मेरी आत्म कथा
चार्ली चैप्लिन
अध्याय :
चार
1899 बरस गलमुच्छों का बरस था। गलमुच्छों वाले राजा, राजनयिक,
सैनिक और नाविक, क्रूगर, सेलिसबरी, रसोइये, कैसर, और क्रिकेट खिलाड़ी।
दिखावे और शोशेबाजी का वाहियात बरस। बेइंतहा अमीरी और बेइंतहा गरीबी का
बरस। कार्टून और प्रेस, दोनों की शून्यता से भरे राजनैतिक हठधर्मिता से भरे
बरस। लेकिन इंगलैंड को कई धक्के और बदमगज़ियां सहनी थीं। अफ्रीकी ट्रांसवाल
में कुछ बोअर किसान बिला वज़ह युद्ध छेड़े हुए थे और बड़े-बड़े पत्थरों के
और चट्टानों के पीछे से शानदार निशाने लगाते हुए हमारे लाल कोट धारी
सैनिकों को मार रहे थे। तब हमारे युद्ध कार्यालय वालों के दिमाग की बत्ती
जली और उन्होंने तुरत-फुरत लाल को खाकी में बदल दिया। अगर बोअर उन्हें इस
रूप में मारना चाहें तो भले ही मार सकते हैं।
मुझे युद्ध की थोड़ी बहुत ही जानकारी थी और ये मुझे मिली थी देश भक्ति के
गीतों, विविध मंचों पर हास्यमय प्रस्तुतियों और सिगरेट की डिब्बियों पर छपी
जनरलों की तस्वीरों के माध्यम से। अलबत्ता, हमारे दुश्मन खत्म न होने वाले
विलेन थे। कभी सुनने में आता कि बोअर लोगों ने लेडी स्मिथ को घेर लिया है
तो इंगलैंड मेफकिंग को मुक्त करा लेने के बाद खुशी के मारे पागल हो गया है।
आखिरकार हम जीत ही गये, बेशक ये जीत भी परेशान ही करने वाली थी। अलबत्ता,
मैं ये सारी बातें सबसे सुनता था लेकिन मां इस बारे में कुछ नहीं बताती थी।
उसने कभी भी लड़ाई का ज़िक्र नहीं किया। उसके पास लड़ने के लिए खुद की
लड़ाइयां थी।
•
सिडनी अब चौदह बरस का हो चला था। उसने स्कूल छोड़ दिया था और उसे स्ट्रैंड
डाक घर में तार वाले के रूप में काम मिल गया था। सिडनी की पगार और मां की
सिलाई मशीन की वज़ह से होने वाली कमाई से हमारा घर किसी तरह ठीक-ठाक चल रहा
था लेकिन इसमें मां का योगदान मामूली ही था। वह मज़दूरों का खून चूसने वाली
किसी दुकान के लिए काम करती थी और उसे वहां पर ब्लाउज सीने के एवज में एक
दर्जन ब्लाउज के लिए एक शिलिंग और छ: पेंस मिलते थे। हालांकि उसे डिजाइन
पहले से ही कट कर मिला करते थे, फिर भी एक दर्जन ब्लाउज सीने में उसे पूरे
बारह घंटे लग जाया करते थे। मां का रिकार्ड था एक हफ्ते में चौदह दर्जन
ब्लाउज सी कर देने का। इससे उसे छ: शिलिंग और नौ पेंस की कमाई हुई थी।
अक्सर रात को मैं अपनी दुछत्ती में लेटा जागता रहता और उसे अपनी मशीन पर
झुके काम करते देखा करता। उसका सिर तेल की कुप्पी की रौशनी में झुका रहता
और उसका चेहरा नरम छाया में नज़र आता। उसके होंठ तनाव के कारण थोड़े से
खुले होते और वह अपनी मशीन पर तेज़ी से सिलाई का काम करती रहती। और उसके इस
काम की उबा देने वाली भिन-भिन की आवाज की वजह से मुझे झपकी आ जाती। वह जब
भी रात-बेरात इस तरह से देर तक काम करती थी तो उसके सामने एक ही मकसद होता
- पैसों की अगली किसी न किसी किस्त की मीयाद सिर पर होती। हमेशा किस्तों की
अदायगी की समस्या सिर पर खड़ी होती।
अब एक और संकट सिर पर आ खड़ा हुआ था। सिडनी को कपड़ों के नये जोड़े की
ज़रूरत थी। वह अपनी टेलिग्राफ वाली यूनिफार्म हफ्ते के सभी दिन, यहां तक कि
रविवारों को भी डाटे रहता था और आखिर एक ऐसा दिन भी आया कि उसके यार दोस्त
उसे इस यूनिफार्म को लेकर छेड़ने लगे। इस वज़ह से वह दो हफ्ते तक, उस वक्त
तक घर पर ही रहा जब तक मां के पास उसके लिए नीले सर्ज का सूट खरीदने लायक
पैसे नहीं हो गये। उसने किसी तरह से अट्ठारह शिलिंग का बंदोबस्त कर ही लिया
था। इससे हमारी अर्थव्यवस्था में भारी दिवालियेपन की हालत आ गयी थी। इसलिए
मां को मजबूरन हर सोमवार को, जब सिडनी टेलिग्राफ आफिस चला जाता था, सूट
गिरवी रखना पड़ता था। उसे सूट के लिए सात शिलिंग मिलते थे। और हर शनिवार को
सूट छुड़वा लिया जाता ताकि सिडनी उसे हफ्ते की छुट्टियों के दौरान पहन सके।
यह साप्ताहिक व्यवस्था पूरे साल तब तक चलती रही जब तक सूट फट कर तार तार
नहीं हो गया। तभी ये झटका लगा।
सोमवार की सुबह मां हमेशा की तरह गिरवी वाली दुकान पर गयी तो दुकानदार
हिचकिचाया,"माफ करना, मिसेज चैप्लिन, लेकिन अब हम आपको सात शिलिंग उधार
नहीं दे सकते।"
मां हैरान रह गयी थी,"लेकिन क्यों?" उसने पूछा था।
"अब इसमें अच्छा-खासा जोखिम है। पैंट तार-तार हो रही है। देखो तो ज़रा,"
दुकानदार पैंट की सीट पर हाथ रखते हुए बोला,"आप उसके आर-पार देख सकती हैं।"
"लेकिन इन कपड़ों को अगले हफ्ते छुड़वा लिया जायेगा।" मां ने कहा था।
गिरवी वाले ने सिर हिलाते हुए कहा,"बहुत हुआ तो मैं आपको कोट और वेस्टकोट
के लिए तीन शिलिंग दे सकता हूं।"
मां कभी भी रोती नहीं थी लेकिन इस तरह के अचानक आये धक्के को सह न पाने के
कारण वह आंसूं बहाती घर वापिस आयी। पूरा हफ्ता घर की गाड़ी खींचने के लिए
उसे इन सात शिलिंग का ही सहारा था।
इस बीच मेरे खुद के कपड़े, कम से कम कहूं तो चीथड़े हो रहे थे। हम अष्टम
लंकाशायर बाल गोपालों की जो पोशाक थी, उसकी वाली मेरी पोशाक अब तार तार हो
चली थी। जहां-तहां थिगलियां लगी हुई थीं। कुहनी पर, पैंट पर, जूतों पर और
मोजों पर। और अपनी इसी हालत में मैं स्टॉकवैल के अपने खास नन्हें दोस्त से
जा टकराया। मुझे नहीं पता था कि वह केनिंगटन रोड पर क्या कर रहा था, लेकिन
उसे देख कर मैं बहुत परेशानी में पड़ गया था। हालांकि वह मुझसे बहुत प्यार
से मिला लेकिन मैं अपनी खस्ता हालत के कारण उससे आंखें भी नहीं मिला पर पा
रहा था। अपनी परेशानी को छुपाने के लिए मैंने अपना आजमाया हुआ तरीका अपनाया
और अपनी बेहतरीन, सधी हुई आवाज में उसे बताया कि चूंकि मैं बढ़ईगिरी की
अपनी कक्षा से आ रहा हूं इसलिए मैं ये सब पुराने कपड़े पहने हुए हूं।
लेकिन उसे मेरी इस सफाई में ज़रा सी भी दिलचस्पी नहीं थी। वह जैसे आसमान से
गिरा लग रहा था और अपनी हैरानी-परेशानी को छुपाने के लिए दायें बायें देखने
लगा। उसने तब मां के बारे में पूछा।
मैंने तत्काल जवाब दिया कि मां तो आजकल गांव गयी हुई है और तब मैंने उसी की
तरफ ध्यान देना शुरू किया,"और सुनाओ, आजकल वहीं रह रहे हो क्या?"
"हां।" उसने मुझे ऊपर से नीचे तक इस तरह से घूरते हुए देखा मानो मैंने कोई
अपराध कर दिया हो।
"अच्छा, तो मैं जरा चलूंगा," मैंने अचानक कह कर अपनी जान छुड़ायी।
वह सहर्ष मुस्कुराया और अच्छा विदा कह कर चला गया। वह एक तरफ चला और मैं
उसकी विपरीत दिशा में बढ़ा। मैं गुस्से और शर्म के कारण गिरते पड़ते भागा
जा रहा था।
•
मां हमेशा कहा करती थी,"तुम हमेशा अपनी मर्यादा का त्याग कर सकते हो, लेकिन
हो सकता है तुम्हें कुछ भी न मिले।" लेकिन वह खुद ही इस सूत्र वाक्य का
पालन नहीं करती थी और अक्सर मेरी शिष्टता के बोध को ठेस लगती थी। एक दिन जब
मैं ब्राम्पटन अस्पताल से लौट रहा था तो मैंने देखा कि मां कुछ सड़कछाप
लड़कों को धकिया रही थी क्योंकि वे एक पागल औरत को सता रहे थे। उस औरत ने
बुरी तरह से गंदे चीथड़े लपेटे हुए थे और खुद भी गंदी थी। उसका सिर मुंडा
हुआ था और ये उन दिनों असामान्य बात समझी जाती थी। लड़के उस पर हँस रहे थे
और एक दूसरे को उस पर धकिया रहे थे। और उसे छू नहीं रहे थे मानो उसे छू
लेने से उन्हें गंदगी लग जायेगी। वह दुखियारी तब तक हिरणी की तरह सड़क के
बीचों-बीच खड़ी रही जब तक जा कर मां ने उसे उन दुष्ट लड़कों से छुड़वा नहीं
लिया। तब उस औरत के चेहरे पर पहचान के चिह्न उभरे। उस औरत ने कमज़ोर आवाज
में मां को उसके स्टेज के नाम से पुकारा,"तुम मुझे नहीं पहचानती क्या? मैं
इवा लेस्टॉक हूं।"
मां ने उसे तुंत पहचान लिया। वह मां के साथ की वैराइटी स्टेज की पुरानी
दोस्त थी।
मां की इस बात से मैं इतना परेशान हो गया कि आगे बढ़ गया और आगे कोने पर जा
कर मां का इंतज़ार करने लगा। बच्चे मेरे पास से गुज़र गये। वे फब्तियां कस
रहे थे और खी खी करके हँस रहे थे। मैं गुस्से से लाल पीला हो रहा था। मैं
ये देखने के लिए मुड़ा कि मां को क्या हो गया है। हे भगवान, वह औरत मां के
साथ लग ली थी और अब दोनों मेरी तरफ चली आ रही थीं।
मां ने कहा,"तुम्हें नन्हें चार्ली की याद है?"
"तुम याद की बात करती हो, जब वो ज़रा सा था तो मैंने कितनी बार उसे अपनी
बांहों में उठाया है।" उस औरत से लाड़ से कहा।
ये विचार ही लिजलिजे थे क्यों कि वह औरत इतनी गंदी और घिनौनी थी। और जब हम
चले आ रहे थे तो मुझे इस बात से खासी कोफ्त हो रही थी कि लोग मुड़ मुड़ कर
हम तीनों को देख रहे थे।
मां उसे वैराइटी के दिनों से 'डैशिंग इवा लैस्टाक' के नाम से जानती थी। वह
उन दिनों आकर्षक और सदाबहार हुआ करती थी, मां ने मुझे ऐसा बताया था। उस औरत
ने मां को बताया कि वह बीमार थी और अस्पताल में थी और अस्पताल छोड़ने के
बाद से वह मेहराबों के तले और सैल्वेशन आर्मी के रैन बसेरों में ही सो रही
थी।
सबसे पहले तो मां ने उसे स्नान के लिए सार्वजनिक स्नानघर में भेजा और उसके
बाद, मेरे आतंक की सीमा न रही जब मां उसे अपने साथ हमारी दुछत्ती पर ले
आयी। उसकी इस हालत के पीछे उसकी बीमारी ही थी या कोई और कारण, मैं नहीं जान
पाया। इससे वाहियात बात और क्या हो सकती थी कि वह सिडनी की आराम कुर्सी
वाले बिस्तर में सोयी थी। अलबत्ता, मां ने उसे वे कपड़े निकाल कर दिये जो
वह दे सकती थी और उसे दो शिलिंग भी उधार दिये। तीन दिन बाद वह चली गयी और
वही आखिरी बार थी जब हमने `डैशिंग इवा लैस्टाक ' के बारे में देखा या सुना
था।
•
पिता के मरने से पहले मां ने पाउनाल टैरेस वाला घर छोड़ दिया था और अपनी एक
सखी, गिरजा घर की सदस्या और समर्पित ईसाई महिला मिसेज टेलर के घर में एक
कमरा किराये पर ले लिया था। वे एक छोटे कद की, लगभग पचास बरस की चौड़े बदन
की महिला थीं। उनका जबड़ा चौकोर था और पीला झुर्रियोंदार चेहरा था। उन्हें
गिरजा घर में देखते समय मैंने पाया था कि उनके दांत नकली थे। जब वे गातीं
तो उनके दांत उनके ऊपरी जबड़े से जीभ पर गिर जाते। बहुत ही मोहक नज़ारा
होता।
उनका व्यवहार प्रभावशाली था और उनके पास अकूत ताकत थी। उन्होंने मां को
अपनी ईसाइयत की छत्र-छाया में ले लिया था और अपने बड़े से घर की दूसरी
मंज़िल पर सामने की तरफ वाला कमरा बहुत ही वाजिब किराये पर दे दिया था। ये
घर कब्रिस्तान के पास था।
उनके पति चार्ल्स डिकेंस के मिस्टर पिकविक की हूबहू प्रतिकृति थे और उनके
घर की सबसे ऊपर वाली मंज़िल पर गणित में काम आने वाले रूलर बनाने का अपना
कारखाना था। छत पर आसमानी रौशनी आती और मुझे वह जगह बिलकुल स्वर्गतुल्य
लगती। वहां बहुत अधिक शांति होती। मैं अक्सर मिस्टर टेलर को काम करते हुए
देखता जब वे अपने मोटे मोटे कांच वाले चश्मे से और मैग्नीफाइंग ग्लास से
गहराई से देख रहे होते और स्टील का कोई स्केल बना रहे होते और इंच के भी
पांचवें हिस्से को नाप रहे होते। वे अकेले काम करते और मैं अक्सर उनके छोटे
मोटे काम कर दिया करता।
मिसेज टेलर की एक ही इच्छा थी कि वे किसी तरह अपने पति को ईसाई धर्म की ओर
मोड़ दें। उनकी धार्मिक नैतिकता के हिसाब से तो उनके पति पापी ही थे। उनकी
बेटी जो शक्ल-सूरत में ठीक अपनी मां पर गयी थी, सिर्फ उसका चेहरा कम सूजा
हुआ था और हां, वह काफी जवान भी थी, आकर्षक होती अगर उसका व्यवहार ढीठपने
का न होता और उसके तौर-तरीके आपत्तिजनक न होते। अपने पिता की तरह वह भी
चर्च नहीं जाती थी। लेकिन मिसेज टेलर ने उन दोनों को धर्म की शरण में लाने
की उम्मीद कभी भी नहीं छोड़ी। बेटी अपनी मां की आंखों का तारा थी लेकिन
मेरी मां की आंखों का नहीं।
एक दोपहरी को, जब मैं ऊपर वाली मंज़िल पर मिस्टर टेलर को काम करते हुए देख
रहा था, मैंने नीचे से मां और मिसेज टेलर के बीच कहा-सुनी की आवाज़ सुनी।
मिसेज टेलर बाहर थीं। मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे शुरू हुआ लेकिन वे दोनों
एक दूसरे पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थीं। जब मैं नीचे सीढ़ियों पर पहुंचा
तो मां सीढ़ियों के जंगले पर झुकी हुई थी,"तुम अपने आपको समझती क्या हो?
औरत जात की लेंड़ी?"
"ओह," बेटी चिल्लायी, "एक ईसाई औरत की जुबान से कितने शानदार फूल झर रहे
हैं?"
