मेरी आत्म कथा
चार्ली चैप्लिन
अध्याय :इक्कीस
जिस वक्त मैं न्यू यार्क में था तो मेरे एक दोस्त ने बताया कि
उसने फिल्मों में आवाज़ को शामिल किये जाते देखा है। उसने भविष्यवाणी की कि
इससे जल्द ही फिल्म उद्योग में क्रांति आने वाली है।
मैंने इसके बारे में तब तक नहीं सोचा जब कई महीने बाद वार्नर ब्रदर्स ने
अपनी पहली बोलती फिल्म बनायी। ये एक कॉस्ट्यूम फिल्म थी जिसमें एक बेहद
खूबसूरत अभिनेत्री को दिखाया गया था। उसका कुछ भी नाम नहीं रहने वाला था।
वह दुख के कुछ चरम क्षणों को चुपचाप अभिव्यक्त करती है, मुर्दनगी से भरी
उसकी बड़ी-बड़ी आंखें शेक्सपीयर की वाक् पटुता से भी अधिक पीड़ा दिखाती
हैं। और तभी फिल्म में एक नयी बात का प्रवेश होता है। उस तरह का शोर सुनाई
देने लगता है जैसा आप शंख को कान से लगाने पर सुनते हैं। तब वह खूबसूरत
राजकुमारी इस तरह से बोलने लगती है मानो रेत में से बोल रही हो,"मैं
ग्रेगोरी से ही शादी करूंगी भले ही मुझे इसके लिए अपना राजपाट ही छोड़ना
पड़े।" ये भयंकर झटका था। क्योंकि अब तक तो राजकुमारी हमारा मनोरंजन ही कर
रही थी। जैसे-जैसे पिक्चर आगे बढ़ती गयी, संवाद और मज़ाकिया होते चले गये।
लेकिन उतने नहीं जितने साउंड इफेक्ट हो रहे थे। जब निजी बैठक के दरवाजे का
हैंडल घूमा तो मुझे लगा कि किसी ने खेत में काम करने वाला ट्रैक्टर चला
दिया है और जब दरवाजा बंद हुआ तो लगा, मिट्टी ढोने वाले दो ट्रक आपस में
टकरा गये हैं। शुरू शुरू में वे आवाज़ को नियंत्रित करने के बारे में कुछ
नहीं जानते थे। म्यान में तलवार रखने की आवाज़ ऐसे आती मानो स्टील फैक्टरी
में काम चल रहा हो। साधारण पारिवारिक डिनर की मेज से आवाजें ऐसे आतीं मानो
किसी भीड़ भरे रेस्तरां में खाना खाया जा रहा हो और गिलास में पानी डालने
की आवाज़ इतनी खास तरह की आवाज़ निकलती कि आवाज़ के बहुत ऊंचे डेसिबल तक जा
पहुंचती। मैं थियेटर से ये सोचते हुए लौटा कि आवाज़ के दिन बस, गिने चुने
ही हैं।
लेकिन एक ही महीने बाद एमजीएम ने एक फिल्म बनायी, द ब्राडवे मेलोडी। ये एक
पूरी लम्बाई वाली संगीत भरी फिल्म थी और हालांकि ये बड़ा ही सस्ता और सुस्त
मामला था, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसने सफलता के झंडे गाड़ दिये और इसी से
सिलसिला चल निकला। सभी थियेटरों ने रातों-रात आवाज़ के लिए तार बिछाने शुरू
कर दिये। ये मूक फिल्मों की सांझ थी। ये तरस खाने वाली बात थी क्योंकि इस
बीच मूक फिल्मों में सुधार होने शुरू हो गये थे। मिस्टर मुरनऊ, जर्मन
निर्देशक ने इस माध्यम को बहुत अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया था और हमारे
कुछ अमेरिकी निर्देशक भी इसी तरह के प्रयोग कर रहे थे। किसी भी अच्छी मूक
फिल्म में विश्वव्यापी अपील होती थी जो बुद्धिजीवी वर्ग और आम जनता को एक
जैसे पसंद आती थीं। अब ये सब कुछ खो जाने वाला था।
लेकिन मैं इस बात पर अड़ा हुआ था कि मैं मूक फिल्में ही बनाता रहूंगा
क्योंकि मेरा ये मानना था कि सभी तरह के मनोरंजन के लिए हमेशा गुंजाइश रहती
है। इसके अलावा, मैं मूक अभिनेता, पेंटोमाइमिस्ट था और उस माध्यम में मैं
विरल था और अगर इसे मेरी खुद की तारीफ करना न माना जाये तो मैं इस कला में
सर्वश्रेष्ठ था। इसलिए मैंने एक और मूक फिल्म द सिटी लाइट्स के लिए काम
करना शुरू कर दिया।
इसकी कहानी एक जोकर के आसपास बुनी गयी थी जो एक सर्कस में दुर्घटनावश, अपनी
आंखों की रौशनी खो बैठता है। उसकी एक बीमार-सी, प्यारी-सी बेटी है जो नर्वस
है और जब वह अस्पताल से वापिस आता है तो डॉक्टर उसे चेताता है कि वह अपनी
बेटी से अपना अंधापन तब तक छुपाये रखे जब तक वह इतनी समझदार नहीं हो जाती
कि अंधेपन को समझ सके, नहीं तो इसका लड़की पर उल्टा असर पड़ेगा। उसका चीजों
पर लड़खड़ाना और ठोकरें खाना बेटी को खुशी भरी हंसी से भर देता है। लेकिन
ये कुछ ज्यादा ही हो जाता। अलबत्ता, जोकर का अंधापन फिल्म सिटी लाइट्स में
लड़की के हिस्से में चला जाता है।
इसमें एक उप कहानी भी थी जिस पर मैं कई बरसों से सोच रहा था। अमीर आदमियों
के एक क्लब के दो सदस्य हैं जो इस बात पर बहस कर रहे हैं कि आदमी की आत्मा
कितनी अस्थिर होती है। वे एक ट्रैम्प के साथ एक प्रयोग करते हैं। उसे वे
लंदन के एम्बेंकमेंट इलाके में सोया हुआ पाते हैं। वे उसे अपने महलनुमा घर
में ले आते हैं और उसकी खूब खातिरदारी करते हैं। सुरा और सुंदरी और गाना
बजाना होता है। और जिस वक्त वह बुरी तरह से नशे में धुत्त होता है और सो
रहा होता है, वे उसे वहीं पर छोड़ आते हैं जहां से वे उसे उठा कर लाये थे।
जब वह जागता है तो यही समझता है कि उसने सपना देखा है। इसी विचार से द सिटी
लाइट्स के करोड़पति की कहानी बुनी गयी थी जो नशे में होते वक्त एक ट्रैम्प
से दोस्ती करता है लेकिन जिस वक्त वह होश में होता है तो ट्रैम्प की अनदेखी
करता है। इसी थीम से कहानी आगे बढ़ती है और ट्रैम्प उस अंधी लड़की के सामने
ये नाटक कर पाता है कि वह अमीर आदमी है।
सिटी लाइट्स पर दिन भर काम करने के बाद मैं डगलस के स्टूडियो की तरफ निकल
जाया करता और वहां स्टीम बाथ लेता। उनके कई दोस्त अभिनेता, निर्माता और
निर्देशक वहां पर जमा होते और वहां पर हम बैठ जाया करते। अपनी जिन या टानिक
की चुस्कियां लेते हुए, गप्पें मारते हुए सवाक फिल्मों की बातें करते। ये
तथ्य किसी के भी गले से नीचे नहीं उतरता था कि मैं एक और मूक फिल्म बना रहा
हूं।
"आप में तो भई गज़ब का धैर्य है," वे लोग कहा करते।
•
अपने पिछले कामों के दौरान अक्सर मैं निर्माताओं में रुचि पैदा कर लिया
करता था। लेकिन इस वक्त तो हालत ये थी कि वे लोग सवाक फिल्मों की सफलता से
इतने ज्यादा भरे हुए थे और जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था मुझे ऐसा लगने
लगा था कि चीजें मेरे हाथ से फिसलती जा रही हैं; मुझे ऐसा लगा कि मैं बरबाद
हो चुका हूं।
जो शेंक, जिन्होंने सवाक फिल्मों के प्रति अपना रोष सार्वजनिक रूप से प्रकट
कर दिया था, अब उनके पक्ष में बात करने लगे थे,"चार्ली, मुझे ये डर है कि
ये फिल्में हमेशा के लिए आ रही हैं!" तब वे इस बात की कल्पना करने लगते कि
केवल चार्ली ही अकेले ऐसे शख्स हैं जो अभी भी सफल मूक फिल्में बना सकते
हैं। ये बात तारीफ में कही गयी थी लेकिन बहुत ज्यादा राहत देने वाली नहीं
थी। क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मैं अकेला ही मूक फिल्मों की कला का
इकलौता पुजारी बचा रह जाऊं। न ही फिल्मी पत्रिकाओं में चार्ली चैप्लिन के
फिल्मी कैरियर के भविष्य के बारे में व्यक्त की गयी शंकाओं और डरों को
पढ़ना ही आश्वस्त करता था।
इसके बावजूद सिटी लाइट्स एक आदर्श मूक फिल्म थी और कोई भी बात मुझे ये
फिल्म बनाने से रोक नहीं सकी। लेकिन मेरे सामने कई समस्याएं आ खड़ी हुई
थीं। सवाक फिल्मों को आये अब लगभग तीन बरस हो गये थे, इस बीच अभिनेता इस
बात को कमोबेश भूल ही चुके थे कि मूक अभिनय, पेंटोमाइमिंग करते ही कैसे
हैं। उसकी सारी टाइमिंग बोलने में जा चुकी थी न कि एक्शन में। दूसरी
परेशानी थी एक ऐसी लड़की की खोज करना जो अपने सौन्दर्य से निगाहें हटवाये
बिना अंधी लग सके। कई आवेदक लड़कियां सामने आयीं जो अपनी आंखों की सफेद
पुतलियां दिखा रही थीं लेकिन ये सब देखना बहुत ही हताश करने वाला था।
किस्मत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया। एक बार सांता मोनिका समुद्र तट पर
मैंने एक फिल्म कम्पनी को शूटिंग करते देखा। वहां पर नहाने के कपड़ों में
कई सुंदर लड़कियां थीं। उनमें से एक ने मेरी तरफ देख कर हाथ हिलाया, ये
वर्जिनिया चेरिल थी। मैं उससे पहले भी मिल चुका था।
"मैं आपकी फिल्म में कब काम करने जा रही हूं?" पूछा उसने?
नीले रंग के बेदिंग सूट में उसकी कमनीय देहयष्टि ने कहीं भी मेरे इस ख्याल
को प्रेरित नहीं किया कि वह अंधी लड़की के रूप में आध्यात्मिक भूमिका कर
पायेगी। लेकिन दूसरी नायिकाओं के साथ दो एक परीक्षण कर लेने के बाद मैंने
बुरी तरह से हताश होने के बाद उसी को बुलवाया। मेरी हैरानी की सीमा न रही
जब मैंने पाया कि उसमें अंधी लड़की की भूमिका करने के सभी गुण मौजूद थे।
मैंने उसे आदेश दिया कि वह मेरी तरफ देखे लेकिन वह तब भीतर देख रही हो न कि
मुझे और वह ये काम कर पायी। मिस चेरिल खूबसूरत और फोटोजेनिक थी लेकिन उसे
अभिनय करने का बहुत ही कम अनुभव था। कई बार ये बात, खास कर मूक फिल्मों में
फायदे की ही होती है। कारण ये है कि वहां पर तकनीक ही सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण होती है। अनुभवी अभिनेत्रियां कई बार अपनी आदतों में इतनी
जकड़ चुकी होती हैं और मूक अभिनय में मूवमेंट की तकनीक इतनी ज्यादा मशीनी
होती है कि उन्हें ये बाधा ही पहुंचाती है। जो कम अनुभवी होती हैं वे अपने
आपको इन मशीनी मूवमेंट के साथ आसानी से ढाल लेती हैं।
फिल्म में एक दृश्य है जिसमें ट्रैम्प ट्रैफिक की भीड़ से बचने के लिए एक
लिमोजिन कार में से चल कर सड़क पार करता है। वह एक तरफ का दरवाजा खोल कर
उसमें घुसता है और दूसरी तरफ से बाहर निकल जाता है। फूल बेचने वाली अंधी
लड़की कार का दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनती है और इस आवाज़ से वह उसे कार
का मालिक समझ बैठती है और उसे फूल बेचने की कोशिश करती है। उसके पास सिर्फ
आधे क्राउन का सिक्का ही बचा है और उससे वह कोट के बटन में लगाये जाने वाले
फूल खरीद लेता है। दुर्घटनावश, फूल लड़की के हाथ से फुटपाथ पर गिर जाते
हैं। एक घुटने के बल झुक कर वह फूल तलाशने की कोशिश करती है। वह बताना
चाहता है कि फूल किस जगह पर हैं। लेकिन वह फिर भी तलाशती रहती है। अधीर हो
कर वह खुद फूल उठाता है और उसकी तरफ अविश्वास से देखता है। लेकिन अचानक ही
उसे ये लगता है कि लड़की देख नहीं सकती है और उसकी आंखों के आगे से फूल
फिराते हुए वह पाता है कि वह सचमुच अंधी है। वह उससे माफी मांगता है और
खड़े होने में उसकी मदद करता है।
ये पूरा दृश्य लगभग सत्तर सेकेंड तक चलता है। लेकिन इसे सही तरीके से लेने
के लिए हमें पांच दिन तक रीटेक लेने पड़े। इसमें सारी गलती लड़की की नहीं
थी। लेकिन मेरा खुद का भी कसूर था। मैं परफैक्शन चाहने के चक्कर में पागलपन
की हद तक काम करता हूं। सिटी लाइट्स को बनाने में एक बरस से भी ज्यादा का
समय लग गया।
फिल्म निर्माण के दौरान स्टॉक मार्केट धराशायी हो गया। सौभाग्य से मैं
उसमें कहीं नहीं था। चूंकि मैं मेजर एच डगलस का लेख सोशल क्रेडिट बढ़ चुका
था जिसमें उन्होंने हमारी अर्थ व्यवस्था का विश्लेषण किया था और तालिकाएं
बना कर समझाया था कि मूल रूप से सारे फायदे वेतनों से ही आते हैं। इसलिए
बेरोज़गारी का मतलब हुआ लाभ में कमी और पूंजी में गिरावट। मैं उनकी थ्योरी
से 1928 में प्रभावित हुआ था और उस वक्त अमेरिका में बेरोज़गारों की संख्या
एक करोड़ चालीस लाख तक जा पहुंची थी। तब मैंने अपने सारे स्टॉक और बांड बेच
डाले थे और अपनी पूंजी को मैंने नकदी में बनाये रखा था।
स्टॉक मार्केट के लुढ़कने से एक दिन पहले मैं इर्विंग बर्लिन के साथ खाना
खा रहा था। वे स्टॉक मार्केट को ले कर बहुत ज्यादा आशावादी थे। वे बता रहे
थे कि वे जिस रेस्तरां में खाना खाया करते थे वहां की एक वेट्रेस ने बाजार
में पैसे लगाये थे और एक बरस से भी कम के अरसे में अपने निवेशों से दुगुना
लाभ कमाते हुए 40000 डॉलर बना लिये थे। स्टॉकों में उनकी खुद की कई करोड़ों
की इक्विटी लगी हुई थी जिन पर दस लाख डॉलर से भी ज्यादा के फायदे नज़र आ
रहे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं भी स्टॉक बाजार का खिलाड़ी हूं।
मैंने उन्हें बताया कि जिस वक्त एक करोड़ चालीस लाख लोग बेरोज़गार हों तो
मैं स्टॉक बाजार पर भरोसा नहीं कर सकता। जब मैंने उन्हें सलाह दी कि वे
अपने स्टॉक बेच डालें और उन्हें जितना भी लाभ मिल रहा है उसे ले कर एक
किनारे हो जायें तो वे नाराज़ हो गये। हम दोनों में गरमा गरम बहस छिड़ गयी।
"क्यों, श्रीमान जी, आप अमेरिका को कम करके आंक रहे हैं?" उन्होंने कहा और
मुझ पर बहुत ज्यादा देशद्रोही होने का आरोप लगाया। अगले दिन बाजार पचास
पाइंट लुढ़क गया। इर्विंग की किस्मत ने कलाबाजी खायी और वे सड़क पर थे। दो
एक दिन बाद वे मेरे पास स्टूडियो में आये। वे हक्के बक्के थे और माफी मांग
रहे थे। वे जानना चाहते थे कि मुझे ये जानकारी कहां से मिली थी।
•
आखिरकार सिटी लाइट्स पूरी हो गयी। अब सिर्फ संगीत रिकार्ड किया जाना ही
बाकी था। आवाज़ के बारे में एक अच्छी बात ये थी कि मैं संगीत को नियंत्रित
कर सकता था। इसलिए मैंने स्वयं संगीत रचना की।
मैं रोमानी और भव्य संगीत रचना करना चाहता था ताकि वह मेरी कॉमेडियों में
ट्रैम्प के चरित्र के ठीक उल्टा जाये। मेरा ये मानना है कि भव्य संगीत मेरी
कॉमेडियों को एक भावनात्मक आयाम देता है। संगीत अरेंजर शायद ही इस बात को
कभी समझ पाये। वे चाहते थे कि संगीत मज़ाकिया हो। लेकिन मैं उन्हें समझाता
कि मैं कोई प्रतिस्पर्धा नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि संगीत गरिमा और
सौन्दर्य का ही हिस्सा बन कर आये, वह संवेदनाओं को अभिव्यक्त करे, जिसके
बिना, जैसा कि हैज़लिट कहते हैं, कला का कोई कर्म पूरा ही नहीं होता। कई
बार कोई संगीतकार मुझसे बहस करता और संगीत के आरोह और अवरोह की बंधी हुई
सीमाओं की बात करता, तो मैं उसकी बात बीच में ही काट कर उसके सामने आम आदमी
की राय रख देता, जो भी है संगीतात्मकता है, बाकी सब पैबंद है। अपनी एक या
दो फिल्मों का संगीत तैयार कर लेने के बाद मैं किसी कन्डक्टर की संगीतबद्ध
की गयी रचना की तरफ व्यावसायिक नज़रिये से और यह जानने के लिए देखने लगा कि
संगीत रचना में बहुत अधिक आर्केस्ट्रा तो नहीं आ गया है। यदि मुझे पीतल
वाले वाद्यों में और काष्ठ के वाद्यों में बहुत ज्यादा धुनें मिलतीं तो मैं
कह देता,"यहां पीतल कुछ ज्यादा ही घनघना रहा है या काष्ठ वाद्य कलाकार कुछ
ज्यादा ही व्यस्त हैं।
इससे ज्यादा रोमांचकारी और आल्हादक और कोई चीज़ नहीं होती जब आप पचास वाद्य
यंत्रों के आर्केस्ट्रा पर तैयार की गयी अपनी फिल्म की धुनों को पहली बार
सुनते हैं।
जब आखिरकार सिटी लाइट्स की संगीत रचना को फिल्म में पिरो लिया गया तो मैं
उसका भाग्य जानने को बेचैन था। इसलिए बिना किसी घोषणा के हमने शहर से बाहर
के इलाके में इसका एक प्रिव्यू रखा।
ये बहुत भयानक अनुभव था। वजह ये थी कि हमारी फिल्म आधे भरे हुए सिनेमा हॉल
के परदे पर दिखायी जा रही थी। दर्शक एक ड्रामा देखने आये थे न कि कॉमेडी और
वे पिक्चर के आधी चल जाने तक अपनी घबराहट से उबर नहीं पाये। कुछ हँसी के पल
थे, लेकिन कमज़ोर। और इससे पहले कि फिल्म पूरी हो पाती, मैंने बीच के
रास्ते से कुछ छायाओं को बाहर की तरफ जाते देखा। मैंने अपने सहायक निर्देशक
को टहोका मारा,"लोग तो फिल्म छोड़ कर जा रहे हैं!"
