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सब कुछ इतना आसानी से नहीं हुआ था। पहले तो सोनीपत में ही बुद्धू और ऋजु के संबंध बिगड़ते चले गए थे। एक दिन ऋजु का बड़ा भाई जो चंडीगढ़ में रहता है, वह दिल्ली अपनी माँ और दूसरे लोगों से मिलकर गाड़ी से अमृतसर जा रहा था। उसे अमृतसर में काम था और वहाँ से होकर वह चंडीगढ़ जाता। साथ में पत्नी थी और दोनों बेटियाँ। ऋजु ने बुद्धू से सिर्फ इतना कहा था कि फ्लाइंग मेल गाड़ी सोनीपत में रुकती है। तुम जा कर स्टेशन पर मिल आओ क्योंकि बिटिया को इतनी धूप में स्टेशन ले जाना ठीक नहीं। गाड़ी सिर्फ डेढ़ ही मिनट तो रुकती है! पर बुद्धू ढीठ सा बैठा रहा और इधर घर तक गाड़ी की सीटी भी आ गई। यहाँ से एक खिड़की से बाहर कुछ दूर तक देखो तो गाड़ियाँ आती-जाती नजर आती हैं। खासकर दिल्ली से जो गाड़ियाँ आती हैं और स्टेशन में प्रवेश कर रही होती हैं, उन पर ऋजु की नजर वजह-बेवजह बनी रहती।
उस दिन गाड़ी की सीटी भी जोर से बजी पर बुद्धू को तो उससे काफी पहले स्टेशन के लिए निकल जाना चाहिए था। उस दिन तो वह दफ्तर से ग्यारह बजे ही आ गया था क्योंकि वह उसका वीकली ऑफ था। पूरे डेढ़ बजे फ्लाइंग आती है और आज भी आ कर सीटी बजाती रुकी और चली गई। ऋजु को पहली बार ऐसा लगा कि बुद्धू पर गुस्सा करे। वह भी पत्नी है। किसी बात पर उसे भी गर्माने का हक है। उसका भाई इस स्टेशन पर सिर्फ डेढ़ मिनट गाड़ी में रुका है। खिड़की से उसने देखा होगा दूर-दूर तक कि ऋजु नहीं तो समर्थ जरूर आएगा उससे मिलने, यह सोच मायूस हुआ होगा कि कोई आया ही नहीं। ऋजु ने तो यह भी पत्र में लिख दिया था अपने भाई को कि अगर कभी गाड़ी-वाड़ी में हम लोग मिलने आएँ तो प्लीज कोई चीज या तोहफा-वोहफा बिलकुल मत लाना, न ही कुछ पैसे-वैसे देना। मेरा समर्थ तो सिद्धांतों वाला व्यक्ति है और कहता है कि ससुराल वालों से एक पैसा भी नहीं लूँगा। पर आज जो बुद्धू घर से हिला ही नहीं तो वह गर्म होकर बोली - 'तुम्हें किसी की फीलिंग्स का इतना भी खयाल नहीं, किसी के लिए तुम्हारे मन में जरा भी इज्जत नहीं कि जा कर सिर्फ एक स्माईल से मेरे भाई को स्टेशन पर मिल आओ? वह क्या तुम से कुछ लेने आ रहा था? तुम इससे छोटे हो जाते न... ह्म्म्म? वो लोग कितना पूजते हैं तुमको...?
