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निबंध

वर्ण व्यवस्था का भंडाफोड़ : वर्ण व्यवस्था विध्वंस

ईश्वरदत्त मेधार्थी, देवीदत्त आर्य सिद्धगोपाल


वर्ण व्यवस्था और स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी दयानन्द के बाद आर्य समाज का प्रभावशाली और दूरदर्शी कोई नेता यदि हुआ है तो वे अमर शहीद श्रद्धेय स्वामी श्रद्धानन्द थे। स्वामी श्रद्धानन्द समझते थे कि आर्य समाज वर्तमान प्रगति का नेता और अग्रणी तभी हो सकता है जब वह बुद्धि-पूर्वक समय की आवश्यकता को अनुभव करता हुआ अपने सिद्धान्तों की व्याख्या करे। स्वामी दयानन्द के सच्चे भावों को समझने वाले श्रद्धेय श्रद्धानन्द समय की गति को खूब परखते थे। वर्ण व्यवस्था के पहलू पर भी उनके विचार एक दूरदर्शी नेता के समान थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने मथुरा में दयानन्द जन्म शताब्दी के सुअवसर पर एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव आर्य विद्वत् परिषत् के विशाल पंडाल में रखा था-जिसका अभिप्राय यह था कि भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था को नष्ट करने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि शब्दों का भी व्यवहार बन्द कर दिया जाय और समस्त आर्य-समाजी अपने को ‘आर्य’ कहा या लिखा करें। उस समय घोर वाद विवाद खड़ा हुआ। शास्त्री मंडल ने वर्ण व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट हो जाने की विभीषिका उपस्थित की। सबने स्वामी दयानन्द की लेखमाला की दुहाई दी कि देखो! स्वामी दयानन्द ने भी वर्ण व्यवस्था को मानते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि शब्दों का व्यवहार स्वीकार किया है। उस समय उस दूरदर्शी महान् नेता ने सिंह गर्जना पूर्वक कहा था कि-देखो! आर्यो स्वामी दयानन्द के लेखों का दुरुपयोग मत करो। ‘‘मैं भी स्वामी दयानन्द का उतना ही भक्त हूँ जितने आप सब उपस्थित विद्वत्वृन्द-परन्तु मैं स्वामी जी की सच्ची स्पिरिट को स्वीकार करता हूँ। स्वामी दयानन्द ने वर्ण व्यवस्था के सम्बन्ध में सब लिखकर उसमें यह भी स्वीकार कर लिया है कि जब तक अपनी राज्य व्यवस्था न होगी, यह गुण-कर्म की वर्ण-व्यवस्था प्रचलित नहीं हो सकती। जब तक राज्य की छाप न लगेगी यह नवीन प्रथा चल नहीं सकती। स्वामी दयानन्द ने तो हमारे समक्ष एक आदर्श रख दिया है। परन्तु हम लोग अभी उस आदर्श पर राज्य सत्ता के अभाव में चल नहीं सकते। देखिये-स्वामी दयानन्द ने नियोग के लिए भी आज्ञा दी है परन्तु वर्तमान राज्य नियमों के अनुसार नियोग को क्रियात्मक रूप देने वाला ताजीरात हिन्द की धारा के अनुसार सजा पाएगा; उस पर Adultary का मुकदमा चलेगा। ऐसी दशा में नियोग के स्थान में विधवा विवाह ही सामयिक है। यद्यपि स्वामी दयानन्द ने विधवा विवाह को वेद विरुद्ध बताया है तो भी हम आर्यों ने बुद्धिमत्ता पूर्वक देशकाल की दशानुसार विधवा विवाह को व्यवहारिक रूप दे दिया है। इसी प्रकार वर्ण व्यवस्था का आदर्श अब तक पूर्ण न कर सके हमको वह कार्य तो कर लेना चाहिए जो हमारे हाथ में है। अर्थात् स्वामी दयानन्द ने वर्ण व्यवस्था के दो पहलू हमारे सामने रखे हैं। एक तो प्रचलित वर्ण व्यवस्था का विध्वंस और दूसरा आदर्श वर्ण-व्यवस्था (कर्म विभाग) का प्रचार। दूसरे पहलू को हम तभी कार्य रूप में ला सकते हैं जब हमारे हाथ में राज्य सत्ता हो। इसलिए प्रथम पहलू के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। अर्थात् प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का विध्वंस कर देना चाहिए। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्ण-व्यवस्था के मामले में आर्य समाजी लोग भी प्रचलित वर्ण व्यवस्था (जात पाँत) के ही गुलाम बने हुए हैं। ऐसी दशा में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि का निर्णय करना अभी समय से बहुत पूर्व है। इसलिए इन शब्दों का व्यवहार एकदम उठा देना चाहिए-इत्यादि।’’

यह थे दूरदर्शी महान आर्य नेता के सच्चे उद्गार-परन्तु उस समय भी शास्त्राचार्यों ने घोर विरोध किया और आर्य समाज को गड्ढे में से निकलने नहीं दिया। आज 10 वर्ष बाद भी हम उसी दशा में और अन्धकारमय गहरे गड्ढे में पड़े हुए वर्ण व्यवस्था के पचड़े में जकड़े हुये हैं। काश! हम उस दूरदर्शी निर्भय वीर स्वामी की सिंह गर्जना को सुनकर आज से 10 वर्ष पूर्व सचेत हो जाते तो आज डॉक्टर अम्बेडकर को वर्ण व्यवस्था मिटाने की शर्त हिन्दुओं के सामने पेश न करनी पड़ती। हमें अत्यन्त संकोच और क्लेश के साथ कहना पड़ता है कि वर्ण व्यवस्था के मामले में आर्य समाजी लोग हिन्दुओं की तरह ही गले तक कीचड़ में धँसे पड़े हैं। काश! आज आर्य समाजी वर्ण-व्यवस्था के रोग से मुक्त होते तो सात करोड़ अछूत आर्य समाज की पवित्र गोद में सानन्द सुशोभित हो जाते। परन्तु यहाँ तो सारे कुएँ में भाँग पड़ी है। अब भी तो कोई सचेत नहीं होता-जो हिम्मत के साथ घोषणा कर दे कि आर्य समाज वर्ण-व्यवस्था को मिटाने के लिए कमर कस कर तैयार है। आज आर्यसमाज में भी वही रूढ़िवाद वही पोपवाद और सम्प्रदायवाद जड़ जमाए हुए हैं। कोई नेता भी तो नहीं है जो वीर स्वामी श्रद्धानन्द की तरह ऐसे संकट के समय में छाती खोल कर सिंहनाद कर दे कि ये लो! आर्यसमाज ने वर्ण व्यवस्था की खाल उतार कर फेंक दी। आओ! मेरे प्यारे दलित बन्धुओ!! ख़ुशी के साथ हम तुमको आलिंगन करने के लिए तैयार हैं!!! अब भी समय है कि आर्य सार्वदेशिक सभा शीघ्र ही ऐलान कर दे। हमने तो अपना कर्तव्य पालन कर दिया। सचेत कर दिया। अब यदि हमें कोई स्वामी दयानन्द का विरोधी कहे या लिखे तो हमारा उसके प्रति यही जवाब है कि हम तो स्वामी श्रद्धानन्द के शिष्य हैं। स्वामी श्रद्धानन्द की तरह ही स्वामी दयानन्द के लेखों की सच्ची स्पिरिट को स्वीकार करते हैं। लकीर पन्थी नहीं हैं। फकीर पन्थी हैं।


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