"हो सकता है वे टायलेट के लिए जा रहे हों।" वह फुसफुसाया।
इसके बाद मैं फिल्म में अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाया। बल्कि इस बात
का इंतज़ार करने लगा कि जो लोग उठ कर बाहर गये थे, वापिस आते हैं या नहीं।
कुछ पलों के बाद मैं फुसफुसाया,"वे लोग वापिस नहीं आये हैं।"
"कुछ लोगों को ट्रेन पकड़नी होगी," सहायक निर्देशक ने जवाब दिया।
मैं इस भावना के साथ थियेटर से बाहर आया कि मेरी दो साल की मेहनत और बीस
लाख डॉलर गये पानी में। जिस वक्त मैं थियेटर से बाहर आया तो थियेटर का
प्रबंधक लॉबी में खड़ा था। उसने मेरा अभिवादन किया,"ये बहुत अच्छी है।"
उसने मुस्कुराते हुए कहा, और बात पूरी करते करते एक और जुमला जड़ दिया,"अब
मैं देखना चाहता हूं कि आप सवाक फिल्में बनायें और पूरी दुनिया इसी बात की
राह देख रही है।"
मैंने मुस्कुराने की कोशिश की। हमारा स्टाफ थियेटर से बाहर सरक आया था और
इस समय दीवारों से सट कर खड़ा था। मैं भी उनमें जा मिला। रीव्ज़, मेरे
मैनेजर ने हमेशा की तरह गम्भीर बने रहते हुए मेरा अभिवादन किया और अपनी
आवाज़ को लय ताल में बांधते हुए बोला,"काफी अच्छी चली। नहीं क्या! मैंने
सोचा, ये देखते हुए कि - -।" उसका अंतिम शब्द स्पष्ट ही उसका शक जाहिर करता
था लेकिन मैंने विश्वास के साथ सिर हिलाया।
"जब पूरा थियेटर भरा होगा तो ये महान फिल्म होगी। हां, बेशक एक आध कट करने
की ज़रूरत पड़ेगी।" मैंने अपनी तरफ से जोड़ा।
अब तूफान की तरह परेशान करने वाला ये ख्याल हमारे सामने मंडराने लगा कि अब
तक हमने पिक्चर बेचने की कोशिश ही नहीं की है। लेकिन इस बात को ले कर मैं
बहुत ज्यादा परेशान नहीं था क्योंकि मेरे नाम का सिक्का अभी भी बॉक्स ऑफिस
पर सफलता की गारंटी है, इस बात की मुझे उम्मीद थी। जो शेंक, हमारे युनाइटेउ
आर्टिस्ट्स के अध्यक्ष ने मुझे चेताया कि वितरक मुझे उन्हीं शर्तों पर पैसा
देने के लिए तैयार नहीं हैं जिन शर्तों पर उन्होंने द गोल्ड रश उठायी थी।
और कि बड़े सर्किट अपने हाथ बांधे, इंतज़ार करो और देखो का रुख अपनाये हुए
थे। इससे पहले ये होता था कि जब भी मेरी कोई नयी फिल्म आती थी तो वे दिल
खोल कर दिलचस्पी लिया करते थे। अब उनकी दिलचस्पी में वो गर्मजोशी नहीं थी।
इसके अलावा, न्यू यार्क में शो करने के लिए समस्याएं उठ खड़ी हुईं। मुझे ये
बताया गया था कि न्यू यार्क के सभी थियेटर पहले से ही बुक हो चुके थे।
इसलिए मुझे अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ेगा।
न्यू यार्क में मात्र एक ही थियेटर उपलब्ध था। ये भीड़ भाड़ वाले इलाके से
काफी हट कर ग्यारह सौ पचास की बैठने की क्षमता वाला जॉर्ज एम कोहन थियेटर
था और इसे सफेद हाथी समझा जाता था। देखा जाये तो ये सिनेमा घर भी नहीं था।
मैं सात हजार डॉलर प्रति सप्ताह पर चार दीवारें किराये पर ले सकता था और
इसके लिए आठ सप्ताह के किराये की गारंटी देनी होती, और बाकी सारी चीजों का
इंतज़ाम मुझे खुद करना होता। मैनेजर, कैशियर, सीटें दिखाने वाले,
प्रोजेक्टर चलाने वाले, स्टेज संभालने वाले और बिजली वाले साइन बोर्ड और
प्रचार। अब चूंकि मेरे खुद के बीस लाख डॉलर दांव पर लगे हुए थे, और वो भी
मेरा खुद का धन, मैंने सोचा ये पूरा जूआ भी क्यों न खेल कर देख लिया जाये
और मैंने हॉल किराये पर ले लिया।
इस बीच रीव्ज़ ने लॉस एंजेल्स में हाल ही में बने एक नये थियेटर में सौदा
कर लिया। चूंकि आइंस्टीन दम्पत्ति अभी भी वहीं पर थे, और उन्होंने पहला शो
देखने की इच्छा व्यक्त की लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस बात का रत्ती
भर भी गुमान होगा कि वे क्या देखने जा रहे हैं। प्रीमियर से पहले वाली रात
उन्होंने मेरे घर पर खाना खाया फिर हम सब शहर की तरफ चले। मुख्य गली कई
मौहल्लों तक भीड़ से अटी पड़ी थी। पुलिस कारें और एम्बुलेंस की गाड़ियां
भीड़ में से रास्ता बनाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं। भीड़ ने थियेटर के
साथ वाली दुकान के शीशे तोड़ दिये थे। पुलिस की टुकड़ी की मदद से हमें किसी
तरह से फोयर तक पहुंचाया गया। इन पहली रातों से मुझे कितनी कोफ्त होती है!
व्यक्तिगत तनाव, खुशबुओं, अलग अलग किस्म के इत्रों की मिली जुली गंध, इन
सबका असर उबकाई लाने वाला और नसें तड़काने वाला था।
मालिक ने थियेटर बहुत खूबसूरत बनाया था लेकिन उन दिनों के अधिकांश वितरकों
की तरह वह फिल्मों के प्रदर्शन के बारे में बहुत कम जानता था। फिल्म शुरू
हुई। क्रेडिट टाइटल दिखाये गये, पहली रात को होने वाला शोर शराबा हुआ। आखिर
पहला सीन खुला। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। पहला दृश्य कॉमेडी का था
जिसमें एक मूर्ति का अनावरण दिखाया गया था। लोग हँसने लगे। फिर ये हँसी
चीखने में बदल गयी। उनकी नस अब मेरे हाथ में थी। मेरी सभी शंकाएं और डर हवा
में काफूर की तरह उड़ गये। अब मैं रोना चाहता था। तीन रीलों तक लोग हँसते
ही रहे। और मैं खुद अपनी शिराओं में दौड़ते रक्त में घुली उत्तेजना में
उनके साथ साथ हँस रहा था।
तभी एक बहुत ही वाहियात घटना घट गयी। अचानक ही ठहाकों के बीच फिल्म रोक दी
गयी। हॉल की बत्तियां जल गयीं और लाउड स्पीकार पर एक आवाज़ उभरी,"इस शानदार
कॉमेडी को आगे बढ़ाने से पहले हम आपके कीमती समय में से पांच मिनट चाहेंगे
और इस खूबसूरत नये थियेटर की विशेषताओं के बारे में कुछ बताना चाहेंगे।"
मैं अपने कानों पर विश्वास ही न कर सका। मैं पागल हो गया। मैं अपनी सीट से
कूदा और बीच वाले रास्ते पर दौड़ा,"कहां है वो हरामजादा? सूअर का पिल्ला
मैनेजर, मैं उसे जान से मार डालूंगा।"
दर्शकगण मेरे साथ हो लिये और जमीन पर पैर पटकने और शोर मचाने लगे जबकि वह
मूरख थियेटर के गुणगान करने में ही लगा रहा। अलबत्ता, जब दर्शकों ने हो
हल्ला करना शुरू कर दिया तो उसने अपनी भाषणबाजी बंद की। एक और रील चलने के
बाद ही ठहाके फिर से हॉल में गूंजने लगे। ऐसी परिस्थितियों में मेरा ख्याल
है, पिक्चर ठीक ठाक चली। अंतिम सीन में मैंने देखा, आइंस्टीन साहब अपनी
आंखें पोंछ रहे थे। इस बात का एक और सबूत कि वैज्ञानिक भी ठीक न हो सकने
वाले संवेदनशील प्राणी होते हैं।
अगले दिन समीक्षाओं का इंतज़ार किये बिना मैं न्यू यार्क के लिए चला
क्योंकि पहले प्रदर्शन से पहले मेरे पास सिर्फ चार ही दिन थे। जब मैं
पहुंचा तो ये देख कर मेरे होश उड़ गये कि पिक्चर का ज़रा सा भी प्रचार नहीं
किया गया था। सिर्फ औपचारिक घोषणाएं और मामूली सा प्रचार ही किया गया था-
"हमारा पुराना दोस्त एक बार फिर हमारे सामने" और इसी तरह की कमज़ोर लाइनें
ही आयी थीं। इसलिए मैंने अपने युनाइटेड आर्टिस्ट्स स्टाफ को कड़वी घुट्टी
पिलायी,"संवेदनाओं की परवाह मत करो। उन्हें जानकारी दो। हम एक ऐसे थियेटर
में फिल्म दिखा रहे हैं जो पिक्चर हॉल नहीं है और आम रास्ते से हट कर है।"
मैंने आधे-आधे पेज के विज्ञापन लिये, और उन्हें न्यू यार्क के सभी
महत्त्वपूर्ण अखबारों में एक ही फांट साइज में प्रकाशित कराया -
चार्ली चैप्लिन
कोहन थियेटर पर
सिटी लाइट्स में
सारे दिन की दरें 50 सेंट और एक डॉलर
मैंने अखबारों पर 30000 डॉलर अतिरिक्त खर्च किये और थियेटर के आगे लगाये
जाने के लिए बिजली वाला एक साइन बोर्ड किराये पर लिया और उस पर 30000 डॉलर
खर्च किये। हमारे पास समय बहुत कम था और हमें बहुत काम करना था। मैं सारी
रात जागता रहा और फिल्म के प्रोजेक्टशन के प्रयोग करता रहा, फिल्म के आकार
के बारे में माथा पच्ची करता रहा और उसमें आयी खामियों को ठीक करता रहा।
अगले दिन मैं प्रेस से मिला और उन्हें बताया कि मैंने ये मूक फिल्म क्यों
और किसके लिए बनायी है।
युनाइटेड आर्टिस्ट्स के स्टाफ सदस्य मेरे प्रवेश शुल्क को ले कर शंका में
पड़े हुए थे क्योंकि मैं सीधे सीधे एक डॉलर और पचास सेंट वसूल कर रहा था
जबकि सभी सिनेमा हॉल शुरुआती प्रदर्शनों के लिए महंगे स्टालों के लिए
पिचासी सेंट और पैंतीस सेंट लिया करते थे जबकि वे सवाक फिल्में दिखा रहे थे
और फिल्म के शुरू में कलाकारों का शो भी होता। मेरा मनोविज्ञान इस प्रमुख
तथ्य पर काम कर रहा था कि ये मूक फिल्म थी और इसीलिए इसकी कीमत बढ़ाये जाने
की ज़रूरत थी। और अगर जनता पिक्चर देखना चाहती है तो उन्हें पिचासी सेंट और
एक डॉलर के बीच के फर्क नहीं रोक पायेगा। इसलिए मैंने समझौता करने से
इन्कार कर दिया।
प्रीमियर में फिल्म बहुत अच्छी गयी। लेकिन प्रीमियर तो आगे के बारे में कोई
संकेत नहीं देते। आम जनता ही तो मायने रखती है। क्या वे मूल फिल्म में
दिलचस्पी लेंगे। ये ख्याल आधी रात तक मुझे जगाये रहे। अलबत्ता, सुबह मुझे
हमारे प्रचार प्रबंधक ने जगाया, और मेरे बेडरूम में ग्यारह बजे धड़धड़ाता
हुआ घुसा,"साहब, आपने तो कमाल कर दिया! क्या हिट जा रही है! आज सुबह दस बजे
से ही जो लाइनें लगनी शुरू हुई हैं वे सारी गलियों को घेरे हुए हैं और सारा
ट्रैफिक रुका पड़ा है। कम से कम दस पुलिस वाले ट्रैफिक नियंत्रण में लगे
हैं। लोग हैं कि किसी तरह से भीतर घुसना चाहते हैं। आपको देखना चाहिये कि
वे किस तरह से हो हल्ला कर रहे हैं!"
मुझ पर सुख की, राहत की भावना तारी हो गयी और मैंने ब्रेकफास्ट मंगवाया और
तैयार होने लगा। "मुझे बताओ, सबसे ज्यादा ठहाके किस सीन पर लगे थे?" पूछा
मैंने, और उसने बारीकी से बताना शुरू किया कि कहां कहां लोग हँसे थे और
कहाँ पेट पकड़ कर हँसे थे और कहां हँसते हँसते पागल हो रहे थे। आओ, और अपने
आप देखो।" कहा उसने,"इससे आपका जी अच्छा हो जायेगा।"
मैं जाने में हिचकिचा रहा था क्योंकि कोई भी शै उसके उत्साह का मुकाबला
नहीं कर सकती थी। फिर भी, मैं थियेटर में पीछे की तरफ भीड़ के साथ खड़े हो
कर आधे घंटे तक फिल्म देखता रहा, लगातार जो ठहाके गूंज रहे थे, उनसे मुझे
हर्ष मिश्रित राहत मिल रही थी। ये मेरे लिए काफी था। मैं संतुष्ट वापिस आया
और चार घंटे तक न्यूयार्क की सड़कों पर भटकता रहा और अपनी भावनाओं को हवा
देता रहा। बीच बीच में मैं थियेटर के पास से गुज़रता, और देखता, अभी भी
चारों तरफ की सड़कों पर अंतहीन कतारें लगी हुई हैं।
फिल्म को गुमनाम लोगों की तरफ से भी बहुत अच्छी समीझाएं मिलीं।
1150 की क्षमता वाले हॉल से हमने तीन हफ्ते तक 80000 डॉलर प्रति सप्ताह की
दर से कमायी की जबकि ठीक सामने वाली सड़क पर 3000 क्षमता वाले पैरामाउंट
में सवाक फिल्म दिखायी जा रही थी और मॉरिस शैवेलियर स्वयं मौजूद थे, वहां
कुल 38000 डॉलर प्रति सप्ताह ही निकल पाये। सिटी लाइट्स बारह हफ्ते तक चलती
रही और सारे खर्च निकाल लेने के बाद 400000 डॉलर से भी ज्यादा का शुद्ध
मुनाफा दे गयी। फिल्म उतारने का एक ही कारण था कि न्यू यार्क थियेटर
सर्किट, जिन्होंने इसे अच्छी कीमत पर बुक कर रखा था, ये अनुरोध करने लगे कि
वे नहीं चाहते कि उनके सर्किट में पहुंचने से पहले ऐसा न हो कि हर आदमी ने
इसे देख रखा हो।
और अब मैं लंदन जाना चाहता था और वहां पर सिटी लाइट्स को लांच करना चाहता
था। जब मैं न्यू यार्क में था तो द न्यू यार्कर के अपने दोस्त राल्फ बर्टन
से बहुत ज्यादा मिला करता था, उन्होंने हाल ही में बालजाक की किताब ड्रॉल
स्टोरीज़ का चित्रण पूरा किया था। वे सिर्फ सैंतीस बरस के थे और बेहद
सुसंस्कृत और सनकी आदमी थे। उन्होंने पांच शादियां रचायी थीं। वे कुछ अरसे
से हताशा में चल रहे थे और किसी चीज की ज्यादा खुराक ले कर खुदकशी करने की
कोशिश भी की थी। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वे मेरे मेहमान के तौर पर मेरे
साथ यूरोप चलें और इस बदलाव से उन्हें बेहतर महसूस होगा। इस तरह से हम
दोनों ओलम्पिक में चले। ये वही जहाज था जिस पर मैंने इंगलैंड के लिए अपनी
पहली यात्रा की थी।
अध्याय :बाइस
दस बरस के बाद मैं इस बात को ले कर भावुक था कि लंदन में मेरा स्वागत कैसा
होगा। काश, मैं बिना किसी टीम-टाम के चुपचाप लंदन पहुंच पाता। लेकिन मैं
सिटी लाइट्स के प्रीमियर में शामिल होने के लिए आया था और इसका मतलब था
पिक्चर के लिए प्रचार। अलबत्ता, अपने स्वागत के लिए जुट आयी भीड़ के आकार
को देख कर मैं निराश भी नहीं हुआ।
इस बार मैं कार्लटन में ठहरा। कारण ये था कि ये रिट्ज की तुलना में लंदन का
पुराना लैंडमार्क था और इसके ज़रिये लंदन मेरे लिए ज्यादा पहचाना हुआ लगता
था। मेरा सुइट अति उत्तम था। मैं सबसे ज्यादा उदास करने वाली जिस बात की
कल्पना कर सकता हूं वह ये है कि विलासिता की आदत कैसे डाली जाये। हर दिन
मैं कार्लटन में कदम रखता तो ऐसा महसूस होता मानो सोने के स्वर्ग में
प्रवेश कर रहा होऊं। लंदन में अमीर हो कर रहने से ज़िंदगी हर पल उत्तेजना
पूर्ण रोमांच की तरह हो गयी थी। दुनिया आवभगत का ही नाम हो गया था।
इस प्रदर्शन की सबसे पहली कड़ी सुबह से ही शुरू हो गयी।
मैंने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांका तो मुझे नीचे गली में कई
प्लेकार्ड नज़र आये। एक पर लिखा था: "चार्ली अभी भी उनका चहेता है।" मैं
इसके अर्थ को सोच कर मुस्कुराया। प्रेस मेरे प्रति बहुत अच्छी तरह से पेश आ
रही थी। इसकी वज़ह ये हुई कि एक साक्षात्कार में जब किसी ने मुझसे पूछा कि
क्या मैं एल्स्ट्री जाऊंगा तो मैंने अच्छी खासी भूल कर दी। "ये कहां है?"
मैंने भोलेपन से पूछा। वे एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराये। तब उन्होंने
मुझे बताया कि ये इंगलिश फिल्म उद्योग का केन्द्र है। मेरी शर्मिंदगी इतनी
वास्तविक थी कि उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना।
ये दूसरा दौरा पहले दौरे की ही तरह आत्मा को झकझोर देने वाला और
उत्तेजनापूर्ण था और इसमें कोई शक नहीं कि ये ज्यादा रोचक था। ये वजह भी
रही कि मुझे और अधिक रोचक लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला।
सर फिलिप सैसून ने फोन किया और मुझे और राल्फ को पार्क लेन स्थित अपने शहर
वाले घर पर तथा लिम्पने वाले कन्ट्री हाउस में कई डिनर पार्टियों में
आमंत्रित किया। हमने उनके साथ हाउस ऑफ कॉमंस में भी खाना खाया। वहां पर
हमारी मुलाकात लॉबी में लेडी एस्टर से हुई। एकाध दिन के बाद उन्होंने भी
हमें नम्बर 1 सेंट जेम्स स्ट्रीट पर दोपहर के खाने पर बुलाया।
जैसे ही हम स्वागत कक्ष में पहुंचे, ऐसा लगा मानो हम मैडम टुसैड के हॉल ऑफ
फेम में जा पहुंचे हैं। वहां पर बहुत-सी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। हमारा
सामना बर्नार्ड शॉ, जॉन मेनार्ड कीन्स, लॉयड जॉर्ज और दूसरे कई लोगों से
हुआ लेकिन ये लोग मैडम टुसैड के हॉल ऑफ फेम की तरह मोम के पुतले नहीं, हाड़
मांस के जीते जागते इन्सान थे। लेडी एस्टर ने अपनी अथक सूझबूझ के साथ
बातचीत को तब तक जीवंत बनाये रखा जब तक उनके लिए अचानक बुलावा नहीं आ गया।
और इसके बाद मौन पसर गया। फिर बागडोर संभाली बर्नार्ड शॉ ने और उन्होंने
डीन इंगे के बारे में एक रोचक किस्सा सुनाया। डीन इंगे ने सेंट पॉल के
उपदेशों के प्रति अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा था,"सेंट पॉल ने हमारे
परम पिता परमेश्वर के उपदेशों को इतना विकृत कर दिया था कि यीशु को एक तरह
से सिर के बल सूली पर चढ़ा दिया था।" बातचीत को जीवंत बनाये रखने में मदद
करने में बर्नार्ड शॉ ने जो दयालुता और विनम्रता दिखायी, वह उनमें बेहद
मनभावन और आकर्षक थी।
लंच के दौरान मैंने कीन्स से बात की और उन्हें बताया कि मैंने एक अंग्रेजी
पत्रिका में बैंक ऑफ इंगलैंड में कर्ज के कामकाज के बारे में पढ़ा था। उस
वक्त ये बैंक निजी कार्पोरेशन हुआ करता था। यह कि युद्ध के दौरान बैंक के
स्वर्ण भंडार सूख गये थे और इसके पास केवल 400,000,000 डॉलर की ही विदेशी
प्रतिभूतियां बची थीं और कि जिस वक्त सरकार ने बैंक से 500,000,000 डॉलर का
कर्ज लेना चाहा तो बैंक ने सिर्फ अपनी प्रतिभूतियां बाहर निकालीं, उन्हें
देखा और वापिस वाल्ट में रख दिया और सरकार को कर्ज जारी कर दिया। और यही
लेनदेन कई कई बार दोहराया गया। .
कीन्स ने सिर हिलाया और कहा,"ये वो बात है जो घटी थी।"
लेकिन मैंने विनम्रता से पूछा,"लेकिन ये कर्ज चुकाये कैसे गये थे?"
