हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 


 दिनेश कुमार शुक्ल/ ललमुनिया की दुनिया

साधो, खुद को साधो
 

साधो ! खुद को साधो
जीवन को तब खोल सकोगे
जब अपने को बाँधो
खुद को उस विचार से बाँधो सब बन्धन जो तोड़े
भूख-रोग-बेकारी से लड़ती दुनिया से जोड़े
बाँधो खुद को उस धारा से समय-धार जो मोड़े
बन प्रवाह उद्दाम बहे जड़ता के परबत तोड़े
आज बँधी है कविता इसको केवल वह खोलेगा
भूखे-प्यासे सपनों की बोली में जो बोलेगा
जा कर जो पकड़े लगाम साधे सूरज के घोड़े
लड़े न्याय के लिए बेधड़क अपना सरबस छोड़े
चले मुक्ति की राह अडिग चाहे कितने हों रोड़े
गहे सत्य का पक्ष भले अपने साथी हों थोड़े
अपना सब दे कर समाज को स्वयम् दिशायें ओढ़े
कला-शिल्प का मोह त्याग लो पियो हलाहल-प्याला
जीवन तब गह पाओगे जब भीतर जगे निराला
वह बलिदानी टेक साध कर, कवि अपने को नाधो
साधो ! खुद को साधो
 

सुबह की बहर
 

लाली सुबह की धीरे
धीरे लहू में घुलती
दो हाथ रौशनी के
थामे हुए गगन को

चुपचाप सो रहा था
संसार का अतल जल
तालाब था कँवल का
और आग जल रही थी

चालीस साल तप कर
कुन्दन निखर उठा था
जैसे कलस का पानी
तुम पर अभी गिरा हो

आहट पे मेरी तुमने
तक-तक के बान मारे
सारस का एक जोड़ा
उतरा तभी जमीं पर

जागा पवन का झोंका
पानी की नींद टूटी
वो दिन कि आज का दिन
बैठा हूँ चुप तभी से
 

                            <<दिल्ली में वसंत, ललमुनियाँ की दुनिया<<               सूची                 >>विचार, धरती माँ का दूध>>

 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.