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कविता

चिड़ियाघर के तोते

बुद्धिनाथ मिश्र


चिड़ियाघर के तोते को है
क्या अधिकार नहीं
पंख लगे हैं फिर भी
उड़ने को तैयार नहीं।

धरती और गगन का मिलना
एक भुलावा है
खर-पतवारों का सारे
क्षितिजों पर दावा है
आवारे घन का कोई
अपना घर-द्वार नहीं।

घोर निशा के वंशज
सूरज का उपहास करें
धूप-पुत्र ओस के घरों में
कब तक वास करें।
काँटों में झरबेरी फबती
हरसिंगार नहीं।

गर्वित था जो कंटकवन का
पंथी होने में
सुई चुभ गई उसे
सुमन का हार पिरोने में
कुरुक्षेत्र में कृष्ण मिला करते
हर बार नहीं।
 


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