"उसी विश्वास के धन के साथ।" कीन्स ने बताया।
लंच के खत्म होने से कुछ पहले लेडी एस्टर ने अपने चेहरे पर मज़ाकिया नकली
दांत लगा लिये। इससे उनके असली दांत छुप गये। उन्होंने तब विक्टोरियाई युग
की एक महिला की नकल करके दिखायी जो घुड़सवारों के एक क्लब में बोल रही है।
इन दांतों से उनका चेहरा विकृत हो गया और उस पर ठिठोली करने वाले भाव आ
गये। उन्होंने उत्साह से कहा,"हमारे ज़माने में हम ब्रिटिश महिलाएं विधिवत
महिलाओं के से फैशन में शिकारी कुत्तों का पीछा करती थीं न कि पश्चिम की उन
अमेरिकी पश्चिमी छिनालों की तरह अश्लील ढंग से टांगें मोड़ कर। हम एक तरफ
वाली गद्दी पर ही बैठा करती थीं और इसमें स्त्रियोचित गरिमा होती थी।"
लेडी एस्टर बहुत ही शानदार अभिनेत्री बन सकती थीं। वे बहुत ही भली मेज़बान
थीं और मैं उनका कई शानदार पार्टियों के लिए आभार मानता हूं। इन पार्टियों
में मुझे इंगलैंड की कई महान विभूतियों के दर्शन करने के मौके मिले।
लंच के बाद सभी लोग बिखर गये। लॉर्ड एस्टर हमें मुनिंग्स द्वारा बनाया गया
अपना पोट्रेट दिखाने ले गये। जिस वक्त हम स्टूडियो पर पहुंचे तो मुनिंग्स
हमें तब तक भीतर आने देने के लिए बहुत इच्छुक नहीं थे जब तक लॉर्ड एस्टर ने
जिद करके हमें भीतर आने देने के लिए उन्हें नहीं मना लिया। लॉर्ड एस्टर का
पोर्ट्रेट हंटर पर था और वे हाउंड कुत्तों के झुंड से घिरे हुए थे। मैंने
मुनिंग्स के साथ एक शरारत की। मैंने उनकी कई शुरुआती जल्दबाजी वाले
अध्ययनों की तारीफ की जो उन्होंने कुत्तों की गति और अंतिम रूप से तैयार
पोर्ट्रेट में दिखाये थे। "गति ही संगीत है।" कहा मैंने। मुनिंग्स का चेहरा
खिल गया और उन्होंने मुझे कई दूसरे क्विक स्कैच दिखाये।
एकाध दिन बाद हमने बर्नार्ड शॉ के यहां खाना खाया। इसके बाद जी बी मुझे
अपने पुस्तकालय में ले कर गये। वहां सिर्फ हम दो ही थे। लेडी एस्टर और बाकी
दूसरे मेहमान बैठक में ही थे। पुस्तकालय खूब खुला खुला और खुशरंग कमरे में
था और उसके सामने टेम्स नदी नज़र आती थी। और, जिगर थाम के, मेरे सामने एक
आतिशदान पर रखी थीं बर्नार्ड शॉ की किताबें और मैं एक ठहरा मूरख, शॉ को
बहुत कम पढ़ रखा था मैंने। मैं उनकी किताबों तक गया और हैरानी के से भाव
लाते हुए बोला," आहा! ये सब आपका काम है!" तब मुझे सूझा कि वे शायद ये
सुनहरी अवसर इसीलिये लाये होंगे कि अपनी किताबों के बारे में मुझसे चर्चा
करके मेरे दिमाग की थाह ले सकें। मैंने कल्पना की कि हम दोनों बातचीत में
इतने डूबे हुए हैं कि बैठक में बैठे बाकी मेहमान भीतर आ गये और हमारी
बातचीत को भंग किया। काश, ऐसा होता तो कितना अच्छा होता। लेकिन हुआ कुछ और
ही। हम दोनों के बीच मौन के पल आये, मैं मुस्कुराया और कमरे में चारों तरफ
देखा और कमरे के इतने खुशनुमा होने के बारे में एकाध चलताऊ सा जुमला कहा।
तब हम बाकी मेहमानों के बीच आ बैठे।
उसके बाद भी मैं मिसेज शॉ से कई बार मिला। मुझे याद है कि मैंने उनके साथ
शॉ के नाटक एप्पल कार्ट के बारे में चर्चा की थी। इस नाटक को उदासीनता भरी
समीक्षाएं मिली थीं। मिसेज शॉ नाराज़ थीं। कहा उन्होंने,"मैंने शॉ से कहा
था कि और नाटक लिखना बंद कर दो। जनता और समीक्षक इनके लायक नहीं हैं।"
अगले तीन दिन तक हमारे पास न्यौतों का तांता लगा रहा। एक निमंत्रण प्रधान
मंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड की तरफ से था। दूसरा विंस्टन चर्चिल की तरफ से तथा
अन्य निमंत्रण लेडी एस्टर, सिर फिलिप ससून और इसी तरह से राजसी लोगों की
तरफ से थे।
विंस्टन चर्चिल से मैं पहली बार मैरियन डेविस के बीच हाउस पर मिला था। वहां
पर बाल रूम तथा स्वागत वाले कमरे के बीच लगभग पचास मेहमान एक दूसरे के कंधे
से कंधा भिड़ाते घूम रहे थे। तभी दरवाजे में हर्स्ट के साथ चर्चिल नज़र
आये। वे नेपोलियन की तरह अपना हाथ वेस्टकोट में डाले खड़े थे और नृत्य देख
रहे थे। वे अपने आप में खोये खोये और असंगत लग रहे थे। डब्ल्यू आर ने मुझे
देखा और मुझे आगे करके हम दोनों का परिचय कराया गया।
चर्चिल का तौर तरीका आत्मीय होने के बावजूद झटके वाला था। हर्स्ट ने हम
दोनों को अकेला छोड़ दिया और हम दोनों खड़े खड़े आपस में इधर उधर की बातें
करने लगे। हमारे चारों तरफ लोगों की भीड़ जुट आयी थी। जब तक मैंने उनसे
इंगलिश लेबर सरकार की बात नहीं की, उनके चेहरे पर रौनक नहीं आयी।
"एक बात मैं समझ नहीं पाता," मैंने कहा,"कि इंगलैंड में समाजवादी सरकार का
चुनाव राजा और रानी की हैसियत नहीं बदलता।"
उन्होंने मेरी तरफ तेज़ निगाहों से देखा और मज़ाक में चुनौती दी,"बेशक
नहीं," कहा उन्होंने।
"मैं सोचता था कि समाजवादी राजशाही के खिलाफ होते हैं।"
वे हँसे,"अगर आप इंगलैंड में होते तो इस जुमले के लिए आपका सर कलम कर दिया
जाता।"
एक या दो दिन बाद की बात है, उन्होंने होटल में अपने सुइट में मुझे डिनर के
लिए आमंत्रित किया। वहां पर दो मेहमान और थे। उनका लड़का रैन्डोल्फ भी वहीं
पर था। वह सोलह बरस का खूबसूरत किशोर था जो बौद्धिक तर्क करने के लिए
उतावला था और उसमें असहनीय जवानी वाली आलोचना थी। मैं देख पा रहा था कि
चर्चिल को उस पर बहुत गर्व था। ये एक बहुत ही शानदार शाम थी जिसमें बाप
बेटे बेसिलसिलेवार चीज़ों के बारे में शेखियां बघार रहे थे। उसके बाद उनके
इंगलैंड लौटने से पहले हम कई बार मैरियन के बीच हाउस पर मिले।
और अब चूंकि हम लंदन में थे, मिस्टर चर्चिल ने सप्ताहांत बिताने के लिए
मुझे और रैल्फ को चार्टवैल में आमंत्रित किया। वहां तक हमें ठंड में और
मुश्किल ड्राइव करनी पड़ी। चार्टवैल एक पुराना-सा प्यार-सा घर है जिसे
सादगी से लेकिन सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया गया है। यहां पर आ कर घर जैसी
भावना मिलती है। लंदन में अपनी दूसरी यात्रा के बाद ही यह संभव हो सका था
कि मैं चर्चिल को ढंग से जान पाया। इस दौरान वे हाउस ऑफ कामंस में पीछे की
सीटों पर बैठा करते थे।
मेरी कल्पना शक्ति ये कहती है कि सर विंस्टन में हम सब से अधिक मज़ाक का
माद्दा था। अपनी ज़िंदगी के मंच पर उन्होंने कई भूमिकाएं बहादुरी, ऊर्जा और
उल्लेखनीय उत्साह के साथ अदा की हैं। इस दुनिया में बहुत कम ऐसे आनंद होंगे
जो उन्होंने न भोगे हों। वे भरपूर जीवन जीए और भरपूर खेले - उन्होंने खेल
में सबसे बड़ी बाजियां लगायीं और जीते भी। उन्होंने सत्ता का सुख भोगा
लेकिन उसके मोह में नहीं पड़े। अपने व्यस्त जीवन में से भी उन्होंने ईंटें
बनाने, घुड़दौड़ और चित्रकारी के लिए अपने शौक पूरे करने के लिए वक्त निकाल
ही लिया। डाइनिंग रूम में मैंने आतिशदान के ऊपर एक स्टिल लाइफ पेंटिंग
देखी। विन्स्टन ने ताड़ लिया कि मैं उसमें गहरी रुचि ले रहा हूं।
"ये मैंने बनायी है।"
"लेकिन कितनी शानदार है!' मैंने उत्साहपूर्वक कहा।
"ये तो कुछ भी नहीं है। मैंने दक्षिणी फ्रांस में एक आदमी को लैंडस्केप
बनाते हुए देखा और कहा, 'मैं भी ये कर सकता हूं।' "
अगले दिन उन्होंने मुझे चार्टवैल के चारों तरफ बनायी गयी वह दीवार दिखायी
जो उन्होंने खुद बनायी थी। मैं हैरान हुआ था और इस आशय की कोई बात कही थी
कि ईंटें बनाना उतना आसान नहीं होता जितना लगता है।
"मैं आपको बताता हूं कि कैसे बनती हैं ईंटें और आप पांच मिनट में बनाना सीख
जायेंगे।"
पहली रात डिनर के समय कई युवा संसद सदस्य सचमुच ही उनके कदमों में बैठे।
इनमें थे मिस्टर बूथबाय, अब लॉर्ड बूथबाय, और स्वर्गीय ब्रैन्डेन ब्रैकेन
जो बाद में चल कर लार्ड ब्रैकने बने। दोनों ही प्यारे और अच्छी तरह से
बातचीत करने वाले लोग थे। मैंने उन्हें बताया कि मैं गांधी जी से मिलने जा
रहा हूं जो इन दिनों लंदन में हैं।
"हमने इस व्यक्ति को बहुत झेल लिया है। ब्रैकेन ने कहा,"भूख हड़ताल हो या न
हो, उन्हें चाहिये कि वे इन्हें जेल में ही रखें। नहीं तो ये बात पक्की है
कि हम भारत को खो बैठेंगे।"
"गांधी को जेल में डालना सबसे आसान हल होगा, अगर ये हर काम करे तो" मैंने
टोका,"लेकिन अगर आप एक गांधी को जेल में डालते हैं तो दूसरा गांधी उठ खड़ा
होगा और जब तक उन्हें वह मिल नहीं जाता जो वे चाहते हैं वे एक गांधी के बाद
दूसरा गांधी पैदा करते रहेंगे।"
चर्चिल मेरी तरफ मुड़े और मुस्कुराये,"आप तो अच्छे खासे लेबर सदस्य बन सकते
हैं।"
चर्चिल का आकर्षण इसी बात में था कि वे दूसरों की राय के प्रति भी सहनशक्ति
और सम्मान की भावना रखते थे। वे उनके प्रति भी कोई दुर्भावना नहीं रखते थे
जो उनसे असहमत होते थे।
ब्रैकेन और बूथबाय पहली रात हमसे विदा हो गये और अगली रात मैंने चर्चिल को
अपने परिवार के साथ अंतरंग पलों में देखा। ये राजनैतिक रूप से उतार चढ़ाव
का दिन था। लॉर्ड बीवरब्रूक सारा दिन चार्टवैल में टेलीफोन करते रहे और
विंस्टन चर्चिल को डिनर के दौरान कई बार उठना पड़ा। ये चुनाव के बीच की बात
है और देश आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा था।
मुझे खाना खाने के वक्त मज़ा आ रहा था। कारण ये था कि चर्चिल खाने की मेज़
पर राजनैतिक व्याख्याएं कर रहे थे जबकि उनका परिवार बिना प्रभावित हुए खाना
खा रहा था। सामने वाले को यही लगता कि ये रोज़ाना की बात है और वे लोग इसके
आदी हैं।
"मंत्रालय अपनी मुश्किलें गिनवा रहा है जो उन्हें बजट का संतुलन बिठाने में
आ रही हैं," चर्चिल ने पहले अपने परिवार की तरफ कनखियों से देखा फिर मेरी
तरफ देखा, "क्योंकि वे अपनी निधियों की आखिरी सीमा तक पहुंच गये हैं, अब
उनके सामने कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर टैक्स लगा सकें, जबकि इंगलैंड अपनी
चाय को शरबत की तरह हिला रहा है।" वे इस बात का असर देखने के लिए रुके।
"क्या ये संभव है कि चाय पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर आपके बजट को संतुलित कर
लिया जाये?" मैंने पूछा।
वे मेरी तरफ देखने लगे और हिचकिचाये,"हां," वे कहने लगे, लेकिन मेरा ख्याल
है इस कहने में प्रतिबद्धता नहीं थी।
मैं चार्टवैल की सादगी और कुछ हद तक सादगीपूर्ण रुचि के कारण उसका दीवाना
हो गया था। उनका सोने का कमरा उनके पुस्तकालय से जुड़ा हुआ ही था और उसमें
चारों तरफ किताबों के ऊपर से नीचे अम्बार लगे थे। एक तरफ की दीवार पूरी तरह
से हैन्सार्ड की संसदीय रिपोर्टों को समर्पित थी।
वहां पर नेपोलियन पर भी कई खंड थे।
"हां," उन्होंने बताया,"मैं नेपोलियन का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं।"
"मैंने सुना है कि आप नेपोलियन पर फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे हैं!"
कहा उन्होंने,"आपको से फिल्म ज़रूर बनानी चाहिये। उसमें कॉमेडी की बहुत
अधिक संभावनाएं हैं: नेपोलियन स्नान कर रहे हैं। उनका भाई जेरोम सोने की
कसीदाकारी की हुई यूनिफार्म पहन कर उनके बाथरूम में घुसा चला आता है, ताकि
इस पल में अपने भाई को परेशान कर सके और उसे अपनी मांगें मनवाने के लिए
मज़बूर कर सके। लेकिन नेपोलियन जान बूझ कर बाथटब में सरक जाता है और पानी
के छींटे भाई की यूनिफार्म पर उछालता है और उसे दफा हो जाने के लिए कहता
है। भाई कलंकित हो कर चला जाता है। कितना शानदार कॉमेडी सीन है!"
मुझे याद है मिस्टर और मिसेज चर्चिल क्वाग्लिनो रेस्तरां में खाना खा रहे
थे। विन्स्टन बच्चों की तरह मुंह फुलाये बैठे थे। मैं उनसे दुआ सलाम करने
के लिए उनकी मेज़ तक गया।
"ऐसा लगता है मानो आपने पूरी दुनिया का व़ज़न निगल लिया हो?" मैंने
मुस्कुराते हुए कहा।
उन्होंने बताया कि वे अभी अभी हाउस ऑफ कामंस से एक बहस से उठ कर आ रहे हैं
और उन्हें वे सब बातें पसंद नहीं आयीं जो जर्मनी के बारे में की जा रही
हैं। मैंने ऐसा ही कोई हल्का फुल्का जुमला उछाला, लेकिन उन्होंने सिर
हिलाया, "ओह नहीं, मामला बहुत ही गम्भीर है, सचमुच बहुत ही गम्भीर।"
•
चर्चिल के पास रुकने के थोड़े ही अरसे बाद मैं गांधी से मिला। मैंने गांधी
की राजनैतिक साफगोई और इस्पात जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए हमेशा उनका
सम्मान किया है और उनकी प्रशंसा की है। लेकिन मुझे ऐसा लगा कि उनका लंदन
आना एक भूल थी। उनकी मिथकीय महत्ता, लंदन के परिदृश्य में हवा में ही उड़
गयी है और उनका धार्मिक प्रदर्शन भाव अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहा है।
इंगलैंड के ठंडे भीगे मौसम में अपनी परम्परागत धोती, जिसे वे अपने बदन पर
बेतरतीबी से लपेटे रहते हैं, में वे बेमेल लगते हैं। लंदन में उनकी इस तरह
की मौजूदगी से कार्टून और कैरीकेचर बनाने वालों को मसाला ही मिला है। दूर
के ढोल ही सुहावने लगते हैं। किसी भी व्यक्ति के प्रभाव का असर दूर से ही
होता है। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं उनसे मिलना चाहूंगा। बेशक, मैं इस
प्रस्ताव से ही रोमांचित था।
मैं उनसे ईस्ट इंडिया डॉक रोड के पास ही झोपड़ पट्टी जिले के छोटे से अति
साधारण घर में मिला। गलियों में भीड़ भरी हुई थी और मकान की दोनों मंज़िलों
पर प्रेस वाले और फोटोग्राफर ठुंसे पड़े थे। साक्षात्कार पहली मंज़िल पर
लगभग बारह गुणा बारह फुट के सामने वाले कमरे में हुआ। महात्मा तब तक आये
नहीं थे; और जिस वक्त मैं उनका इंतज़ार कर रहा था, मैंने ये सोचने लगा कि
मैं उनसे क्या बात करूंगा। मैंने उनके जेल जाने और भूख हड़तालों तथा भारत
की आज़ादी के लिए उनकी लड़ाई के बारे में सुना था और मैं इस बारे में थोड़ा
बहुत जानता था कि वे मशीनों के इस्तेमाल के विरोधी हैं।
आखिरकार जिस वक्त गांधी आये, टैक्सी से उनके उतरते ही चारों तरफ हल्ला
गुल्ला मच गया। उनकी जय जय कार होने लगी। गांधी अपनी धोती को बदन पर लपेट
रहे थे। उस तंग भीड़ भरी झोपड़ पट्टी की गली में ये अजीब नज़ारा था। एक
दुबली पतली काया एक जीर्ण शीर्ण से घर में प्रवेश कर रही थी और उनके चारों
तरफ जय जयकार के नारे लग रहे थे। वे ऊपर आये और फिर खिड़की में अपना चेहरा
दिखाया। तब उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया और तब हम दोनों ने मिल कर नीचे
जुट आयी भीड़ की तरफ हाथ हिलाये।
जैसे ही हम सोफे पर बैठे, चारों तरफ से अचानक ही कैमरों की फ्लैश लाइटों का
हमला हो गया। मैं महात्मा की दायीं तरफ बैठा था। अब वह असहज करने वाला और
डराने वाला पल आ ही पहुंचा था जब मुझे एक ऐसे विषय पर घाघ की तरह बौद्धिक
तरीके से कुछ कहना था जिसके बारे में मैं बहुत कम जानता था। मेरी दायीं तरफ
एक हठी युवती बैठी हुई थी जो मुझे एक अंतहीन कहानी सुना रही थी और उसका एक
शब्द भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था। मैं सिर्फ हां हां करते हुए सिर हिला
रहा था और लगातार इस बात पर हैरान हो रहा था कि मैं उनसे कहूंगा क्या। मुझे
पता था कि बात मुझे ही शुरू करनी है और ये बात तो तय ही थी कि महात्मा तो
मुझे नहीं ही बताते कि उन्हें मेरी पिछली फिल्म कितनी अच्छी लगी थी और इस
तरह की दूसरी बातें। और मुझे इस बात पर भी शक था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म
देखी भी होगी या नहीं। अलबत्ता, एक भारतीय महिला की आदेश देती सी आवाज़
गूंजी और उसने उस युवती की बक बक पर रोक लगा दी: "मिस, क्या आप बातचीत बंद
करेंगी और मिस्टर चैप्लिन को गांधी जी से बात करने देंगी?"
