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कविता

यथार्थ

अखिलेश कुमार दुबे


चक्रव्यूह में छल से मारे जाने पर भी,
अभिमन्यु!
खत्म नहीं हुए तुम
शेष रहा योद्धा का साहस और सत्य।
भरी सभा में अपमानित किए जाने पर भी,
द्रौपदी!
तुम नहीं हुई निस्सहाय,
नियति पर नहीं थोपा,
तुमने अपना अपमान।
कवच और कुंडल माँग लिए जाने पर भी,
कर्ण !
कहाँ हुए तुम अवसन्न,
इसीलिए तो,
वीरता, शील और अजेयता
लिखता है, तुम्हारे लिए इतिहास।


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