मंज़र
रहगुज़र, साये, शजर, मंज़िल-ओ-दर, हल्क़ःए-बाम
बाम पर सीना-ए-महताब खुला आहिस्ता
जिस तरह खोले कोई बंदे-क़बा आहिस्ता
हल्क़ा-ए-बाम तले, सायों का ठहरा हुआ नील
नील की झील
झील में चुपके से तैरा किसी पत्ते का हुबाब
एक पल तैरा, चला, फूट गया आहिस्ता
बहुत आहिस्ता, बहुत हल्का, ख़ुनक रंगे-शराब
मेरे शीशे में ढला आहिस्ता
शीशा-ओ-जाम, सुराही, तेरे हाथों के गुलाब
जिस तरह दूर किसी ख़्वाब का नक़्श
आप ही आप बना और मिटा आहिस्ता
दिल ने दोहराया कोई हर्फ़े-वफ़ा आहिस्ता
तुमने कहा - 'आहिस्ता'
चाँद ने झुक के कहा
'और ज़रा आहिस्ता'
ग़ज़लें
एक शहरे-आशोब का आग़ाज़
अब बज़्मे-सुख़न, सोहबते-लब-सोख़्तगाँ है
अब हल्क़-ए-मय तायफ़ए-बे तलबाँ है
घर रहिए तो वीरानिए-दिल खाने को आवे
रह चलिए तो हर गाम पे गोग़ा-ए-सगाँ है
पैबंद-ए-रहे-कूचए-ज़र चश्मे-ग़ज़ालाँ
पाबोसे-हवस अफ़्सरे-शमशाद-कदाँ है
याँ अहले-जुनूँ यक ब दिगर दस्त-ओ-गिरेबाँ
वाँ जैशे हवस तेग़ बकफ़ दर पयेजाँ है
अब साहिबे इंसाफ़ है ख़ुद तालिबे-इंसाफ़
मुहर उसकी है मीज़ान बदस्ते-दिगराँ है
हम सहल तलब कौन से फ़र्हाद थे लेकिन
अब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ है
बेज़ार फ़ज़ा दर पे आज़ार सबा है
बेज़ार फ़जा दर पे आज़ार-सबा है
यूँ है कि हर इक हमदमे देरीना ख़फ़ा है
हाँ बादाकशो आया है अब रंग पे मौसम
अब सैर के क़ाबिल रविशे-आबो-हवा है
उमड़ी है हर इक सम्त से इल्ज़ाम की बरसात
छाई हुई हर दांग मलामत की घटा है
वो चीज़ भरी है कि सुलगती है सुराही
हर कास-ए-मय ज़हरे-हलाहल से सिवा है
फिर जाम उठाओ कि बयादे-लबे-शीरीं
यह ज़हर तो यारों ने कई बार पिया है
इस जज़्ब-ए दिल की न सज़ा है न जज़ा है
मक़्सूदे रहे-शौक़ वफ़ा है, न जफ़ा है
अहसासे-ग़मे-दिल, जो ग़मे दिल का सिला है
उस हुस्न का अहसास है जो तेरी अता है
हर सुबहे गुलिस्ताँ है, तेरा रू-ए-बहारी
हर फूल तेरी याद का नक़्शे-कफ़े-पा है
हर भीगी हुई रात, तेरी जुल्फ़ की शबनम
ढलता हुआ सूरज, तेरे होंटों की फ़ज़ा है
हर राह पहुँचती है तेरी चाह के दर तक
हर हर्फ़े-तमन्ना तेरे क़दमों की सदा है
लाज़ीरे-सियासत है, न ग़ैरों की ख़ता है
वो ज़ुल्म जो हमने दिले-वोशी पे किया है
ज़िंदाने-रहे-यार में पाबंद हुए हम
ज़ंजीर-बकफ़ है, कोई पाबंद-ब-पा है
'मजबूरी-ओ-दावाये-गिरफ़्तारिये-उल्फ़त
दस्ते तहे संग आमदा पैमाने वफ़ा है'
सरोद
मौत अपनी, न अमलअपना, न जीना अपना
खो गया शोरिशे-गेतीमें क़रीना अपना
नाख़ुदा दूर, हवा तेज़, क़रीं कामे-निहंग
वक़्त है, फेंक दे लहरों में सफ़ीना अपना
अर्सा-ए-दह्र के हंगामे तहे ख़्वाब सही
गर्म रख आतिशे-पैकार से सीना अपना
साक़िया, रंज न कर, जाग उठेगी महफ़िल
और कुछ देर उठा रखते हैं पीना अपना
बेशक़ीमत हैं ये ग़महा-ए-मुहब्बत, मत भूल
जुल्मते-यास को मत सौंप ख़ज़ीना अपना
वासोख़्त
सच है, हमीं को आपके शिकवे बजा न थे
बेशक, सितम जनाब के सब दोस्ताना थे