भरा हुआ कमरा एक दम शांत हो गया। और जैसे ही महात्मा के चेहरे पर मेरी बात
का इंतज़ार करने वाले भाव आये, मुझे लगा कि पूरा भारत मेरे शब्दों का
इंतज़ार कर रहा है। इसलिए मैंने अपना गला खखारा।
"स्वाभाविक रूप से मैं आज़ादी के लिए भारत की आकांक्षाओं और संघर्ष का
हिमायती हूं," मैंने कहा,"इसके बावज़ूद, मशीनरी के इस्तेमाल को ले कर आपके
विरोध से मैं थोड़ा भ्रम में पड़ गया हूं।"
मैं जैसे जैसे अपनी बात कहता गया, महात्मा सिर हिलाते रहे और मुस्कुराते
रहे। "कुछ भी हो, मशीनरी अगर नि:स्वार्थ भाव से इस्तेमाल में लायी जाती है
तो इससे इन्सान को गुलामी के बंधन से मुक्त करने में मदद मिलनी चाहिये और
इससे उसे कम घंटों तक काम करना पड़ेगा और वह अपना मस्तिष्क विकसित करने और
ज़िंदगी का आनंद उठाने के लिए ज्यादा समय बचा पायेगा।"
"मैं समझता हूं," वे शांत स्वर में अपनी बात कहते हुए बोले, "लेकिन इससे
पहले कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, भारत को अपने आपको अंग्रेजी
शासन से मुक्त कराना है। इससे पहले मशीनरी ने हमें इंगलैंड पर निर्भर बना
दिया था, और उस निर्भरता से अपने आपको मुक्त कराने का हमारे पास एक ही
तरीका है कि हम मशीनरी द्वारा बनाये गये सभी सामानों का बहिष्कार करें। यही
कारण है कि हमने प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह देशभक्तिपूर्ण कर्तव्य बना
दिया है कि वह अपना स्वयं का सूत काते और अपने स्वयं के लिए कपड़ा बुने। ये
इंगलैंड जैसे अत्यंत शक्तिशाली राष्ट्र से लड़ने का हमारा अपना तरीका है और
हां, और भी कारण हैं। भारत का मौसम इंगलैंड के मौसम से अलग होता है और भारत
की आदतें और ज़रूरतें अलग हैं। इंगलैंड के सर्दी के मौसम के कारण ये ज़रूरी
हो जाता है कि आपके पास तेज उद्योग हो और इसमें अर्थव्यवस्था शामिल है।
आपको खाना खाने के बर्तनों के लिए उद्योग की ज़रूरत होती है। हम अपनी
उंगलियों से ही खाना खा लेते हैं। और इस तरह से देखें तो कई किस्म के फर्क
सामने आते हैं।"
मुझे भारत की आज़ादी के लिए सामरिक जोड़ तोड़ में लचीलेपन का वस्तुपरक पाठ
मिल गया था और विरोधाभास की बात ये थी कि इसके लिए प्रेरणा एक यथार्थवादी,
एक ऐसे युग दृष्टा से मिल रही थी जिसमें इस काम को पूरा करने के लिए दृढ़
इच्छा शक्ति थी। उन्होंने मुझे ये भी बताया कि सर्वोच्च स्वंतत्रता वह होती
है कि आप अपने आपको अनावश्यक वस्तुओं से मुक्त कर डालें और कि हिंसा अंतत:
स्वयं को ही नष्ट कर देती है।
जब कमरा खाली हो गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वहीं रह कर उन्हें
प्रार्थना करते हुए देखना चाहूंगा। महात्मा फर्श पर चौकड़ी मार कर बैठ गये
और उनके आस पास घेरा बना कर पांच अन्य लोग बैठ गये। ये एक देखने योग्य
दृष्य था। लंदन के झोपड़ पट्टी वाले इलाके के बीचों बीच एक छोटे से कमरे के
फर्श पर छ: मूर्तियां पद्मासन में बैठी हुईं। लाल सूर्य छतों के पीछे से
तेजी से अस्त हो रहा था और मैं खुद सोफे पर बैठा उन्हें नीचे देख रहा था।
वे विनम्रता पूर्वक अपनी प्रार्थनाएं कर रहे थे। क्या विरोधाभास है, मैंने
सोचा, मैं इस अत्यंत यथार्थवादी व्यक्ति को, तेज कानूनी दिमाग और राजनैतिक
वास्तविकता का गहरा बोध रखने वाले इस शख्स को देख रहा था। ये सब आरोह अवरोह
रहित बातचीत में विलीन हो रहा प्रतीत हो रहा था।
•
सिटी लाइट्स के मुहूर्त पर मूसलाधार बारिश हुई। लेकिन वहां पर भीड़ अच्छी
खासी संख्या में जुट आयी थी और पिक्चर अच्छी चल गयी। मैंने बॉक्स में
बर्नार्ड शॉ के साथ वाली सीट ली जिसकी वज़ह से खूब हँसी मज़ाक हुआ और ठहाके
लगे। हम दोनों को खड़ा होना और झुकना पड़ा। इसके एक बार फिर हँसी गूंजी।
चर्चिल प्रीमियर पर और बाद में होने वाली दावत में आये। उन्होंने इस आशय का
भाषण दिया कि वे उस शख्स के लिए जाम पेश करना, टोस्ट करना चाहते हैं जिसने
नदी के दूसरी तरफ से एक लड़के के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी और
उसने पूरी दुनिया का प्यार पाया है - और वह लड़का है चार्ली चैप्लिन! ये
अप्रत्याशित था और मैं इससे थोड़ा सा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया गया महसूस
करने लगा। खासकर, तब जब उन्होंने अपनी बात कहने से पहले,"माय लॉर्ड्स,
लेडीज़ एंड जेंटिलमेन" कहा। अलबत्ता, दूसरी बातों के अलावा, मौके की नज़ाकत
से बंधे होने के कारण मैंने भी इसी तरीके से अपनी बात कही, "माय लॉर्ड्स,
लेडीज़ एंड जेंटिलमेन, जैसा कि मेरे मित्र, स्वर्गीय वित्त मंत्री," मैं
अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, अच्छा खासा शोर शराबा हो गया। और मुझे बार बार
जोरदार आवाज़ सुनायी देने लगी, "स्वर्गीय, स्वर्गीय, हमें अच्छा लगा
स्वर्गीय!!" बेशक ये चर्चिल की आवाज़ थी। जब मैंने अपने आपको संभाला तो
मैंने जुमला कसा, "दरअसल, भूतपूर्व वित्त मंत्री कहना ज़रा अटपटा लग रहा
था।"
लेबर प्रधान मंत्री रैमसे मैक्डोनाल्ड के बेटे मैल्कोम मैकडोनाल्ड ने राल्फ
और मुझे आमंत्रित किया कि हम उनके पिता से मिलें और रात वहीं उनके घर पर
गुज़ारें। हम प्रधान मंत्री से उस वक्त मिले जब वे अपनी चार चीज़ों, अपने
स्कार्फ, अपनी कैप, अपने पाइप और छड़ी के साथ अपनी संवैधानिक चहलकदमी कर
रहे थे। उस वक्त वे अपने भदेस बाने में थे और बिल्कुल नहीं लगता था कि वे
लेबर पार्टी के नेता हैं। महान गरिमा, अपने नेतृत्व के बोझ के प्रति बेहद
सतर्क और गरिमामय सज्जन पुरुष की पहली छवि बिना हास्य के नहीं थी।
शाम का पहला हिस्सा कुछ खिंचा खिंचा सा था। लेकिन डिनर के बाद हम प्रसिद्ध
ऐतिहासिक लाँग रूम में कॉफी पीने के लिए गये और वहां पर मूल क्रोमवेलियन
सज़ाए मौत के मुखौटे तथा दूसरी ऐतिहासिक चीज़ें देखने के बाद फुर्सत से
बतियाने बैठ गये। मैंने उन्हें बताया कि अपनी पहली यात्रा के बाद से मैंने
यहां पर बहुत से परिवर्तन देखे हैं और ये परिवर्तन बेहतरी दर्शाते हैं।
1921 में मैं लंदन आया था तो यहां बहुत गरीबी देखी थी, सफेद बालों वाली
बूढ़ी औरतें टेम्स नदी के किनारे पर सो रही होती थीं, अब वे औरतें कहीं
नज़र नहीं आतीं। दुकानें सामान से भरी भरी नज़र आती हैं और बच्चों के पेट
भी भरे हुए लगते हैं और निश्चित रूप से इन सबके लिए लेबर पार्टी की सरकार
को श्रेय दिया जाना चाहिये।
उनके चेहरे पर भेद न खोलने वाले भाव आये और उन्होंने मुझे बिना रुके बात
पूरी करने दी। मैंने पूछा कि लेबर सरकार जिसे मैं समाजवादी सरकार समझता आया
हूं, क्या देश के मूल संविधान को बदलने की ताकत रखती है। उन्होंने आंखें
झपकायीं और हँसते हुए बोले," होनी तो चाहिये लेकिन ब्रिटिश राजनीति की यही
विडम्बना है। जैसे ही किसी के हाथ में सत्ता आती है वह नपुंसक हो जाता है।"
वे एक पल के लिए रुके फिर वह किस्सा बताया कि जब प्रधान मंत्री के रूप में
चुने जाने पर उन्हें पहली बार बकिंघम पैलेस में बुलाया गया।
उनका हार्दिक स्वागत करने के बाद महामहिम ने उनसे कहा, "अच्छी बात है, आप
समाजवादी लोग मेरे बारे में क्या करने जा रहे हैं?"
प्रधान मंत्री हँसे और बोले,"कुछ नहीं, बस इस बात की कोशिश करेंगे कि
महामहिम के और देश के सर्वोत्तम हित में काम कर सकें।"
•
चुनाव के दौरान लेडी एस्टर ने राल्फ और मुझे प्लायमाउथ में अपने घर पर वीक
एंड मनाने और टी ई लॉरेंस से मिलने के लिए आमंत्रित किया। लॉरेंस भी अपना
वीक एंड वहीं मनाने वाले थे। लेकिन, किसी वज़ह से लॉरेंस नहीं आ पाये।
अलबत्ता, लेडी एस्टर ने हमें अपने चुनाव क्षेत्र में और डॉक साइड में एक
बैठक में आमंत्रित किया। वहां पर उन्हें मछुआरों के सामने भाषण देना था।
मोहतरमा ने पूछा कि क्या मैं दो शब्द कहना चाहूंगा। मैंने उन्हें चेताया कि
मैं लेबर पार्टी के पक्ष का आदमी हूं और सच तो ये है कि मैं उनकी राजनीति
का समर्थन नहीं करता।
"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।" वे बोलीं,"बात सिर्फ इतनी सी है कि वे लोग
आपको देखना चाहेंगे, बस!!"
ये खुले मैदान वाली चुनाव सभा थी और हम एक बड़े से ट्रक से बोल रहे थे।
उनके चुनाव क्षेत्र के बिशप भी वहीं थे और कुछ कुछ नाराज़ मूड में लग रहे
थे। मुझे लगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से हमसे दुआ-सलाम की। लेडी एस्टर के
संक्षिप्त शुरुआती भाषण के बाद मैं ट्रक पर चढ़ा।
"कैसे हैं आप लोग?" मैंने कहा,"हम सब करोड़पतियों के लिए ये कितना अच्छा
होता है आप लोगों से कहना कि वोट कैसे डालें लेकिन हम लोगों की
परिस्थितियां आप लोगों की परिस्थितियों से काफी अलग होती हैं।"
अचानक मैंने बिशप की खुशी के मारे चीखने की आवाज़ सुनी,"शाबाश!" वे
चिल्लाये।
मैंने अपनी बात जारी रखी,"लेडी एस्टर में और आप लोगों में कुछ बातें एक
समान हो सकती हैं जिनके बारे में मैं नहीं जानता। मेरा ख्याल है उनके बारे
में आप मुझसे बेहतर तरीके से जानते हैं।"
"शानदार, बहुत अच्छे!!" बिशप ने हुंकारा लगाया।
"चूंकि उनकी राजनीति और इस इस हं" "चुनाव क्षेत्र" बिशप ने मेरा वाक्य पूरा
किया, (जब भी मैं हिचकिचाता, बिशप मुझे सही शब्द बता देते), - लेडी एस्टर
का रिकार्ड ज़रूर ही बहुत संतोषजनक रहा होगा-" और मैंने अपनी बात ये कहते
हुए खत्म की कि मैं उन्हें एक बहुत ही नेक, भली और दयालु महिला के रूप में
जानता हूं जिनकी नीयत हमेशा बहुत अच्छी होती है। जब मैं नीचे उतरा तो बिशप
के चेहरा खूब दमक रहा था और उन्होंने मुस्कुराते हुए गर्मजोशी से मुझसे हाथ
मिलाया।
अंग्रेजी पादरी लोगों में एक बात बहुत अच्छी होती है कि इसमें साफगोई और
निष्ठा की बहुत मज़बूत भावना होती है और ये बात इंगलैंड को अपने सर्वोत्तम
रूप में सामने रखती है। डॉक्टर हेवलेट जॉनसन और कैनन कॉलिंस और दूसरे कई
धर्म गुरुओं के कारण ही इंगलिश चर्च को ताकत मिलती रही है।
•
मेरे मित्र राल्फ बर्टन का व्यवहार अजीब सा होता जा रहा था। मैंने पाया कि
बैठक में लगी बिजली से चलने वाली घड़ी बंद पड़ गयी है। उसके तार काट दिये
गये थे। जब मैंने राल्फ को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा."हां, मैंने
ये तार काटे हैं। मुझे घड़ी की टिक टिक से नफरत है।" मैं हैरान हुआ और
थोड़ा नाराज भी लेकिन इस मामले को मैंने राल्फ का पागलपन मान कर रफा दफा कर
दिया। जब से हम न्यू यार्क से चले थे, ऐसा लगने लगा था कि राल्फ पूरी तरह
से चंगे हो गये हैं। अब वे वापिस स्टेट्स जाना चाहते थे।
वापिस चलने से पहले रॉल्फ ने पूछा कि क्या मैं उनके साथ उनकी बेटी से मिलने
जाऊँगा? उनकी बेटी एक वर्ष पहले ही ईसाई भिक्षुणी बनी थी और इस समय हैकने
में कैथोलिक कॉन्वेंट में थी। यह उनकी पहली पत्नी से जन्मी सबसे बड़ी बेटी
थी। रॉल्फ अक्सर उसके बारे में बताते रहते थे। रॉल्फ ने बताया था कि वह
चौदह वर्ष की उम्र से ही नन बनने की चाह रखती थी और उन्होंने तथा उनकी
पत्नी ने ऐसा करने से रोकने के लिए सारी कोशिशें करके देख ली थीं। रॉल्फ ने
मुझे अपनी बिटिया की उस वक्त की फोटो दिखाई जब वह सोलह बरस की थी और मैं
उसका सौंदर्य देखकर एकदम अभिभूत हो गया था : दो बड़ी बड़ी काली आँखें,
संवेदनशील भरा चेहरा और बाँध लेने वाली मुस्कुराहट फोटो में से देख रहे थे।
रॉल्फ ने बताया कि वे उसे पेरिस में यह सोचकर कई डॉन्स और नाइट क्लबों में
लेकर गये थे कि शायद उसे उसकी गिरजा घर संबंधी इच्छा से विमुख कर सकें।
उन्होंने उसका परिचय प्रेमी से कराया था और उसे हर तरह की खुशियाँ दीं थीं।
उन्हें लगा था कि वह उन सबका आनंद ले रही है। लेकिन कोई भी चीज़ उसे नन
बनने से डिगा नहीं सकी। रॉल्फ ने उसे 18 महीने से नहीं देखा था। अब उसने
दीक्षा की परीक्षा पास कर ली थी और अब पूरी तरह से परम पिता परमात्मा की
शरण में चली गयी थी।
यह कॉन्वेंट हैकने के झोपड़पट्टी वाले इलाकों के बीचों बीच उदास और अंधेरी
इमारत थी। जब हम वहाँ पहुँचे तो मदर सुपीरियर ने हमारा स्वागत किया और हमें
छोटे से अंधेरे कमरे में ले गयी। हम वहाँ बैठे और इंतज़ार करने लगे। ऐसा
लगा, इंतज़ार की यह घड़ियाँ कभी खत्म नहीं होंगी। आखिरकार रॉल्फ की बेटी
आयी। मुझे तत्काल उसकी खूबसूरती ने बाँध लिया क्योंकि वह अभी भी उतनी ही
सुंदर थी जितनी फोटो में दिखायी दी थी। सिर्फ़ यही फ़र्क पड़ा था कि जिस
वक्त वह मुस्कुरायी, उसके किनारे वाले दो दांत गायब थे।
ये दृश्य बेतुका था। हम उस छोटे से, भुतैले कमरे में बैठे थे। सैंतीस बरस
के ये सुदर्शन, शहराती पिता, टांगें मुड़ी हुई, सिगरेट पीते हुए, और उनकी
बेटी, उन्नीस बरस की प्यारी सी लड़की-सामने की तरफ बैठी हुई। मैंने कोशिश
की कि मैं उठकर बाहर आ जाऊं और उनका इंतज़ार करूं, लेकिन दोनों में से किसी
ने भी मेरी बात नहीं मानी।
हालांकि वह होशियार और तेज थी, मैं देख रहा था कि वह जीवन से बेजार हो चुकी
थी, उसके हावभाव उखड़े हुए थे और जिस वक्त वह स्कूल टीचर के रूप में अभी
ड्यूटी के बारे में बता रही थी, उसके हावभाव डरे हुए और तनाव लिए हुए थे,
"छोटे बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल होता है," बताया उसने, "लेकिन मुझे
इसकी आदत पड़ जायेगी।"
जिस समय रॉल्स अपनी बेटी से बात कर रहे थे, तो उनकी आंखों में चमक आयी। वे
सिगरेट पीते रहे, जिस तरह के वे काफिर थे, मैं यह देख पाया कि वे कुछ हद तक
उसके नन बनने के विचार से खुश हुए थे।
इस मुलाकात के बारे में कुछ ऐसा था जो उदास नि:संगता थी। इस बात में कोई शक
नहीं था कि वह आध्यात्मिक परीक्षणों से गुज़री थी, वह जितनी खूबसूरत और
यौवन से भरी हुई थी, उतनी ही उदास और समर्पित लग रही थी। वह लंदन में हमारे
स्वागत के शोशेबाजी की बातें करती रही और उसने जर्माइन टैलफर, रॉल्फ की
पांचवीं पत्नी के बारे में पूछा, रॉल्फ ने बिटिया को बताया कि वे अलग हो
चुके हैं।
"बेशक" बेटी ने मेरी तरफ मुड़ते हुए मज़ाक में कहा, "मैं पापा की पत्नियों
का हिसाब किताब नहीं रख सकती", रॉल्फ और मैं, दोनों ही आत्म सजग हो कर
हंसे।
रॉल्फ ने पूछा कि क्या उसे काफी अरसे तक हैकने में रहना पड़ेगा। उसने सोचते
हुए अपना सिर हिलाया और बताया कि उसे शायद सेन्ट्रल अमेरिका की तरफ भेज
दिया जाये, "लेकिन वे हमें कभी पता नहीं चलने देते कि कब और कहां।"
"ठीक है, लेकिन जब तुम वहां पहुंचो तो अपने पापा को लिख तो सकती हो", मैंने
बीच में टोका।
वह हिचकिचाई, "हमसे यह उम्मीद की जाती है कि हम किसी से भी सम्पर्क न
रखें।"
"अपने माता-पिता के साथ भी नहीं?" पूछा मैंने।
"नहीं" बताया उसने। वह वस्तुपरक होने की कोशिश कर रही थी। तब वह अपने पिता
की तरफ देखकर मुस्कुरायी। एक पल का मौन छा गया।
जब वहां से चलने का समय आ गया तो उसने अपने पिता का हाथ थामा और उसे देर तक
और प्यार से थामे रही, मानो कोई भीतरी ताकत उससे ऐसा करवा रही थी। जिस समय
वापिस आ रहे थे, रॉल्फ बुझे हुए थे हालांकि अभी उदासीन दिखने की कोशिश कर
रहे थे। दो हफ्ते बाद, अपने न्यूयार्क के अपार्टमेंट में उन्होंने बिस्तर
में चादर तान कर लेटे हुए ही अपने सिर पर गोली मार कर खुदकशी कर ली थी।
•
मैं एच.जी.बेल्स से अक्सर मिलता, उनका ब्रेकर स्ट्रीट में एक अपार्टमेंट
था, जिस वक्त मैं वहां पहुंचा, उनकी चार महिला सेक्रेटरी सन्दर्भ पुस्तकों
को खंगाल रही थीं, और एन्साइक्लोपीडिया, तकनीकी पुस्तकों, दस्तावेजों तथा
कागजों में से कुछ जांच रही थीं।
"ये द' एनाटोमी ऑफ मनी, मेरी किताब है," उन्होंने बताया, "काफी बड़ा काम
है।"
"मुझे तो ऐसा लगता है, कि ज्यादातर काम तो ये ही कर रही हैं।" मैंने मज़ाक
में जुमला उछाला। उनके पुस्तकालय में ऊंचे शेल्फों पर करीने से रखे
बिस्किटों के टिन लग रहे थे, उन पर लिखा था, "जीवनीपरक सामग्री",
"व्यक्तिगतपत्र", "दर्शन", "वैज्ञानिक आंकड़े" और इसी तरह के लेबल उन पर
लगे हुए थे।
डिनर के बाद उनके दोस्त आ गये। उनमें से एक थे प्रोफेसर लास्की। वे अभी भी
एकदम युवा दिखते थे। हारोल्ड बहुत ही मेधावी भाषण करते थे। मैंने उन्हें
कैलिफोर्निया में अमेरिकन बार एसोसिएशन में बोले हुए सुना था। वहां पर
उन्होंने बिना किसी कागज की तरफ देखे लगातार एक घंटे तक बिना रुके और
शानदार तरीके से भाषण दिया था।
उस रात एच जी वेल्स के फ्लैट में, हारोल्ड ने समाजवाद दर्शन में आश्चर्यजनक
नयी खोजों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि गति में थोड़ी सी भी
बढ़ोतरी का मतलब भयंकर सामाजिक अंतर होता है। एच जी वेल्स के बिस्तर पर
जाने के समय तक बातचीत बहुत ही रोचक तरीके से चलती रही। वेल्स साहब ने
थोड़े संकोच के साथ, मेहमानों की तरफ देखते हुए इशारा किया और फिर अपनी
घड़ी की तरफ देखा, तब सब लोग विदा हो गये।
वेल्स साहब मेरे यहां कैलिफोर्निया में 1935 में आये थे। मैं उन्हें
जबरदस्ती रूस की आलेचना की बात पर ले आया। मैं उनकी रिपोर्टें पढ़ चुका था,
इसलिए मैं खुद उनके मुंह से सुनना चाहता था और मैं ये देख कर हैरान हुआ कि
वे इसके बारे में बहुत हद तक कड़ुवाहट से भरे हुए थे।
"लेकिन क्या इस बारे में फैसला कर लेना बहुत जल्दी नहीं है?" मैंने तर्क
दिया।
"उन्हें भीतर से और बाहर से मुश्किल कामों, विपक्ष और षड़यंत्रों का सामना
करना पड़ रहा है। तय है कि समय बीतने के साथ-साथ अच्छे परिणाम भी आयेंगे।"
उस समय वेल्स इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थे, जो कुछ रूज़वेल्ट ने नये
समझौते के बारे में किया था। उनकी राय थी कि अमेरिका में मरते हुए पूंजीवाद
में से अर्ध समाजवाद उभर कर आयेगा। वो स्तालिन के खास तौर पर आलोचक थे।
उन्होंने स्तालिन का साक्षात्कार लिया था और कहा कि उसके राज में रूस
आतंकवादी तानाशाह बन चुका है।
"यदि आप, समाजवादी, यह विश्वास करते हैं कि पूंजीवाद गर्त में जा चुका है,"
मैंने कहा,"तो फिर अगर रूस में समाजवाद ही असफल हो जाये तो दुनिया के लिए
क्या उम्मीद बचती है?"
