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भगवतीचरण वर्मा
 

 कविताएँ

आज शाम है बहुत उदास
आज मानव का सुनहला प्रात:है
कल सहसा यह सन्देश मिला
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें
तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
तुम मृगनयनी
पतझड़ के पीले पत्तों ने
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
तुम अपनी हो, जग अपना है
देखो-सोचो-समझो
बस इतना अब चलना होगा
संकोच-भार को सह न सका

 

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