हाँ, जो जफ़ा भी आपने की क़ायदे से की
हाँ, हम ही कारबंदे-उसूले-वफ़ा न थे
आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे
क्यों दादे ग़म हमीं ने तलब की, बुरा किया
हमसे जहाँ में कुश्तये-ग़म और क्या न थे
गर फ़िक्रे-जख़्म की तो ख़तावार हैं कि हम
क्यों मह्वे-मद्हे-ख़ूबी-ए-तेग़े-अदा न थे
हर चारागर को चारागरी से गुरेज़ था
वरना हमें जो दुख थे, बहुत ला-दवा न थे
लब पर है तल्ख़िए-मय-ए-अय्याम, वरना 'फ़ैज़'
हम तल्ख़ि-ए-कलाम पे माइल ज़रा न थे
शहर में चाके गिरेबाँ हुए नापैद अबके
शहर में चाके गिरेबाँ हुए नापैद अब के
कोई करता ही नहीं ज़ब्त की ताक़ीद अब के
लुत्फ़ कर ऐ निगह-ए-यार कि ग़म वालों ने
हसरते-दिल की उठाई नहीं तमहीद अब के
चाँद देखा तेरी आँखों में न होंटों पे शफ़क़
मिलती जुलत है शबेग़म से तेरी दीद अबके
दिल दुखा है न वो पहला सा, न जाँ तड़पी है
हम भी ग़ाफ़िल थे कि आई ही नहीं ईद अब के
फिर से बुझ जाएँगी शम'एँ जो हवा तेज़ चली
लाख रक्खो सरे महफ़िल कोई ख़ुर्शीद अब के
हर सम्त परीशाँ तेरी आमद के क़रीने
हर सम्त परीशाँ तेरी आमद के क़रीने
धोखे दिए क्या-क्या हमें बादे-सहरी ने
हर मंज़िल-ए-ग़ुरबत पे गुमाँ होता है घर का
बहलाया है हर गाम बहुत दर बदरी ने
थे बज़्म में सब दूदे-सरे बज़्म से शादाँ
बेकार जलाया हमें रौशन नज़री ने
मयख़ाने में आजिज़ हुए आजुर्दा दिली से
मस्जिद का न रक्खा हमें आशुफ़्ता-सरी ने
यह जाम-ए-सद-चाक बदल लेने में क्या था
मोहलत ही न दी '''फ़ैज़''' कभी बख़िया गरी ने
रंग पैराहन का , ख़ुशबू जुल्फ़ लहराने का नाम
रेग पैराहन का, ख़ुशबू जुल्फ़ लहराने का नाम
मौसमे गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम
दोस्तो, उस चश्म-ओ-लब की कुछ कहो जिसके बग़ैर
गुलसिताँ की बात रंगीं है, न मैख़ाने का नाम
फिर नज़र में फूल महके, दिल में फिर शम्म'एँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
मोहतसिब की ख़ैर ऊँचा है उसी के 'फ़ैज़' से
रिंद का, साक़ी का, मय का, ख़ुम का, पैमाने का नाम
'फ़ैज़' उनको है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से, जिन्हें
आशना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम
यह मौसमे-गुल गर चे तरबख़ेज़ बहुत है
यह मौसमे-गुल गर चे तरबख़ेज़ बहुत है
अहवाले गुल-ओ-लाला ग़म-अँगेज़ बहुत है
ख़ुश दावते-याराँ भी है यलग़ारे-अदू भी
क्या कीजिए दिल का जो कम-आमेज़ बहुत है
यूँ पीरे-मुग़ाँ शेख़े-हरम से हुए यक जाँ
मयख़ाने में कमज़र्फ़िए परहेज़ बहुत है
इक गर्दने-मख़लूक़ जो हर हाल में ख़म है
इक बाज़ु-ए-क़ातिल है कि ख़ूंरेज़ बहुत है
क्यों मश'अले दिल 'फ़ैज़' छुपाओ तहे-दामाँ
बुझ जाएगी यूँ भी कि हवा तेज़ बहुत है
क़र्ज़े-निगाहे-यार अदा कर चुके हैं हम
क़र्जे-निगाहे-यार अदा कर चुके हैं हम