"रूस में या कहीं पर भी समाजवाद असफल नहीं होगा," उन्होंने कहा, "लेकिन रूस
की यह वाली गतिविधि बेशक तानाशाही की तरफ मुड़ गयी है।"
"बेशक रूस ने गलतियां की है," मैंने आगे कहा," और दूसरे राष्ट्रों की तरह
रूस आगे भी गलतियां करता रहेगा। सबसे बड़ी गलती, मेरे ख्याल से, अपने
विदेशी कर्जों, रूसी बाँडों वगैरह को हड़प जाना है और क्रांति के बाद ये कह
दिया कि ये जार के कर्जे थे, हालांकि रूस कर्जे पटाये जाने के बारे में
अपनी जगह पर सही हो सकता था, मेरा ख्याल है, वहां पर उनसे गलती हो गयी है,
क्योंकि इससे पूरी दुनिया उनके खिलाफ हो गयी। बहिष्कार और सैन्य हमले शुरू
हो गये। लम्बे अरसे में ये बात उसे कर्जे चुका दिये जाने की तुलना में
दुगुनी महंगी पड़ेगी।
वेल्स आंशिक रूप से सहमत हो गये और कहने लगे कि मेरी टिप्पणी सिद्धांत के
रूप में सही है लेकिन तथ्य रूप से नहीं, क्योंकि जार के कर्जों को हड़प
लिया जाना ही उन कारणों में से एक था जिनकी वज़ह से क्रांति की भावना को शह
मिली। पुराने शासन के कर्जों को अदा करने की बात से ही लोग भड़क गये होते।
"लेकिन," मैंने तर्क दिया,"रूस ने खेल खेला और कम आदर्शवादी रहा है, उसने
पूंजीवादी देशों से बड़ी मात्रा में राशियां उधार ली होतीं और अपनी
अर्थव्यवस्था को ज्यादा तेजी से संवारा होता। युद्ध के बाद की मुद्रास्फीति
और इसी तरह की बातों के साथ उसने पूंजीवाद के दबावों के उसने अपने कर्जे
आसानी से उतार दिये होते और दुनिया भर में उसकी साख भी बची रहती।"
वेल्स हँसे, "इसके लिए अब बहुत देर हो चुकी है।"
•
मैं अलग अलग मौकों पर एच जी वेल्स से कई बार मिला। फ्रांस के दक्षिणी इलाके
में उन्होंने अपनी रूसी रखैल के लिए एक घर बनवा रखा था। वह बहुत तुनुक
मिजाज महिला थी। उनके आतिशदान पर गोथिक अक्षरों में खुदा हुआ था : दो
प्रेमियों ने ये घर बनाया।"
"हां", जब मैंने इस पर टिप्पणी की तो वे बोले, "हमें इसे कई बार लगवाना और
हटवाना पड़ा है। जब भी हममें झगड़ा होता है, मैं मिस्त्रीा को इसे हटा देने
के लिए कहता हूं और जब हममें सुलह हो जाती है तो मोहतरमा मिस्त्रीर को इसे
फिर लगाने के लिए कह देती हैं। इसे इतनी बार लगाया और हटाया गया है कि
मिस्त्री ने आखिर हमारी तरफ ध्यान देना छोड़ दिया और इसे यहीं छोड़ गया है।
1931 में वेल्स साहब ने 'एनाटॉमी ऑफ मनी' पूरी की। इसमें दो वर्ष का
परिश्रम लगा था और वे थके हुए नज़र आ रहे थे।
"अब आप क्या करने जा रहे हैं?" मैंने पूछा।
"दूसरी किताब लिखूंगा", वे थकी हुई हँसी हंसे।
"हे भगवान", मैं हैरान हुआ,"क्या आपको नहीं लगता कि आराम करना चाहिये या
कोई और काम करना चाहिए?"
"और कुछ करने-धरने को है ही क्या?"
वेल्स की मामूली शुरुआत ने, उनके काम पर नज़रिये पर नहीं बल्कि मेरी ही तरह
उनके व्यक्तिगत संवेदनाशीलता पर बहुत अधिक ज़ोर देने के रूप में असर छोड़ा
था। मुझे याद है, एक बार उन्होंने एक गलत जगह पर एच अक्षर देख लिया था और
वे इतना अधिक झेंपे कि पूछो नहीं। इतनी छोटी सी चीज़ के लिए इतने महान
व्यक्ति का झेंपना। मुझे याद है वे अपने एक चाचा की बात बता रहे थे जो एक
पदवीधारी अंग्रेज के यहां माली हुआ करते थे। उनके चाचा की अभिलाषा थी कि
वेल्स भी उनकी तरह घरेलू नौकरी पकड़ लें। एच जी वेल्स ने व्यंग्य से
कहा,"भगवान की दया ही रही वरना मैं सहायक रसोइया बन गया होता।"
वेल्स जानना चाहते थे कि मैं समाजवाद में दिलचस्पी कैसे लेने लगा। ये तब तक
नहीं हुआ था तब तक मैं युनाइटेड स्टेट्स नहीं आया था और अप्टन सिन्क्लेयर
से नहीं मिला था। मैंने उन्हें बताया। हम लंच के लिए पेसाडेना में गाड़ी
चलाते हुए उनके घर की तरफ जा रहे थे। तभी अप्टन ने बेहद नरम आवाज में पूछा
कि क्या मैं लाभ वाली प्रणाली में विश्वास करता हूं। मैंने जवाब दिया कि इस
सवाल का जवाब देने के लिए तो मुझे एकाउन्टेंट की ज़रूरत पड़ेगी। हालांकि ये
ऐसा सवाल था जिससे कोई नुक्सान नहीं होता लेकिन मैंने महसूस किया कि ये
मामले की जड़ तक उतर गया है और उसी पल में मैं इसमें दिलचस्पी लेने लगा और
राजनीति को इतिहास की तरह नहीं बल्कि एक आर्थिक समस्या के रूप में देखने
लगा।
वेल्स ने मुझसे पूछा, जैसा कि मुझे लगा कि मुझे इंद्रियों से परे का आभास
कैसे हो जाता है। मैंने उन्हें एक घटना के बारे में बताया जोकि सिर्फ़
संयोग मात्र नहीं हो सकती थी। टेनिस खिलाड़ी हेनरी क्रोसेट, एक अन्य मित्र
और मैं बियारिट्ज होटल में एक कॉकटेल बार में गये। वहां पर बालरूम की दीवार
पर जूए के तीन चक्के लगे थे और प्रत्येक पर एक ने दस तक की संख्याएं बनी
हुई थीं। मैंने ड्रामाई ढंग से आधे मजाक में घोषणा की कि मुझमें पराभौतिक
शक्तियां हैं और मैं तीनों चक्के घुमा दूंगा और कि पहला चक्का नौ पर
रुकेगा, दूसरा चार पर और तीसरा सात पर। और लीजिये, पहला चक्का नौ पर रुका,
दूसरा चार पर और तीसरा सात पर। ऐसा लाखों करोड़ों में एक बार ही होता है।
वेल्स ने कहा कि ये विशुद्ध संयोग भी तो हो सकता है। "लेकिन जब संयोग ही
बाद में दोबारा होने लगे तो परखने की ज़रूरत होती है।" कहा मैंने और उन्हें
एक और किस्से के बारे में बताया जो मेरे बचपन में हुआ था मैं केम्बरवैल रोड
पर एक राशन की दुकान के आगे से गुज़र जा रहा था और मैंने उस दुकान पर शटर
गिरे हुए देखे। ये अनहोनी सी बात थी। किसी चीज़ ने मुझे प्रेरित किया कि
मैं खिड़की की सिल पर चढ़ कर शटर के बीच की झिर्री में से देखूं। भीतर
अंधेरा और सुनसान था लेकिन राशन का सारा सामान मौजूद था। फर्श के बीचों बीच
एक बड़ा सा पैकिंग केस रखा हुआ था। मैं खिड़की की सिल से कूदा और किसी
अन्त: प्रेरणा से अपने रास्ते चल दिया। उसके तुरंत बाद, एक हत्या के मामले
का पता चला। एडगर एडवर्ड्स भला और बूढ़ा आदमी, जिसकी उम्र लगभग पैंसठ बरस
की थी, ने इसी तरह से राशन की पांच दुकानें हथिया लीं। वह तौलने वाले बट्टे
से दुकानों के मालिकों को मार डालता था और इस तरह से दुकान पर कब्जा कर
लेता था। कैम्बरवैल की राशन की उस दुकान में, उस पैकिंग केस में उसके अंतिम
तीन शिकारों, मिस्टर और मिसेज डर्बी और उनकी बच्ची की लाशें थीं।
लेकिन वेल्स मेरी बातें मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। उन्होंने कहा कि
हरेक की जिंदगी में अमूमन ऐसा होता ही रहता है कि कई संयोग घटते रहते हैं
और इससे कुछ सिद्ध नहीं होता। हमारी चर्चा वहीं पर खत्म हो गयी थी लेकिन
मुझे लगा, मैंने उन्हें अपने एक और अनुभव के बारे में बताया होता। उस वक्त
मैं छोटा सा लड़का था और लंदन ब्रिज रोड पर मैं एक सैलून पर रुका और एक
गिलास पानी माँगा। एक सज्जन पुरुष ने, जिसकी गहरी मूंछें थीं, मुझे पानी
दिया। किसी वजह से मैं वह पानी नहीं पी पाया। मैंने पानी पीने का नाटक किया
जैसे ही उस व्यक्ति ने एक ग्राहक की तरफ चेहरा मोड़ा, मैंने गिलास नीचे रखा
और वहां से फूट लिया। दो सप्ताह बाद लंदन ब्रिज रोड पर क्राउन पब्लिक हाउस
के मालिक जार्ज चैपमैन पर कुचले के सत का जहर दे कर अपनी पांच पत्नियों को
मारने का इल्ज़ाम लगा।
जिस दिन उसने मुझे पानी का गिलास दिया था, उसकी नवीनतम शिकार सैलून के ऊपर
वाले कमरे में मर रही थी। चैपमैन और एडवर्ड दोनों को फांसी पर लटका दिया
गया था।
इस गूढ़ प्रसंग के अनुकूल एक और किस्सा है। बेवरली हिल्स पर जब मैंने अपना
घर बनवाया था, उससे एक बरस पहले मुझे एक गुमनाम खत मिला था जिसमें बताया
गया था कि पत्र लेखक सूक्ष्मदर्शी है और उसने सपने में एक पहाड़ी पर बना
हुआ एक घर देखा है जिसका लॉन सामने की तरफ है और आगे की तरफ वाला हिस्सा
नाव के सिरे की तरह निकला हुआ है। इस घर में चालीस खिड़कियां हैं और ऊंची
छत वाला बड़ा सा संगीत कक्ष है। इस घर की ज़मीन पवित्र भूमि है जिस पर
प्राचीन काल में रेड इंडियन जनजातियां दो हज़ार वर्ष पूर्ण मानव बलियां
दिया करती थीं। इस घर में भूतों का डेरा है और इसे बिल्कुल भी अंधेरे में न
छोड़ा जाये। पत्र में इस बात का जिक्र था कि जब तक मैं घर में बिल्कुल
अकेला नहीं रहता और घर में रौशनी बनी रहती है, घर को कोई खतरा नहीं रहेगा।
उस समय मैंने ये खत किसी झक्की द्वारा लिखा गया मान कर एक तरफ रख दिया था।
उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया था और उसे अजीब सा और मज़ेदार मानकर एक
तरफ रख दिया था। लेकिन दो बरस बाद अपनी डेस्क पर कुछ कागज तलाशते हुए वह खत
फिर मेरे हाथ लग गया और मैंने इसे एक बार फिर पढ़ा। हैरानी की बात थी कि घर
के और लॉन के ब्यौरे बिल्कुल सही थे। मैंने खिड़कियां नहीं गिनी थीं और ये
सोचा था कि गिनूंगा लेकिन मेरी हैरानी की सीमा न नही जब मैंने देखा कि पूरी
चालीस खिड़कियां थी।
हालांकि मैं भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करता, मैंने प्रयोग करने का
फैसला किया। बुधवार के दिन, रात के वक्त स्टाफ की छुट्टी होती थी और घर
खाली था, इसलिए मैंने बाहर खाना खाया, डिनर के तुरंत बाद मैं घर वापिस लौटा
और संगीत कक्ष में चला गया। ये कमरा लम्बा और संकरा था, चर्च के किसी
गलियारे की तरह और इसकी छत गॉथिक शैली की थी। पर्दे खींच लेने के बाद मैंने
सारे घर की बत्तियां बंद कर दीं। तब मैं टटोलता हुआ अपनी आराम कुर्सी तक
आया, वहां लगभग दस मिनट तक चुपचाप बैठा रहा। गहरे अंधेरे से मेरी
इन्द्रियां जागृत हो गयीं और मैं अपनी आंखों के सामने तैरती हुई आकृति
विहीन छायाओं की कल्पना करने लगा; लेकिन मैंने तर्क लगाया कि ये परदों के
बीच की बारीक झिर्री में से चांदनी आ रही थी और ये क्रिस्टल डिकैंटर पर
परावर्तित हो रही थी। मैंने परदों को और अच्छी तरह खींच लिया और तैरती हुई
आकृतियां गायब हो गयीं। इसके बाद, मैं एक बार फिर अंधेरे में इंतजार करने
लगा - पांच मिनट तो ज़रूर ही बीत गये होंगे। चूंकि कुछ भी नहीं हुआ इसलिए
मैंने ज़ोर ज़ोर से बोलना शुरू कर दिया,"अगर जो आत्माएं हैं जो सामने आ कर
दर्शन दें।" मैं कुछ पल तक इंतज़ार करता रहा फिर भी कुछ नहीं हुआ। मैंने
फिर कहना जारी रखा,"क्या संवाद स्थापित करने का कोई तरीका है? शायद किसी
संकेत के जरिये, ठक ठक या, अगर ऐसा न हो सके, तो शायद मेरे मन के जरिये,
जिससे हो सकता है, मैं कुछ लिखने के लिए प्रेरित हो जाऊं; या शायद ठंडी हवा
का झोंका आपकी मौजूदगी का संकेत दे सके।"
तब मैं और पांच मिनट के लिए बैठा रहा। लेकिन न तो कोई संकेत ही मिला और न
ही किसी तरह का आदेश ही आया। आखिर मैंने इसे गया गुज़रा मामला मान कर छोड़
दिया और बत्ती जला दी। तब मैं बैठक वाले कमरे में चला गया। पर्दे अभी हटाये
नहीं गये थे, और चांदनी में पिआनो की छवि का आभास हो रहा था। मैं बैठ गया
और कुंजी पटल पर उंगलियां दौड़ाने लगा। ऐसा करते हुए मैं ऐसी स्वर तंत्री
पर अटका जिसने मुझे बांध लिया। मैंने इसे कई बार दोहराया, तब तक पूरा कमरा
उससे कम्पित नहीं होने लगा। मैं ये क्यों कर रहा था? शायद यही बुलावा था।
मैं एक ही स्वर तंत्री दोहराता रहा। अचानक ही रोशनी का एक सफेद हाथ मेरी
छाती से लिपट गया: मैं बंदूक की गोली की तरह पिआनो से कूदा और खड़ा हो गया।
मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से ड्रम की तरह धड़क रहा था।
जब मुझे होश आया, मैंने स्थिति को समझने की कोशिश की। पिआनो खिड़की के पास
वाली आराम करने की जगह पर रखा हुआ था। तब मैंने जाना कि जिसे मैं रहस्यमय
शक्ति की पट्टी समझ रहा था, पहाड़ी की ढलान से उतरती हुई किसी गाड़ी की पास
आती हुई लाइट थी। अपने आपको सन्तुष्ट करने के लिए मैं पिआनो पर बैठा और उसी
कुंजी को कई बार बजाया। बैठक के दूर वाले सिरे पर एक अंधियारा गलियारा था
और उसके पार डाइनिंग रूम का दरवाजा था। मैंने अपनी आंख की कोर से देखा कि
दरवाजा खुला और डाइनिंग रूम में से कुछ आया और अंधियारे गलियारे में से
गुज़रा। ये डरावना, बौना सा दिखने वाला जानवर था जिसकी आंखों के चारों तरफ
जोकरों जैसे सफेद घेरे थे। वह संगीत कक्ष की तरफ बत्तख जैसी चाल चलता हुआ
चला जा रहा था। मैं अपना सिर घुमा पाता इससे पहले ही वह गायब हो गया था।
भयभीत सा, मैं उठ खड़ा हुआ और उसका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन वह गायब
हो चुका था। यह विश्वास करते हुए मैंने खुद अपनी बेहद नर्वस हालत में कोई
दृष्टिभ्रम पैदा कर लिया होगा जिससे भ्रम हो गया हो। मैं फिर से पिआनो
बजाने बैठ गया, लेकिन फिर कुछ भी नहीं हुआ, इसलिए मैंने सो जाने का फैसला
किया।
मैंने कपड़े बदले, पायजामा पहना और बाथरूम में गया। जब मैंने बत्ती जलायी
तो बाथरूम में एक अजगर पसरा हुआ था और मेरी तरफ देख रहा था। मैं बाथरूम से
एक तरह से छलांग लगाते हुए बाहर आया। यही धोखेबाज था! मैंने इन्हीं महाशय
को अपनी आंख की कोर से देखा था। तब नीचे वाली मंजिल पर ये आकार में कुछ
ज्यादा ही बड़ा प्रतीत हुआ था।
सवेरे, रसोइये में उस हैरान परेशान प्राणी को एक पिंजरे में बंद किया और
अंतत: हमने उसे पालतू बना लिया। लेकिन एक दिन वह गायब हो गया और हमने उसे
फिर कभी नही देखा।
•
लंदन से मेरे चलने से पहले यार्क के ड्यूक और डचेस ने मुझे लंच पर आमंत्रित
किया, ये बेहद अनौपचारिक लंच था और वहां पर सिर्फ ड्यूक, डचेज, डचेज के
पिता और माता, उनके भाई और तेरह बरस का एक किशोर युवक ही थे। सर फिलिप ससून
बाद में आये, और उनकी और मेरी ये ड्यूटी लगा दी गयी कि हम डचेस के छोटे भाई
को एटन छोड़ते चलें। वह नन्हां सा शांत लड़का था जो, जिस वक्त दो प्रीफेक्ट
हमें अपन स्कूल दिखा रहे थे, तो वह पीछे पीछे चला आ रहा था। बाद में
प्रीफेक्ट और कई लोगों ने हमें चाय पर आमंत्रित किया।
हम मिठाई की दुकान में पहुंचे। ये कैंडी बेचने वाली और छ: पैनी की चाय
बेचने वाली एक साधारण सी जगह थी। तब वह ईटन के सैकड़ों लड़कों के साथ बाहर
ही रहा। हम चारों सीढ़ियां के ऊपर वाले एक कमरे में एक छोटी सी मेज पर
बैठे। सब कुछ बहुत ही शानदार चल रहा था कि तभी मुझसे पूछा गया कि क्या मैं
चाय का दूसरा कप लेना पसन्द करूंगा और मैंने अनजाने में कह दिया, "हां।"
इससे वहां पर आर्थिक संकट पैदा हो गया क्योंकि हमारे मेजबान के पास पैसे कम
पड़ गये थे और उसे कई दूसरे लड़कों के आगे कटोरा घुमाना पड़ा।
फिलिप फुसफसाये, "मुझे डर है कि हमने उन्हें दो पेंस के अतिरिक्त संकट में
डाल दिया है और हालत ये है कि हम उनके लिए कुछ भी नहीं कर सकते।"
अलबत्ता, उन्होंने आपस में ही इंतजाम कर लिया और चाय की एक और केतली का
आर्डर दिया। ये चाय हमें हड़बड़ी में पीनी पड़ी क्योंकि इस बीच स्कूल की
घंटी बज गयी थी और उन्हें एक मिनट के भीतर स्कूल के गेट पर पहुंचना था।
वहां अच्छी खासी भगदड़ मच गयी। भीतर, हैडमास्टर ने हमारा स्वागत किया और वह
हॉल दिखाया जहां शैली और कई दूसरी महान विभूतियों ने अपने नाम अंकित कर रखे
थे। आखिरकार, हैडमास्टर ने फिर से हमें दो प्रीफेक्टों के हवाले कर दिया जो
हमें पवित्रतम गृभ गृह में ले गये। वह कमरा जिसमें कभी शैली रहे थे, लेकिन
हमारा नन्हां फरिश्ता दोस्त बाहर ही रहा।
हमारे युवा मेज़बान ने बेहद उखड़े तरीके से उससे कहा "तुम क्या चाहते हो?"