बुद्धू को जाने क्या हुआ, उठकर ऋजु के मुँह पर एक तमाचा जड़ दिया? यह चरम था ऋजु के दर्द का। ऋजु सकते में आ गई। इसकी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। चिल्ला पड़ी - 'तुमने मुझे मारा समर्थ? तुमने मुझ पर हाथ उठाया?' और अचानक झगड़ा बढ़ गया। बुद्धू बोला - 'तुम बस, अभी, इसी समय निकल जाओ घर से। जा कर माँ के घर रहो।'
ऋजु हतप्रभ सी हो गई। उसे लगा कि आज जो कुछ हो रहा था, वह उसके घर की टूटन की पराकाष्ठा थी बस। उठकर तैयार होने लगी - 'जाती हूँ। तुम क्या समझते हो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती? मैं तुम्हारी भिखारिन नहीं हूँ। तुम जैसों को मैं अपने आगे समझती क्या थी? जाती हूँ। फिर यहाँ तुम्हारा तमाचा खाने नहीं आऊँगी।'
बुद्धू में अब चिल्लाने की हिम्मत नहीं बची थी। पर ऋजु तेजी-तेजी से तैयार होने लगी। बिटिया को गोद में उठाकर आँसू बहाती कमरे में घूमने लगी। उसके कमरे में घूमने का अंदाज ऐसा कि अब वह नितांत अकेली सी हो गई है और उसे अपना यह घर दूर-दूर तक फैला हुआ एक निर्जन सुनसान सा लग रहा है। फिर अचानक जाने क्या हुआ, उसने बिटिया को बिस्तर पर फिर से लिटा दिया? कमरे में काफी देर सन्नाटा सा रहा। फिर ऋजु अचानक बुद्धू के एकदम सामने आ गई। बुद्धू तो दूसरी चारपाई पर लापरवाह सा दीखता लेट रहा था। पर ऋजु डर-डर कर चारपाई के किनारे आ बैठी और एक कागज बुद्धू को दिखाने लगी। बुद्धू ने लेटे-लेटे ही पढ़ा, लिखा था - 'मुझे माफ कर दो, मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं कहूँगी।' पर बुद्धू का ध्यान इस लिखे हुए से भी ज्यादा इस बात पर गया कि उस कागज पर ऋजु ने ये शब्द अपने खून से लिख डाले हैं। उसने क्या किया था कि एक ब्लेड लेकर अपने ही हाथ की एक अँगुली में एक चीर सा लगाकर खून की धार बहने दी? उसमें कोई तीली-वीली लेकर एक-एक शब्द एक नोटबुक से फाड़े किसी कागज पर लिख लाई वह। बुद्धू ने जलती आँखों से देखा और बहुत कमजोर आवाज में गुस्सा करने लगा - 'यह कोई तरीका है अपनी बात कहने का?'... पर ऋजु रोती हुई बोली - 'मुझे मत निकालो। मेरी भाभियाँ मुझे ताने मार मारकर छलनी कर देंगीं। दूसरी बार घर का टूटना कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता। मेरी भाभियाँ पहले भी मुझसे खूब बुरा व्यवहार करती थीं।' बुद्धू यह सब न देख सका पर वह सहसा करवट बदल कर दूसरी तरफ मुँह करके सो रहा जैसे उसकी अपनी उथल-पुथल और ऋजु के इस प्रकार खून से लिखे शब्दों के बीच कोई संघर्ष सा चल पड़ा हो जिस से उसकी अपनी उथल-पुथल जटिल सी हो रही हो। ऋजु गई तो नहीं, पर उसे रात भर लगा जैसे यह रात उसकी जिंदगी की सबसे अकेली रात है, जब उसे एक ऐसे व्यक्ति ने तमाचा मारा है जो उसके लिए तड़पता था, जो उसके लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहता था। कितनी भी आधुनिक थी वह, कितनी भी स्वच्छंद, यह शख्स उसे पूजता