सब कुछ निसारे-राहे वफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ इम्तहाने-दस्ते-जफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ उनकी दस्तरस का पता कर चुके हैं हम
अब अहतियात की कोई सूरत नहीं रही
क़ातिल से रस्म-ओ-राह सिवा कर चुके हैं हम
देखें, है कौन-कौन, ज़रूरत नहीं रही
कू-ए-सितम में सब को ख़फ़ा कर चुके हैं हम
अब अपना अख़्तियार है, चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
उनकी नज़र में, क्या करें, फीका है अब भी रंग
जितना लहू था, सर्फ़े-क़बा कर चुके हैं हम
कुछ अपने दिल की ख़ू का भी शुक्राना चाहिए
सौ बार उनकी ख़ू का गिला कर चुके हैं हम
वफ़ा-ए-वादा नहीं , वादा-ए-दिगर भी नहीं
वफ़ा-ए-वादा नहीं, वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझसे रूठे तो थे, लेकिन इस क़दर भी नहीं
बरस रही है हरीमे-हवस में दौलते-हुस्न
गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं
न जाने किस लिए उम्मीदवार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
निगाहे-शौक़ सरे-बज़्म बेहिजाब न हो
वो बेख़बर ही सही, इतने बेख़बर भी नहीं
यह अहदे-तर्के-मुहब्बत है किस लिए आख़िर
सुकूने-क़ल्ब इधर भी नहीं उधर भी नहीं
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम
शबे-फ़िराक़ के गेसू फ़ज़ा में लहराए
कोई पुकारो कि इक उम्र होने आई है
फ़लक को क़ाफ़ला-ए-रोज़-ओ-शाम ठहराए
यह ज़िद है यादे-हरीफ़ाने-बादा-पैमाँ की
कि शब को चाँद न निकले न दिन को अब्र आए
सबा ने फिर दरे-ज़िंदाँ पे आके दस्तक दी
सहर क़रीब है, दिल से कहो, न घबराए
कब याद में तेरा साथ नहीं , कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ, दिल बेच आएँ, जाँ बेच आएँ
दिल वालो, कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
जिस धज से कोई मक़्तल में गया, वो शान सलामत रहती है
यह जान तो आनी-जानी है, इस जाँ की तो कोई बात नहीं
मैदाने-वफ़ा दरबार नहीं याँ नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ
आशिक़ तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क़ किसी की जात नहीं
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहो लगा दो, डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
जमेगी कैसे बिसाते - याराँ कि शीश-ओ-जाम बुझ गए हैं
जमेगी कैसे बिसाते-याराँ कि शीशा-ओ-जाम बुझ गए हैं
सजेगी कैसे शबे-निगाराँ कि दिल सरे-शाम बुझ गए हैं
वो तीरगी है रहे बुताँ में, चिराग़े-रुख़ है न शम्म'ए-वादा
किरन कोई आरज़ू की लाओ कि सब दर-ओ-बाम बुझ गए हैं
बहुत सँभाला वफ़ा का पैमाँ, मगर वो बरसी है अब के बरखा
हर एक इक़रार मिट गया है, तमाम पैग़ाम बुझ गए हैं
क़रीब आ ऐ महे-शबे-ग़म, नज़र पे ख़ुलता नहीं कुछ इस दम
कि दिल पे किस किस का नक़्श बाक़ी है कौन से नाम बुझ गए हैं
बहार अब आके क्या करेगी कि जिनसे था जश्ने-रंग-ओ-नग़मा
वो गुल सरे शाख़ जल गए हैं, वो दिल तहे-दाम बुझ गए हैं
