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कविता

पृथ्वी सबसे सुंदर होती है...

पेर लागरकविस्त

अनुवाद - सरिता शर्मा


पृथ्वी सबसे सुंदर होती है जब रोशनी बुझने लगती है।
आकाश में जितना भी प्रेम है,
धुँधली रोशनी में समाहित है।
खेतों और
नजर आने वाले घरों के ऊपर।

सब शुद्ध स्नेह है, सब सुखदायक है।
दूर किनारे पर खुद प्रभु समतल कर रहे हैं,
सब करीब है, फिर भी सब दूर है अज्ञात,
सब कुछ दिया जाता है
मानव जाति को उधार पर।
सब मेरा है, और मुझसे ले लिया जाएगा,

सब कुछ जल्दी ही मुझसे छीन लिया जाएगा।
पेड़ और बादल, खेत जिनमें मैं टहलता हूँ।
मैं यात्रा करूँगा -
अकेला, नामो-निशान के बिना।


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