"ओह, वह हमारे साथ है," फिलिप ने टोका, और बताया कि हम उसे लंदन के वापिस
लाये हैं।
"तब ठीक है।" हमारे मेज़बान ने बेचैनी से कहा,"भीतर आ जाओ।"
फिलिप फुसफुसाये,"वे उसे भीतर आने दे कर बहुत बड़ी रियायत पर रहे हैं; इससे
इस तरह की पवित्रभूमि पर अनधिकार प्रवेश से किसी और बच्चे का कैरियर बरबाद
हो जायेगा।"
ये तो बाद में जब मैं लेडी एस्टर के साथ एटन गया तो मुझे वहां के सादगी भरे
अनुशासन का पता चला। जिस वक्त हम बहुत कम रौशनी वाले गलियारे से गुजरे तो
वहां भयंकर सर्दी थी और बहुत अंधेरा था। हम टटोलते हुए आगे बढ़े। गलियारे
में हर कमरे के दरवाजे के बाद दीवार पर पैर धोने के बरतन लटक रहे थे। आखिर
हमने सही दरवाजा तलाश लिया और खटखटाया।
उनके लड़के, पीले चेहरे वाले नन्हें से बच्चे ने दरवाजा खोला। भीतर, उसके
दो साथी छोटे के फायर प्लेस में मुठ्ठी भर कोयले डाल कर सिकुड़े बैठे अपने
हाथ सेंक रहे थे। माहौल निश्चित ही डरावना था।
लेडी एस्टर ने कहा,"मैं देखना चाहती हूं कि क्या तुम्हें मैं वीक एन्ड के
लिए ले जा सकती हूं!" हम थोड़ी देर तक बात करते रहे, तभी अचानक दरवाजे पर
ठक ठक हुई और इससे पहले कि हम 'भीतर आइये' कह पाते, दरवाजे का हत्था घूमा
और हाउस मास्टर भीतर आये। वे खूबसूरत, लाल बाल और सुगठित देह वाले, लगभग
चालीस बरस के शख्स थे। `गुड ईवनिंग,' उन्होंने रूखेपन से लेडी एस्टर से कहा
और मेरी तरफ देखकर सिर हिलाया। इसके बाद उन्होंने छोटे से आतिशदान पर अपनी
कुहनी टिकायी और अपना पाइप पीना शुरू कर दिया। लेडी एस्टर का आना स्पष्ट ही
गलत वक्त पर था इसलिए उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी,"मैं यह देखने आयी हूं
कि मैं अपने बेटे को वीक एंड के लिए वापिस ले जा सकती हूं?"
"मुझे खेद है आप नहीं ले जा सकतीं," दो टूक जवाब मिला।
"ओह, जाने भी दीजिये," लेडी एस्टर ने अपनी खनकती हुई आवाज़ में कहा, "इतने
हठी मत बनिये।"
"मैं हठी नहीं हूं, मैं सिर्फ एक तथ्य बयान कर रहा हूं।"
"लेकिन वह कितना पीला नज़र आ रहा है?"
"वाहियात!! उसके साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं है।" वे लड़के के बिस्तर से उठीं,
जिस पर हम बैठे हुए थे, और हाउस मास्टर के पास गयीं, "ओह, छोड़िये भी!"
उन्होंने नज़ाकत के साथ कहा और हेडमास्टर को अपने खास अंदाज में हल्का सा
धक्का दिया। मैंने उन्हें लॉयड जॉर्ज और दूसरे लोगों को, जिन्हें भी वे
उकसाना चाहती थीं, इस तरह का धक्का देते हुए देखा था।
"लेडी एस्टर," हेडमास्टर ने कहा,"आपको लोगों को धक्का देकर उनका संतुलन
बिगाड़ने की बहुत खराब आदत है। मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करना छोड़ दें।"
ऐसे पलों में लेडी एस्टर की सारी शेखी ने उनका साथ छोड़ दिया।
पता नहीं, बातचीत कैसे राजनीति की तरफ मुड़ गयी। हाउस मास्टर ने बात को बीच
में ही काट दिया और अपना संक्षिप्त सा जुमला कह दिया,"अंग्रेजी राजनीति के
साथ मुसीबत ये है कि इसमें औरतें बहुत अधिक दखल देती हैं और इसके साथ ही
मैं आपको गुड नाइट कहूंगा, लेडी एस्टर।" तब उन्होंने हम दोनों की तरफ हौले
से सिर हिलाया और चले गये।
"कितना खड़ूस आदमी है," लेडी एस्टर ने कहा। लेकिन बच्चे ने हैड मास्टर की
तरफ से जवाब दिया,"ओह नहीं मां, वे सचमुच बहुत अच्छे हैं।"
मैं उस व्यक्ति की सिर्फ़ प्रशंसा ही कर सका। महिला विरोधी अपनी भावनाओं के
बावजूद उसके चरित्र में ईमानदारी और खरापन है - उसमें हास्यबोध नहीं था
लेकिन ईमानदारी थी।
•
मैं चूंकि सिडनी से कई बरसों से नहीं मिला था, मैं लंदन से ये सोच कर चला
कि उसके साथ थोड़ा सा वक्त नाइस में बिताऊंगा। सिडनी हमेशा कहा करता था कि
जब वह 250,000 डॉलर बचा लेगा तो वह रिटायर हो जायेगा। मैं यहां पर ये बात
जोड़ दूं कि उसने इस तय राशि से बहुत ज्यादा बचा लिये थे। एक काइयां
कारोबारी आदमी होने के अलावा वह बहुत ही शानदार कॉमेडियन था और उसने कई सफल
फिल्में बनायी थीं : सबमेरीन, पाइलट, द बैटर ओल, मैन इन द' बॉक्स और
फार्चून। और अब चूंकि सिडनी रिटायर हो चुका था, जैसा कि उसने कहा था, वह
रिटायर हो कर नाइस में रह रहा था।
जब नाइस में रहने वाले फ्रैंक जे. गॉल्ड को पता चला कि मैं अपने भाई से
मिलने के लिए आ रहा हूं तो मुझे उन्होंने जुआं-लेस-पिन्स में अपने मेहमान
के रूप में आने का न्योता दिया जिसे मैंने स्वीकार कर लिया।
नाइस में जाने से पहले मैं दो दिन के लिए पेरिस में रुका और फॉलिस बरजेरे
में गया क्योंकि मूल अष्टम लंका शायर बाल मंडली के एल्फ्रेड जैक्सन वहां पर
काम कर रहे थे। वे मूल ट्रुप के पुत्रों में से एक थे। जब मैं एलफ्रेड से
मिला तो उन्होंने बताया कि जैक्सन परिवार बहुत समृद्ध हो गया है और उनके
लिए नृत्य करने वाली लड़कियों के आठ दल हैं और कि उनके पिता अभी भी जीवित
हैं। अगर मैं फालिज बरजेरे जाऊं, जहां पर वे पूर्वाभ्यास कर रहे हैं तो मैं
उनके पिता से मिल सकता हूं।
हालांकि मिस्टर जैक्सन अस्सी की उम्र पार कर चुके थे, वे अभी भी हट्टे
कट्टे और चुस्त दुरुस्त लग रहे थे। हम हैरान होते हुए अपने पुराने दिन याद
करते रहे और बार बार कहते रहे,"किसने सोचा था, ऐसा होगा?"
"तुम्हें पता है, चार्ली," वे बोले," छोटे से बच्चे के रूप में जो तुम्हारी
उत्कृष्ट याद बाकी है, वो है तुम्हारी विनम्रता।"
•
अगर आप ये मुगालता पाले रहते हैं कि आप जनता की निगाहों में बहुत दिन तक
सितारे बने रहेंगे तो आप गलती पर हैं। चांदनी चार दिन की ही रहती है और फिर
अंधेरा आता ही है। इसलिए मेरे इस स्वागत के बाद सारी चीजें अचानक ही शांत
हो गयीं। पहला झटका प्रेस से मिला। मेरी तारीफों के पुल बांधने के बाद
उन्होंने एकदम विपरीत रुख अपना लिया। मेरा ख्याल है, इससे पढ़ने वालों को
मज़ा ही आया होगा।
लंदन और पेरिस की उत्तेजना अपने निशान छोड़ रही थी। मैं थका हुआ था और अब
आराम चाहता था।
जुआं-लेस-पिन्स में मैं जब आराम कर रहा था तो मुझसे कहा गया कि मैं लंदन
में पैलेडियम में एक कमांड पर्मार्मेंस में अपना चेहरा दिखाऊं। इसके बजाये,
मैंने दो सौ पाउंड का चेक भेज दिया। इससे तो हंगामा उठ खड़ा हुआ। मैंने
राजा को ठेस पहुंचायी थी और राज आदेश की अवमानना की थी। मुझे पैलेडियम के
प्रबंधक की ओर से जो नोट मिला उसे मैंने राजसी आदेश नहीं माना। इसके अलावा,
मैं एक पल के नोटिस पर प्रदर्शन करने के लिए तैयार नहीं था।
अगला हमला कुछ सप्ताह बाद आया। मैं एक टेनिस कोर्ट में अपने पार्टनर का
इंतज़ार कर रहा था कि तभी एक नौजवान ने मेरे एक दोस्त के दोस्त के रूप में
अपना परिचय दिया। हालचाल पूछ लेने के बाद हमारी बातचीत आपसी राय की तरफ
मुड़ गयी। वह बातचीत में बहुत माहिर और सहानुभूतिपूर्ण रवैये वाला नौजवान
था। मुझमें एक कमज़ोरी है कि मैं लोगों को अचानक ही पसन्द करने लगता हूं,
वो भी खास तब जब वे अच्छे श्रोता हों। मैं कई विषयों पर बात करने लगा।
दुनिया भर में चल रहे हालात पर मैंने आपसी हताशा जतलायी और उसे बताया कि
यूरोप में जो हालात चल रहे हैं वे एक और युद्ध की ओर ले जा रहे हैं।
"ठीक है, भई, मुझे वे अगले युद्ध में नहीं पायेंगे", मेरे दोस्त ने कहा।
"मैं आपको दोष नहीं देता," मैंने जवाब दिया,"मेरे मन में उनके लिए कोई
सम्मान नहीं है जो हमें मुसीबतों में फंसाते है; मैं यह बताया जाना पसन्द
नहीं करता कि किसको मारूं और किसके लिए मृत्यु को गले लगाया जाये और ये सब
देशभक्ति के नाम पर!!"
हम बहुत अच्छे माहौल में विदा हुए। मेरा ख्याल है मैंने अगली शाम को उसके
साथ खाना खाने का भी तय कर लिया था, लेकिन वह आया नहीं। और लीजिये! किसी
दोस्त के साथ बात करने के बजाये, मैंने पाया कि मैं एक न्यूज रिपोर्टर से
बात कर रहा था और अगले दिन अखबारों में पहले पेज पर पूरे पन्ने की खबर थी:
"चार्ली चैप्लिन देशभक्त नहीं।" वगैरह।
ये सच है लेकिन उस वक्त मैं नहीं चाहता था कि मेरी निजी राय को इस तरह से
प्रेस की तरफ से सार्वजनिक किया जाये। सच तो ये है कि मैं देशभक्त नहीं
हूं। नैतिक या बौद्धिक कारणों की वजह से ही नहीं - लेकिन इसका कारण ये भी
है कि मेरे मन में देश के लिए कोई भावना नहीं है। कोई व्यक्ति देशभक्ति को
किस तरह से स्वीकार कर सकता है जब देशभक्ति के ही नाम पर साठ लाख यहूदियों
का कत्ल किया जा रहा है। कोई यह बात कह सकता है कि वे जर्मनी में हो रहा
है; इसके बावजूद, उस तरह के मौत का खेल दिखाने वाली कोठरियां हरेक देश में
मौजूद हैं।
मैं राष्ट्रीय गौरव को ले कर हो हल्ला नहीं मचा सकता। यदि कोई व्यक्ति
पारिवारिक परम्पराओं में, घर और बगीचे में, अपने सुखी बचपन में परिवार में,
दोस्तों में व्यस्त हो तो मैं उसकी इस भावना को समझ सकता हूं लेकिन मेरे
पास इस तरह की पृष्ठभूमि नहीं है। मेरे लिए सर्वोत्तम राष्ट्रभक्ति यही है
जो स्थानीय आदतों के रूप में विकसित हुई। घुड़दौड़, शिकार करना, यॉकशायर
पुडिंग, अमेरिकी हैम वर्गर और कोका कोला, लेकिन आज इस तरह की देशी चीजें भी
पूरी दुनिया में फैल चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से, जिस देश में मैं रहता
हूं, यदि उस पर हमला होता है तो मैं, हममें से अधिकांश लोगों की तरह, मुझे
विश्वास है कि मैं परम त्याग का कोई भी कार्य करने में सक्षम होऊंगा। लेकिन
मैं मातृभूमि के लिए दिखावे का प्यार दिखाने के काबिल नहीं हूं। क्योंकि इस
प्यार ने केवल नाज़ी पैदा किये हैं और मैं बिना किसी अफसोस के ये कहना
चाहूंगा कि जो कुछ मैंने देखा समझा है, नाज़ियों की कोठरियां, हालांकि इस
वक्त बंद पड़ी है, किसी भी देश में तेजी से सक्रिय बनायी जा सकती है,
इसलिए, मैं किसी राजनैतिक कारण के लिए तब तक कोई त्याग करने के लिए तैयार
नहीं हूं जब तक मेरा उसमें व्यक्तिगत रूप से विश्वास न हो। मैं राष्ट्रपिता
के लिए शहीद होने वालों में से नहीं हूं और न ही मैं राष्ट्रपति के लिए,
प्रधानमंत्री या किसी तानाशाह के लिए मरने के लिए ही इच्छुक हूं।
एकाध दिन बाद सर फिलिप सैसून मुझे कॉन्सुएलो वैन्डरबिल्ट बालसन के घर पर
लंच के लिए गये। दक्षिणी फ्रांस में ये एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी। वहां पर
एक मेहमान अलग ही नज़र आ रहा था - लम्बा, दुबला व्यक्ति, जिनके बाल गहरे
काले थे, और कतरी हुई मूंछें थीं। खुशमिजाज और बांध लेने वाला व्यक्तित्व।
मैंने पाया कि लंच के वक्त मैं अपनी बातचीत में उसे संबोधित कर रहा हूं।
मैं मेजर डगलस की किताब इकॉनामिक डेमोक्रेसी की बात कर रहा था। मैंने कहा
कि उनकी ऋण थ्योरी कितने शानदार तरीके से मौजूदा विश्वव्यापी संकट को हल कर
सकती है।
कॉन्सुऐलो बालसन ने उस दोपहर के बारे में लिखा, "मैंने पाया कि चैप्लिन
बातचीत में बहुत दिलचस्प हैं और मैंने उनमें मजबूत समाजवादी प्रवृत्तियां
पायीं।
मैंने ज़रूर ऐसा कुछ कहा होगा जो उस लम्बे व्यक्ति को खास तौर पर अच्छा लगा
होगा क्योंकि उसका चेहरा खिल उठा और उसकी आंखें इतनी चौड़ी हो गयीं कि मुझे
उन आंखों की सफेदी तक नज़र आने लगी। मैं जो कुछ भी कह रहा था, वह उसका
समर्थन करता जा रहा था और तभी मैं अपनी धारणाओं के क्लाइमेक्स तक जा
पहुंचा, जो निश्चित ही उसकी स्वयं की धारणाओं की विपरीत दिशा में चला गया
होगा। उसके चेहरे पर निराशा झलकने लगी।
मैं सर ओस्वाल्ड मेस्ले से बात कर रहा था और मुझे इस बात का ज़रा भी गुमान
नहीं था कि ये व्यक्ति इंगलैंड की ब्लैक शर्ट्स का भावी प्रमुख बनेगा -
लेकिन उसकी बड़ी बड़ी आंखों की नज़र आती पुतलियां और खुली-खुली मुस्कराहट
वाला चेहरा मेरी स्मृति में – खास तौर की अभिव्यक्ति के रूप में अभी भी बना
हुआ है - उसमें डर कहीं नहीं था।
दक्षिणी फ्रांस में मैं एमिल लुडविग से भी मिला। उन्होंने नेपोलियन,
बिस्मार्क, बालज़ाक और अन्य विभूतियों की मोटी मोटी जीवनियां लिखी हैं।
उन्होंने नेपोलियन के बारे में बहुत रोचक तरीके से लिखा था। लेकिन उन्होंने
कथा वाचन की दिलचस्पी से विमुख करने की हद तक मनोविश्लेषण का कुछ ज्यादा ही
छोंका लगा दिया था।
उन्होंने मुझे एक तार भेजा कि उन्हें सिटी लाइट्स कितनी पसन्द आयी थी और कि
वे मुझसे मिलना चाहेंगे। मैंने जिस रूप में उनकी कल्पना की थी, वे उससे
बिल्कुल अलग थे। वे परिष्कृत ऑस्कर वाइल्ड की तरह लग रहे थे। उनके बाल
थोड़े लम्बे थे और उनका लम्बोतरा भरा हुआ चेहरा औरतों जैसे कटाव लिये हुए
था। मेरे होटल में हम दोनों मिले। उन्होंने वहां पर खुद को कुछ हद तक
भड़कीले, ड्रामाई तरीके से पेश किया। मुझे एक तेजपात की पत्ती भेंट करते
हुए उन्होंने कहा, "जब रोमन ने महानता हासिल की तो उन्हें तेजपात की
पत्तियों से बनाया गया कल्प वृक्ष ताज भेंट किया गया था। इसलिए मैं आपको एक
पत्ती भेंट करता हूं।"
इस तरह की असंगत बातों के कारण उनसे तालमेल बिठाने में एक पल लगा; तब मुझे
महसूस हुआ कि वे अपनी झेंप छुपा रहे थे। जब वे सहज हुए तो वे एक बहुत ही
चतुर और रोचक आदमी के रूप में मुझसे मिले। मैंने उनसे पूछा कि जीवनी लिखने
में उन्हें सबसे ज्यादा ज़रूरी बात क्या लगती है। उन्होंने कहा कि नज़रिया।
"तब तो जीवनी पूर्वाग्रहपूर्ण और नपा तुला लेख हो जाती है।" मैंने कहा।
"पैंसठ प्रतिशत कहानी तो कभी कही ही नहीं जाती," उन्होंने जवाब
दिया,"क्योंकि उस पैंसठ प्रतिशत में दूसरे लोग शामिल होते हैं।"
डिनर के दौरान उन्होंने पूछा कि अब तक मैंने सर्वाधिक सुन्दर दृश्य कौन सा
देखा है। मैं यूं ही कह दिया कि हेलेन विल्स को टेनिस खेलते हुए देखना:
इसमें गरिमा और एक्शन की किफायत तो है ही, सैक्स के लिए स्वस्थ अपील भी है।
दूसरा दृश्य था एक न्यूजरील का। युद्ध विराम के तुरंत बाद, फ्लैंडर्स नाम
की जगह में खेत जोतता हुआ किसान, जहां हज़ारों लोग मरे थे। लुडविग ने
फ्लोरिडा समुद्र तट के सूर्यास्त, तट पर खरामा खरामा चली जाती एक स्पोर्ट्स
कार, जिसमें बेदिंग सूट पहने खूबसूरत लड़कियां लदी पड़ी हों और एक लड़की
पीछे बोनट पर बैठी हो, उसकी टांगें झूल रही हों और पैर के तलुए रेत को छू
रहे हों और जैसे जैसे कार चल रही हो, उसकी ऐड़ी से रेत पर एक लकीर बनती चली
जा रही हो।
उसके बाद से मैं कई दूसरे सुन्दर नज़ारों को याद कर सकता हूं। फ्लोरेंस में
पिआज़ा डेला सिग्नोरिया में बेनवेनुतो सेलिनी का `परसेउस' नाटक। रात का
वक्त था। चौराहा रौशनी से नहाया हुआ था और मुझे वहां माइकलएंजेलो की डेविड
की आकृति खींच ले गयी थी, लेकिन जैसे ही मैंने परसेउस देखा, सब कुछ गौण हो
गया था। मैं उसकी गरिमा और रूप के अछूते सौन्दर्य को देख कर ठगा रह गया था।
ये उदासी की साक्षात प्रतिमा लग रही थी और इसने मुझे ऑस्कर वाइल्ड की
रहस्यपूर्ण पंक्ति की याद दिला दी,"इसके बावजूद आदमी उसे मार डालता है जिसे
वह चाहता है।" उस शाश्वत रहस्य, अच्छे और बुरे के संघर्ष में उसका कारण खो