था। पर इस बार लग रहा है जैसे वह पुराने से पुराने जमाने के किसी घर की एक बहू होने जैसी सजा भुगत रही है। उसकी आँखों से रात भर आँसू बहते रहे। वह दीवार की तरफ चेहरा करके अपनी तर्जनी से वजह-बेवजह दीवार पर रेखाएँ खींचती रही, जैसे आक्रोश में आ कर दीवार को ही ढहा देना चाहती हो। उसकी उस अँगुली में हल्का-हल्का दर्द भी रहा जिसमें उसने ब्लेड से एक चीर कर मारा था। फिर कभी-कभी बिटिया को चूम लेती। उस तरफ बुद्धू इसी चारपाई पर गहरी और बेचैन सी लगती नींद में सोया था। जैसे नींद उसके लिए भी बहुत असह्य सी हो गई हो।
इस बीच यह भी हुआ कि एक दिन गोद में बिटिया को उठाए ऋजु समर्थ के साथ दिल्ली आई हुई थी। मोहल्ले की तरफ बढ़ते-बढ़ते उन्हें सौरभ मिल गया। बहुत खुश हुआ दोनों को देखकर और उसके साथ अंजली भी थी। उन्हें पता ही नहीं था कि उधर क्या-क्या तनाव चल रहे हैं। पर सौरभ बेहद खुश था और अंजली के साथ कहीं जाने की जल्दी में भी। ऋजु से बोला - 'पता है, अनमोल की सगाई तय हो गई है!' ऋजु ने खुशी से उछलते से पूछा - कब-कब? हमें तो पता ही नहीं?' पर सौरभ बोला - 'अभी दो-तीन घंटे पहले तो तय हुआ है रिश्ता।' अंजली खुश होकर बोली - 'लड़का भोपाल का है। अमरीका में रहता है। यहाँ एक होटल में ठहरा था और आ कर अनमोल को देख गया और रिश्ता फिक्स भी कर गया!' ऋजु का चेहरा अमरीका सुनकर फक सा पड़ गया। कहीं अनमोल को लेकर अनामिका भी वही गलती तो नहीं कर रही, जो उसके डैड ने सत्येन को लेकर की थी? उसने फिलहाल कुछ न कहा। सौरभ कहता ही रह गया - 'अनमोल तो है भी खूबसूरत न। सो पसंद कैसे न आती?' पर ऋजु बुद्धू के साथ आगे बढ़ गई और सौरभ व अंजली अपने काम से चले गए। दोनों इसी खुशखबरी के सिलसिले में किसी काम से चल पड़े थे। ऋजु ने आ कर अनामिका से कहा भी - 'दीदी लड़का कैसे मिला? अमरीका ले भी जाएगा अनमोल को? कहीं...'
पर अनामिका ने बहुत कड़क सी आवाज में कहा - 'जो तुम्हारे साथ हुआ, जरूरी नहीं कि हमारे साथ भी हो। लड़का हमें जानता नहीं था। किसी बीच वाली औरत ने बताया कि छ साल से अमरीका में है पर लड़की हिंदुस्तानी ही चाहिए उसे। सो लड़की पसंद करने ही अमरीका से महीने भर से आया हुआ है। कई लड़कियाँ देखे जा रहा है, पर अनमोल ही उसे पसंद है।'
ऋजु के लिए चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसे लगा कि लड़की का सुंदर होना और लड़के द्वारा उसे पहली बार में ही पसंद कर लेना ही लड़की के लिए काफी माना जाता है। बाकी किसी बात से लड़की वालों को तो कुछ लेना-देना ही नहीं। पर उसे घोर चिंता हुई। इतनी आधुनिक शिक्षा प्राप्त है अनामिका, इतना जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास क्यों रख रही है वह? पर फिर भी, वह भी सोचने लगी - 'जरूरी तो नहीं है कि अनमोल के साथ भी वही हो जो मेरे साथ हुआ है? ऐसा न हो, बिलकुल न हो। अपनी अनमोल सदा सुखी रहे।'