"चिंता मत करो," मां ने तुरंत जवाब दिया,"ये सब बाइबिल में है। ओल्ड
टेस्टामेंट का पांचवां खंड, अट्ठाइसवां अध्याय, सैंतीसवां पद, हां, वहां
इसके लिए एक दूसरा शब्द दिया हुआ है। बस, तुम्हें लेंड़ी शब्द ही सूट
करेगा।"
इसके बाद हम अपने पाउनाल टैरेस में वापिस चले आये।
•
केनिंगटन रोड पर थ्री स्टैग्स बार इस तरह की जगह नहीं थी जहां मेरे पिता
अक्सर जाया करते लेकिन एक बार वहां से गुज़रते हुए मुझे पता नहीं ऐसा क्यों
लगा कि अंदर झांक कर देखना चाहिये कि कहीं वे भीतर तो नहीं बैठे हैं। मैंने
सैलून का दरवाजा कुछ ही इंच खोला था कि वे वहां बैठे हुए मुझे दिखायी दिये।
वे एक कोने में बैठे हुए थे। मैं वापिस लौटने ही वाला था कि उनके चेहरे पर
चमक उभरी और उन्होंने मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं इस तरह के
स्वागत से हैरान था, क्योंकि वे कभी भी दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे।
वे बहुत बीमार लग रहे थे। आंखें उनकी भीतर को धंसी हुई थीं और उनका शरीर
सूज कर बहुत बड़ा लग रहा था। उन्होंने अपना एक हाथ नेपोलियन की तरह अपने
वेस्ट कोट में टिका रखा था मानो अपनी सांस की तकलीफ पर काबू पाना चाहते
हों। उस शाम वे बेहद बेचैन थे। वे मां और सिडनी के बारे में पूछते रहे और
मेरे चलने से पहले उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरा और पहली बार मुझे
चूमा। यही वह आखिरी बार था जब मैंने उन्हें जीवित देखा।
तीन सप्ताह के बाद उन्हें सेंट थॉमस अस्पताल में ले जाया गया। पिताजी को
वहां ले जाने के लिए उन लोगों को पिताजी को शराब पिलानी पड़ी थी। जब पिताजी
को पता चला कि वे कहां हैं तो वे बुरी तरह से लड़े झगड़े। लेकिन उनकी हालत
मर रहे आदमी जैसी थी। वे मर रहे थे। हालांकि वे अभी भी बहुत जवान थे, मात्र
सैंतीस बरस के, वे जलोदर रोग के कारण मर रहे थे। उन लोगों ने पिताजी के
घुटने से चार गैलन पानी निकाला था।
मां उन्हें देखने के लिए कई बार गयी और हर मुलाकात के बाद वह और ज्यादा
उदास हो जाती। वह बताती कि पिता फिर उसके पास वापिस आ कर अफ्रीका में नये
सिरे से ज़िंदगी शुरू करना चाहते हैं। मैं इस तरह की संभावना से ही खिल
उठता। मां सिर हिलाती, क्योंकि वह बेहतर जानती थी,"वे ये बात सिर्फ इसलिए
कह रहे थे क्योंकि वे अच्छे दिखना चाहते थे।" मां ने बताया था।
एक दिन जब वह अस्पताल से वापिस आयी तो रेवरेंड जॉन मैकनील एवेंजलिस्ट की
बात सुन कर बहुत खफा थी। जब मां पिताजी से मिलने गयी थी तो तो वे पिता से
कह रहे थे,"देखो, मिस्टर चार्ली, जब भी मैं तुम्हारी तरफ देखता हूं तो मुझे
एक पुरानी कहावत ही याद आती है कि जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा।"
"मरते हुए आदमी को दिलासा देने के लिए आप कितनी अच्छी वाणी बोल रहे हैं,"
मां ने पलट कर जवाब दिया था। कुछ ही दिन बाद पिताजी की मृत्यु हो गयी थी।
अस्पताल वाले जानना चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा। मां के पास
तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी इसलिए उसने वैराइटी आर्टिस्ट सहायता निधि का
नाम सुझाया। ये थियेटर वालों की एक चैरिटी संस्था थी। इस सुझाव से परिवार
के चैप्लिन कुनबे वालों में अच्छा खासा हंगामा मच गया। चैप्लिन परिवार का
आदमी खैरात के पैसों से दफनाया जाये, ये बात वे कैसे गवारा कर सकते थे। उस
समय पिताजी के एक छोटे भाई अल्बर्ट लंदन में ही थे। वे अफ्रीका से आये हुए
थे। उन्होंसने पिताजी को दफनाने का खर्चा उठाने का जिम्मा उठाया।
ताबूत पर सफेद साटन का कफन लपेटा गया था और पिताजी के चेहरे के चारों उसके
तरफ डेज़ी के नन्हें नन्हें सफेद फूलों से सजाया गया था। मां का कहना था कि
वे इतने सादगी-भरे और मन को छू लेने वाले लग रह थे। मां ने पूछा था कि ये
फूल किसने रखवाये हैं। वहां पर मौजूद कर्मचारी ने बताया था कि सुबह सुबह एक
औरत एक छोटे-से बच्चे के साथ आयी थी और ये फूल रख गयी थी। वह लुइस थी।
पहली गाड़ी में मां, अंकल अल्बर्ट और मैं थे। टूटिंग तक की यात्रा तनाव
पूर्ण थी क्योंकि मां इससे पहले कभी भी अंकल अल्बर्ट से नहीं मिली थी। वह
कुछ कुछ ठाठ-बाठ वाले आदमी थे और अभिजात्य संस्कारों वाले शख्स थे। हालांकि
वे बहुत विनम्र थे, उनका व्यवहार बर्फ की तरह ठंडा था। उनकी ख्याति एक अमीर
आदमी के रूप में थी। ट्रांसवाल में घोड़ों के उनके रैंच थे और बोअर युद्ध
के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार को घोड़े उपलब्ध कराये थे।
सर्विस के दौरान बरसात होने लगी थी। कब्र खोदने वालों ने फटाफट ताबूत पर
मिट्टी के लोंदे फेंके। इससे बहुत ही क्रूर किस्म की आवाज हो रही थी। ये
भयावह नज़ारा था और कुल मिला कर बेहद डरावना था इसलिए मैं रोने लगा। इसके
बाद रिश्तेदारों ने अपने साथ लायी मालाएं और फूल उस पर डाले। मां के पास
डालने के लिए कुछ भी नहीं था, इसलिए उसने मेरा बेशकीमती काले बार्डर वाला
रुमाल लिया और मेरे कान में फुसफुसायी,"मेरे लाल, ये हम दोनों की तरफ से।"
इसके बाद चैप्लिन परिवार रास्ते में एक पब में खाना खाने के लिए रुक गया और
उन्होंने भीतर जाने से पहले हमसे बहुत विनम्रता से पूछा कि हमें कहां छोड़
दिया जाये। और हमें घर छोड़ दिया गया था।
जब हम घर पहुंचे तो घर में खाने को एक दाना भी नहीं था। बीफ के थोड़े शोरबे
की एक प्लेट रखी थी। मां के पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसके पास सिर्फ
दो पेंस थे जो उसने सिडनी को खाने का इंतज़ाम करने के लिए दे दिये थे।
पिताजी की बीमारी के बाद उसने बहुत कम काम हाथ में लिया था इसलिए अब हफ्ता
खत्म होने को था और टेलिग्राफ बाय के रूप में सिडनी की सात शिलिंग हफ्ते की
पगार पहले ही खत्म हो चुकी थी। अंतिम संस्कार के बाद हमें भूख लगी हुई थी।
सौभाग्य से रद्दी वाला बाहर से गुजर कर जा रहा था। मां के पास तेल का एक
पुराना स्टोव था जिसे मां ने बहुत संकोच के साथ अधपेनी में बेचा और उस
अधपेनी की ब्रेड लायी जिसे हमने उस शोरबे के साथ खाया।
मां चूंकि पिता की कानूनन विधवा थी इसलिए उसे अगले दिन बताया गया कि वह
अस्पताल जा कर उनका सामान वगैरह ले ले। इस सामान में एक काला सूट था जिसमें
खून के दाग लगे हुए थे। एक जांघिया था, एक कमीज, एक काली टाई, एक पुराना
ड्रेसिंग गाउन, घर पर पहनने की कुछ पुरानी चप्पलें, जिनमें पंजों की तरफ
कुछ ठुंसा हुआ था। जब मां ने वह बाहर निकाला तो स्लीपरों में सोने का एक
सिक्का बाहर लुढ़क आया। ये भगवान की भेजी हुई सौगात थी।
हफ्तों तक हम अपने बाजू पर काली क्रेप की पट्टी लगाये रहे। शोक का ये संकेत
भी मेरे लिए फायदेमंद रहा क्योंकि शनिवार की दोपहर के वक्त जब मैं फूल
बेचने के काम धंधे पर निकलता तो मुझे इससे फायदा ही होता। मैंने मां को मना
लिया था कि वह मुझे एक शिलिंग उधार दे दे। मैं सीधे ही फूल बाजार गया और
नार्सीसस के फूलों के दो बंडल खरीदे और स्कूल से आने के बाद मैं उनके
नन्हें-नन्हें बंडल बनाने में जुटा रहा। अगर सब बिक जाते तो मैं सौ प्रतिशत
लाभ कमा सकता था। मैं सैलूनों में जाता जहां मैं अपने संभावित ग्राहक
तलाशता कहता,"नार्सीसिस मैडम, मिस .. .. नार्सीसिस के फूल मिस।" महिलाएं
हमेशा पूछतीं,"कौन था बेटे?" मैं अपनी आवाज फुसफुसाहट के स्तर तक ले आता और
बताता,"मेरे पिता।" और वे मुझे टिप देतीं। मां ये देख कर हैरान रह गयी कि
मैं सिर्फ दोपहर में काम करके पांच शिलिंग कमा लाया था। एक दिन उसने मुझे
झिड़क दिया जब उसने मुझे एक पब से बाहर आते देखा। उस दिन से उसने मेरे फूल
बेचने पर पाबंदी लगा दी। उसका ये मानना था कि बार रूम में जा कर इस तरह से
फूल बेचना उसकी ईसाईयत को कहीं ठेस लगाता था,"दारू पीने से तुम्हारे पिता
मर गये और इस तरह की कमाई से हम पर दुर्भाग्य का ही साया पड़ेगा," उसने
कहा। अलबत्ता, उसने सारी कमाई रख ली थी। उसने फिर कभी मुझे फूल बेचने नहीं
दिये।
•
मुझमें धंधा करने की जबरदस्त समझ थी। मैं हमेशा कारोबार करने की नयी-नयी
योजनाएं बनाने में उलझा रहता। मैं खाली दुकानों की तरफ देखता, सोचता, इनमें
पैसा पीटने का कौन सा धंधा किया जा सकता है। ये सोचना मछली बेचने, चिप्स
बेचने से ले कर पंसारी की दुकान खोलने तक होता। हमेशा जो भी योजना बनती,
उसमे खाना ज़रूर होता। मुझे बस पूंजी की ही ज़रूरत होती लेकिन पूंजी ही की
समस्या थी कि कहां से आये। आखिर मैंने मां से कहा कि वह मेरा स्कूल छुड़वा
दे और काम तलाशने दे।
मैंने कई धंधे किये। पहले मैं एक बिसाती की दुकान में ऊपर के काम करने के
लिए रखा गया। काम करने के बाद मैं तहखाने में खुशी खुशी बैठा रहता, वहां
साबुन, स्टार्च, मोमबत्तियों, मिठाइयों तथा बिस्किटों से घिरा रहता। मैं
सारी की सारी मिठाइयां चख कर तब तक देखता रहा जब तक खुद बीमार नहीं पड़
गया।
इसके बाद मैंने थ्रॉगमोर्टन एवेन्यू में हूल एंड किन्स्ले टेलर, बीमा
डॉक्टरों के यहां काम किया। ये काम मेरे हिस्से में सिडनी की वज़ह से आया
था। उसी ने इस काम के लिए मेरी सिफारिश की थी। मुझे हर हफ्ते के बारह
शिलिंग मिलते थे और मुझे रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करना होता था। इसमें
डॉक्टरों के चले जाने के बाद दफ्तरों को साफ करने की ड्यूटी भी शामिल थी।
रिसेप्शनिस्ट के रूप में मैं बहुत सफल था क्योंकि मैं वहां पर इंतज़ार कर
रहे मरीजों का खूब मनोरंजन करता लेकिन जब दफ्तरों की सफाई का नम्बर आता तो
मेरा दिल डूबने लगता। इस काम में सिडनी बेहतर था। मैं पेशाब के पॉट साफ
करने में बुरा नहीं मानता था, लेकिन दस-दस फुटी खिड़कियों को साफ करना मेरे
लिए आकाशगंगा निकालने जैसा था। इसका नतीजा ये हुआ कि दफ्तर गंदे और धूल भरे
होते चले गये और एक दिन आया जब मुझे विनम्रतापूर्वक बता दिया गया कि मैं इस
काम के लिए बहुत ही छोटा हूं।
जिस वक्त मैंने ये खबर सुनी, मैं अपने आपको संभाल नहीं पाया और रो पड़ा।
डॉक्टर किन्स्ले टेलर, जिन्होंने एक बहुत ही अमीर महिला से शादी की थी और
उन्हें शादी में लेसेन्स्टर गेट पर बहुत बड़ा मकान मिला हुआ था, ने मुझ पर
तरस खाया और मुझसे कहा कि वे मुझे अपने घर में ऊपर के काम के लिए पेजबॉय के
रूप में रखवा देंगे। तुरंत ही मेरा दिल बाग बाग हो गया। किसी निजी घर में
पेजबॉय, और घर भी कैसा, बहुत खूबसूरत। ये अच्छा काम था। इसका कारण ये था कि
मैं घर भर की नौकरानियों का दुलारा बन गया था। वे मुझसे बच्चे की तरह
व्यवहार करतीं और रात को बिस्तर पर जाने से पहले गुड नाइट किस देतीं। अगर
मेरी किस्मत में लिखा होता तो मैं बटलर बन गया होता। मैडम ने मुझसे कहा कि
मैं तहखाने में जा कर उस जगह को साफ करूं जहां पर पैकिंग वाली पेटियों का
ढेर लगा हुआ था और कचरे का अम्बार लगा हुआ था जिसे साफ करना, अलग करना और
फिर से लगाना था। मेरा ध्यान इस काम से उस वक्त बंट गया जब मेरे हाथ में
लगभग आठ फुट लम्बा लोहे का एक पाइप आ गया और मैं उसे बिगुल की तरह बजाने
लगा। जिस वक्त मैं उसके मजे ले रहा था, मैडम अवतरित हुईं और मुझे तीन दिन
का नोटिस दे दिया गया।
मुझे स्टेशनरी की एक दुकान डब्ल्यू एच स्मिथ एंडरसन में काम करने में बहुत
मज़ा आया लेकिन उन्हें जैसे ही पता चला कि मेरी उम्र कम है तो उन्होंने
बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिर मैं एक दिन के लिए ग्लास ब्लोअर बना। मैंने
स्कूल में ग्लास ब्लोइंग के बारे में पढ़ा था और मुझे लगा, ये बहुत ही
रोमांचकारी काम होगा। लेकिन गर्मी मेरे सिर पर चढ़ गयी और मुझे बेहोशी की
हालत में बाहर लाया गया और रेत की ढेरी पर लिटा दिया गया। यहीं पर इसकी
इतिश्री हो गयी। मैं इस इकलौते दिन की पगार लेने भी नहीं गया। इसके बाद
मैंने स्ट्रेकर, पिंटर और स्टेशनर्स के यहां काम किया। मैंने वहां पर झूठ
बोला कि मैं व्हार्फेडेल पिंटिंग मशीन चला सकता हूं। ये बहुत ही बड़ी मशीन
थी। लगभग बीस फुट लम्बी। मैंने इस मशीन को गली से तहखाने में चलते हुए देखा
था और मुझे लगा कि इसे चलाना तो बेहद आसान होगा। एक कार्ड पर लिखा था
व्हार्फेडेल प्रिंटिंग मशीन के लिए कागज़ चढ़ाने वाला लड़का चाहिये। जब
फोरमैन मुझे मशीन के पास लाया तो ये मुझे दैत्याकार सरीखी लगी। इसे चलाने
के लिए मुझे पांच फुट ऊंचे एक प्लेटफार्म पर खड़ा होना पड़ा। मुझे लगा मानो
मैं एफिल टावर के ऊपर खड़ा हूं।
"मारो इसे," फोरमैन ने कहा।
"क्या मारूं?"
मुझे हिचकिचाते देख, वह हँसा,"तो इसका मतलब तुमने व्हार्फेडेल प्रिंटिंग
मशीन पर कभी काम नहीं किया है?"
