हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 


मनोज कुमार पांडेय
की कविताएँ
 

(1)

प्यार करता हुआ कोई एक पूरी पृथ्वी होता है
 

भीतर ही भीतर जलती रहती है एक आग
जिसे भीतर का ही पानी धधकाता रहता है पल पल
हवाएं चलती हैं तूफान से भी तेज
जिन्हें भीतर का ही पहाड़ रोकता है

कहीं बह रही होती हैं गर्म धाराएं
उसी पल एक हिस्सा बदल रहा होता है बर्फ में
कहीं तैर रही होती है रोशनी
कहीं घिर रहा होता है अंधेरा घुप्प

भीतर बसते हैं अच्छे बुरे लोग
उनके भीतर बसती हैं अलग अलग दुनिया
प्यार करता हुआ कोई एक पूरी पृथ्वी होता है
घूमती हुई पृथ्वी के ऊपर सब कुछ चल रहा होता है जस का तस .

(2)

ये मेरा कौन सा रूप था छुपा हुआ
 

प्यार में हूँ तो बहुतों का प्यार याद आता है
रोता हूँ
तो बहुतों के आंसू याद आते हैं
प्यार में होना एक और दुनिया में होना है

चलता हूँ तो बहुतों के साथ चलता हूँ
अपने अकेलेपन को खोता हुआ
तड़पता हूँ तो बहुतों की तड़प याद आती है
मेरी उनकी तड़पों के बीच ये रिश्ता कब बना

ये मेरा कौन सा रूप था छुपा हुआ
मेरे भीतर जो दिखा दिया तूने .

 

(3)

उसे धरने को तेरा ही रूप मिला था मेरी जान

बगल में बैठा होता रूप धरे वियोग
बना ठना मेरी ही जान का रूप बनाये
मै पड़ जाता हूँ बार-बार गफलत में
जानता हूँ कि ये मेरी जान है बगल में बैठी हुई
दो बातें करता हूँ और छूता हूँ
देखता हूँ टकटकी लगाये चूमने को बढ़ता हूँ
सब कुछ साफ साफ दिखने लगता है उसी पल
नहीं है ये मेरी जान
उसका रूप धरे बैठा है वियोग
उसे धरने को तेरा ही रूप मिला था मेरी जान .

 

(शीर्ष पर वापस)

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.