अनमोल की शादी की तारीख भी उस लड़के ने जल्दी-जल्दी माँगी क्योंकि वह तो अमरीका से आया ही शादी के लिए लड़की पसंद करने था सो अब वह रुक नहीं सकता था। अनामिका के लिए महीना भर बहुत तनाव से भरा रहा। अचानक पासपोर्ट... वीजा... न जाने कैसी-कैसी औपचारिकताएँ थीं जो उसने पूरी कीं। उसका अच्छा भला दायरा था और सैंकड़ों सलाम करने वाले। सब चारों तरफ दौड़ते रहे। कोई अमरीकी दूतावास गया तो कोई महानगर पार्षद के पास कोई कागज अटेस्ट कराने। सौरभ दौड़ता रहा कि अनमोल की तस्वीरें तैयार हो गईं कि नहीं। वगैरह-वगैरह। ऋजु और बुद्धू केशू बिटिया को लेकर फिर चले गए और उसी तनावग्रस्त गृहस्थी को खींचते रहे। बुद्धू अपने आपको ही समझ नहीं पा रहा था और एक दिन अनमोल की शादी का शामियाना खड़े होने का दिन भी नजदीक आने लगा। बुद्धू ने रिलीवर मँगा लिया। दफ्तर में दानसिंह क्लास फोर अपनी नादानियाँ करता ही रहा। कभी कहता कि सा'ब थोड़ा ड्रिंक-व्रिंक करा दिया करो। कभी यह कि दानसिंह ने अपने छोटे भाई को ही एक दिन डंडों से पीट दिया। उसका भाई गाँव से आ कर उसके पास रहने लगा था पर उसके पास कोई आजीविका नहीं थी। दानसिंह गालियाँ बकता रहता कि 'यहाँ भीख माँगने क्यों आ गया है तू, मेरी छाती पर मूँग दलता रहेगा क्या?' और एक दिन बुद्धू दफ्तर आए तो दानसिंह अपने उसी छोटे भाई को डंडों से पीट रहा था। भाई कुछ देर पैसे-वैसे माँगने आ गया था दफ्तर। बुद्धू ने आगे बढ़कर दोनों को अलग किया और किसी प्रकार अपना काम निपटाकर घर चला आया। एक दिन दानसिंह ने क्या किया कि नजदीक ही एक गाँव के व्यक्ति से वादा कर लिया कि वह उसके बेटे को फौज में नौकरी दिलवाएगा, पर उसके लिए छ सौ रुपये रिश्वत खिलानी पड़ेगी। उस आदमी ने छ सौ रुपये दे दिए पर कई दिन तक नौकरी का कोई सुराग नजर नहीं आया तो वह आदमी दफ्तर आ कर तकाजा करने लगा। दानसिंह ने उसे भगा दिया। चिल्लाकर बोला 'जो करना है कर जा के, मैंने कोशिश की पर नहीं मिलती नौकरी तो मैं क्या करूँ।'
इधर घटनाचक्र तेजी से घटने लगा। शादी की तारीख तय हो गई। कार्ड छप गए और टेंट लगाने वाले, केटरर, डेकोरेटर फोटोग्राफर... सब तय हो गए। अनामिका को होश नहीं था और उसे महसूस हो रहा था कि लड़की की शादी अचानक लड़के वालों की डिमांड पर तुरंत करनी पड़े तो कैसी कसरत सी हो जाती है तन-बदन की। फिर कभी-कभी वह अपनी ही इस हालत पर हँस भी पड़ती। उसके साथ पूरा एक घर था और उसके अधीनस्थ लोगों समेत उसका पूरा साम्राज्य।
शादी हो गई। पर जिस समय पंडाल में शादी का धूम-धड़क्का था और लोग हँसते हुए एक-दूसरे से मिल रहे थे उस समय ऋजु ने अचानक घबराते हुए आ कर बुद्धू से कहा - 'पंडाल के बाहर न, एक औरत आई है। वह यहाँ पड़ोस की कुछ औरतों को जानती है। हमारी जो लड़ाकू मकान मालकिन थी न इस मोहल्ले में, वह भी शादी में आई है, पति भी साथ है, उससे वह औरत बातें कर रही थी। उसी मकान मालकिन ने आ कर बताया कि न जाने क्या हो, वह औरत तो...'