"मुझे बस, एक मौका दीजिये, मैं एकदम तेजी से इसे चलाना सीख जाऊंगा।"
"इसे मारो" का मतलब था उस दैत्य को शुरू करने के लिए लीवर को खींचो। मशीन
घूमने, चलने और घुरघुराने लगी। मुझे लगा ये मशीन तो मुझे ही निगल जायेगी।
कागज़ बहुत ही बड़े बड़े थे। इतने बड़े कि आसानी से मुझे एक कागज़ में
लपेटा जा सकता था। एक बड़े से गत्ते से मैं कागजों को पंखा करता, उन्हें
कोनों से उठाता, और ठीक वक्त पर मशीन के जबड़ों में धर देता ताकि वह दैत्य
उन्हें निगल जाये, उस पर छापे और दूसरे सिरे पर वापिस उगल दे। पहले दिन तो
मैं उसे इतना घबराया हुआ था कि कहीं ये भूखा दैत्य मुझे ही न चबा जाये।
इसके बावजूद मुझे बारह शिलिंग हफ्ते की पगार पर नौकरी पर रख लिया गया।
•
दिन निकलने से पहले, उन ठंडी सुबहों में काम पर निकलने का अपना ही रोमांच
था। गलियां शांत और सुनसान होतीं। इक्का दुक्का छायाएं लोखार्ट के टीरूम की
मध्यम रौशनी में नाश्ते के लिए आते जाते दिखायी देतीं। ऐसा लगता मानो आप
अपने साथ के लोगों के साथ हैं, उस धुंधलके में गरम चाय पीते हुए और आगे
मुंह बाये खड़े दिन भर के काम के बावजूद क्षणिक राहत पाते हुए। और फिर
प्रिंटिंग का काम इतना उबाऊ भी नहीं था। बस, हफ्ते के आखिर में काम बहुत
करना पड़ता, गिलेटिन के उन लम्बे रोलरों पर से स्याही हटाने का काम करना
पड़ता। इन रोलरों का वजन सौ पौंड से भी ज्यादा होता। बाकी कुछ मिला कर काम
सहन करने योग्य था। अलबत्ता, वहां पर तीन हफ्ते तक काम करने के बाद मुझे
इन्फ्लुंजा ने धर दबोख और मां ने ज़िद की कि मैं वापिस स्कूल की राह पकडूं।
•
सिडनी अब सोलह बरस का हो चला था। एक दिन वह खुश खुश घर आया क्योंकि उसे
अफ्रीका जाने वाले एक जहाज में डोनोवन लाइन पैसेंजर बोट पर बिगुल बजाने
वाले का काम मिल गया था। उसका काम था खाने वगैरह के लिए बुलाने के लिए
बिगुल बजाना। उसने बिगुल बजाना एक्समाउथ ट्रेनिंग कैम्प में सीख लिया था।
अब वह सीखना काम आ रहा था। उसे हर महीने दो पाउंड और दो शिलिंग मिलते और
सेकेंड क्लास में तीन मेजों पर सर्व करने के लिए टिप अलग से मिलती। उसे
जहाज पर जाने से पहले पैंतीस शिलिंग अग्रिम रूप से मिलने वाले थे। तय था वह
ये रकम मां को दे कर जाने वाला था। इस सुखद भविष्य के सपने संजोये हम
चेस्टर स्ट्रीट में एक नाई की दुकान के ऊपर दो कमरे वाले मकान में आ गये।
अपनी ट्रिप से जब सिडनी पहली बार लौटा तो ये मौका उत्सव की तरह था। क्योंकि
उसके पास टिप से कमाये तीन पाउंड से भी ज्यादा की रकम थी और ये चांदी के
थे। मुझे याद है वह अपनी जेबों से बिस्तर पर से अपनी दौलत लुढ़काता जा रहा
था। ये पैसे इतने ज्यादा लगे मुझे जितने मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखे
थे और मैं उन पर से अपने हाथ हटा ही नहीं पा रहा था। मैंने उनकी ढेरियां
लगायीं, चट्टे लगाये और उनके साथ तब तक खेलता रहा जब मां और सिडनी ने आखिर
कह ही दिया कि मैं नदीदा हूं।
क्या तो शान थी। क्या ही मस्ती थी। ये गर्मी के दिन थे और ये हमारे केक और
आइसक्रीम खाने का काल था। इनके अलावा और भी कई विलासिताएं राह देख रही थीं।
हमने नाश्ते में ब्लोटर, किप्पर, हैड्डाक मछली खायीं और चाय केक का आनंद
लिया, और इतवार के दिन बंद और कटलेट खाये।
सिडनी को सर्दी ने जकड़ लिया और वह कई दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहा। मां और
मैं उसकी तीमारदारी करते रहे। तभी ये हुआ कि हमने खूब छक कर आइसक्रीम खायी।
मैं एक बड़े से गिलास में एक पेनी की ले कर आया। मैं ये गिलास इताल्वी
आइसक्रीम की दुकान में ले गया था और वह गिलास और एक पेनी देख कर अच्छा खासा
चिढ़ा था। दुकानदार ने सुझाव दिया कि अगली बार मैं आऊं तो अपने साथ एक बाथ
टब ले कर आऊं। गर्मियों में हमारा प्रिय ड्रिंक होता था शरबत और दूध। खूब
झागदार दूध में बुलबुले छोड़ता शरबत, बस पीते ही तबीयत खुश हो जाती।
सिडनी ने हमें अपनी समुद्री यात्रा के बहुत से रोचक किस्से सुनाये। अभी
उसने अपनी यात्रा शुरू भी नहीं की थी एक बार उसकी नौकरी पर ही बन आयी। उसने
लंच के लिए पहला बिगुल बजाया। बिगुल बजाने की उसकी प्रेक्टिस नहीं रही थी
और सारे फौजी खूब हो हल्ला करने लगे। मुख्य स्टीवर्ड भागता हुआ आया,"ऐय तुम
क्या कर रहे हो?"
"सॉरी सर, मेरे होंठ अभी बिगुल पर सेट नहीं हुए हैं।"
"ठीक है, ठीक है, जल्दी से अपने होंठ सेट कर लो नहीं तो जहाज चलने से पहले
ही तुम्हें तट पर ही उतार देना पड़ेगा।"
खाने के दौरान किचन के बाहर सब वेटरों की लम्बी लम्बी कतारें लग जातीं जो
अपने अपने आर्डर का सामान ले रहे होते। जब तक सिडनी का नम्बर आता, वह अपना
आर्डर ही भूल चुका होता और उसे एक बार फिर लाइन के आखिर में खड़ा होना
पड़ता। सिडनी ने बताया कि पहले कुछ दिन तो ये हालत रही कि बाकी सब तो अपनी
स्वीट डिश खा रहे होते और उसकी मेज पर अभी भी सूप ही सर्व हो रहा होता।
सिडनी तब तक घर पर रहा जब तक सारे पैसे खत्म नहीं हो गये। अलबत्ता, उसे
दूसरी ट्रिप के लिए भी बुक कर लिया गया। उसे कम्पनी से एक बार फिर पैंतीस
शिलिंग अग्रिम रूप से मिले जो उसने मां को दे दिये। लेकिन ये रकम ज्यादा
दिन नहीं चली। तीन ही हफ्ते बाद हम बर्तनों की तली में झांक रहे थे। सिडनी
के वापिस आने में अभी भी तीन हफ्ते बाकी थे। मां हालांकि अभी भी अपनी सिलाई
मशीन पर काम कर ही रही थी, जो कुछ वह कमा रही थी, हम दोनों के लिए काफी
नहीं था। नतीजा ये हुआ कि हम एक बार फिर पाउनाल हॉल लौट आये।
लेकिन मैं कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लिया करता था। मां के पास पुराने कपड़ों
का एक ढेर लगा हुआ था। एक दिन शनिवार की सुबह थी। मैंने मां को सुझाव दिया
कि क्यों न मैं कोशिश करूं और बाज़ार में जा कर इन्हें बेच आऊं। मां इस बात
को ले कर थोड़ी परेशान हो गयी। उसका कहना था कि ये सब किसी काम के नहीं
हैं। इसके बावजूद मैंने एक पुरानी चादर में कपड़ों की पोटली बांधी और
नेविंगटन बट्ट की ओर चल पड़ा। वहां जा कर मैंने अपना माल असबाब फुटपाथ पर
फैलाया और गटर पर खड़े हो कर आवाजें लगानी शुरू कर दीं। मेरी दुकानदारी
बहुत ही दयनीय हालत में थी."देखिये साहेबान, मेहरबान, कदरदान," मैंने एक
पुरानी कमीज हाथ में उठायी और बोलना शुरू किया,"बोलिये साहेबान क्या देते
हैं इसका? एक शिलिंग, छ: पेंस, चार पेंस दो पेंस।" मैं उसे एक पेनी में भी
न बेच पाया। लोग-बाग आते, खड़े होते, हैरानी से देखते, और हँसते हुए चले
जाते। मैं परेशान होना शुरू हो गया। सामने की जवाहरात की दुकान की खिड़की
से वहां के मालिकों ने मुझे देखना शुरू कर दिया। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं
हारी। आखिरकार, गेलिस की एक जोड़ी जो इतनी खराब नहीं लग रही थी, मैं छ:
पेंस में बेचने में सफल हो ही गया। लेकिन मुझे वहां पर खड़े हुए जितनी देर
होती जा रही थी, मैं उतना ही बेचैन होता जा रहा था। थोड़ी देर बाद उस
जवाहरात की दुकान में से एक महाशय आये और भारी रूसी लहजे में मुझसे पूछने
लगे कि मैं इस धंधे में कब से हूं। उसके विनम्र चेहरे के बावजूद मैंने ताड़
लिया कि उसके बात करने के लहजे में मज़ाक उड़ाने का सा भाव था। मैंने उसे
बताया कि बस अभी शुरू ही किया है। वह धीरे धीरे अपनी दुकान पर लौट गया और,
खींसे निपोरते अपने दो भागीदारों के पास लौट गया और फिर से वे दुकान की
खिड़की में से मुझे देखने लगे। अब बहुत हो गया था। मैंने अपनी दुकानदारी
समेटी और घर वापिस लौट आया। मैंने मां को बताया कि मैंने छ: पेंस में
गेटर्स बेचे हैं तो वह हिकारत से बोली, अच्छे भले थे वो तो, उसे ज्यादा
पैसों में बेचा जा सकता था।
ये एक ऐसा वक्त था जब हम किराया देने के बारे में ज्यादा माथा पच्ची नहीं
करते थे। हमने आसान तरीका ये अपनाया कि जब किराया वसूल करने वाला आता तो
सारा दिन गायब ही रहते। हमारे सामान की कीमत ही क्या थी? दो कौड़ी। उसे
कहीं और ढो कर ले जाने में ज्यादा पैसे लगते। अलबत्ता, हमारी मंजिल एक बार
फिर 3 पाउनाल टेरेस थी।
उसी समय मुझे एक ऐसे बूढ़े आदमी और उसके बेटे के बारे में पता चला जो
केनिंगटन रोड के पिछवाड़े की तरफ एक घुड़साल में काम करते थे। वे खिलौने
बनाने वाले घुमंतु लोग थे और ग्लासगो से आये थे। वे लोग खिलौने बनाते थे और
शहर दर शहर घूमते हुए उन्हें बेचते थे। वे बंधन मुक्त थे और उन पर कोई
जिम्मेवारी नहीं थी, इसलिए मैं उनसे ईर्ष्या करता था। उनके धंधे के लिए
बहुत ही कम पूंजी की ज़रूरत थी। एक शिलिंग की मामूली रकम लगा कर वे धंधा
शुरू कर सकते थे। वे जूतों के डिब्बे इकट्ठे करते। कोई भी दुकानदार खुशी
खुशी ये डिब्बे उन्हें दे देता। फिर वे अंगूरों की पैकिंग में इस्तेमाल
होने वाला बुरादा जुटाते। ये भी उन्हें सेंत मेंत में मिल जाता। उन्हें
शुरुआत में जिन मदों के लिए पूंजी लगानी पड़ती, वे थीं, एक पेनी की गोंद,
एक पेनी के क्रिस्मस वाली रंगीन पन्नियां, और दो पेनी के रंगीन झालर के
गोले। एक शिलिंग की पूंजी से वे सात दर्जन नावें बना लेते और एक एक नाव एक
एक पेनी की बिकती। नाव के दोनों तरफ के हिस्से जूतों के डिब्बों में से काट
लिये जाते, और उन्हें गत्ते के तले के साथ सी दिया जाता। साफ सतह पर गोंद
फेर दिया जाता और फिर उस पर कॉर्क का बुरादा छिड़क दिया जाता। मस्तूलों को
रंगीन झालरों से सजा दिया जाता और सबसे ऊपर वसले मस्तूल, नाव के आगे और
पीछे वाले हिस्से पर और पाल फैलाने के डंडों के आखिरी सिरे पर लाल, पीले और
नीले झंडे लगा दिये जाते। सौ या उससे भी अधिक इस तरह की रंगीन पन्नियों
वाली नावें ग्राहकों को आकर्षित करतीं और इन्हें आसानी से बेचा जा सकता था।
हमारे परिचय का नतीजा ये हुआ कि मैं नावें बनाने में उनकी मदद करने लगा और
जल्दी ही मैं उनके हुनर से वाकिफ हो गया। जब वे लोग हमारा पड़ोस छोड़ कर
गये तो मैं खुद उनके धंधे में उतर गया। छ: पेंस की मामूली सी पूंजी और
कार्ड बोर्ड काटने से हाथों में हुए छालों के साथ मैं एक ही हफ्ते में तीन
दर्जन नावें बनाने में कामयाब हो गया था।
लेकिन हमारी परछत्ती पर इतनी जगह नहीं थी कि मां के काम और मेरे धंधे के
लिए जगह हो पाती। इसके अलावा मां की शिकायत थी कि उसे उबलते हुए गोंद की बू
से उबकाई आती है और ये भी था कि गोंद का डिब्बा हर समय उसके सीये जाने वाले
कपड़ों के लिए मुसीबत बन रहा था। संयोग से, सारे घर भर में ये कपड़े बिखरे
ही रहते। अब चूंकि मेरा योगदान मां के योगदान की तुलना में मामूली ही था,
मेरी कला को तिलांजलि दे दी गयी।
इन दिनों हम अपने नाना से बहुत कम मिले थे। पिछले एक बरस से उनकी सेहत ठीक
नहीं चल रही थी। उनके हाथ गठिया की वजह से सूज गये थे और इस कारण वे जूते
गांठने का अपना धंधा नहीं कर पाते थे। पहले के वक्त में जब भी उनसे बन
पड़ता, वे एकाध सिक्का दे कर मां की मदद कर दिया करते थे। कभी कभी वे हमारे
लिए खाना भी बना दिया करते। वे ओट के आटे और प्याज को दूध में उबाल कर और
उस पर नमक और काली मिर्च बुरक कर शानदार दलिये जैसा व्यंजन बनाया करते थे।
सर्दी की रातों में ठंड का मुकाबला करने के लिए ये हमारा सबसे बढ़िया खाना
होता।
जब मैं बच्चा था तो मैं नाना को हमेशा खरदिमाग और खड़ूस बूढ़ा समझा करता था
जो मुझे हर वक्त किसी न किसी बात के लिए टोकते ही रहते थे। कभी व्याकरण के
लिए तो कभी तमीज के लिए। इन छोटी-मोटी मुठभेड़ों के कारण ही मैंने उन्हें
नापसंद करना शुरू कर दिया था। अब वे अस्पताल में अपने जोड़ों के दर्द की
वजह से पड़े हुए थे और मां उन्हें रोज़ देखने के लिए अस्पताल जाती। अस्पताल
की ये विजिटें बहुत फायदे की होतीं क्योंकि वह अक्सर थैला भर ताज़े अंडे ले
कर वापिस आती। ये हमारी मुफ़लिसी के दिनों में विलासिता की तरह होते। जब वह
खुद न जा पाती तो मुझे भेज देती। मुझे ये देख कर हमेशा बहुत हैरानी होती जब
मैं नाना को बहुत ज्यादा सहमत और मेरे आने से खुश पाता। वे नर्सों में खासे
लोकप्रिय थे। बाद की ज़िंदगी में उन्होंने मुझे बताया था कि वे नर्सों के
साथ चुहलबाजी करते और उन्हें बताते कि जोड़ों के दर्द के बावज़ूद उनकी सारी
मशीनरी काम से बेकार नहीं हुई है। इस तरह की अश्लील चुहलबाजी नर्सों को खुश
कर देती। जब उनके जोड़ों का दर्द काबू में रहता तो वे जा कर रसोई में काम
करते, और इस तरह से हमारे पास अंडे आते। विजिट वाले दिनों में वे आम तौर पर
अपने बिस्तर पर ही होते और अपने बिस्तर के पास वाले केबिनेट से चुपके से
अंडों का एक बड़ा-सा थैला थमा देते, जिसे मैं चलने से पहले नाविकों वाली
अपनी बनियान में छुपा लेता।
