उसने सुबह-सुबह कन्नी से ईंटों के बीच सीमेंट-बजरी का मसाला भरते कारीगर को अपने बेटे पर चिल्लाते देखा।
- जा पढ़-लिख ले। हमाए जैसो कारीगर नईं होने तुमें, हमने सह लओ भोत है...।
उस रात वह उदास रहा।
एक रोज एक दुकान में खाली मशीन चलाते एक दर्जी को कहते सुना।
- दर्जी भूलकर भी मत बनना, मैंने बहुत...
वह कुछ दिन परेशान रहा। फिर एक दोपहर एक गली से गुजर रहा था कि एक खिड़की से किसी बातचीत का हिस्सा कानों में पड़ा।
- बेटा, कुछ भी बनना पर मेरी तरह किसान न बनना। बहुत देख लिया मैंने...
अब वह दुख से भर गया। फिर कुछ महीनों बाद एक लेखिका को अपनी बेटी को हिदायत देते देखा।
- लेखक!!! बिलकुल नहीं...। कुछ और।
इस बार वह फूट-फूटकर रोया।
पर वह खामोश उस दिन से है जबसे एक घर के आँगन से आती यह आवाज सुनी।
- बहुत देख लिया ईमानदार बनकर मैंने। अब तू कतई नहीं...।