और सचमुच, अनमोल अमरीका जाते ही सकते में आ गई थी।
उस औरत ने ऋजु की पुरानी बड़बोली मकान मालकिन से कहा था - 'लड़का तलाकशुदा है। पहली बीवी झांसी में कहीं रहती है।' यह सुनकर ऋजु दौड़ती हुई अनामिका को भी ढूँढ़ने लगी थी। पर बुद्धू मिला तो उससे आ कर यह सारी बात बता दी। बुद्धू ऋजु से बोला - 'चलकर दीदी के कान में यह बात डाल तो दें। न जाने वह औरत झूठ बोल रही है या सच, अच्छी है या शरारत कर रही है।' पर अनामिका चूक गई। उसने बुद्धू और ऋजु से कहा - 'अरे नहीं, वह औरत उसी होटल में अपनी बेटी दिखाकर आई थी इसी लड़के को। लड़का माना नहीं तो अब सबको बदनाम कर गई है।'
पर ऋजु की पुरानी मकान मालकिन ने अनामिका को ही खोज कर उससे कहा था - 'अब अचानक जो शादी रोकोगे तो तमाशा हो जाएगा। पर वह औरत जो आई थी, झूठ बात बताने वालों में नहीं लगती।'
इधर अनमोल अमरीका पहुँच गई। जिस घर के सपने उसने हवाई जहाज की इतनी लंबी यात्रा के दौरान जाने कितनी बार देखे, उस घर में घुसते ही उसे अंदर के एक कमरे की दीवार पर एक औरत की तस्वीर दिखी। साथ में उसी औरत की तस्वीर अनमोल के पति के साथ, जैसे नई-नई शादी हुई हो। उसके पति ने कमरे में घुसते ही, जैसे कोई जरूरी काम किए बिना ही वह भारत चला गया हो, तेजी से वे तस्वीरें दीवार से हटा दीं। पर अनमोल ने सवाल किया - 'इन तस्वीरों का क्या मतलब?' और उस लड़के ने उसे अपने साथ बिठाकर प्यार करते-करते सब कुछ बता दिया, कि यह लड़की अब उसकी जिंदगी से बाहर है। इससे तलाक हो चुका है मेरा। तस्वीरें लापरवाही से यहाँ टँगी रह गईं। पर अच्छा हुआ, तुम्हें पता चल गया। पर तुम्हें यहाँ कोई कमी नहीं होगी!'
इसके ठीक अगले हफ्ते वही बड़बोली मकान मालकिन नीचे गली से ही अनामिका को बुलाने लगी थी, बोली - 'पता किया मैंने। वो खबर सच्ची है। अब क्या करोगी तुम?'
पर इस सारी घटना का नतीजा यह कि अनामिका के पिता अचानक चल बसे। बड़बोली मकान मालकिन एक दिन अचानक उसी औरत को साथ लेकर घर में ही आ गई जो पंडाल के बाहर घूम रही थी शादी वाली शाम। अनामिका घर में थी ही नहीं। बल्कि कमरे में कोई था ही नहीं। केवल अनामिका के पिता अपने बिस्तर पर बीमार से पड़े आराम कर रहे थे। उस औरत ने बड़बोली मकान मालकिन से पूछे बिना ही कि अब कुछ कहना चाहिए या नहीं, अनामिका के पिता से कह दिया - 'आपकी बेटी के साथ धोखा हुआ है। उसकी जिस लड़के से आपने शादी कराई है, उसने आपको बताया ही नहीं कि यह उसकी दूसरी शादी है। कम से कम बताता तो न? इतना बड़ा धोखा?' अनामिका के पिता सुनकर समझने की चेष्टा करने लगे और ये औरतें चली गईं। अनामिका दफ्तर से लौटकर कमरे में आई है तो पिता अपने बिस्तर पर एक तरफ लुढ़के पड़े हैं। अनामिका के चिल्लाने पर बड़े भाई की पत्नी कुमुद और सौरभ आ गए। पर अनामिका फिर चीख पड़ी - 'पिताजी को क्या हो गया? ये तो हैं ही नहीं!' सब लोग आ गए। पिता नहीं रहे। बेटी की जाने क्या दुर्गति हुई होगी वहाँ, यह कल्पना करना उनकी सामर्थ्य