हम कई-कई हफ्ते अंडों पर ही गुज़ार देते। उनका कुछ न कुछ बना ही लेते। उबले
हुए, तले हुए या उनका कस्टर्ड ही बना लेते। बेशक नाना इस बात का विश्वास
दिलाते कि सारी नर्सें उनकी दोस्त हैं और कमोबेश जानती हैं कि क्या कुछ चल
रहा है, अस्पताल के वार्ड से उन अंडों के साथ बाहर निकलते समय हमेशा मुझे
खटका लगा रहता। कभी लगता कि मैं मोम से चिकने फर्श पर फिसल कर गिर पड़ूंगा
या मेरा फूला हुआ पेट पकड़ में आ जायेगा। इस बात की हैरानी होती थी कि जब
भी मैं अस्पताल से बाहर आने को होता, सारी की सारी नर्सें वहां से गायब हो
जातीं। हमारे लिये ये बहुत ही दु:खद दिन था जब नाना को अपने जोड़ों के दर्द
से आराम आ गया और उन्हें अस्पताल छोड़ना पड़ा।
अब छ: सप्ताह बीतने को आये थे और सिडनी अब तक नहीं लौटा था। शुरू-शुरू में
तो मां इससे इतनी चिंता में नहीं पड़ी लेकिन एक और हफ्ते की देरी के बाद
मां ने डोनोवन एंड कैसल लाइन नाम के जहाज के दफ्तर को लिखा तो वहां से ये
खबर मिली कि उसे जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए केप टाउन के तट पर जहाज से
उतार दिया गया है। इस खबर से मां चिंता में पड़ गयी और इससे उसकी सेहत पर
बुरा असर पड़ा। अभी भी वह सिलाई मशीन पर काम कर रही थी और मैं भी इस मामले
में किस्मत वाला था कि मुझे स्कूल के बाद एक परिवार में नृत्य के लैसन देने
का काम मिल गया था और मुझे हफ्ते के पांच शिलिंग मिल जाया करते थे।
लगभग इन्हीं दिनों मैक्कार्थी परिवार केनिंगटन रोड पर रहने आया। मिसेज
मैक्कार्थी आयरिश कामेडियन रही थीं और मां की सहेली थीं। उनकी शादी एक
सर्टिफाइड एकांउटेंट वाल्टर मैक्कार्थी से हुई थी। लेकिन जब मां को मज़बूरन
स्टेज छोड़ देना पड़ा तो हम लोगों की मैक्कार्थी परिवार से मिलने-जुलने की
संभावना ही नहीं रही और अब वे सात बरस के बाद एक बार फिर मिल रहे थे। अब वे
लोग केनिंगटन रोड के खास इलाके में वाल्कॉट मैन्सन में रहने के लिए आ गये
थे।
उनका बेटा वैली मैक्कार्थी और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। जब हम छोटे थे तो
बड़े लोगों की नकल किया करते थे मानो हम रंगारंग कार्यक्रम के कलाकार हों।
हम काल्पनिक सिगार पीते, अपनी कल्पना की घोड़ी वाली बग्घी में सैर करते, और
अपने माता-पिता का खूब मनोरंजन किया करते थे।
अब चूंकि मैक्कार्थी परिवार वाल्कॉट मैन्सन में रहने के लिए आ गया था, मां
उनसे मिलने शायद ही कभी गयी हो लेकिन मैंने और वैली ने पक्की दोस्ती कर ली
थी। स्कूल से वापिस लौटते ही मैं भाग कर मां के पास यह पूछने के लिए जाता
कि मेरे लायक कोई काम तो नहीं है, फिर मैक्कार्थी परिवार के यहां भागा-भागा
पहुंच जाता। हम वाल्कॉट मैन्सन के पिछवाड़े थियेटर खेलते। मैं चूंकि
निर्देशक बनता इसलिए मैं हमेशा खलनायक वाले पात्र अपने लिए रखता। मैं अपने
आप ही ये जानता था कि खलनायक का पात्र नायक की तुलना में ज्यादा रंगीन होता
है। हम वैली के खाने के समय तक खेलते रहते। आम तौर पर मुझे भी बुलवा लिया
जाता। खाने के समय के आस-पास मैंने अपने आप को उपलब्ध कराने के अचूक
खुशामदी तरीके खोज निकाले थे। अलबत्ता, ऐसे मौके भी आते जब मेरी सारी
तिकड़में काम न आतीं और मैं संकोच के साथ घर लौट आता। मां मुझे देख कर
हमेशा खुश होती और मेरे खाने के लिए कुछ न कुछ बना देती। कभी शोरबे में तली
हुई ब्रेड या नाना के यहां से जुटाये गये अंडों का कोई पकवान और एक कप चाय।
वह मुझे कुछ न कुछ पढ़ कर सुनाती या हम दोनों एक साथ खिड़की पर बैठ जाते और
वह नीचे सड़क पर जा रहे राहगीरों के बारे में मज़ेदार बातें करके मेरा दिल
बहलाती। उनके बारे में वह किस्से गढ़ कर सुनाती। यदि कोई आदमी खुशमिजाज,
फिरकी जैसी चाल के साथ जा रहा होता तो मां कहता,"देखो जा रहे हैं श्रीमान
हेपांडस्कौच, बेचारे शर्त लगाने की जगह जा रहे हैं। अगर आज उनकी किस्मत ने
साथ दिया तो वह अपनी गर्लफ्रेंड के लिए दो सीटों वाली पुरानी साइकिल
खरीदेंगे।"
जब कोई आदमी धीमी गति से कदम गिनते हुए गुजरता तो मां का किस्सा होता,"देखो
बेचारे को, घर जा रहा है और उसे पता है आज खाने में उसे फिर से वही कद्दू
मिलने वाला है। वह कद्दू से नफरत करता है।"
कोई अपनी ऐंठ में ही चला जा रहा होता तो मां कहती,"देखो, ये सभ्य समाज के
सज्जन जा रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो वे अपनी पैंट में हो गये छेद की वजह से
खासे परेशान हैं।"
इसके बाद एक और आदमी तेज-तेज चाल से लपकता हुआ गुज़र जाता,"उस भले आदमी ने
अभी अभी ईनो की खुराक ली है और . ....।" और इस तरह से किस्से चलते रहते और
हम हँस-हँस कर दोहरे हो जाते।
एक और सप्ताह बीतने को आया था लेकिन अभी भी सिडनी का कोई समाचार नहीं मिला
था। अगर मैं और छोटा होता और मां की चिंता के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता
तो मैं महसूस कर सकता था कि उसके दिल पर क्या गुज़र रही थी। मैंने तब इस
बात को देखा होता कि वह कई दिनों से खिड़की की सिल पर ही बैठी बाहर देखती
रहती थी। उसने कई दिन से कमरे को साफ तक नहीं किया था और बेहद शांत होती
चली गयी थी। मैं शायद तब भी चिंता में पड़ा होता जब कमीज़ें बनाने वाली
फर्म ने उसके काम में मीन-मेख निकालनी शुरू कर दी थी और उसे और काम देना
बंद कर दिया था और जब वे बकाया किस्तों की अदायगी न होने के कारण सिलाई
मशीन ही उठा कर ले गये और जब नृत्य के पाठ से होने वाली मेरी पांच शिलिंग
की कमाई भी अचानक बंद हो गयी तो शायद इस सबके बीच मैंने इस बात पर ध्यान
दिया हो कि मां लगातार उदासीन और किंकर्तव्यविमूढ़ बनी रही थी।
अचानक मिसेज मैक्कार्थी की मृत्यु हो गयी। वे कुछ अरसे से बीमार चल रही
थीं। उनकी हालत खराब होती चली गयी और अचानक वे गुज़र गयी थीं। तत्काल ही
मेरे दिमाग में ख्यालों ने हमला बोल दिया। कितना अच्छा होता अगर मिस्टर
मैक्कार्थी मां से विवाह कर लेते। वैली और मैं तो अच्छे दोस्त थे ही। इसके
अलावा, ये मां की समस्याओं का आदर्श हल भी होता।
संस्कार के तुरंत बाद मैंने मां से इस बात बारे में बात की,"अब तुम इसे
अपनी दिनचर्या बना लो मां कि अक्सर मिस्टर मैक्कार्थी से मिल लिया करो। मैं
शर्त बद कर कह सकता हूं कि वे तुमसे शादी कर लेंगे।"
मां कमजोरी से मुस्कुरायी,"उस बेचारे को एक मौका तो दो," मां ने जवाब दिया।
"मां, अगर तुम ढंग से तैयार हो जाया करो और अपने आपको आकर्षक बना लो, जैसा
तुम पहले हुआ करती थी तो वे जरूर तुम्हें पसंद कर लेंगे। लेकिन तुम तो अपनी
तरफ से कोई कोशिश ही नहीं करती, बस, इस गंदे कमरे में पसरी बैठी रहती हो और
वाहियात नज़र आती हो।"
बेचारी मां, मैं अपने इन शब्दों पर कितना अफ़सोस करता हूं। मैं इस बात को
कभी सोच ही नहीं पाया कि वह खाना पूरा न मिलने के कारण कमज़ोर थी। इसके
बावजूद अगले दिन, पता नहीं उसमें कहां से इतनी ताकत आ गयी, उसने सारा कमरा
साफ-सूफ कर दिया। स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गयी थीं। इसलिए
मैंने सोचा, मैक्कार्थी परिवार के यहां थोड़ा पहले ही चला जाऊं। अपने उस
मनहूस दड़बे से बाहर निकलने का कोई तो बहाना चाहिये ही था। उन्होंने मुझे
लंच तक रुकने का न्यौता दिया था। लेकिन मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि मुझे
मां के पास वापिस लौट जाना चाहिये। जब मैं पाउनाल टैरेस वापिस पहुंचा तो
पड़ोस के कुछ बच्चों ने मुझे गेट के पास ही रोक लिया,"तुम्हारी मां पागल हो
गयी है, एक छोटी सी लड़की ने कहा।
ये शब्द तमाचे की तरह मेरे मुंह पर आ लगे।
"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घिघियाया।
"ये सच है," दूसरी ने बताया।
"वो सारे घरों के दरवाजे खटखटाती फिर रही थी और हाथ में कोयले के टुकड़े ले
कर बांटती फिर रही थी कि ये बच्चों के लिए जन्मदिन का उपहार है। चाहो तो
तुम मेरी मां से भी पूछ सकते हो।"
और कुछ सुने बिना मैं रास्ते से दौड़ा, खुले दरवाजे से घर के भीतर गया,
फलांगता हुआ सीढ़ियां चढ़ा और अपने कमरे का दरवाजा खोला। एक पल के लिए अपनी
सांस पर काबू पाने के लिए मैं थमा और मां को गहरी नज़र से देखने लगा। ये
गरमी की दोपहरी थी और माहौल घुटा-घुटा सा और दबाव महसूस कराने वाला था। मां
हमेशा की तरह खिड़की पर बैठी हुई थी। वह धीमे से मुड़ी और उसने मेरी तरफ
देखा। उसका चेहरा पीला और पीड़ा से ऐंठा हुआ लग रहा था।
"मां," मैं लगभग चिल्ला उठा।
"क्या हुआ?" मां ने निर्विकार भाव से पूछा।
तब मैं दौड़ कर गया और अपने घुटनों के बल गिरा और उसकी गोद में अपना मुंह
छुपा लिया। ज़ोर से मेरी रुलाई फूट पड़ी।
"रुको, रुको, बेटे," वह हौले से मेरा सिर सहलाते हुए बोली,"क्या हो गया
मेरे बच्चे?"
"तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है," मैं सुबकते हुए चिल्लाया।
वह मुझे आश्वस्त करते हुए बोली,"मैं तो बिल्कुल चंगी हूं।"
वह बहुत ज्यादा खोयी-खोयी और ख्यालों में डूबी रही थी।
"नहीं,नहीं, वे सब बता रहे हैं कि तुम सब घरों में फिरती रही थी और.. .. और
..." मैं अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया, लेकिन सुबकता रहा।
"मैं सिडनी को तलाश कर रही थी," वह कमज़ोरी से बोली,"वे उसे मुझसे दूर रखे
हुए हैं।"
तब मुझे पता चला कि जो कुछ बच्चे बता रहे थे, वह सही था।
"ओह मां, इस तरह की बातें मत करो। नहीं, नहीं," मैं सुबकने लगा,"मैं
तुम्हारे लिए डॉक्टर बुलवाता हूं।"
वह मेरा सिर सहलाते हुए बोलती रही,"मैक्कार्थी जी को मालूम है कि वह कहां
है और वे उसे मुझे दूर रखे हुए हैं।"
"मम्मी, मम्मी, मुझे जरा डाक्टर को बुलवा लेने दो," मैं चिल्लाया। मैं उठा
और सीधे दरवाजे की तरफ लपका।
मां ने दर्दभरी निगाहों से मेरी तरफ देखा और पूछा,"कहां जा रहे हो?"
"डॉक्टर को लिवाने। मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी।"
मां ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मेरी तरफ चिंतातुर निगाहों से देखती रही।
मैं तेजी से लपक कर नीचे गया और मकान मालकिन के पास पहुंचा।
"मुझे तुरंत डॉक्टर को बुलवाना पड़ेगा। मां की हालत ठीक नहीं है।"
"हमने पहले ही डॉक्टर को बुलवा लिया है।" मकान मालकिन ने बताया।
•
खैराती डॉक्टर बूढ़ा और चिड़चिड़ा था। मकान मालकिन की दास्तान सुन लेने के
बाद, जो कमोबेश बच्चों के बताये किस्से जैसी ही थी, उसने मां की सरसरी तौर
पर जांच की।
"पागल . . . इसे आप अस्पताल भिजवाइये," कहा उसने।
डॉक्टर ने एक पर्ची लिखी। दूसरी बातों के अलावा इसमें ये लिखा था कि वह
कुपोषण की मरीज थी। डॉक्टर ने इसका मतलब मुझे ये बताया कि उसे पूरी खुराक
नहीं मिलती रही है।
मकान मालकिन ने मुझे दिलासा देते हुए कहा,"ठीक हो जायेगी बेटा, और उसे वहां
खाना भी ठीक तरह से मिलेगा।"
मकान मालकिन ने मां के कपड़े-लत्ते जमा करने में मेरी मदद की और उसे कपड़े
पहनाये। मां एक बच्चे की तरह सारी बातें मानती रही। वह इतनी कमज़ोर थी कि
उसकी इच्छा शक्ति ने मानो उसका साथ छोड़ दिया हो। जब हम घर से चले तो
पास-पड़ोस के बच्चे और पड़ोसी मजमा लगाये गेट के पास खड़े थे और इस अनहोनी
को देख रहे थे।
अस्पताल लगभग एक मील दूर था। जब हम वहां के लिए चल रहे थे तो मां कमज़ोरी
के कारण किसी शराबी औरत की तरह लड़खड़ा कर चल रही थी और दायें-बायें झूम
रही थी। मैं उसे किसी तरह संभाले हुए था। उस दोपहरी में धूप का तीखापन हमें
अपनी गरीबी का अहसास बेदर्दी से करवा रहा था। जो लोग हमारे आस पास से गुज़र
कर जा रहे थे जरूर सोच रहे होंगे कि मां ने पी रखी है, लेकिन मेरे लिए वे
सपने में अजगरों की तरह थे। वह बिल्कुल भी नहीं बोली लेकिन शायद वह जानती
थी कि उसे कहां ले जाया जा रहा है और उसे वहां पहुंचने की चिंता भी थी।
रास्ते में मैंने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की और वह मुस्कुरायी भी। लेकिन
यह मुस्कुराहट बेहद कमज़ोर थी।
आखिरकार जब हम अस्पताल में पहुंचे तो एक युवा डॉक्टर ने मां को अपनी देखभाल
में ले लिया। नोट को पढ़ने के बाद उसने दयालुता से कहा,"ठीक है मिसेज
चैप्लिन, आप इधर से आइये।"
मां ने चुपचाप उसकी बात मान ली। लेकिन जब नर्सें उसे ले जाने लगीं तो वह
अचानक मुड़ी और दर्द भरी निगारहों से मुझे देखने लगी। उसे पता चल गया था कि
वह मुझे छोड़ कर जा रही है।
"मां, मैं कल आऊंगा," मैंने कमज़ोर उत्साह से कहा।
जब वे उसे ले जा रहे थे तो वह पीछे मुड़ मुड कर मेरी तरफ चिंतातुर निगाहों
से देख रही थी। जब वह जा चुकी तो डाक्टर ने मुझसे कहा,"अब तुम्हा रा क्या
होगा, मेरे नौजवान दोस्त?"