गया था।
•
मुझे ड्यूक ऑफ आल्बा से एक तार मिला जिसमें उन्होंने मुझे स्पेन में
आमंत्रित किया था। लेकिन अगले ही दिन सभी अखबारों में बड़ी-बड़ी हैडलाइनें
नज़र आयीं,"स्पेन में क्रांति"। इसलिए मैं स्पेन के बजाये विएना चला गया -
उदास, संवेदनशील विएना। उसकी सबसे खास स्मृति जो मेरे पास है, वह है एक
खूबसूरत लड़की के साथ रोमांस की। ये किसी विक्टोरियाई उपन्यास के अंतिम
अध्याय की तरह था; हमने प्यार में जीने मरने की कसमें खायीं और विदा के
चुम्बन लिये दिये। हम जानते थे कि दोबारा फिर कभी मिलना नहीं होगा।
विएना के बाद, मैं वेनिस चला गया। ये पतझड़ के दिन थे और ये जगह पूरी तरह
सुनसान थी। मैं उसे उस वक्त ज्यादा पसन्द करता जब ये पर्यटकों से भरा रहता,
क्योंकि पर्यटक किसी भी ऐसी जगह को ऊष्मा और जीवन्तता प्रदान करते हैं, जो
उनके बिना आसानी से उनके लिए किसी कब्रिस्तान सरीखी हो सकती है। दरअसल, मैं
घुमक्कड़ी करने वालों को पसन्द करता हूं क्योंकि लोग बाग किसी जगह
छुट्टियां मनाते ज्यादा सही नज़र आते हैं बजाये किसी दफ्तर की इमारत में
घूमते दरवाजों से टकराते हुए।
हालांकि वेनिस खूबसूरत था लेकिन उतना ही उदास भी था; मैं वहां पर सिर्फ दो
रातों के लिए ठहरा; वहां मेरे पास करने धरने को कुछ नहीं था, बस फोनोग्राम
रिकार्ड सुनते रहो और वो भी छुप कर, क्योंकि मुसोलिनी ने रविवार के दिन
नाचने या रिकार्ड बजाने पर पाबंदी लगा रखी थी।
मुझे विएना लौटना अच्छा लगता ताकि वहां पर अपनी प्रेमिका से प्रेम प्रसंग
को आगे बढ़ा सकूं लेकिन पेरिस में मुझे एक व्यक्ति से मिलना था और मैं इस
मुलाकात से चूकना नहीं चाहता था। मुझे एरिस्टाइड ब्रायंड के साथ लंच करना
था। वे युनाइटेड स्टेट्स ऑफ यूरोप के विचार का अमली जामा पहनाने वाले और
उसके संरक्षक थे। जिस वक्त मैं मिस्टर ब्रायंड से मिला, उनका स्वास्थ्य
नाज़ुक चल रहा था और वे दिग्भ्रमित और ज़माने भर के सताये हुए लग रहे थे।
लंच का आयोजन ले'इन्ट्रासिजिएन के प्रकाशक मिस्टर बाल्बी के यहां था और ये
बेहद मज़ेदार आयोजन रहा, भले ही मैं फ्रांसीसी भाषा नहीं बोला, काउन्टेस दे
नोआइलेस, स्मार्ट, पंछी की तरह नन्हीं सी महिला ने अंग्रेजी में बात की। वे
बेहद मज़ाकिया और आकर्षक थीं। मिस्टर ब्रायंड ने यह कहते हुए उनका स्वागत
किया,"आजकल आपके तो दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं, आपकी मौजूदगी उतनी ही विरल
होती जा रही है जितनी कि किसी की छोड़ी हुई रखैल की हो जाती है।" लंच के
बाद मुझे राज प्रासाद एलिसी ले जाया गया और मुझे लीजन द' ऑनर का सम्मान
दिया गया।
मैं उस बेइन्तहां भीड़ के पागलपन भरे उत्साह का यहां पर ज़िक्र नहीं करूंगा
जो बर्लिन में मेरे दूसरी बार आने पर जुट आयी थी - हालांकि उसका बयान करने
से मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं।
प्रसंग आया है तो मुझे मैरी और डगलस द्वारा उनकी विदेश यात्रा पर रिकार्ड
की गयी फिल्म का प्रदर्शन याद आ रहा है। मैं एक रोचक यात्रा वृतांत का मज़ा
लेने के लिए पूरी तरह से तैयार था। फिल्म शुरू हुई मैरी और डगलस के लंदन
पहुंचने के दृश्य से। स्टेशन पर अपार भीड़ जुटी हुई है और होटल के बाहर भी
उतनी ही उत्साही भीड़ का कोई ओर छोर नहीं है। होटल की बाहरी सज्जा और लंदन,
पेरिस, मॉस्को, विएना और बूदापेस्ट के रेल स्टेशन को दिखाये जाने के बाद
मैंने मासूमियत से पूछा,"हम छोटे शहर और गांव देहात कब देखेंगे?" वे दानों
हँसे। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं अपने खुद के स्वागत के लिए
जुटी भीड़ का बयान करने में विनम्र नहीं रहा हूं।
बर्लिन में मैं लोकतांत्रिक सरकार का मेहमान था और एक बेहद आकर्षक जर्मन
युवती काउन्टेस यार्क को मेरी अताशे के रूप में नियुक्त किया गया था। ये
1931 का बरस था और कुछ ही अरसा पहले नाज़ियों ने रीचस्टैग में सत्ता हथिया
ली थी और मैं इस बात से वाकिफ़ नहीं था कि आधी प्रेस मेरे खिलाफ है। उनका
आरोप था कि मैं विदेशी हूं और कि जर्मन इस तरह के सनक भरे प्रदर्शन के
जरिये खुद का मज़ाक उड़वा रहे हैं। बेशक, ये नाज़ी प्रेस थी और मैं
मासूमियत से इन सारी बातों को जानते हुए भी अनज़ान बना रहा और खूब शानदार
वक्त बिताया मैंने।
कैसर के एक कज़िन ने कृपापूर्वक मुझे पौट्सडैम और सैन्स सौसी महलों की सैर
करायी। मेरे लिए सारे के सारे महल नकली ज़िदगी के स्मारक होते हैं।
कुरुचिपूर्ण और भोग विलास के भौंडे प्रदर्शन। उनकी ऐतिहासिक दिलचस्पी के
बावजूद जब मैं वर्साइलेस, क्रेमलिन, पौट्सडैम, बकिंघम पैलेस और इस तरह के
दूसरे महलों को देखता हूं तो मुझे लगता है कि ज़रूर उन्हें फूल कर कुप्पा
हो गये अहंवादियों ने बनवाया होगा। कैसर के कजिन ने मुझे बताया कि सैन्स
सौसी फिर भी सुरुचिपूर्ण है, छोटा और अधिक मानवीय है; लेकिन मेरे लिए ये
श्रृंगारदान की तरह था और मेरे भीतर उसे देखकर कोई भावना नहीं उपजी।
सबसे ज्यादा डराने वाली और हताश करने वाली जगह थी - बर्लिन का पुलिस
संग्रहालय, जहां मैं गया था। कत्ल के शिकार लोगों की, आत्महत्याओं, अमानवीय
यंत्रणाओं, और हर तरह की मानवीय विकृतियों की तस्वीरें। मुझे इमारत से बाहर
आकर और खुली हवा में सांस लेकर बहुत राहत मिली।
डॉक्टर वौन फुलमुलर, द मिरैकल के लेखक ने अपने घर पर मेरी अगवानी की। वहां
मैं कला और थियेटर के जर्मन प्रतिनिधि से मिला। एक और शाम मैंने आइन्सटीन
दम्पत्ति के साथ उनके छोटे से अपार्टमेंट में गुजारी। इस बात की व्यवस्था
की गयी थी कि मैं जनरल वौन हिडंनबर्ग के साथ खाना खाऊं लेकिन अंतिम पलों
में वे बीमार हो गये, इसलिए मैं एक बार फिर दक्षिणी फ्रांस चला गया।
•
मैंने अन्यत्र कहीं कहा है कि सैक्स का ज़िक्र तो होगा लेकिन उस पर ज़ोर
नहीं डाला जायेगा, क्योंकि इस विषय पर मेरे पास नया कहने के लिए कुछ भी
नहीं है। अलबत्ता, प्रजनन क्रिया प्रकृति का प्रमुख कारोबार है, और हर
व्यक्ति, चाहे वह युवा हो या बूढ़ा, जब किसी औरत से मिलता है तो वह दोनों
के बीच सैक्स की संभावनाओं की तलाश करता है। इसी तरह की स्थितियां मेरे साथ
हमेशा होती रही हैं।
काम के दौरान, औरतें कभी भी मेरी रुचि नहीं जगातीं; यह दो फिल्मों के बीच
के अरसे के दौरान ही होता कि मेरे पास करने के लिए कुछ भी न होता और मैं
कमज़ोर पड़ जाता। जैसा कि एच जी वेल्स ने कहा है, "दिन में एक ऐसा पल आता
है जब आपने सुबह के वक्त अपने पत्र लिख लिये हैं, दोपहर के वक्त अपनी डाक
वगैरह निपटा ली है और उसके बाद आपके पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता। तब
वह घड़ी आती है जब आप बोर हो जाते हैं; यही वक्त सैक्स के लिए होता है।"
इसलिए, जब कोटे द'अजूर पर मेरे पास जब करने के लिए कुछ भी नहीं था तो मेरे
सौभाग्य से मेरा परिचय एक बहुत ही कमनीय लड़की से कराया गया जो बोरियत के
घंटों को परे करने के लिए सारी ज़रूरतें पूरी करती थी। वह भी मेरी तरह छड़ी
छांट थी और हम दोनों ने एक दूसरे को पहली ही बार, जो जैसा है, के आधार पर
पसंद कर लिया। उसने मुझसे अपना रहस्य बांटा कि वह अभी अभी ही एक युवा
इजिप्ट लड़के से अपने दुखद प्रेम प्रसंग से उबरी है। हालांकि हमने अपने
संबंधों के बारे में चर्चा नहीं की थी, फिर भी हम समझते थे, उसे पता था कि
मैं आखिरकार अमेरिका लौट जाऊंगा। मैं उसे साप्ताहिक भत्ता दिया करता और हम
एक साथ कैसिनो में, रेस्तराओं में और मेले ठेलों में जाते। एक साथ खाना
खाते, नाचते और अमूमन ऐसे मौकों पर की जाने वाली सभी मस्तियां करते। लेकिन
मैं उसके सौन्दर्य के जाल में फंसता चला गया और अनहोनी हो गयी; मैं
भावनात्मक रूप से उससे जुड़ गया और अमेरिका वापिस जाने के बारे में सोचने
लगा। मैं पक्के तौर पर फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे पीछे छोड़ कर जाऊं
या नहीं। उसे छोड़ने के ख्याल मात्र से मैं बेचारगी महसूस करने लगता; वह
हंसमुख, आकर्षक और सहानुभुति से भरी थी। इसके बावजूद, बीच-बीच में ऐसे मौके
आते, जब अविश्वास सिर उठाने लगता।
एक दोपहरी, द' दासां में एक कैसीनो में उसने अचानक मेरा हाथ थाम लिया। वहां
पर एस. था। उसका ईजिप्शियन प्रेमी, जिसके बारे में उसने मुझे बहुत कुछ
बताया था। मैं हक्का बक्का। अलबत्ता, कुछ ही पल बाद हम वहां से चले गये।
जैसे ही हम होटल के नज़दीक पहुंचे, उसने अचानक पाया कि वह अपने दस्ताने
वहीं छोड़ आयी है और उसे उन दस्तानों को वापिस लाने के लिए जाना ही पड़ेगा।
उसने मुझसे कहा कि मैं आगे चलूं। उसका बहाना एकदम साफ था। मैंने उसे
बिल्कुल भी नहीं रोका और न ही कोई टिप्पणी ही की। मैं सीधा अपने होटल में
चला आया। जब वह दो घंटे बाद भी वापिस नहीं आयी तो मैं इस निष्कर्ष पर
पहुंचा कि मामला दस्तानों से कुछ ज्यादा ही का था। उस शाम मैंने कुछ
दोस्तों को डिनर पर बुला रखा था। डिनर का समय नज़दीक आ रहा था और वह अभी भी
गायब थी। जिस वक्त मैं उसके बिना कमरे से निकल रहा था तो उसने अपना चेहरा
दिखाया। वह पीली और अस्त व्यस्त दिखायी दे रही थी।
"तुम इतनी देर से आयी हो कि डिनर के लिए जाने का समय ही नहीं बचा" मैंने
कहा, "इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम अपने गर्म गुदगुदे बिस्तर में लौट जाओ।"
उसने मना किया, गिड़गिड़ायी, हाथ पैर जोड़े लेकिन इतने लम्बे समय तक गैर
हाज़िर रहने के पीछे कोई विश्वसनीय कारण नहीं दे पायी। मुझे यकीन हो चला था
कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के साथ ही थी और उसकी लंतरानियां सुनने के बाद
मैं उसके बिना ही चला गया।
कौन ऐसा होगा जो बिसूरते हुए सैक्सोफोन के शोर और नाइट क्लब के हंगामें और
शोर शराबे के बीच शोर से भी ऊंची आवाज़ में बात करते हुए अचानक आ गये
अकेलेपन से हताश नहीं बैठा होगा? आप दूसरों के साथ बैठे हैं, आप मेज़बानी
कर रहे हैं लेकिन भीतर ही भीतर आप टूटे हुए हैं। जब मैं होटल में वापिस
लौटा तो वह वहां पर नहीं थी। इस बात ने मुझे संकट में डाल दिया। क्या वह
पहले ही जा चुकी है? इतनी जल्दी? मैं उसके बेडरूम में गया और ये देखकर मुझे
बहुत राहत मिली कि उसके कपड़े और दूसरी चीजें अभी भी वहीं थीं। वह दस मिनट
में ही आ गयी। वह खुश थी और अच्छे मूड में थी। उसने बताया कि वह एक फिल्म
देखने चली गयी थी। मैंने उसे ठण्डेपन के साथ बताया कि अगले दिन मैं पेरिस
के लिए निकल रहा हूं और उसके साथ सारा हिसाब किताब निपटा दूंगा और निश्चित
ये हमारे संबंधों का पूर्ण विराम है। उसने इन सारी बातों को स्वीकार कर
लिया, लेकिन वह इस बात से इन्कार करती रही कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के
साथ थी।
"जो भी दोस्ती बची है," मैंने कहा,"तुम उसे इस धोखे पर टिके रह कर खत्म कर
रही हो"। तब मैंने उससे झूठ बोला और उसे बताया कि मैं उसका पीछा करता रहा
था और कि जब वह कैसिनो से गयी तो अपने प्रेमी के साथ उसके होटल चली गयी थी।
मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि वह रो पड़ी और इन बात को स्वीकार किया कि
हां, ये सच था। उसने कसमें खायीं और वचन दिये कि वह फिर कभी अपने प्रेमी से
नहीं मिलेगी।
अगली सुबह जब मैं पैक कर रहा था और निकलने की तैयारी कर रहा था, वह
हौले-हौले रोने लगी। मैं अपने एक दोस्त की कार में जा रहा था। दोस्त बताने
के लिए आया कि सब कुछ तैयार है और कि वह नीचे इंतज़ार कर रहा है। लड़की ने
अपनी अनामिका उंगली दांतों तले दबायी और अब जोर जोर से रोने लगी। "मुझे
छोड़कर मत जाइए, प्लीज़" प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाइए।"
"अब तुम मुझसे क्या उम्मीद करती हो?" मैंने ठण्डेपन से पूछा।
"बस, मुझे अपने साथ पेरिस तक जाने दीजिये, उसके बाद, मैं आपसे वादा करती
हूं कि आपको फिर कभी परेशान नहीं करूंगी," उसने जवाब दिया।
वह इतनी दयनीय नज़र आ रही थी कि मैं कमज़ोर पड़ गया। मैंने उसे चेताया कि
ये एक दुख देने वाली यात्रा होगी और कि इस बात का कोई मतलब नहीं है,
क्योंकि ज्यों ही हम पेरिस में पहुंचेंगे, हम अलग हो जायेंगे। उसने सारी
बातें मान लीं। उस सुबह हम तीनों अपने दोस्त की कार में पेरिस के लिए रवाना
हुए।
शुरू-शुरू में यात्रा में सभी खामोश बने रहे। लड़की शांत और सहमी। मैं
ठण्डा और विनम्र लेकिन इस तरह के रुख को बनाये रखना मुश्किल था। इसलिए जैसे
जैसे यात्रा आगे बढ़ती रही, सांझी रुचि की कोई किसी चीज़ पर हमारी निगाह
प़ड़ जाती और हममें से कोई कुछ न कुछ कह देता। लेकिन ये सब हमारी पहले वाली
अंतरंगता के दायरे से बाहर था।
हम सीधे लड़की के होटल में गये और मैंने उसे विदा के दो शब्द कहे। उसका ये
दिखावा कि ये उसकी अंतिम विदाई है, दयनीय तरीके से साफ-साफ नज़र आ रहा था।
मैंने उसके लिए जो कुछ भी किया था, उसके लिए उसने आभार माना, मुझसे हाथ
मिलाया और फिर ड्रामाई गुडबाय के साथ अपने होटल में गायब हो गयी।
अगले दिन उसने मुझे फोन किया कि क्या मैं उसे लंच कराऊंगा। मैंने मना कर
दिया। लेकिन जैसे ही मेरा दोस्त और मैं होटल से बाहर निकले, वह बाहर ही
खड़ी थी और उसने फर के कपड़े और न जाने क्या क्या पहना हुआ था। इसलिए हम
तीनों ने एक साथ लंच लिया और उसके बाद हम मालमाइसन गये जहां पर नेपोलियन
द्वारा तलाक दिये जाने के बाद जोसेफाइन रही थी और बाद में वहीं मरी थी। ये
एक खूबसूरत घर था जिसमें जोसेफाइन ने आठ आठ आंसू बहाये थे। ये एक अंधियारा,
पतझड़ का दिन था जो हमारी परिस्थिति की उदासी से मेल खाता था। अचानक मैंने
पाया कि मेरी महिला मित्र गायब है; तब मैंने देखा कि वह पार्क में पत्थर की
बेंच पर बैठी रोये जा रही है - ऐसा लगा कि पूरे माहौल ने उस पर असर डाल
दिया था। अगर ये सब मेरी वज़ह से हुआ होता तो मुझे अफसोस हुआ होता लेकिन
मैं उसके इजिप्शियन प्रेमी को नहीं भूल पाया। इस तरह से हम पेरिस में जुदा
हो गये और मैं लंदन के लिए चल दिया।
•
लंदन वापिस आने के बाद मैं प्रिंस ऑफ वेल्स से कई बार मिला। पहली बार उनसे
मेरी मुलाकात मेरी एक मित्र लेडी फर्नेस की मार्फत बियारिट्ज में हुई।
कोचेट, टेनिस खिलाड़ी, दो अन्य मित्र और मैं एक लोकप्रिय रेस्तरां में बैठे
थे जब प्रिंस और लेडी फर्नेस आये।
लेडी फर्नेस ने हमारी मेज पर एक पर्ची भेजी और जानना चाहा कि क्या हम बाद
में रशियन क्लब में उनसे मिलना चाहेंगे।
मेरा ख्याल है, ये एक छोटी सी औपचारिक मुलाकात थी। जब हमारा परिचय करा दिया
गया, महामहिम प्रिंस ने ड्रिंक्स का आर्डर दिया। तब वे खड़े हो गये और लेडी
फर्नेस के साथ नृत्य करने लगे। जब प्रिंस मेज़ पर वापिस आये, तो मेरी बगल
में बैठे और क्लास लेने लगे:
"आप बेशक अमेरिकी हैं न" उन्होंने पूछा।
"नहीं, मैं अंग्रेज़ हूं।"
वे हैरान नज़र आये, "आपको अमेरिका में रहते कितना अरसा हो गया है?"