की बात नहीं थी। अनामिका बुरी तरह रो पड़ी। उसने अनमोल से संपर्क बनाया कि अनमोल को तो बता दे पिताजी के बारे में। अनामिका के घर के साथ वाली औरत भी अचानक आ गई। सब कुछ समझकर वह अनामिका को बाल्कनी में ले गई। बोली - 'पीछे से वह झगड़ालू लेडी आई थी अनु। मैं यहीं बाल्कनी में थी कि उसके साथ आई औरत की बात सुन ली मैंने। वह अनमोल के बारे में...' अनमोल ने फोन पर बताया कि बात ठीक है, मैं ठगी गई हूँ। पर मैंने सोचा पिताजी को कितना बड़ा सदमा पहुँचेगा अगर मैं यहाँ से झगड़ा करके वापस भारत आ गई तो, इसलिए गम खा गई। इन्होंने अब आश्वासन सा दे दिया है कि अब उस औरत से उनका कोई वास्ता नहीं। अनामिका फफक पड़ी - 'अनमोल, पिताजी को तो सदमा पहुँच ही गया। अब वे उसी सदमे के शिकार होकर चले भी गए...' सुनकर अनमोल भी फफक सी पड़ी पर उसके लिए अपनी जिंदगी में आए हुए इस परिवर्तन को सँभालने के अलावा कोई चारा न था।
ये तमाम बातें अनामिका ने बुद्धू को नहीं बताई थी। उसने केवल पिता के चल बसने पर बुद्धू को फोन करवाया था। उस समय बुद्धू के नए मकान मालिक का नंबर मिल नहीं रहा था। अनामिका के ऑफिस से उसी महिला ने अपने पहचान वालों को फोन किया जिस ने बुद्धू को शुरू में कमरा दिलाने में मदद की थी। उस घर से एक लड़का साइकिल पर निकल पड़ा बुद्धू के नए घर को ढूँढ़ने। आखिर इंदिरा कोलोनी में पहुँच गया। ऋजु को पता चला तो चीख सी पड़ी - 'आप कौन हो? कहाँ से आए हो? हमारे पिताजी को कुछ नहीं हो सकता।'
पर बुद्धू दफ्तर से लौटा तो ऋजु ने फिलहाल कुछ नहीं बताया। उसने सिर्फ इतना कहा - 'पिताजी की हालत बहुत सीरियस है।' और केशू को लेकर दोनों चले आए। ऋजु ऐसे समय भी बुद्धू के बदलते रहते मूड को देखती रहती। घर में आई बुजुर्ग औरतों की सेवा करती रहती। बिटिया को कहीं सुला देती। इधर बुद्धू ने रिलीवर फिर मँगा लिया था। घर में आई बुजुर्ग औरतें जिन में से कुछ तो बंबई से आई थीं, वे ऋजु को अकारण ही शिक्षा देना लगीं कि 'अब छ महीने तक कहीं जाना मत। अपनी माँ के पास भी नहीं।' पर ऋजु बोली - 'ऐसा कैसे हो सकता है? मेरी माँ मेरी बेटी को देखे बिना रह नहीं सकती। वह उसके मामले में इतनी बातें समझाती है तो...' बुद्धू को पता चला कि ऋजु ने घर में आई मौसियों को ऐसे जवाब दिए हैं तो उसे कोने में ले जा कर झाड़ने लगा - 'तुझे क्या मैंने मना किया कि माँ के पास मत जाना? उन औरतों ने कह दिया तो पलट कर जवाब देने की या जबान लड़ाने की क्या जरूरत थी?' ऋजु का चेहरा ऐसे बन गया जैसे वह अच्छी बच्ची की तरह फौरन समझ गई। उसी समय घर की बाल्कनी में खड़े-खड़े उसने दोनों कान पकड़ लिए - 'हाँ, सचमुच, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई। अब जा कर माफी माँगती हूँ। प्लीज, थोड़ी देर केशू को गोद में उठाकर घुमाओ न।' ऐसे क्षणों में ऋजु का दिल जोर-जोर से धड़कने भी लगता।
ऋजु का भाई सोनीपत आ गया है। जित्तू। जित्तू के बारे में ऋजु ने बुद्धू को बता रखा है कि वह थोड़ा ड्रिंक ज्यादा कर लेता है। पर मैं उसे ज्यादा ड्रिंक करने नहीं दूँगी।