अब तक मैं यतीनखानों के स्कूलों की बहुत रोटियां तोड़ चुका था इसलिए मैंने
लापरवाही से जवाब दिया,"मैं अपनी आंटी के यहां रह लूंगा।"
जब मैं अस्पताल से घर की तरफ वापिस लौट रहा था मैं सिर्फ सुन्न कर देने
वाली उदासी ही महसूस कर पा रहा था। इसके बावजूद मैं राहत महसूस कर रहा था।
क्योंकि मैं जानता था कि अस्पताल में मां की बेहतर देखभाल हो पायेगी बजाये
घर के अंधेरे में बैठे रहने के जहां खाने को एक दाना भी नहीं हैं लेकिन जब
वे लोग उसे ले जा रहे थे जो जिस तरह से उसने दिल चीर देने वाली निगाह से
मुझे देखा था, वह मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा। मैंने उसके सभी सहन करने के
तरीकों के बारे में सोचा, उसकी चाल के बारे में सोचा, उसके दुलार और उसके
प्यार के बारे में सोचा, और मैंने उस कृष काया के बारे में सोचा जो थकी
हारी नीचे आती थी और अपने ही ख्यालों में खोयी रहती थी और मुझे अपनी तरफ
लपकते हुए आते देखते ही जिसके चेहरे पर रौनक आ जाती थी। किस तरह से वह एकदम
बदल जाती थी और जब मैं उसके लिफाफे की तलाशी लेने लगता था जिसमें वह मेरे
और सिडनी के लिए अच्छी अच्छी च़ाजें लाती थी तो उसके चेहरे के भाव कितने
अच्छे हो जाते थे और वह मुस्कुराने लगती थी। यहां तक कि उस सुबह भी उसने
मेरे लिए कैंडी बचा कर रखी थी और जिस वक्त मैं उसकी गोद में रो रहा था,
उसने मुझे कैंडी दी थी।
मैं सीधा घर वापिस नहीं गया। मैं जा ही नहीं सका। मैं नेविंगटन बट्स
मार्केट की तरफ मुड़ गया और दोपहर ढलने तक दुकानों की खिड़कियों में देखता
रहा। जब मैं अपनी परछत्ती पर वापिस लौटा तो वह हद दरजे तक खाली-खाली लग रही
थी। एक कुर्सी पर पानी का टब रखा हुआ था। पानी से आधा भरा हुआ। मेरी दो
कमीजें और एक बनियान उसमें भिगोने के लिए रखे हुए थे। मैंने तलाशना शुरू
किया। घर में खाने को कुछ भी नहीं था। अल्मारी में सिर्फ चाय की पत्ती का
आधा भरा पैकेट रखा हुआ था। मेंटलपीस पर मां का पर्स रखा हुआ था जिसमें मुझे
तीन पेनी के सिक्के और गिरवी वाली दुकान की कई पर्चियां मिलीं। मेज के कोने
पर वही कैंडी रखी हुई थी जो उसने मुझे सुबह दी थी। जब मैं अपने आपको संभाल
नहीं पाया और फूट फूट कर रोया।
भावनात्मक रूप से मैं चुक गया था। उस रात मैं गहरी नींद सोया। सुबह मैं
जागा तो कमरे का खालीपन भांय भांय कर रहा था। फर्श पर बढ़ती आती सूर्य की
किरणें जैसे मां की गैर मौजूदगी का अहसास करवा रही थीं। बाद में मकान
मालकिन आयी और बताने लगी कि मैं वहां पर तब तक रह सकता हूं जब तब वह कमरा
किराये पर नहीं दे देती और अगर मुझे खाने की ज़रूरत हो तो मुझे कहने भर की
देर होगी। मैंने उसका आभार माना और उसे बताया कि जब सिडनी वापिस आयेगा तो
उसके सारे कर्जे उतार देगा। लेकिन मैं इतना शरमा रहा था कि खाने के लिए कह
ही नहीं पाया।
हालांकि मैंने मां से वायदा किया था कि अगले दिन उससे मिलने जाऊंगा लेकिन
मैं नहीं गया। मैं जा ही नहीं पाया। जाने का मतलब उसे और विचलित करना होता।
लेकिन मकान मालकिन डॉक्टर से मिली। डॉक्टर ने उसे बताया कि मां को पहले ही
केन हिल पागल खाने में ले जाया जा चुका है। इस उदासी भरी खबर ने मेरी आत्मा
पर से बोझ हटा दिया क्योंकि केन हिल पागलखाना वहां से बीस मील दूर था और
वहां तक जाने का मेरे पास कोई जरिया नहीं था। सिडनी जल्दी ही लौटने वाला था
और तब हम दोनों उसे देखने जा पाते। पहले कुछ दिन तक तो मैं न अपने किसी
परिचित से मिला और न ही किसी से बात ही की।
•
मैं सुबह सुबह ही घर से निकल जाता और सारा दिन मारा मारा फिरता। मैं कहीं न
कहीं से खाने का जुगाड़ कर ही लेता। इसके अलावा, एक आध बार का खाना गोल कर
जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। एक सुबह जब मैं चुपके से सरक कर बाहर जा रहा था
तो मकान मालकिन की निगाह मुझ पर पड़ गयी और उसने पूछा कि क्या मैंने नाश्ता
किया है।
मैंने सिर हिलाया, वह मुझे अपने साथ ले गयी,"तब चलो मेरे साथ," उसने अपनी
भारी आवाज में कहा।
मैं मैक्कार्थी परिवार से दूर दूर ही रहा क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि
उन्हें मां के बारे में पता चले। मैं किसी भगोड़े सैनिक की तरह सबकी
निगाहों से बचता ही रहा।
•
मां को गये एक सप्ताह बीत चुका था और मैंने राम भरोसे रहने की आदत डाल ली
थी जिस पर न तो अफसोस किया जा सकता था और न ही उसे आनंददायक ही कहा जा सकता
था। मेरी सबसे बड़ी चिंता मकान मालकिन थी क्योंकि अगर सिडनी वापिस न आया तो
देर सबेर वह मेरे बारे में सुधारगृह वालों को बता ही देगी और मुझे एक बार
फिर हैनवेल स्कूल में भेज दिया जायेगा, इसलिए मैं उसके सामने पड़ने से कतरा
रहा था और कई बार तो बाहर ही सो जाता।
मैं लकड़ी चीरने वाले कुछ लोगों से जा टकराया जो केनिंगटन रोड के पिछवाड़े
की तरफ एक घुड़साल में काम करते थे। ये सड़क छाप से दिखने वाले लोग थे जो
एक अंधेरे से भरे दालान में काम करते थे और फुसफुसा कर बातें करते, सारा
दिन लकड़ियां चीरते और कुल्हाड़ी से उनकी फांकें तैयार करते। बाद में वे
उनके आधी आधी पेनी के बंडल बना देते। मैं उनके खुले दरवाजे के आस पास
मंडराता रहता और उन्हें काम करते हुए देखता। उनके पास एक फुट का लकड़ी का
गुटका होता। वे उसकी पतली पतली फांकें बनाते और फिर से इन फांकों को
तीलियों में बदल डालते। वे इतनी तेजी से लकड़ियां चीरते कि मैं हैरान हो कर
देखता ही रह जाता। मुझे उनका ये काम बेहद आकर्षित करता। जल्द ही मैं उनकी
मदद करने लगा। वे अपने लिए लकड़ी के लट्ठे इमारतें गिराने वाले ठेकेदारों
से लाते और उन्हें ढो कर शेड तक लाते, उनके चट्टे बना कर रखते। इस काम में
पूरा एक दिन लग जाता। फिर वे एक दिन लकड़ियां चीरने का काम करते और उससे
अगले दिन उसकी तीलियां बनाते। शुक्रवार और शनिवार वे जलावन की लकड़ियां
बेचने के लिए निकलते लेकिन बेचने के काम में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी।
शेड में काम करना कहीं ज्यादा रोमांचक लगता था।
वे लोग तीस और चालीस बरस की उम्र के बीच के शालीन, शांत लोग थे हालांकि वे
बरताव बड़ी उम्र के लोगों का करते और लगते भी ज्यादा उम्र के थे। बॉस (जैसा
कि हम उसे कहा करते थे) मधुमेह की वजह से लाल नाक वाला था। उसके ऊपर के
दांत झड़ गये थे, बस एक ही दांत लटकता रहता लेकिन फिर भी न जाने क्यों उसके
चेहरे में अपनेपन का अहसास होता था। अच्छा लगता था वह। वह अजीब तरीके से
हँसता जिससे उसका इकलौता दांत दिखायी देने लगता। जब चाय के लिए एक और कप की
ज़रूरत होती तो वह दूध का टिन उठाता, उसे धोता, पोंछता और कहता,"क्या ख्याल
है इसके बारे में?"
दूसरा आदमी हालांकि सहमत लगता, शांत, सूजे से चेहरे वाला, मोटे होंठों
वाला, व्यक्ति था। वह बहुत धीरे धीरे बोलता, एक बजे के करीब बॉस मेरी तरफ
देखता,"ऐय क्या तुमने कभी चीज़ की पपड़ी से बना अधपके मांस का स्वाद लिया
है?"
"हमने इसे कई बार खाया है," मैं जवाब देता।
तब ठहाके लगाते हुए और खींसे निपोरते हुए वह मुझे दो पेंस देता और मैं ऐश
की राशन की दुकान पर जाता, ये कोने पर चाय की दुकान थी। वह मुझे पसंद करता
था और मेरे पैसों पर हमेशा ढेर सारी चीजें दे दिया करता। मैं वहां से एक
पेनी की चीज़ की पपड़ी लेता, और एक पेनी की बेड। चीज़ को धो लेने और उसकी
पपड़ियां बना लेने के बाद हम उसमें पानी मिलाते, थोड़ा नमक और काली मिर्च
डालते, कई बार बॉस उसमें थोड़ी सी सूअर की चर्बी और कतरे हुए प्याज भी छोड़
देता और ये सारी चीजें मिल कर चाय के कैन के साथ बहुत ही पेट भर कर खाने
वाला मामला हो जाता।
हालांकि मैं कभी पैसों के लिए पूछता नहीं था, हफ्ता बीतने पर बॉस ने मुझे
छ: पेंस दिये। ये मेरे लिए सुखद आश्चर्य था। जो, जिसका चेहरा फूला हुआ था,
को मिर्गी के दौरे पड़ते। तब बॉस उसे होश में लाने के लिए उसकी नाक के नीचे
खाकी कागज जला कर उसे सुंघाता। कई बार तो उसके मुंह से झाग निकलने शुरू हो
जाते और वह अपनी जीभ काटने लगता। जब वह होश में आता तो बेहद दयनीय और
शर्मिंदा लगता।
लकड़हारे सुबह सात बजे से लेकर रात के सात बजे तक काम करते रहते। कई बार
उसके बाद भी। जब वे शेड में ताला लगा कर घर की तरफ रवाना होते, मैं हमेशा
उदास हो जाया करता। एक दिन बॉस ने तय किया कि वह हम सबको ट्रीट देगा और
साउथ म्यूजिक हॉल में दो पेनी की गेलरी सीटों पर शो दिखायेगा। मैं और जो
पहले ही हाथ मुंह धो चुके थे और बॉस का इंतजार कर रहे थे। मैं बेहद
रोमांचित था क्योंकि उस हफ्ते फ्रेड कार्नो की कॉमेडी अर्ली बर्ड्स (इस
कम्पनी में मैं कई बरस बाद शामिल हुआ) चल रहा था। जो घुड़साल की दीवार के
सहारे खड़ा हुआ था और मैं उसके सामने उत्साहित और रोमांचित खड़ा हुआ था।
तभी अचानक जो ने बहुत तेज आवाज़ में चीख मारी और उसे दौरा पड़ा और वह उसी
में दीवार के सहारे ही नीचे गिर गया। जो होना था, वह कुछ ज्यादा ही था। जब
जो को होश आया तो बॉस चाहते थे कि वे वहीं रुक कर उसकी देखभाल करें लेकिन
जो ने जिद की कि वह एकदम ठीक है और हम दोनों उसके बगैर चले जायें। वह सुबह
तक एकदम चंगा हो जायेगा।
स्कूल की धमकी एक ऐसी दानव था जिसने कभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा। बीच बीच
में लकड़ी चीरने वाले मुझसे स्कूल के बारे में सवाल पूछ लेते। जब छुट्टियां
खत्म हो गयीं तो वे थोड़े से बेचैने हो गये। अब मैं साढ़े चार बजे तक, यानी
स्कूल के छूटने के वक्त तक गलियों में मारा मारा फिरता, लेकिन ये बहुत
मुश्किल काम था। बेमतलब गलियों में फिरते रहना और साढ़े चार बजे तक इंतज़ार
करना जब मैं अपनी राहत की जगह पर और लकड़ी चीरने वालों के पास लौट सकता।
एक रात जब मैं चुपके से सोने के लिए अपने बिस्तर में सरक रहा था, मकान
मालकिन मुझसे मिलने के लिए आयी। वह बेचारी मेरी राह देखती बैठी थी। वह बहुत
उत्तेजित थी। उसने मुझे एक तार थमाया जिस पर लिखा था,"कल सुबह दस बजे
वाटरलू स्टेशन पर पहुंचूंगा। प्यार, सिडनी।
जिस वक्त मैं उससे स्टेशन पर मिला तो मेरी हालत वाकई खराब थी। मेरे कपड़े
गंदे और फटे हुए थे और मेरी कैप में से धागे इस तरह से लटके हुए थे मानो
किसी लड़की के स्कर्ट के नीचे झालरें लटकती नज़र आती हैं। मैंने लकड़ी
चीरने वालों के यहां ही मुंह धो लिया था और इस तरह से मैं तीसरी मंज़िल तक
दो डोल पानी के भर कर ले जाने और मकान मालकिन की रसोई के आगे से गुज़रने की
जहमत उठाने से बच गया था। जब मैं सिडनी से मिला तो मेरे कानों और गर्दन के
आस पास रात की गंदगी और मैल की परत दिखायी दे रही थी।
मेरी तरफ देखते हुए सिडनी ने पूछा,"क्या हुआ है?"
मैंने सीधे ही खबर नहीं दी। थोड़ा वक्त लिया,"मां पागल हो गयी है और हमें
उसे अस्पताल भेजना पड़ा।"
उसका चेहरा चिंता से घिर गया लेकिन उसने अपने आप पर काबू पा लिया,"तो तुम
कहां रह रहे हो इस वक्त?"
"वहीं पाउनाल टैरेस"
वह अपना सामान देखने के लिए मुड़ा। उसने एक हाथ गाड़ी का आर्डर दिया और जब
कुलियों ने उस पर उसके सामान के चट्टे लगाये तो सबसे ऊपर केलों की एक गेल
भी थी।
"ये हमारे हैं क्या?" मैं बेसब्री से पूछा।
उसने सिर हिलाया,"अभी ये कच्चे हैं। इनके तैयार होने में हमें एकाध दिन का
इंतज़ार करना पड़ेगा।"
घर आते समय रास्ते में उसने मां के बारे में सवाल पूछने शुरू कर दिये। मैं
इतने उत्साह में था कि सारी बातें सिलसिलेवार बता ही नहीं पाया लेकिन उसे
सारे सूत्र मिल गये थे। तब उसने बताया कि वह बीमार हो गया था और उसे केप
टाउन में उतार कर अस्पताल में ही छोड़ दिया गया था। और कि वापसी की यात्रा
में उसने बीस पाउंड कमा लिये थे। ये पैसे वह मां को दे कर जाना चाहता था।
उसने ये पैसे सैनिकों के लिए जूए और लाटरी के इंतजाम करके कमाये थे।
उसने मुझे अपनी योजनाओं के बारे में बताया। वह अब अपनी समुद्री यात्राएं
छोड़ देने का इरादा रखता था और अभिनेता बनना चाहता था। उसने बताया कि ये
पैसे हमारे लिए बीस हफ्तों के लिए काफी होंगे और तब तक उसे थियेटर में कोई
न कोई काम मिल ही जायेगा।
जब हम टैक्सी में केलों की गेल के साथ घर पहुंचे तो पड़ोसियों और मकान
मालकिन पर इसका बहुत अच्छा असर पड़ा। मकान मालकिन ने सिडनी को मां के बारे
में बताया लेकिन सारे डरावने ब्यौरे नहीं बताये।
उसी दिन सिडनी शॉपिंग के लिए गया और मेरे लिए नये कपड़े खरीदे। और उसी रात
पूरी सज धज के साथ हम दोनों साउथ म्यूजिकल हॉल के स्टाल में जा पहुंचे।
नाटक के दौरान सिडनी लगातार कहता रहा,"जरा सोचो तो, मां के लिए इस सब का
क्या मतलब होता।"
उसी हफ्ते हम मां को देखने के लिए केन हिल गये। जिस वक्त हम विजिटिंग रूम
में बैठे हुए थे, वहां बैठ कर इंतज़ार करना बहुत कठिन काम लग रहा था। मुझे
याद है कि चाभी घूमने की आवाज़ आयी थी और मां चल कर आ रही थी। वह पीली नज़र
आ रही थी। उसके होंठ नीले पड़ गये थे। हालांकि उसने हमें पहचान लिया था,
उसमें उत्साह नहीं था और उसकी पुरानी जीवन शक्ति जा चुकी थी। उसके साथ एक
नर्स आयी थी। बातूनी और भली महिला। वह खड़ी हो कर बात करना चाह रही थी।
कहने लगी,"आप लोग बहुत ही गलत वक्त पर आये हैं। आज आपकी मां की हालत बहुत
अच्छी नहीं है। नहीं क्या?" उसने मां की तरफ देखा।
मां विनम्रता से मुसकुरायी मानो उसके जाने की राह देख रही हो।
नर्स ने आगे कहा,"अगली बार जब मां की हालत अच्छी हो तुम लोग ज़रूर आना।"
आखिरकार वह चली गयी और हमें अकेला छोड़ दिया गया। हालांकि सिडनी ने मां का
मूड बेहतर करने की कोशिश की और उसे अपनी किस्म।त के चमकने और पैसा कमाने और
इतने अरसे तक बाहर रहने के बारे में किस्से बताता रहा, वह बैठी सिर्फ सुनती
रही और सिर हिलाती रही। वह अपने ही ख्यालों में गुम लग रही थी। मैंने मां
को बताया कि वह जल्दी ही चंगी हो जायेगी। "हां बेशक," मां ने मायूसी से
कहा,"काश उस दोपहर तुमने मुझे एक कप चाय दे दी होती तो मैं एकदम ठीक हो
जाती।"
बाद में डॉक्टर ने सिडनी को बताया कि कम खुराक मिलने की वजह से मां के
दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा है और उसे ठीक ठाक इलाज की ज़रूरत है और कि
हालांकि उसे बीच बीच में बातें याद आती हैं, पूरी तरह से ठीक होने मे उसे
कई महीने लगेंगे।
लेकिन मैं कई दिन तक मां के इस जुमले से मुक्त नहीं हो सका कि "काश उस
दोपहर तुमने मुझे एक कप चाय दे दी होती तो मैं एकदम ठीक हो जाती।"
अध्याय : पाँच
जोसफ कॉनराड ने इस बारे में अपने एक दोस्त को लिखा था कि ज़िंदगी ने उन्हें
एक कोने में दुबके उस अंधे चूहे में बदल डाला था जिसे बस, दबोचा जाने वाला
हो। ऐसी उपमा से हम लोगों की दयनीय ज़िंदगी को बयान किया जा सकता था। इसके
बावजूद हम में से कुछ लोगों की किस्मत अच्छी रही और ऐसे भाग्यशाली लोगो में
से मैं भी था।
मैंने बहुत धंधे किये। मैंने अखबार बेचे, प्रिंटर का काम किया, खिलौने
बनाए, ग्लास ब्लोअर का काम किया, डॉक्टर के यहाँ काम किया लेकिन इन तरह-तरह
के धंधों को करते हुए मैंने सिडनी की तरह इस लक्ष्य से कभी भी निगाह नहीं
हटायी कि मुझे अंतत: अभिनेता बनना है, इसलिए अलग-अलग कामों के बीच अपने
जूते चमकाता, अपने कपड़ों पर ब्रश फेरता, साफ कॉलर लगाता और स्ट्रैंड के
पास बेडफोर्ड स्ट्रीट में ब्लैक मोर थिएटर एजेन्सी में बीच-बीच में चक्कर
काटता। मैं तब तक वहाँ चक्कर लगाता रहा जब तक मेरे कपड़ों की हालत ने मुझे
वहाँ और जाने से बिलकुल ही रोक नहीं दिया।
जब मैं वहाँ पहली बार गया तो वहाँ पर शानदार कपड़े पहने हुए
अभिनेता-अभिनेत्री घेरा बनाए खड़े थे और लम्बी-लम्बी हांक रहे थे।
मैं डर से काँपते हुए दरवाजे के पास, दूर के एक कोने में खड़ा हो गया। मैं
हद दर्जे का शर्मीला लड़का था और अपने चिथड़े हो गये सूट और पंजों से फटे
जूतों को छुपाने की भरसक कोशिश कर रहा था। अचानक ही भीतर से एक युवा क्लर्क
लपकता हुआ बाहर आता, हाय तौबा मचाता और वहाँ जुटे अभिनेताओं को सम्बोधित
करते हुए ज़ोर से चिल्लाता,"तुम, तुम, और तुम, तुम्हारे लिए कोई काम नहीं
है।" और ऑफिस गिरजाघर की तरह खाली हो जाता। एक मौके पर मैं अकेला ही वहां
खड़ा रह गया था।
जब क्लर्क ने मुझे देखा तो अचानक रुक गया,"क्या चाहिए तुम्हें?"
