे समय तक रहा था
बढ़िया ऊन से बना हुआ
मुलायम ऊन वाला
कई बार रफू किया गया ओवरकोट
खूब पहना गया, हजारों बार अंदर-बाहर उलटा-पुलटा गया
उसने हमारे पिता के ढाँचे को
उनके आकार को पहना, वह चाहे चिंतित या खुश था
एक खूँटी पर या कोट रैक पर लटका हुआ
वह पराजित सा लगने लगा था
उस प्राचीन ओवरकोट के माध्यम से
मुझे मेरे पिता की छाया में,
वह जीवन जीने के, रहस्यों का पता चला।


End Text   End Text    End Text