जित्तू आया तो उसने क्या किया कि ड्राइंगरूम में बैठते ही अपना ब्रीफकेस खोला और बीयर की एक बोतल खोल दी? उसने समझा बुद्धू को उसी ने तो उस दिन डी.एल. वाई में आते-आते आश्वासन दिया था - 'मेरे होते हुए आपको कोई भी तकलीफ हो जीजा जी, आप मुझे बताना। मैं अपनी जान दे दूँगा पर आप पर कोई आँच नहीं आने दूँगा।' ऋजु ने बुद्धू को यह भी बताया था कि जित्तू बड़े दिलदार किस्म के आदमी की तरह बातें करता है।
जित्तू के होते ऋजु रसोई में चली गई। बिटिया बिस्तर पर सोई थी और उसे गहरी नींद आ गई थी। जित्तू बोला - 'यह ब्रैंड कैसा है जीजा जी, 'गोल्डन ईगल'? मैं हमेशा यही बीयर पीता हूँ। जानते हैं, बीयर में ज्यादा नशा होता ही नहीं।' और जित्तू ने दो गिलास बना भी लिए। बुद्धू रूखे तरीके से बोला - 'मैं कोई ड्रिंक-व्रिंक नहीं करता। आप लो, मुझे जरा अपना काम करने दो।'
कहकर बुद्धू एक तरफ बैठ कोई पुस्तक पढ़ने लगा। जित्तू के पास फिलहाल कोई चारा नहीं था। वह चुपचाप बीयर पीने लगा पर उसने एक और बोतल निकाल ली और तीसरा गिलास पीने लगा। बुद्धू को गुस्सा आ गया और किचन में आ गया। किचन इस कमरे से दूर, छत के दूसरे छोर पर है। ऋजु को पता ही नहीं उधर हो क्या रहा है और बुद्धू ऋजु से कहने लगा - 'तुम्हारा भाई कुछ ज्यादा ही चढ़ा रहा है, यह सब मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा।'
ऋजु अब तक इतनी सँभल चुकी थी कि बात-बात में यही कहती - 'जो तुम कहो। जैसा तुम कहो...' ये वाक्य उसने रट से लिए थे। अब भी यही बोली - 'क्या ज्यादा ड्रिंक कर रहा है? मैं अभी उसे सीधा करती हूँ। समझता क्या है? यहाँ बैठना है तो तमीज से बैठे। आखिर वो समर्थ के घर बैठा है। समर्थ, मेरा सब कुछ...' और ऋजु कड़छी हाथ में लिए ही तेजी से जा कर बैठक में बैठी। उधर बिटिया भी कुछ असंयत सी दिखी और आँख खुलते ही रोने लगी थी। ऋजु वापस कड़छी रख गई और बिटिया को गोद में उठाकर जित्तू से सब कुछ मिनटों में बंद करवा दिया, बोली - 'मत करो यह ड्रिंक-व्रिंक यहाँ। दिल्ली समझ रखी है क्या? समर्थ ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता!' जित्तू हक्का-बक्का सा था। सब कुछ समेट लिया, बल्कि जित्तू ने तो खाना भी अधूरा सा खाया और किसी बहाने जल्दी दिल्ली वापस चला गया। पर बुद्धू को लगता था कि अब दोनों एक ही घर में अजनबी से बन गए हैं। इसलिए एक दिन ऋजु से ही बोला था - 'चलकर दिल्ली में तुम्हें छोड़ आता हूँ। हम लोग अब रह ही नहीं सकेंगे।' ऋजु चुपके-चुपके बिना बुद्धू को दिखाए तक आँसू भी बहाती रही और बिटिया को सीने से भी लगाए रही। बुद्धू शाम तक एक टेंपो भी ले आया - 'चलो, तुम्हारा सामान इस टेंपो में डाल देता हूँ।' ऋजु को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है। बल्कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब कुछ सचमुच में हो रहा है!