मुझे लगा, मैं ओलिवर ट्विस्ट की तरह कुछ और मांग रहा होऊं,"क्या आपके पास
बच्चों के लिए कोई भूमिका है?"
"क्या तुमने अपना नाम रजिस्टर करवा लिया है?" मैंने सिर हिलाया।
मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब वह मुझे बगल वाले ऑफिस के भीतर ले गया,
मेरा नाम, पता और दूसरे ब्यौरे दर्ज किये और मुझे बताया कि जब भी मेरे लायक
कोई काम होगा मुझे खबर कर देगा।
मैं बहुत खुश, इस अहसास के साथ वापिस लौटा कि मैंने अपना कर्त्तव्य निभा
दिया है। हालांकि मैं अभी भी मान रहा था कि इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
और अब, सिडनी के लौटने के एक महीने के बाद मुझे एक पोस्ट कार्ड मिला। इस पर
लिखा था,"क्या आप ब्लैकमोर एजेन्सी, बेडफोर्ड स्ट्रीट, स्ट्रैंड में
आयेंगे?"
मैं अपने नये सूट में मिस्टर ब्लैकमोर के ही सामने ले जाया गया। वे
मुस्कुरा रहे थे और बहुत प्यार से मिले। मैं यह मानकर चल रहा था कि वे
सर्वशक्तिमान होंगे और बारीकी से जांच पड़ताल करेंगे लेकिन वे बहुत ही
विनम्र थे और उन्होंने मुझे एक पर्ची दी कि मैं चार्ल्स फ्राहमॅन के
कार्यालय में मिस्टर सी ई हैमिल्टन को जाकर दे दूं।
मिस्टर हैमिल्टन ने पर्ची पढ़ी और यह जानकर बहुत खुश और हैरान हुए कि मैं
कितना छोटा-सा हूं। दरअसल मैंने अपनी उम्र के बारे में झूठ बोला था कि मैं
चौदह बरस का हूं जब कि मेरी उम्र साढ़े बारह बरस की थी। उन्होंने समझाया कि
मुझे शारलॉक होम्स में बिली, पेजबॉय की भूमिका करनी है और शरद ऋतु से शुरू
होने वाले दौरे में चालीस सप्ताह तक काम करना है।
"इस बीच," मिस्टर हैमिल्टन ने आगे कहा,"एक नये नाटक, जिम, द रोमांस ऑफ अ
कॉक्नी" में एक अच्छे लड़के की बहुत ही शानदार भूमिका है। इसे मिस्टर
सेंट्सबरी ने लिखा है। ये वही शख्स हैं जो आगामी दौरे में शारलॉक होम्स में
प्रमुख भूमिका निभाने जा रहे हैं। जिम नाटक `होम्स' के दौरे से पहले आजमाइश
के तौर पर किंग्स्टन में खेला जायेगा। मेरा वेतन दो पाउंड दस शिलिंग प्रति
सप्ताह रहेगा और मुझे शारलॉक होम्स के लिए भी इतना ही वेतन मिलेगा।
हालांकि यह राशि मेरे लिए छप्पर फाड़ लॉटरी खुलने जैसी थी फिर भी मैंने यह
बात अपने चेहरे पर नहीं झलकने दी। मैंने निम्रता से कहा,"शर्तों के बारे
में मैं अपने भाई से सलाह लेना चाहूंगा।"
मिस्टर हैमिल्टर हंसे और लगा कि वे बहुत खुश हुए हैं। इसके बाद उन्होंने
सारे ऑफिस को इकट्ठा कर लिया और मेंरी तरफ इशारा करते हुए बोले,"ये हमारा
बिली है। क्या ख्याल है इसके बारे में?"
हर कोई बहुत खुश हुआ और मेरी तरफ देखकर मुस्कुराया। क्या हो गया था? ऐसा
लगा मानो पूरी दुनिया ही अचानक बदल गयी हो, दुनिया ने मुझे प्यार से अपने
सीने से लगा लिया हो और मुझे अपना लिया हो। तब मिस्टर हैमिल्टन ने मुझे
सेंट्सबरी के लिए एक पर्ची दी। उनके बारे में बताया कि वे लीसेस्टर
स्क्वायर में ग्रीन रूम क्लब में मिलेंगे। और मैं वहाँ से वापिस लौटा,
बादलों पर सवार।
ग्रीन रूम क्लब में भी वही बात हुई। मिस्टर सेंट्सबरी ने अपने स्टाफ
सदस्यों को मुझे देखने के लिए बुलवाया। वहाँ पर उसी समय मुझे यह कहते हुए
सामी की भूमिका थमा दी गई कि उनके नाटक में यह एक महत्त्वपूर्ण चरित्र है।
मैं डर के मारे थोड़ा नर्वस था कि कहीं वे उसी समय मुझसे अपना पाठ पढ़ने के
लिए न कह दें क्योंकि मैं बिल्कुल भी पढ़ना नहीं जानता था और मैं परेशानी
में पड़ जाता। सौभाग्य से उन्होंने मुझे मेरे संवाद घर ले जाने के लिए दे
दिए कि मैं फुरसत से उन्हें पढ़ूं क्योंकि वे अगले हफ्ते से पहले रिहर्सल
शुरू करने वाले नहीं थे।
मैं खुशी के मारे पागल होता हुआ बस में घर पहुंचा और पूरी शिद्दत से यह
महसूस करने लगा कि मेरे साथ क्या हो गया है। मैंने अचानक ही गरीबी की अपनी
ज़िंदगी पीछे छोड़ दी थी और अपना बहुत पुराना सपना पूरा करने जा रहा था। ये
सपना जिसके बारे में अक्सर मां ने बातें की थीं और उसे मैं पूरा करने जा
रहा था। अब मैं अभिनेता होने जा रहा था। ये सब इतना अचानक और अप्रत्याशित
रूप से होने जा रहा था। मैं अपनी भूमिका के पन्नों को सहलाता रहा। इस पर
नया खाकी लिफाफा था। यह मेरी अब तक की ज़िंदगी का सबसे महत्त्वपूर्ण
दस्तावेज था। बस की यात्रा के दौरान मैंने महसूस किया कि मैंने एक बहुत
बड़ा किला फतह कर लिया है। अब मैं झोपड़ पट्टी में रहने वाला नामालूम सा
छोकरा नहीं था। अब मैं थिएटर का एक खास आदमी होने जा रहा था। मेरा मन किया
कि मैं रो पडूं।
जब मैंने सिडनी को बताया कि क्या हो गया है तो उसकी आंखें भर आयीं। वह
बिस्तर पर पालथी मारकर बैठ गया और खिड़की से बाहर देखने लगा। वह हिल रहा
था। और तब अपना सिर हिलाते हुए उसने गहरी उदासी से कहा,"ये हमारी ज़िंदगी
का निर्णायक मोड़ है। काश, आज हमारी माँ यह खुशी बांटने के लिए हमारे साथ
होती।"
मैंने उत्साहपूर्वक कहा,"जरा सोचो तो, चालीस सप्ताह तक दो पाउंड और दस
शिलिंग। मैंने तो मिस्टर हैमिल्टन से कह दिया है कि तुम्हीं मेरे कारोबारी
मामले सम्भालते हो।" इसलिए मैं बेताबी से बोला,"हो सकता है, हमें कुछ
ज्यादा भी मिल जाएं। खैर, हम हर वर्ष साठ पाउंड बचा सकते हैं।"
हमने अपने उत्साह के चलते यह गणना भी कर ली और तर्क भी गढ़ लिया कि इतनी
बड़ी भूमिका के लिए दो पाउंड और दस शिलिंग की राशि बहुत कम है। सिडनी ने
यहाँ तक सोच डाला कि वह जाकर पैसे बढ़वाने की बात करेगा। मैंने कहा कि
कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन हैमिल्टन अड़ गये।
"हम अधिकतम दो पाउंड दस शिलिंग ही दे सकते हैं।" वे बोले। हम इसे पाकर ही
खुश थे।
•
सिडनी ने मुझे मेरी भूमिका पढ़कर सुनाई और मुझे अपनी पंक्तियां याद करने
में मेरी मदद की। यह काफी बड़ी भूमिका थी और लगभग पैंतीस पन्नों में लिखी
हुई थी। इसे मैंने तीन दिन में ही मुंह ज़बानी याद कर लिया था।
`जिम' की रिहर्सलें ड्ररी लेन थिएटर की ऊपर वाली मंज़िल में हुईं। सिडनी ने
मुझे इतने उत्साह के साथ ट्रेनिंग दी थी कि मुझे एक-एक शब्द याद हो गया था।
बस, एक शब्द मुझे परेशान कर रहा था। लाइन कुछ इस तरह से थी, "आप अपने आप को
समझते क्या हैं मिस्टर पियरपाँट मोरगन?" और मैं कह बैठता,"पुटरपिंट मोरगन।"
मिस्टर सेंट्सबरी ने मुझे ये शब्द ज्यों के त्यों रखने दिये। ये शुरुआती
रिहर्सलें आँखें खोलने वाली थीं। इन्होंने मेरे सामने तकनीकों की एक नयी
दुनिया खोल कर रख दी। मुझे इस बात की कत्तई जानकारी नहीं थी कि स्टेज
क्राफ्ट, टायमिंग, विराम, मुड़ने के लिए संकेत, बैठने के लिए संकेत जैसी कई
बातें भी होती हैं। लेकिन ये सारी चीज़ें मुझे स्वाभाविक रूप से आ गयीं।
बस, मेरी एक ही खामी को मिस्टर सेंट्सबरी ने ठीक किया - बोलते समय मैं सिर
बहुत हिलाता था और सांस बहुत रोकता था।
कुछ दृश्यों की रिहर्सल कर लेने के बाद वे हैरान रह गये और मुझसे पूछने लगे
कि क्या मैंने पहले कभी अभिनय किया है। कितना संतोषजनक था सेंट्सबरी साहब
को और नाटक दूसरे अभिनेताओं को खुश करना! अलबत्ता, मैंने उनका उत्साह इस
तरह से स्वीकार किया मानो यह मेरा स्वाभाविक जन्मसिद्ध अधिकार हो।
जिम को किंग्स्टन थिएटर में पहले हफ्ते में और फुलहाम थिएटर में दूसरे
हफ्ते में आजमाइश के तौर पर के रूप में खेला जाना था। यह हैनरी ऑर्थर जोन्स
के सिल्वर किंग पर आधारित एक मैलोड्रामा था। इसकी कहानी कुछ इस तरह से थी
कि एक अभिजात्य व्यक्ति अनिद्रा रोग से पीड़ित है और एक दिन अपने आपको फल
बेचने वाली एक युवा लड़की और अखबार बेचने वाले एक लड़के के साथ एक दुछत्ती
में रहते हुए पाता है। लड़के सामी की भूमिका मैंने निभानी थी। नैतिक रूप से
सब ठीक-ठाक था। लड़की दुछत्ती में एक अलमारी में सोती थी और ड्यूक, उसको हम
यही कर पुकारते थे, खाट पर आराम से सोता था और मैं फर्श पर सोता था।
पहले अंक का दृश्य 7 ए डेवरयू कोर्ट, द टेंपल का था। यह एक अमीर वकील जेम्स
सीटन गेटलॉक का चेंबर था। बरबाद ड्यूक अपने विरोधी वकील के पास जाता है और
अपना भला करने वाली फूल बेचने वाली लड़की, जो बीमार है, की मदद करने के लिए
हाथ फैलाता है। इस लड़की ने अनिद्रा के उसके रोग में उसकी मदद की थी।
नोक झोंक में विलेन ड्यूक से कहता है,"दफा हो जाओ। जाओ और भूखे मरो। तुम और
तुम्हारी ये रखैल।"
ड्यूक हालांकि कमजोर और मरियल सा है, मेज से कागज़ काटने वाला चाकू उठा
लेता है मानो वह विलेन पर हमला कर रहा हो, लेकिन इस तरह से चाकू मेज पर
गिरा देता है जैसे उसे मिर्गी का दौरा पड़ा हो और वह विलेन के पैरों के पास
बेहोश हो कर गिर जाता है। इस मोड़ पर आकर विलेन की भूतपूर्व पत्नी, जिससे
कभी यह पस्त ड्यूक प्रेम किया करता था, कमरे के भीतर आती है। वह भी यह कहते
हुए पस्त ड्यूक के लिए हाथ जोड़ती है,"उसकी मेरे साथ नहीं बनी। वह अदालतों
में भी कुछ नहीं कर पाया। कम से कम तुम तो उसकी मदद कर सकते हो।"
लेकिन विलेन मना कर देता है। दृश्य चरम उत्तेजना तक जा पहुंचता है। विलेन
अपनी भूतपूर्व पत्नी पर निष्ठावान न रहने का आरोप लगाता है और उसे भी छोड़
देता है। सनक में आकर वह कागज़ काटने वाला चाकू उठा लेती है जो पस्त ड्यूक
के हाथ से गिरा था और विलेन को मार देती है। विलेन अपनी आराम कुर्सी में
गिर कर मर जाता है जबकि ड्यूक अभी भी उसके पैरों के पास बेहोश पड़ा हुआ है।
महिला दृश्य से गायब हो जाती है और ड्यूक को जब होश आता है तो वह अपने
विरोधी को मरा हुआ पाता है। वह कहता है,"हे भगवान, ये मैंने क्या कर डाला।"
और इस तरह से नाटक चलता रहता है। वह मृतक की जेबों की तलाशी लेता है और उसे
एक पर्स मिलता है जिसमें कई पाउंड, हीरे की अंगूठी और आभूषण मिलते हैं। वह
ये सारी चीज़ें अपनी जेब के हवाले करता है और जब वह खिड़की रास्ते बाहर
निकल रहा है तो मुड़ कर कहता है,"गुड बाय गैटलॉक, आखिर तुमने मेरी मदद कर
ही दी।" और परदा गिरता है।
दूसरा दृश्य उस दुछत्ती का था जहाँ ड्यूक रहता था। जब दृश्य खुलता है तो एक
अकेला जासूस अलमारी के अंदर तांक-झाँक कर रहा है। मैं सीटी बजाते हुए आता
हूँ और जासूस को देखकर रुक जाता हूँ।
अखबारवाला लड़का - अरे आप, क्या आपको नहीं पता कि ये एक महिला का बेडरूम
है?
जासूस - क्या? ये अलमारी? जरा इधर तो आना
लड़का - बदतमीज, ढीठ कहीं के!
जासूस - तुमने ये दिखाया। इधर आओ और दरवाजा बंद कर दो।
लड़का - (उसकी तरफ जाते हुए) जरा आराम से। समझे नहीं क्या? उनके अपने
ड्राइंग रूम में भोंदुओं के आमंत्रण?
जासूस - मैं एक जासूस हूँ।
लड़का - अरे पुलिस वाला ...तब तो हो गई मेरी छुट्टी।
जासूस - मैं तुम्हें कोई नुक्सा न नहीं पहुंचाऊंगा। मैं तो थोड़ी-जानकारी
चाहता हूँ जिससे किसी गरीब की मदद हो जाए।
लड़का - किसी की मदद? यदि यहाँ किसी का भला होता है तो वह कम से कम किसी
पुलिस वाले के हाथों तो नहीं ही होगा।
जासूस - ज्यादा मूरख मत बनो। क्या मैंने तुझसे ये कहा है कि मैं कभी फौज
में था।
लड़का - बिना किसी बात के शुक्रिया। मैं आपके जूते देख सकता हूँ।
जासूस - यहाँ कौन रहता है?
