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लघुकथाएँ

उनके धन

दीपक मशाल


मजदूर था छोटेलाल, नया-नया बना था। इससे पहले किसान हुआ करता था रहा था, पाँच बीघे के छोटे से खेत का मालिक। बारिश के न होने ने उसकी मेहनत को छोटे से खेत से शहर की बड़ी इमारत में विस्थापित कर दिया था। पत्नी संग गाँव से चला तो किसी बुजुर्ग ने हिदायत दी थी

- हम गरीबन को धन बस इज्जत है लला, खयाल रखियो।

'हओ' में सिर हिला दिया था उसने।

शहर में कंस्ट्रक्शन साइट के अहाते में ईंटों और बरसाती से बने उसके नए ठौर में, अमीरों की एक देर शाम कहें या गरीबों की रात, कुछ दरुए घुस आए। पहले बर्तन-भाड़े फेंके गए और फिर इज्जत की तरफ हाथ बढ़ने लगे। छोटेलाल ने बेलचा उठाकर एक-दो के सिर पर दे मारा। उस वक्त बहते खूनवाला माथा पकड़ रोते-चीखते भाग गए सारे। वह पत्नी को बाँहों में भरे दिलासा देता रहा।

ज्यादा देर नहीं लगी पुलिस को आने में, देर रात धर लिया था छोटेलाल को। मार खाए लोग किसी बड़े नेता के पालतू थे।

चौकी में दो सिपाही, एक दरोगा और एक उन बदमाशों में से था, सब नशे में धुत। घंटे भर लात-घूँसे और लाठी चलीं और छोटेलाल को अधमरा कर दिया गया। सुस्ताने के लिए कुर्सी पर बैठते हुए दरोगा गरजा -

- औतार सिंह, उठा तो ला उसे भी जिसके लिए बड़ा हीरो बनता था ये मादर...

ये दरोगा के आखिरी शब्द थे। उस रात चौकी में पाँच गोलियाँ चलीं। अगली साँझ तक गाँव में सबको खबर थी कि छोटेलाल ने 'धन' बचा लिया।


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