| चुनिन्दा शेर -  मीर तक़ी 'मीर' 
 १.
 नाहक़ हम मजबूरों पर यह तुहमत है मुख़्तारी कीचाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया
 
 २.
 दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके
 पछताओगे सुनो हो , ये बस्ती उजाड़कर
 
 ३.
 मर्ग इक मांदगी का वक़्फ़ा है
 यानी आगे चलेंगे दम लेकर
 
 
 ४.
 कहते तो हो यूँ कहते , यूँ कहते जो वोह आता
 सब कहने की बातें हैं कुछ भी न कहा जाता
 
 ५.
 तड़पै है जब भी सीने में उछले हैं दो-दो हाथ
 गर दिल यही है मीर तो आराम हो चुका
 
 ६.
 सरापा आरज़ू होने ने बन्दा कर दिया हमको
 वगर्ना हम ख़ुदा थे,गर दिले-बे-मुद्दआ होते
 
 ७.
 एक महरूम चले मीर हमीं आलम[ से
 वर्ना आलम को ज़माने ने दिया क्या-क्या कुछ?
 
 ८.
 हम ख़ाक में मिले तो मिले , लेकिन ऐ सिपहर !
 उस शोख़ को भी राह पे लाना ज़रूर था
 
 ९.
 अहदे-जवानी रो-रो काटी, पीरी में लीं आँखें मूँद
 यानी रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया
 
 १०.
 रख हाथ दिल पर मीर के दरियाफ़्त कर लिया हाल है
 रहता है अक्सर यह जवाँ, कुछ इन दिनों बेताब है
 
 
 ११.
 सुबह तक शम्अ सर को धुनती रही
 क्या पतंगे ने इल्तमास किया
 
 १२.
 दाग़े-फ़िराक़-ओ-हसरते-वस्ल, आरज़ू-ए-शौक़
 मैं साथ ज़ेरे-ख़ाक़ भी हंगामा ले गया
 
 १३.
 शुक्र उसकी जफ़ा का हो न सका
 दिल से अपने हमें गिला है यह
 
 १४.
 अपने जी ही ने न चाहा कि पिएं आबे-हयात
 यूँ तो हम मीर उसी चश्मे-पे हुए
 
 १५.
 चमन का नाम सुना था वले न देखा हाय
 जहाँ में हमने क़फ़स ही में ज़िन्दगानी की
 
 १६.
 कैसे हैं वे कि जीते हैं सदसाल हम तो ‘मीर’
 इस चार दिन की ज़ीस्त में बेज़ार हो गए
 
 १७.
 तुमने जो अपने दिल से भुलाया हमें तो क्या
 अपने तईं तो दिल से हमारे भुलाइये
 
 १८.
 परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत! तुझे
 नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले
 
 १९.
 यूँ कानों कान गुल ने न जाना चमन में आह
 सर लो पटक के हम सरे बाज़ार मर गए
 
 २०.सदकारवाँ वफ़ा है कोई पूछ्ता नहीं
 गोया मताए-दिल के ख़रीदार मर गए
 
 
 २१.
 अपने तो होंठ भी न हिले उसके रू-ब-रू
 रंजिश की वजह ‘मीर’ वो क्या बात हो गई?
 
 २२.
 ‘मीर’ साहब भी उसके याँ थे पर
 जैसे कोई ग़ुलाम होता है
 
 २३.
 हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
 इस राह से निकले तो हमको भी जगा देना
 २४.
 मस्ती में लग़्ज़िश हो गई माज़ूर रक्खा चाहिए
 ऐ अहले मस्जिद ! इस तरफ़ आया हूँ मैं भटका हुआ
 
 २५.
 आने में उसके हाल हुआ जाए है तग़ईर
 क्या हाल होगा पास से जब यार जाएगा ?
 
 |   २६.बेकसी मुद्दत तलक बरसा की अपनी गोर पर
 जो हमारी ख़ाक़ पर से हो के गुज़रा रो गया
 
 २७.
 हम फ़क़ीरों से बेअदाई क्या
 आन बैठे जो तुमने प्यार किया
 
 २९.
 सख़्त क़ाफ़िर था जिसने पहले ‘मीर’
 मज़हबे-इश्क़ अख़्तियार किया
 
 ३०.
 आवारगाने-इश्क़ का पूछा जो मैं निशाँ
 मुश्तेग़ुबार ले के सबा ने उड़ा दिया
 
 
 ३१.
 ‘मीर’ बन्दों से काम कब निकला
 माँगना है जो कुछ ख़ुदा से माँग
 
 ३२.
 कहता है कौन तुझको याँ यह न कर तू वोह कर
 पर हो सके तो प्यारे दिल में भी टुक जगह कर
 
 ३३.
 ताअ़त[ कोई करै है जब अब्र ज़ोर झूमे ?
 गर हो सके तो ज़ाहिद ! उस वक़्त में गुनह कर
 
 ३४.
 क्यों तूने आख़िर-आख़िर उस वक़्त मुँह दिखाया
 दी जान ‘मीर’ ने जो हसरत से इक निगह कर
 
 ३५.
 आगे किसू के क्या करें दस्तेतमअ़ दराज़
 ये हाथ सो गया है सिरहाने धरे-धरे
 
 ३६.
 न गया ‘मीर’ अपनी किश्ती से
 एक भी तख़्ता पार साहिल तक
 
 ३७.
 गुल की जफ़ा भी देखी,देखी वफ़ा-ए-बुलबुल
 इक मुश्त पर पड़े हैं गुलशन में जा-ए-बुलबुल
 
 ३८.
 आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
 हो गए ख़ाक इन्तिहा है यह
 
 ४०.
 पहुँचा न उसकी दाद को मजलिस में कोई रात
 मारा बहुत पतंग ने सर शम्अदान पर
 
 ४१.न मिल ‘मीर’ अबके अमीरों से तू
 हुए हैं फ़क़ीर उनकी दौलत से हम
 ४२.
 काबे जाने से नहीं कुछ शेख़ मुझको इतना शौक़
 चाल वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूँ
 
 ४३.
 काबा पहुँचा तो क्या हुआ ऐ शेख़ !
 सअई कर,टुक पहुँच किसी दिल तक
 
 ४४.
 नहीं दैर अगर ‘मीर’ काबा तो है
 हमारा क्या कोई ख़ुदा ही नहीं
 
 ४५.
 मैं रोऊँ तुम हँसो हो, क्या जानो ‘मीर’ साहब
 दिल आपका किसू से शायद लगा नहीं है
 
 ४६.
 काबे में जाँ-ब-लब थे हम दूरी-ए-बुताँ से
 आए हैं फिर के यारो ! अब के ख़ुदा के याँ से
 
 ४७.
 छाती जला करे है सोज़े-दरूँ बला है
 इक आग-सी रहे है क्या जानिए कि क्या है
 
 ४८.
 याराने दैरो-काबा दोनों बुला रहे हैं
 अब देखें ‘मीर’ अपना रस्ता किधर बने है
 
 ४९.
 क्या चाल ये निकाली होकर जवान तुमने
 अब जब चलो दिल पर ठोकर लगा करे है
 
 ५०.
 इक निगह कर के उसने मोल लिया
 बिक गए आह, हम भी क्या सस्ते
 
 ५१.
 मत ढलक मिज़्गाँ से मेरे यार सर-अश्के-आबदार
 मुफ़्त ही जाती रहेगी तेरी मोती-की-सी आब
 
 
 ५२.
 दूर अब बैठते हैं मजलिस में
 हम जो तुम से थे पेशतर नज़दीक़
 
 मीर तक़ी 'मीर' 
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