लड़का - ड्यूक
जासूस - वो तो ठीक है, लेकिन उसका असली नाम क्या है?
लड़का - मुझे नहीं पता। लेकिन वह इसी नाम से जाना जाता है। वैसे आप मुझे इस
बात के लिए मार भी सकते हैं कि मुझे इसका मतलब नहीं मालूम।
जासूस - और वो देखने में कैसा लगता है?
लड़का - कागज की तरह पतला, सफेद बाल, दाढ़ी सफाचट, टॉपहैट और एक आँख वाला
चश्मा पहनता है। और हां!! वह आपको उसी चश्मे से देखता है।
जासूस - और जिम, - ये कौन है?
लड़का - वह आदमी? आपका मतलब लड़की?
जासूस - तो यह वही लड़की है जो -
लड़का - (उसे टोकते हुए) जो अलमारी में सोती है। यहाँ ये कमरा हमारा है,
मेरा और ड्यूक का वगैरह। वगैरह ...
और भी बहुत कुछ था मेरी भूमिका में और मेरा यकीन मानिये, दर्शकों को इसमें
बहुत मज़ा आया। मेरा ख्याल है इसका कारण यह रहा होगा कि मैं अपनी उम्र से
बहुत छोटा दिखता था। मैं जो भी लाइन बोलता, उस पर ठहाके लगते। सिर्फ मंच पर
किए जाने वाले काम मुझे परेशान करते। स्टेज पर सचमुच की चाय बनाना। मैं
हमेशा भ्रम में पड़ जाता कि पहले पॉट में गरम पानी डालना है या चाय की
पत्ती। इसकी तुलना में स्टेज पर कुछ भी काम करने के बजाय लाइनें बोलना
हमेशा आसान होता।
जिम नाटक सफल नहीं रहा था। समीक्षकों ने उस नाटक पर बहुत बेदर्दी से कलम
चलायी। इसके बावजूद मेरा ज़िक्र अनुकूल ढंग से किया गया। एक समीक्षा जो
मुझे हमारी ही कम्पनी के मिस्टर चार्ल्स रॉक ने दिखायी थी, बहुत ही अच्छी
थी। वे एक पुराने एडाल्फी अभिनेता थे और उनका बहुत नाम था। और मैंने अपने
अधिकतर दृश्य उनके साथ ही किये थे। "...नौजवान," उन्होंने गंभीरता से कहा
था," जब तुम ये सब पढ़ो तो ये चीज़ें तुम्हारे दिमाग पर सवार नहीं हो जानी
चाहिये।" और विनम्रता और सौम्यता पर मुझे भाषण पिलाने के बाद लंदन ट्रापिकल
टाइम्स में से मुझे ये समीक्षा पढ़ कर सुनायी। मुझे समीक्षा का एक-एक शब्द
याद है।
नाटक के बारे में हिकारत से लिखने के बाद अखबार ने लिखा: "लेकिन एक आशा
जगाने वाली बात भी है। सामी की भूमिका, अखबार बेचने वाला छोकरा, लंदन की
गलियों का एक स्मार्ट अरब, जिसने काफी हद तक का नाटक में हास्य की कमी पूरी
की है। बेशक ये भूमिका घिसी-पिटी और पुराने ढब की है फिर भी, मास्टर चार्ली
चैप्लिन ने सामी के रोल को काफी हद तक रोचक बना दिया है। एक शानदार और
मेहनती बाल कलाकार, मैंने हालांकि इस बच्चे के बारे में पहले कभी पहले नहीं
सुना है फिर भी हमें निकट भविष्य में इस बच्चे के बारे में बहुत कुछ बेहतर
सुनने को मिलेगा, मुझे ऐसी उम्मीद है।" सिडनी ने इसकी एक दर्जन प्रतियां
खरीद लीं।
`जिम' के दो सप्ताह तक चलने के बाद हमने शरलॉक होम्स का पूर्वाभ्यास शुरू
किया। इस वक्त के दौरान सिडनी और मैं अभी भी पाउनॉल टैरेस पर ही रह रहे थे।
इसका कारण यह था कि आर्थिक रूप में अभी भी हम अपने पैरा तले की ज़मीन के
बारे में बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं थे।
पूर्वाभ्यास के दौरान सिडनी और मैं मां से मिलने के लिए केन हिल गये। पहले
तो नर्सों ने हमें यही बताया कि हम मां से नहीं मिल पायेंगे क्योंकि मां की
तबीयत ठीक नहीं है। फिर वे सिडनी को एक तरफ ले गयीं और उससे फुसफुसा कर बात
करने लगीं, लेकिन मैंने सिडनी की बात सुन ली थी,"नहीं, मुझे नहीं लगता वह
देख पायेगा।" तब वह मेरी तरफ मुड़ कर उदासी से बोला था,"तुम मां को
पागलखाने में नहीं देखना चाहोगे?"
"नहीं नहीं, मैं ये बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा।" मैंने तड़प कर कहा।
लेकिन सिडनी मां से मिला और मां ने उसे पहचान लिया और वह सचेत हो गयी। कुछ
ही पलों के बाद नर्स ने आ कर मुझे बताया कि अब मां बेहतर है और क्या मैं
उसे देखना चाहूंगा। तब हम दोनों पागलखाने वाले कमरे में गये और वहाँ जा कर
बैठ गये। इससे पहले कि हम जाते, वह मुझे एक तरफ ले कर गयी और मेरे कान में
फुसफुसायी,"हिम्मत मत हारना, नहीं तो वे लोग तुम्हें यहीं रख सकते हैं।"
मां फिर से अपनी सेहत वापिस पाने से पहले पूरे अट्ठारह महीने केन हिल में
रही। मैं जब दौरे पर था तो सिडनी नियमित रूप से जा कर उससे मिलता रहा।
•
मिस्टर एच ए सेंट्सबरी जो टूर पर होम्स का पार्ट कर रहे थे, स्ट्रैंड
मैग्जीन में छपने वाले चित्रों की हू ब हू प्रतिकृति थे। उनका लम्बोतरा
संवेदनशील चेहरा था, और माथे पर प्रेरणा देते से भाव थे। जितने भी कलाकार
होम्स की भूमिका अदा किया करते थे, उनमें से सेंट्सबरी को बेहतरीन समझा
जाता था। उन्हें विलियम गिलेट, मूल होम्स और नाटक के लेखक से भी अच्छा माना
जाता था।
मेरे पहले टूर के दौरान मैनेजमेंट ने तय किया कि मैं मिस्टर और मिसेज ग्रीन
के साथ रहूं। मिस्टर ग्रीन हमारी कम्पनी के बढ़ई थे और मिसेज ग्रीन
वार्डरोब संभालती थीं। ये व्यवस्था बहुत शानदान नहीं कही जा सकती थी। ऊपर
से मिस्टर और मिसेज ग्रीन कभी-कभार पीते-वीते थे। इसके अलावा, मै अक्सर उसी
वक्त खाना नहीं खाता था जब वे खाया करते। जो वे खाया करते वह मैं नहीं
खाता। मुझे यकीन है, मेरा ग्रीन दम्पत्ति के साथ रहना मेरे लिये उतना
तकलीफदेह नहीं था, जितना उनके लिए था। इसलिए तीन हफ्ते तक एक साथ रहने के
बाद हमने आपसी रज़ामंदी से अलग होने का फैसला कर लिया। और चूंकि मैं इतना
छोटा था कि किसी और कलाकार के साथ नहीं रह सकता था, मैं अकेला ही रहने लगा।
मैं अजनबी शहरों में अकेले रहता, पिछवाड़े के कमरों में अकेले रहता, और शाम
के शो के वक्त से पहले शायद ही किसी साथी कलाकार से मिलता-जुलता। जब मैं
अपने आप से बात करता तो मुझे सिर्फ अपनी ही आवाज़ सुनायी देती। अक्सर मैं
सैलूनों में चला जाता जहाँ हमारी कम्पनी के साथी इकट्ठे होते। और उन्हें
बिलियर्ड्स खेलते देखता। लेकिन मैं हमेशा पाता कि मेरी मौजूदगी से उनकी
बातचीत में बाधा ही आ खड़ी होती है और वे इस बात को मुझे जतलाने में कोई
शर्म भी महसूस न करते। इसलिए उनकी किसी ऐसी-वैसी बात पर मुस्कुरा भी दूँ तो
उनकी भौंहे तन जाती थीं।
मैं अकेला होता चला गया। रविवारों की रात को उत्तरी शहरों में पहुंचना,
अंधियारी मुख्य गली में से गुजरते हुए गिरजा घर की घंटियों की उदास
टुनटुनाहट सुनना। ये सारी बातें मेरे अकेलेपन में कुछ भी न जोड़ पाती।
सप्ताह के अंत की छुट्टियों के दिनों में मैं स्थानीय बाजार खंगालता, और
अपनी खरीदारी करता, राशन-पानी खरीदता, मांस खरीदता जिसे मकान मालकिन पका कर
दे देती। कई बार मुझे खाने और रहने की सुविधा मिल जाती और मैं तब रसोई में
बैठ कर परिवार के साथ ही खाता। मुझे वह व्यवस्था अच्छी लगती क्योंकि उत्तरी
इंगलैंड के रसोईघर साफ-सुथरे और भरे पूरे होते, वहां पॉलिश किए हुए
फायरग्रेट होते और नीली भट्टियाँ होतीं। मकान मालकिन का ब्रेड सेंकना, और
ठंडे अंधियारे दिन में से निकल कर लंकाशायर रसोई की जलती आग की लाल लौ के
दायरे में आना हमेशा अच्छा लगता। वहाँ बिना सिंकी डबलरोटियों के डिब्बे
भट्टी के आस-पास पार बिखरे होते, तब परिवार के साथ चाय के लिए बैठना, भट्टी
से अभी-अभी निकली गरमा-गरम डबलरोटी की सोंधी-सोंधी महक, उस पर लगाया गया
ताज़ा मक्खन...मैं गंभीर महानता ओढ़े इनका आनंद उठाता।
मैं प्रदेशों में छह महीने तक रहा। इस बीच सिडनी को थियेटर में ही काम
तलाशने में बहुत कम सफलता मिली थी इसलिए अब वह कलाकार बनने की अपनी
महत्त्वाकांक्षा को त्याग कर स्ट्रैंड में कोल होल में एक बार में काम के
लिए आवेदन करने पर मजबूर हो गया। एक सौ पचास आवेदकों में से यह नौकरी उसे
मिली थी। लेकिन मानो एक तरह से यह उसका पहले की स्थिति से पतन था।
वह मुझे नियमित रूप से लिखा करता और मां के बारे में मुझे समाचार देता
रहता। लेकिन मैं शायद ही उसके खतों के जवाब देता। इसका एक कारण था कि मुझसे
वर्तनी की गलतियाँ बहुत होतीं। उसके एक खत ने तो मुझे इतनी गहराई से छुआ और
इसकी वजह से मैं उसके और नजदीक आ गया। उसने मुझे उसके खतों का जवाब न देने
के कारण फटकार लगायी और याद दिलाया था कि हम कैसे-कैसे दिन एक साथ देख कर
यहाँ तक पहुँचे हैं और इस बात से हमें कम से कम एक दूसरों के और करीब होना
चाहिए।
सिडनी ने लिखा,".. मां की बीमारी के बाद हम दोनों के पास एक दूसरे के अलावा
और कौन बचे हैं। तुम नियमित रूप से लिखा करो और मुझे बताओ कि मेरा एक भाई
भी है।"
उसका पत्र इतना अधिक भावपूर्ण था कि मैंने तुरंत ही उसका जवाब दे दिया। अब
मैं सिडनी को दूसरे ही आलोक में देख रहा था। उसके पत्र ने भ्रातृत्व के
प्यार का ऐसा अटूट बंधन बांधा जो मेरी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ बना रहा।
मैं अकेले रहने का आदी हो चुका था। लेकिन मैं बातचीत करने से इतना विमुख
होता चला गया कि जब कम्पनी का कोई साथी मुझसे मिलता तो मैं बहुत ज्यादा
परेशानी में पड़ जाता। मैं अपने आपको फटाफट इस बात के लिए तैयार ही न कर
पाता कि हाजिर जवाबी से, समझदारी से किसी बात का जवाब दे सकूं। लोग-बाग
मुझे छोड़ कर चले जाते। मुझे पक्का यकीन है कि मेरी बुद्धि के प्रति
घबड़ाकर चिंतातुर हो कर ही मुझसे विदा लेते। अब उदाहरण के लिए, मिस ग्रेटा
हॉन को ही लें। वे हमारी प्रमुख अभिनेत्री थीं। खूबसूरत, आकर्षक और दयालुता
की साक्षात प्रतिमा, लेकिन जब मैंने उन्हें सड़क पार कर अपनी तरफ आते देखता
तो मैं तेजी से मुड़ कर या तो एक दुकान की खिड़की में देखने लगता या उससे
मिलने से बचने के लिए किसी दूसरी ही गली में सरक जाता।
मैंने अपने-आप की परवाह करनी छोड़ दी और अपनी आदतों में लापरवाह होता चला
गया। जब मैं कम्पनी के साथ यात्रा कर रहा होता तो रेलवे स्टेशन पहुंचने में
मुझे हमेशा देर हो जाती। आखिरी पलों में पहुँचता और मेरी हालत अस्त-व्यस्त
होती, मैंने कॉलर भी न लगाया होता, और मुझे हमेशा इस बात के लिए फटकार
सुननी पड़ती।
मैंने अपने साथ के लिए एक खरगोश खरीद लिया और मैं जहाँ भी रहता, उसे छुपा
कर अपने कमरे में ले जाता और मकान मालकिन को इस बात की हवा भी न लग पाती।
ये एक छोटा-सा प्यारा-सा जीव था जो बेशक इधर-उधर मुंह नहीं मारता था। इसकी
फर इतनी सफेद और साफ थी कि यह बात किसी की ध्यान में भी नहीं आती थी कि
इसकी गंध कितनी तीखी हो सकती है। मैं इसे अपने बिस्तर के नीचे एक लकड़ी के
पिंजरे में छुपा कर रखता। मकान मालकिन खुशी-खुशी मेरे कमरे में मेरा नाश्ता
ले कर आती, तभी उसे इस महक का पता चलता, तब वह कमरे से परेशान और भ्रमित हो
कर चली जाती, उसके कमरे से बाहर जाते ही मैं अपने खरगोश को आज़ाद कर देता
और वह सारे कमरे में फुदकता फिरता।
बहुत पहले ही मैंने अपने खरगोश को इस बात की ट्रेनिंग दे दी थी कि ज्यों ही
वह दरवाजे पर खटखट सुने, पलट कर अपनी पेटी में चला जाये। अगर मकान मालकिन
को मेरे इस रहस्य का पता चल भी जाये तो मैं अपने खरगोश को ट्रिक करके
दिखाने को कह कर उसका दिल जीत लेता और वह फिर हमें पूरा हफ़्ता रहने के लिए
इजाजत दे देती।
लेकिन टोनीपेंडी, वेल्स में, मैंने अपनी ट्रिक दिखायी तो मकान मालकिन
रहस्यमय ढंग से मुस्कुरायी लेकिन उसने कोई राय जाहिर नहीं की, लेकिन उस रात
जब मैं थियेटर से लौटा तो मेरा प्रिय पालतू खरगोश जा चुका था। जब मैंने
उसके बारे में पूछताछ की तो मकान मालकिन ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया,"कहीं
भाग-वाग गया होगा या उसे ज़रूर किसी ने चुरा लिया होगा।" उसने बड़ी चतुराई
से अपने-आप ही समस्या को सुलझा लिया था।
टोनीपेंडी से हम ऐब्बी वेल के खदानों वाले शहर में पहुँचे जहाँ हमें तीन
रातों के लिए रुकना था। और मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार था कि हमें सिर्फ
तीन दिन ही रुकना था क्योंकि ऐब्बीवेल एक सीलन-भरी जगह थी जो उन दिनों
गंदा-सा शहर हुआ करता था, भयानक, एक जैसे मकानों की एक के बाद एक कतार, हर
घर में चार छोटे कमरे थे जिनमें तेल की कुप्पियाँ जलतीं। कंपनी के ज्यादातर
लोग एक छोटे-से होटल में ठहरे। सौभाग्य से मुझे एक खदानकर्मी के घर में
सामने की तरफ वाला कमरा मिल गया। कमरा बेशक छोटा था लेकिन ये साफ और
आरामदायक था। रात को जब मैं नाटक से वापिस लौटता तो कमरे में आग के पास ही
मेरा खाना रख दिया जाता जहाँ वह गरम रहता।
मकान मालकिन लम्बी, खूबसूरत-सी औरत थी जिसके आस-पास त्रासदी का एक आवरण
लिपटा हुआ था। वह सुबह मेरे कमरे में राश्ता ले कर आती और शायद ही कभी
एक-आध शब्द बोलती। मैंने नोट किया कि उसकी रसोई का दरवाजा हमेशा ही बंद
रहता। जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती, मुझे दरवाजा खटखटाना पड़ता और
दरवाजा एकाध इंच ही खोला जाता।
दूसरी रात जब मैं रात का खाना खा रहा था तो उसका पति आया। वह लगभग अपनी
पत्नी की उम्र का रहा होगा। उस शाम वह थियेटर गया हुआ था और उसे हमारा नाटक
अच्छा लगा था। बातचीत करते समय वह खड़ा ही रहा। उसने हाथ में एक जलती
मोमबत्ती पकड़ी हुई थी और वह सोने के लिए जाने की तैयारी में था। वह बात
करते समय थोड़ा रुका मानो कुछ कहना चाह रहा हो."...सुनो, मेरे पास कुछ ऐसा
है जो मुझे लगता है, तुम्हारे काम काज में कहीं फिट हो सकता है। कभी मानव
मेंढक देखा है? लो इस मोमबत्ती को पकड़ो और मैं लैम्प पकड़ता हूँ।"
वह मुझे रसोई घर तक ले कर गया और लैम्प को ड्रेसर पर रख दिया। ड्रेसर पर
ऊपर से नीचे तक अलमारी के दरवाजों के पल्लों की जगह पर परदा लगा हुआ था।
"...ऐ गिल्बर्ट, जरा बाहर तो निकलो।" उसने परदे सरकाते हुए कहा।
एक आधा आदमी जिसके पैर नहीं थे, सामान्य आकार से बड़ा सिर, लाल बाल,
चपटा-सा माथा, बीमार-सा सफेद चेहरा, धँसी हुई नाक, बड़ा-सा मुँह और मजबूत
कंधे और बाहें, ड्रेसर के नीचे से निकल कर आया। उसने फलानेल का जांघिया
पहना हुआ था। जांघिये के कपड़े को जाँघों तक काट दिया गया था। वहाँ उसके दस
मोटे, ठूँठ जैसे पंजे नज़र आ रहे थे। इस डरावने प्राणी की उम्र बीस से
चालीस के बीच कुछ भी हो सकती थी।
"ऐ, ... हे गिल्बर्ट, जरा कूद के दिखाओ।" पिता ने कहा और दीन-हीन आदमी ने
अपने आपको थोड़ा नीचे किया और लगभग मेरे सिर की ऊँचाई तक अपनी बाहें ऊपर
उछाल दीं।
"...क्या ख्याल है? सर्कस के लिए यह फिट रहेगा? मानव मेंढक?"
