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साहिर लुधियानवी

 

ग़ज़लें
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरतीं हैं
 उदास न हो
ताजमहल
किसी को उदास देख कर
ख़ून फिर ख़ून है
परछाइयाँ
मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है

 

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