"1910 से।"
"ओह" उन्होंने सोचते हुए सिर हिलाया, "युद्ध से पहले से?"
"मेरा ख्याल है।"
वे हँसे।
उस रात बातचीत के दौरान मैंने उनसे कहा कि चालियापिन मेरे सम्मान में एक
पार्टी दे रहे हैं। एकदम लड़कपन के तरीके से प्रिंस ने कहा कि वे भी उस
पार्टी में आना चाहेंगे।
"ज़रूर, महाशय" मैंने कहा,"चालियापिन आपको अपने बीच पाकर गौरव अनुभव करेंगे
और प्रसन्न होंगे।" मैंने उनसे अनुमति मांगी कि इसकी व्यवस्था कर लूं।
उस शाम प्रिंस ने उस वक्त मेरा दिल जीत लिया जब वे चालियापिन की मां के साथ
बैठे। वे अस्सी पार कर चुकी बुढ़िया थीं। मां जी के चले जाने तक वे उनके
पास ही बैठे रहे। बाद में वे हमसे आ मिले और मौज मस्ती करने लगे।
और अब प्रिंस ऑफ वेल्स लंदन में थे और उन्होंने मुझे देहात में अपने घर
फोर्ट बेल्डेवियर में आमंत्रित किया था। ये एक पुराना सा किला था जिसे नया
रूप दिया गया था और यूं कहें कि साधारण रुचि से सजाया गया था। लेकिन खाना
पीना उत्कृष्ट था और प्रिंस बहुत ही प्यारे मेजबान थे। उन्होंने मुझे अपना
घर दिखाया; उनका बेडरूम साधारण था और उसमें आधुनिक लाल रेशम के पर्दे और
चादरें वगैरह थे। बिस्तर पर सिर की तरफ राजसी प्रतीक बना हुआ था। दूसरा
बेडरूम देखकर मैं हैरान रह गया। चार स्तंम्भ वाले बिस्तर पर गुलाबी और सफेद
आकृतियां बनी थीं और हरेक स्तम्भ के ऊपर तीन गुलाबी पंख बने हुए थे। तब
मुझे याद आया; बेशक, ये पंख प्रिंस के राजसी कोट की बांह पर भी थे।
उस शाम किसी ने एक ऐसे खेल के बारे में बताया जो अमेरिका में प्रचलित था।
इसे दो टूक अनुमान अर्थात "फ्रैंक एस्टीमेशन" कहते थे। प्रत्येक मेहमान को
एक कार्ड दे दिया जाता जिस पर दस गुण लिखे होते: आकर्षण, बौद्धिकता,
व्यक्तित्व, सेक्स अपील, अच्छा चेहरा-मोहरा, ईमानदारी, हास्य बोध,
परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता और इसी तरह से दूसरे गुण।
मेहमान को कमरे में से जाना होता और उससे पहले अपनी विशेषताओं के बारे में
दो टूक अनुमान अपने कार्ड पर दर्ज करना होता और अपने प्रत्येक गुण के लिए
अधिकतम एक से दस तक अंक देने होते। मिसाल के तौर पर मैंने अपने आपको हास्य
बोध के लिए सात, सेक्स अपील के लिए छ:, अच्छे चेहरे के लिए छ:, खुद को
परिस्थिति के अनुसार ढालने की क्षमता के लिए आठ, ईमानदारी के लिए चार अंक
दिये। इस बीच, हरेक मेहमान उस व्यक्ति के बारे में अपना मूल्यांकन देता जो
कमरे से बाहर गया होता और गुप्त रूप से उसके कार्ड पर अंक दर्ज करता। तब
अमुक व्यक्ति भीतर वापिस आता और वह अंक पढ़ता जो उसने स्वयं को दिये होते,
और एक प्रवक्ता वे सारे अंक ज़ोर से पढ़ कर सुनाता जो मेहमानों ने उसे दिये
होते और इस तरह देखा जाता कि दोनों तरह के अंकों में कितना फर्क है।
जब प्रिंस का नम्बर आया तो उन्होंने बताया कि उन्होंने सैक्स अपील के लिए
तीन अंक दिये हैं, मेहमानों ने उन्हें चार के औसत से अंक दिये थे। मैंने
पांच दिये थे, किसी किसी के कार्ड पर उन्हें सेक्स अपील के लिए सिर्फ दो
अंक दिये गये थे। अच्छे चेहरे के लिए प्रिंस ने खुद को छ: दिये थे,
मेहमानों का औसत आठ का था और मैंने उन्हें सात दिये थे। आकर्षण के लिए उनके
खुद के अंक पांच थे, मेहमानों ने आठ दिये थे और मैंने भी उन्हें आठ ही अंक
दिये थे। ईमानदारी के लिए प्रिंस ने अपने आपको अधिकतम दस अंकों से नवाजा
था, मेहमानों का औसत साढ़े तीन का था और मैंने उन्हें चार अंक दिये थे।
प्रिंस नाराज़ हो गये; "मेरा ख्याल है, मेरे पास मेरा सबसे अच्छा गुण
ईमानदारी ही है," वे बोले।
•
अपने बचपन के दिनों में मैं मैनचेस्टर में कई महीने रहा था। और अब चूंकि
मेरे पास करने को कोई काम नहीं था, मैंने सोचा, जल्दी से एक ट्रिप
मानचेस्टर का लगा लिया जाये और उन जगहों को देखा जाये। मनहूसियत के बावजूद
मानचेस्टर के लिए मेरे मन में रूमानी अपील थी; कोहरे और बरसात की धुंधली
रौशनी की तरह कुछ; शायद ये लंकाशायर की किचन की आग की स्मृति बची रही हो या
शायद वहां के लोगों की भावना काम कर रही हो। इसलिए मैंने एक लिमोज़िन
किराये पर ली और उत्तर की तरफ चल पड़ा।
मॉनचेस्टर जाते समय मैं रास्ते में स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवॉन में रुका। इस जगह
मैं कभी नहीं आया था। मैं शनिवार की रात देर से पहुंचा था और खाना खाने के
बाद यूं ही टहलने के लिए निकला। मैं उम्मीद कर रहा था कि शेक्सपीयर की
कुटिया खोज लूंगा। काली अंधियारी रात थी लेकिन मैं अन्तर्प्रेरणा से एक गली
में मुड़ा और एक घर के बाहर रुक गया, माचिस की तीली जलायी और बोर्ड
देखा,"शेक्सपीयर कॉटेज"! इसमें कोई शक नहीं कि किसी दयालु आत्मा ने, शायद
महाकवि की ही आत्मा ने मुझे रास्ता दिखाया था।
सवेरे आर्चीबाल्ड फ्लॉवर, स्ट्रैटफोर्ड के मेयर होटल में आये और मुझे
शेक्सपीयर की कॉटेज में घुमाया। मैं किसी भी तरह से इस कॉटेज से महाकवि को
नहीं जोड़ पाता; कि इस तरह का मस्तिष्क कभी यहां रहा होगा या उसकी शुरुआत
यहां से हुई होगी। ये बात अविश्वसनीय सी लगती है। इस बात की आसानी से
कल्पना की जा सकती है कि किसी किसान का बेटा लंदन में बसने चला जाये और
वहां पर एक सफल अभिनेता और थियेटर का मालिक बन जाये; लेकिन उसके लिए महाकवि
और नाटककार बनना, और विदेशी न्यायालयों की, पादरियों की और राजाओं की इतनी
विशद जानकारी रखना मेरे गले से नीचे से नहीं उतरता। मुझे इस बात की परवाह
नहीं है कि शेक्सपीयर की रचनाएं किसने लिखीं, बेकन ने, साउथम्पटन ने या
रिचमण्ड ने, लेकिन मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकता कि वह स्ट्रैटफोर्ड का
छोकरा था। उन रचनाओं को जिसने भी लिखा, उसका राजसी नज़रिया था। व्याकरण के
लिए उसका बिल्कुल भी परवाह न करना उसके राजसी नज़रिये का, ईश्वरीय मस्तिष्क
ही परिचायक हो सकता है। इसके अलावा, कॉटेज को देख लेने के बाद, उनके
बेसिलसिलेवार बचपन के बारे में स्थानीय रूप के छिटपुट जानकारी पा लेने के
बाद और उनके भदेस नज़रिये के बारे में पता चलने के बाद मैं इस बात पर
विश्वास ही नहीं कर सकता कि उनका इस तरह से कायान्तरण हुआ होगा कि वे अब तक
के सबसे बड़े कवि बन गये। कितने भी महान रचनाकार की कृतियों से आप गुज़रें,
आपको उनकी विनम्र शुरुआत के चिह्न कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं लेकिन
शेक्सपीयर में उनकी ज़मीन के निशान कहीं नहीं नज़र आते।
स्ट्रैटफोर्ड से मैं मोटर में मानचेस्टर की तरफ चला और दोपहर को लगभग तीन
बजे पहुंचा। रविवार का दिन था और मानचेस्टर सुनसान नज़र आ रहा था। गलियों
में एक भी आदमी चलता फिरता नज़र नहीं आ रहा था। इसलिए मैं खुशी खुशी अपनी
कार में वापिस आया और ब्लैकबर्न के अपने रास्ते पर चल दिया।
शरलोक होम्स नाटक के साथ एक बच्चे के रूप में यात्राएं करते हुए ब्लैकबर्न
शहर मेरी पंसदीदा जगह हुआ करती थी। मैं एक छोटे से पब में रहा करता था और
मुझे खाने और रहने की सुविधा चौदह शिलिंग प्रति सप्ताह की दर से मिली हुई
थी। जब मैं खाली होता तो उनकी छोटी-सी बिलियर्ड मेज पर खेला करता।
बिलिंगटन, इंगलैंड के जल्लाद भी अक्सर उस जगह पर आया करते और मैं ये शेखी
बघारा करता था कि मैंने उनके साथ बिलियर्ड्स खेली है।
जिस वक्त हम ब्लैकबर्न में पहुंचे, हालांकि अभी पांच ही बजे थे लेकिन काफी
अंधेरा हो चला था। मुझे अपना पब मिल गया और मैंने बिना पहचान में आये एक
ड्रिंक लिया, पब के मालिक बदल चुके थे लेकिन मेरी पुरानी दोस्त बिलियर्ड्स
की मेज अभी भी वहीं थी।
इसके बाद मैं अंधेरे में रास्ता तलाशता हुआ बाजार के चौराहे पर पहुंचा।
वहां तीन चार एकड़ का इलाका था और इसे रौशन करने के लिए तीन या चार स्ट्रीट
लैम्प ही काफी होते। वहां पर कई समूहों में लोग राजनैतिक वक्ताओं को सुन
रहे थे। यह वह वक्त था जब इंगलैंड में मंदी की बुरी हालत थी। मैं एक समूह
से दूसरे समूह में जाता रहा और उनके भाषण सुनता रहा। कुछ वक्ता तीखेपन से
और कड़ुवाहट घोलते हुए बोल रहे थे; एक वक्ता समाजवाद की बात कर रहा था,
दूसरा साम्यवाद की विरुदावली गा रहा था और तीसरा डगलस योजना की बात कर रहा
था जो दुर्भाग्य से इतनी जटिल थी कि औसत कामगार के पल्ले ही नहीं पड़ रही
थी। बैठक के बाद जो छोटे छोटे समूह बन गये थे, उन्हें सुनते हुए मैं हैरान
हुआ कि एक पुराना विक्टोरिया कालीन कन्जर्वेटिव पार्टी का आदमी अपने विचार
व्यक्त कर रहा था। उसने कहा,"इंगलैंड के साथ मुसीबत ये है कि बाहरी मदद से
इंगलैंड बरबाद हो रहा है।" उस अंधेरे में मैं अपनी दो कौड़ी की राय देने से
अपने आपको नहीं रोक पाया, इसके लिए ज़ोर से बोल पड़ा,"बिना बाहरी मदद के
इंगलैंड ही नहीं रहेगा"। मेरी बात के समर्थन में कई लोगों ने हैय, हैय करके
आवाज़ उठायी।
राजनैतिक नज़रिया पागलपन से भरा था। इंगलैंड में लगभग चालीस लाख लोग
बेरोजगार थे और ये संख्या बढ़ती जा रही थी। इसके बावजूद लेबर पार्टी के पास
कंजर्वेटिव पार्टी से अलग हट कर देने के लिए कुछ भी नहीं था।
मैं वूलविच की तरफ निकल गया और वहां पर मिस्टर कनिंघम रीड का चुनावी भाषण
सुना। वे उदारवादी प्रत्याशी की तरफ से बोल रहे थे। हालांकि वे राजनैतिक
कुतर्क के बारे में बहुत कुछ बोल रहे थे, उन्होंने कोई वायदा नहीं किया और
न ही उस चुनाव क्षेत्र पर कोई प्रभाव ही छोड़ा। मेरे पास ही बैठी एक युवा
कॉकेनी लड़की चिल्लायी,"इस बकवास को तो आप रहने ही दीजिये। आप हमें ये
बताइए कि चालीस लाख बेरोज़गारों के लिए आप क्या करने जा रहे हैं। उसके बाद
ही हम तय करेंगे कि आपकी पार्टी को वोट दिया जाये या नहीं।"
अगर वह लड़की आम राजनैतिक कार्यकर्ता का उदाहरण थी तो इस बात की उम्मीद थी
कि लेबर पार्टी चुनाव जीत जाती। मैंने ये सोचा लेकिन मैं गलती पर था।
रेडियो पर स्नोडेन के भाषण को सुन लेने के बाद ये कन्जर्वेटिव वालों के लिए
रुख बदल देने वाला मामला था और स्नोडेन के लिए अमीरों का पद। इस तरह से
मैंने जब इंगलैंड छोड़ा तो कन्जर्वेटिव पार्टी आ रही थी और जब अमेरिका
पहुंचा तो वहां की कन्जर्वेटिव पार्टी की सरकार बाहर का रुख कर रही थी।
•
छुट्टियों का सबसे बड़ा मज़ा खालीपन होता है। मैं यूरोप के रिजार्टस् पर
बहुत दिनों तक भटकता रहा था। और मैं जानता था, क्यों? मेरे पास कोई मकसद
नहीं था और कुंठित था। फिल्मों में आवाज़ के आ जाने के बाद मैं अपनी भावी
योजनाओं के बारे में तय नहीं कर पा रहा था। हालांकि सिटी लाइट्स बहुत सफल
फिल्म रही थी और उसने उस वक्त की सवाक फिल्मों की तुलना में अधिक कारोबार
किया था, मैंने सोचा कि एक और मूक फिल्म बनाना अपने हाथ बांध लेने जैसा
होगा और मेरे मन में यह डर भी बैठा हुआ था कि मुझ पर पुराने फैशन का होने
का ठप्पा लग जायेगा। हालांकि एक अच्छी मूक फिल्म अधिक कलात्मक होती। मुझे
ये बात स्वीकार करनी पड़ी कि आवाज में चरित्र अधिक जीवंत हो उठते हैं।
बीच बीच में मैं सवाक फिल्म बनाने की संभावनाओं के बारे में सोचने लगता।
लेकिन इस विचार से ही मुझे कोफ्त होने लगती क्योंकि मैं इस बात को जानता था
कि मैं वहां पर अपनी मूक फिल्मों की उत्कृष्टता को कभी भी हासिल नहीं कर
पाऊंगा। इसका मतलब ये होता कि मुझे अपने ट्रैम्प चरित्र को हमेशा के लिए
छोड़ देना पड़ता। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि ट्रैम्प बात भी तो कर सकता
है। इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, क्योंकि जहां उसने पहला शब्द
बोला कि वह एकदम दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित हो जायेगा। इसके अलावा, वह वह
सांचा, वह मैट्रिक्स, जिसमें उसका जन्म हुआ था वह उतना ही चुप्पा था जिस
तरह के चीथड़े वह पहनता था।
ये ही उदास करने वाले ख्याल थे कि जो मेरी छुट्टियों को बढ़ाये जा रहे थे।
लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे लगातार कोंचती रहती थी कि "हॉलीवुड वापिस चलो और
काम करो!"
•
उत्तरी इंगलैण्ड की अपनी ट्रिप के बाद मैं लंदन में कार्लटन में लौटा और
न्यू यार्क होते हुए कैलिफोर्निया वापिस जाने के लिए आरक्षण आदि करवाने के
बारे में सोचने लगा। तभी सेंट मौरिट्ज से आये डगलस फैयरबैंक्स के तार ने
मेरी योजना को ही बदल डाला। तार में लिखा था,"सेंट मौरिट्ज चले आओ। हम
तुम्हारे आगमन पर नये हिमपात का आदेश दे देंगे। तुम्हारा इंतज़ार रहेगा।
प्यार, डगलस।"
मैंने अभी तार पढ़ा ही था कि दरवाजे पर हल्की सी ठक ठक हुई। मैंने सोचा कि
वेटर होगा इसलिए कह दिया, "आ जाओ। इसके बजाये, कोटे द'अजूर वाली मेरी महिला
मित्र का चेहरा नज़र आया। मैं हैरान हुआ, चिड़चिड़ाया और हार मान ली, "आ
जाओ।" मैंने ठंडेपन से कहा।
हम हैरोड्स में शॉपिंग के लिए गये और स्कीइंग का साजो-सामान खरीदा। तब हम
बाँड स्ट्रीट में ज्वेलरी की दुकान में गये और एक ब्रेसलेट खरीदा। ब्रेसलेट
पा कर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। एक या दो दिन की देरी से हम सेंट मॉरिट्ज
पहुंचे। वहां डगलस फेयरबैंक्स को देख कर मेरा सीना चौड़ा हो गया। हालांकि
डगलस भी अभी तक मेरी ही तरह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थे, हम दोनों ने
ही इस बारे में कोई बात नहीं की। वे अकेले थे। मेरा ख्याल है वे और मैरी
अलग हो चुके थे। अलबत्ता, स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ों पर मिलने में हमारी
उदासी छू मंतर हो गयी।
हम एक साथ स्कीइंग करते रहे। कम से कम एक साथ स्कीइंग करना सीखा तो सही।
भूतपूर्व जर्मन राजकुमार, कैसर के पुत्र भी उसी होटल में थे लेकिन मैं उनसे
कभी नहीं मिला। हालांकि अगर हम दोनों कभी एक ही लिफ्ट में होते तो मैं
मुस्कुरा भर देता और मुझे अपनी कॉमेडी शोल्डर आर्म्स की याद आ जाती जिसमें
राजकुमार को एक कॉमेडी चरित्र के रूप में पेश किया गया था।
सेंट मारिट्ज में ही रहते हुए मैंने अपने भाई सिडनी को भी बुलवा लिया। अब
चूंकि बेवरली हिल्स लौटने की कोई हड़बड़ी नहीं थी, मैंने तय किया कि पूर्व
की ओर से होते हुए कैलिफोर्निया लौटा जाये। सिडनी इस बात के लिए सहमत हो
गया कि वह जापान तक मेरा साथ देगा।
हम नेपल्स के लिए चले। वहां मैंने अपनी महिला मित्र को गुडबाय कहा। अब आंसू
नहीं थे। मैंने सोचा कि उसने स्थितियों को स्वीकार कर लिया था और कुछ हद तक
राहत महसूस कर रही थी। क्योंकि स्विट्जरलैण्ड की यात्रा में हमारे आपसी
आकर्षण के सारे रसायन अब कुछ हद तक मंद हो चुके थे और इस बात को हम दोनों
ही जानते थे। इसलिए हम अच्छे दोस्तों की तरह विदा हुए। जैसे ही नाव चली, वह
तटबंध पर मेरे ट्रैम्प की नकल करते हुए चल रही थी।
तभी मैंने उसे आखरी बार देखा था।
अध्याय
: 23 - 24
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