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुश्नाम तो नहीं है, यह इकराम ही तो है
करते हैं जिसपे त'अन कोई जुर्म तो नहीं
शौक़े फ़ुज़ूल-ओ-उल्फ़ते नाकाम ही तो है
दिल, मुद्दई के हर्फ़े-मलामत से शाद है
ऐ जाने-जाँ, यह हर्फ़ तेरा नाम ही तो है
दिल नाउमीद तो नहीं, नाकाम ही तो है
लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
दस्ते-फ़लक में गर्दिशे-तक़दीर तो नहीं
दस्ते-फ़लक में गर्दिशे-अय्याम ही तो है
आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा
वो यारे-ख़ुशख़िसाल सरेबाम ही तो है
भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तेदा करो
वक़्ते-सरोद, दर्द का हंगामा ही तो है
जैसे हम-बज़्म हैं फिरयारे-तरहदार से हम
जैसे हम-बज़्म हैं फिर यारे-तरहदार से हम
रात मिलते रहे अपने दर-ओ-दीवार से हम
हम से बेबहरा हुई अब जरसे-गुल की सदा
आश्ना थे, कभी हर रंग की झंकार से हम
अब वहाँ कितनी मुरस्सा है वो सूरज की किरन
कल जहाँ क़त्ल हुए थे, उसी तलवार से हम
हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़े सफ़र जाएँगे
हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़े सफ़र जाएँगे
बेनिशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे
किस क़दर होगा यहाँ मेहर-ओ-वफ़ा का मातम
हम तेरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे
जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ारे-सुख़न
हम किसे बेचने अल्मास-ओ-गुहर जाएँगे
शायद अपना ही कोई बैत हुदी-ख़्वाँ बन कर
साथ जाएगा मेरे यार जिधर जाएँगे
'फ़ैज़' आते हैं रहे-इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम
आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे
मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मेरा दर्द नग़मा-ए-बे सदा
मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बे निशाँ
मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मुझे अपना नामो-निशाँ मिले
मेरी ज़ात का जो निशाँ मिले
मुझे राज़े-नज़्मे-जहाँ मिले
जो मुझे यह राज़े-निहाँ मिले
मेरी ख़ामुशी को बयाँ मिले
मुझे कायनात की सरवरी
मुझे दौलते-दो जहाँ मिले
हज़र करो मेरे तन से
सजे तो कैसे सजे क़त्ले-आम का मेला
किसे लुभाएगा मेरे लहू का वावेला
मेरे नज़ार बदन में लहू ही कितना है
चिराग़ हो कोई रौशन न कोई जाम भरे
न इससे आग ही भड़के, न इससे प्यास बुझे
मेरे फ़िगार बदन में लहू ही कितना है
मगर वो ज़हरे-हलाहल भरा है नस-नस में
जिसे भी छेदों हर इक बूँद क़हरे-अफ़्यी है
हर इक कशीदः है सदियों के दर्द-ओ-हसरत की
हर इक में मोहर बलब ग़ैज-ओ-ग़म की गर्मी है
हज़र करो मेरे तन से सज चौबे-सेहरा है
जिसे जलाओ तो सहने चमन में दहकेंगे
बजाए सर्वोसमन मेरी हड्डियों के बबूल
इसे बिखेरा तो दश्त-ओ-दमन में बिखरेगी
बजा-ए-मुश्के-सबा, मेरी जाने-ज़ार की धूल
हज़र करो कि मेरा दिल लहू का प्यासा है
दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन
मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर
हुआ फिर से हुक्म सादिर
कि वतन बदर हों हम तुम
दें गली-गली सदाएँ
करें रुख़ नगर-नगर का
कि सुराग़ कोई पाएँ
किसी यारे-नामाबर का
हर इक अजनबी से पूछें
जो पता था अपने घर का
सरे-कू-ए-नाशनासाँ
हमें दिन से रात करना
कभी इससे बात करना
कभी उससे बात करना
तुम्हें क्या कहूँ कि क्या है
शबे-ग़म बुरी बला है
हमें यह भी था ग़नीमत
जो कोई शुमार होता
हमें क्या बुरा था मरना
अगर एक बार होता
जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
शायद इस तरह कि जिस तौर कभी अव्वल शब
बेतलब पहले पहल मर्हमते-बोसा-ए-लब
जिससे खुलने लगें हर सम्त तिलिस्मात के दर
और कहीं दूर से अनजान गुलाबों की बहार
यक-ब-यक सीना-ए-महताब तड़पाने लगे
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शायद इस तरह कि जिस और कभी आख़िरे-शब
नीम वा कलियों से सर सब्ज़ सहर
यक-ब-यक हुजरे महबूब में लहराने लगे
और ख़ामोश दरीचों से ब-हंगामे-रहील
झनझनाते हुए तारों की सदा आने लगे
किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
शायद इस तरह कि जिस तौर तहे नोके-सनाँ
कोई रगे वाहमे दर्द से चिल्लाने लगे
और क़ज़ाक़े-सनाँ-दस्त का धुँदला साया
अज़ कराँ ताबा कराँ दहर पे मँडलाने लगे
जिस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
ख़्वाह क़ातिल की तरह आए कि महबूब सिफ़त
दिल से बस होगी यही हर्फ़े विदा की सूरत
लिल्लाहिल हम्द बा-अँजामे दिले दिल-ज़द्गाँ
क़लमा-ए-शुक्र बनामे लबे शीरीं-दहना
ख़्वाब बसेरा
इस वक़्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है
महताब
न सूरज, न अँधेरा न सवेरा
आँखों के दरीचों में किसी हुस्न की झलकन
और दिल की पनाहों में किसी दर्द का डेरा
मुमकिन है कोई वोम
हो मुमकिन है सुना हो
गलियों में किसी चाप का इक आख़िरी फेरा
शाख़ों में ख़यालों के घने पेड़ पर शायद
अब आके करेगा न कोई ख़्वाब-बसेरा
इक बैर, न इक मेहर, न इक रब्त
न रिश्ता
तेरा कोई अपना न पराया कोई मेरा
माना कि यह सुनसान घड़ी सख़्त कड़ी है
लेकिन मेरे दिल पे तो फ़क़त एक घड़ी है
हिम्मत करो जीने को अभी उम्र पड़ी है
(बीमारी के दौरान, लाहौर अस्पताल से)
ख़त्म हुई बारिशे संग
नागहाँ
आज मेरे तारे नज़र से कट कर
टुकड़े-टुकड़े हुए आफ़ाक़
पे ख़ुर्शीद-ओ-कमर
अब किसी सम्त अँधेरा न उजाला होगा
बुझ गई दिल की तरह राहे-वफ़ा मेरे बाद
दोस्तो! क़ाफ़ला-ए-दर्द का अब क्या होगा
अब कोई और करे परवरिशे-गुलशने-गम
दोस्तो, खत्म हुई दीदा-ए-तर
की शबनम
थम गया शोरे-जुनूँ, खत्म हुई बारिशे-संग
ख़ाक़े-रह आज लिए है लबे-दिलदार का रंग
कू-ए-जानाँ में खिला मेरे लहू का परचम
देखिए देते हैं किस किसको सदा मेरे बाद
"कौन होता है हरीफ़े-मय-ए-मर्द-अफ़गने-इश्क़
है मुक़र्रर लबे-साक़ी पे सला
मेरे बाद"