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कविता

भोर भइल

हरेराम द्विवेदी


भोर भइल
डारी-डारी चिरई कै सोर भइल
भोर भइल

चलै लगल डहर बड़े भिनसहरे
अनियासै गोड़ पड़ल बिछिलहरे
कहवाँ से के आके
बरबस मन बहका के बिना कसूरै धइके कलाई मिमोर गइल
भोर भइल

संझा डालैले करिया परदा
बोइ-बोइ अन्हियरिया कै गरदा
जोति कलस माथ धरे
किरनन कै हाथ धरे
के आके डहरिन कै कुलि गरद बटोर गइल
भोर भइल

सपना के दरपन कै परछाहीं
कसकैले रतिया कै गलबाँही
खिड़की से झाँक-झाँक
पोर पोर पीर टाँक
डँड़वारी पर चढ़के छीट के अजोर गइल
भोर भइल

नेह छोह कै बिरवा फूल गयल
तनिकै में सगरी दुख भूल गयल
भवन अनिचिन्‍हार लगै
कतौं ना अन्‍हार लगे
देखतै देखते टहनी टहनी झकझोर गइल
भोर भइल 


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