मैं इतना भयभीत हो गया था कि जवाब ही न दे सका। अलबत्ता, मैंने उन्हें कई
सर्कसों के नाम पते बताये जहाँ वे इस बारे में लिख सकते थे।
वे इस बात पर अड़े रहे कि ये लिजलिजा प्राणी और भी उछल कूद, कलाबाजियाँ और
कूद फाँद दिखाये। उसे आराम कुर्सी के हत्थे पर हाथों के बल खड़ा किया गया,
कुदाया गया। जब उसने अपने ये सब करतब बंद किये तो मैंने यह जतलाया कि ये
वाकई उत्साह जनक है और इन ट्रिक्स पर उसे बधाई दी।
कमरे से बाहर निकलने से पहले मैंने उससे कहा ..."गुड नाइट गिल्बर्ट," तो
कूँए में से आती सी, जबान दबा कर उसे बेचारे ने जवाब दिया," ...गुड नाइट।"
उस रात कई बार मैं उठा और अपने बंद दरवाजे को अच्छी तरह देखा-भाला। अगली
सुबह मकान मालकिन खुश मिजाज़ नजर आयी और उसके चेहरे पर संवाद करने जैसे भाव
थे। "मेरा ख्याल है, तुमने कल रात गिल्बर्ट को देखा है," कहा उसने, "हां,
ये ज़रूर है कि जब हम थिएटर के लोगों को घर में रखते हैं तो वह ड्रेसर के
नीचे ही सोता है।"
तब यह वाहियात ख्याल मेरे मन में आया कि मैं गिल्बर्ट के बिस्तर में ही
सोता रहा हूँ।... "हाँ," मैंने जवाब दिया और उसके सर्कस में जाने की
संभावनाओं पर नपे-तुले शब्दों में ही बात करता रहा।
मकान मालकिन ने सिर हिलाया,"...हम अक्सर इस बारे में सोचते रहे हैं।"
मेरा उत्साह - या इसे जो भी नाम दे दें - मकान मालकिन को खुश करता जा रहा
था। वहाँ से चलने से पहले मैं रसोई में गिल्बर्ट को बाय-बाय कहने गया। सहज
रहने की कोशिश करते हुए मैंने उसका बड़ा-सा फैला हुआ हाथ अपने हाथ में लिया
और उसने हौले से मेरा हाथ दबाया।
•
चालीस हफ्तों तक अलग-अलग प्रदेशों में प्रदर्शन करने के बाद हम लंदन लौटे।
अब हमें आस-पास के उपनगरों में आठ हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे। शरलॉक होम्स,
जो सदाबहार सफलता के झँडे गाड़ता था, पहले टूर के होने के बाद तीन हफ्ते
बाद दूसरे टूर से शुरू होने वाला था।
अब सिडनी और मैंने तय किया कि पाउनाल टेरेस वाला अपना कमरा छोड़ दें और
केनिंगटन रोड पर किसी ज्यादा इज़्ज़तदार जगह में जा कर रहें। हम अब सांपों
की तरह अपनी केंचुल को उतार फेंक देना चाहते थे। अपने अतीत को धो पोंछ देना
चाहते थे।
मैंने होम्स के अगले दौरे के दौरान सिडनी को एक छोटी-सी भूमिका दिये जाने
के बारे में मैनेजमेंट से बात की। और उसे काम मिल भी गया। एक हफ्ते के
पैंतीस शिलिंग। अब हम अपने दौरे पर साथ एक साथ थे।
सिडनी हर हफ्ते मां को खत लिखता था और हमारे दूसरे दौरे के आखिरी दिनों में
हमें केन हिल पागल खाने से एक पत्र मिला कि अब हमारी मां की सेहत बिलकुल
ठीक है। यह निश्चित ही एक बेहतर खबर थी। हमने फटाफट अस्पताल से मां को
डिस्चार्ज कराने के इंतज़ाम किये और इस बात की तैयारियाँ कीं कि वह हमारे
पास ही रीडिंग शहर में पहुँच जाये। इस मौके का जश्न मनाने के लिए हमने एक
स्पेशल डीलक्स अपार्टमेंट लिया जिसमें दो बेडरूम थे, एक ड्राइंगरूम था
जिसमें पियानो रखा हुआ था। हमने मां का बेडरूम फूलों से सजा दिया और एक
शानदार डिनर का इंतजाम किया।
सिडनी और मैं स्टेशन पर मां का इंतज़ार करते रहे। हम तनाव में भी थे और खुश
भी। लेकिन मैं इस बात को सोच-सोच कर परेशान हुआ जा रहा था कि अब वह कैसे
हमारी ज़िंदगी में फिर से फ़िट हो पायेगी, इस बात को जानते हुए कि उन दिनों
की वह आत्मीय घड़ियां फिर से नहीं जी जा सकेंगी।
आखिरकार ट्रेन आ पहुँची। सवारियाँ जैसे-जैसे डिब्बों में से निकल कर आ रही
थीं, हम उत्तेजना और अनिश्चितता से उनके चेहरे देख रहे थे। और आखिर में वह
नज़र आयी। मुस्कुराती हुई और चुपचाप धीरे-धीरे हमारी तरफ बढ़ती हुई। जब हम
उससे मिलने के लिए आगे बढ़े तो उसने ज्यादा भाव प्रदर्शित नहीं किये लेकिन
वात्सल्य के साथ हमें प्यार किया। तय था वह अपने आपको एडजस्ट करने के भीषण
दौर से गुज़र रही थी। टैक्सी से अपने कमरों तक की उस छोटी-सी यात्रा में
हमने हज़ारों बातें की, मतलब की और बेमतलब की।
मां को अपार्टमेंट और उसके बेडरूम के फूल दिखा देने के तात्कालिक उत्साह के
बाद हम अपने आपको ड्राइंगरूम में एक दूसरे के सामने खाली-खाली बैठा पा रहे
थे। हमारी सांस फूल रही थी। धूप भरा दिन था और हमारा अपार्टमेंट एक शांत
गली में था। लेकिन अब इसकी शांति बेचैन कर रही थी। हालांकि मैं खुश होना
चाहता था लेकिन पता नहीं क्यों, मैं अपने-आपको एक तरह के दिल डूबने वाले के
भाव से लड़ता हुआ पा रहा था। बेचारी मां, उसने खुश और संतुष्ट रहने के लिए
ज़िंदगी से कितना कम चाहा था, मुझे अपने तकलीफ़ भरे अतीत की याद दिला रही
थी ...वह दुनिया की आखिरी औरत थी जिसने मुझे इस तरह से प्रभावित किया होगा।
लेकिन मैंने अपनी तरफ़ से इन भावनाओं को छुपाने की भरपूर कोशिश की। उसकी
उम्र थोड़ी बढ़ गयी थी और वज़न भी बढ़ गया था। मैं हमेशा इस बात पर गर्व
किया करता था कि हमारी मां कितनी शानदार दिखती है और ढंग से पहनी ओढ़ती है,
और मैं चाहता था कि मैं अपनी कम्पनी को उसके बेहतरीन रूप में दिखाऊं। लेकिन
अब वह अनाकर्षक दिख रही थी। मां ने ज़रूर मेरी शंका के ताड़ लिया होगा तभी
तो उसने मेरी तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखा।
झिझकते हुए मैंने मां के बालों की लट का ठीक किया,"...मेरी कम्पनी से मिलने
से पहले," मैं मुस्कुराया,"मैं चाहता हूँ कि तुम अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में
होवो।"
हमें एक दूसरे से एडजस्ट हाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। और मेरी हताशा
उड़न छू हो गयी। अब हम उस आत्मीयता के दायरे से बाहर आ चुके थे जो वह तब
जानती थी जब हम बच्चे थे और तब वह उस बात को हम बच्चों से बेहतर जानती थी।
और यह बात हमें और भी प्यारी बना रही थी। हमारे टूर के दौरान वह खरीदारी
करती, सौदा सुलुफ लाती, घर पर फल वगैरह ले आती, खाने-पीने के लिए कुछ न कुछ
अच्छी चीज़ें ले आती और थोड़े से फल तो जरूर ही खरीद कर लाती। हम अतीत में
कितने भी गरीब क्यों न रहे हों, शनिवारों की रात के वक्त खरीदारी करते समय
हम हमेशा पेनी भर के फूल खरीदने का जुगाड़ तो कर ही लिया करते थे। अक्सर वह
शांत और अपने आप में गुमसुम रहती और उसका ये अलगाव मुझे उदास कर जाता। वह
हमारे साथ मां की तरह पेश आने के बजाये मेहमानों की तरह पेश आती।
एक महीने के बाद मां ने लंदन वापिस जाने की इच्छा प्रकट की। वह अब घर बसा
लेना चाहती थी ताकि जब हम दौरे से वापिस आयें तो उसके पास हमारे लिए एक घर
हो। इसके अलावा, जैसा कि उसने कहा, इस तरह सदा सैरों पर घूमते हुए एक
अतिरिक्त किराया देने की तुलना में लंदन में घर ले कर रहना कहीं ज्यादा
सस्ता पड़ेगा।
मां ने चेस्टर स्ट्रीट पर नाई की दुकान के ऊपर एक फ्लैट किराये पर ले लिया।
यहाँ हम पहले भी रह चुके थे। मां किस्तों पर दस पाउंड का फर्नीचर ले आयी।
कमरे हालांकि वर्सेलिस के कमरों जैसे बड़े और शानदार नहीं थे लेकिन मां ने
तो कमाल कर दिया और कमरों का काया-कल्प कर दिया। उसने सोने के कमरों को
संतरी रंग के क्रेटस् और क्रेटोन से रंग डाला। अब कमरे सजावटी अल्मारियों
की तरह दिखने लगे थे। हम दोनों, सिडनी और मैं मिल कर हर हफ्ते चार पाउंड और
पांच शिलिंग कमा रहे थे और उसमें से एक पाउंड और पांच शिलिंग मां को भेज
देते।
अपने दूसरे दौरे के बाद मैं और सिडनी घर वापिस लौटे और एक हफ्ता मां के साथ
रहे। हालांकि हम मां के पास आ कर खुश थे, फिर भी हम मन ही मन फिर से दौरे
पर जाने की चाह रखने लगे थे क्योंकि चेस्टर स्ट्रीट के घर में वे सारी
सुविधाएं उस तरह की नहीं थीं जिनके मैं अब और सिडनी आदी होने लगे थे। बिला
शक मां ने इस बात को ताड़ लिया। जब हमें स्टेशन पर विदा करने के लिए आयी तो
वह काफी खुश लग रही थी लेकिन हम दोनों ने सोचा, जब प्लेटफार्म पर खड़ी वह
रुमाल हिलाती हमें विदा कर रही थी तो हमें वह चिंतित लगी।
हमारे तीसरे दौरे के दौरान मां ने हमें लिखा कि लुइस, जिसके साथ सिडनी और
मैं केनिंगट रोड पर रहे थे, नहीं रही है। मज़ाक ही तो कहा जायेगा कि, उसकी
मृत्यु भी लैम्बेथ यतीम घर में ही हुई जिस जगह पर कुछ अरसे तक हमें रखा गया
था। वह पिता जी के बाद सिर्फ चार बरस ही जी पायी थी और अपने बच्चे को यतीम
छोड़ गयी थी। उस बेचारे को भी उस अनाथालय में ही रखा गया और उसे भी उसी
हॉनवेल स्कूल में ही भेजा गया था जहाँ सिडनी और मुझे भेजा गया था।
मां ने लिखा था कि वह बच्चे से मिलने के लिए गयी थी और उसे बताने की कोशिश
की थी कि वह कौन है और कि सिडनी और मैं केनिंगटन रोड पर उसके और उसके
पापा...मम्मी के साथ रहे थे लेकिन बच्चे को कुछ भी याद नहीं था क्योंकि वह
उस समय मात्र चार बरस का ही था। उसे अपने पिता की भी कोई स्मृतियां नहीं
थीं। अब वह दस बरस को होने को आया था। उसे लुइस के मायके वाले नाम के साथ
रखा गया था और मां जहाँ तक पता लगा पायी थी, उसका कोई रिश्तेदार नहीं था।
मां ने लिखा था कि वह खूबसूरत और शांत लड़का निकल आया था। वह शर्मीला और
ख्यालों में खोया रहने वाला लड़का था। वह उसके लिए थैला भर मिठाइयां, संतरे
और सेब लेकर गयी थी और उससे वायदा किया था कि वह उसके पास नियमित रूप से
आती रहेगी और मेरा विश्वास है वह तब तक जाती भी रही होगी जब तक वह खुद
बीमार हो कर फिर से केन हिल में वापिस न भेज दी गयी हो।
मां के एक बार फिर पागल हो जाने की खबर सीने में खंजर की तरह लगी। हमें
पूरे ब्यौरे कभी नहीं मिल पाये। हमें सिर्फ एक शुष्क सरकारी पर्ची मिली कि
वह बेमतलब और असंगत तरीके से गलियों में फिरती हुई पायी गयी थी। हम कुछ भी
तो नहीं कर सकते थे सिवाय इसके कि बेचारी मां की किस्मत के लेखे को स्वीकार
कर लें। उसके बाद उसका दिमाग फिर कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ।
वह कई बरस तक केन हिल पागल खाने में ही तब तक एड़ियाँ रगड़ती रही जब तक हम
इस लायक नहीं हो गये कि उसे एक प्राइवेट पागल खाने में भर्ती करवा सकें।
•
कई बार बदकिस्मती के देवता भी अपनी चलाते-चलाते थक जाते हैं और थोड़ी-सी
दया माया दिखला देते हैं जैसा कि मां के मामले में हुआ। अपने जीवन के अंतिम
सात बरस मां को आराम से, फूलों से घिरे हुए और धूप से घिरे हुए बिताने का
मौका मिला। वह अपने बड़े हो गये सपूतों को यश और किस्मत के उस स्तर को
भोगते देख सकी जिसकी उसने कभी कल्पना की थी।
शरलॉक होम्स के तीसरे टूर के कारण ही सिडनी और मुझे मां को देखने आने में
अच्छा-खासा वक्त लग गया। फ्रॉहमैन कम्पनी के साथ टूर हमेशा के लिए खत्म हो
गया। इसके बाद थियेटर रॉयल, ब्लैकबर्न के मालिक मिस्टर हैरी यॉर्क ने
फ्रॉहमैन से छोटे शहरों में खेलने के लिए शरलॉक होम्स के अधिकार खरीद लिये।
सिडनी और मुझे नयी कम्पनी में रख लिया गया लेकिन अब हमारा वेतन घटा कर
पैंतीस शिलिंग प्रति सप्ताह कर दिया गया था।
उत्तरी इंगलैंड के छोटे शहरों में अपेक्षाकृत हल्के स्तर के कम्पनी के साथ
नाटक खेलना घुटन पैदा करने वाला और स्तर से नीचे आने जैसा था। इसके बावजूद,
इसने मेरे इस विवेक को समृद्ध किया कि जो कम्पनी हम छोड़ कर आये थे और
जिसमें काम कर रहे थे उनमें क्या फर्क था। मैं इस तुलना को छुपाने की कोशिश
करता लेकिन रिहर्सलों के समय, नये निर्देशक की मदद करने के उत्साह में मैं
अक्सर उसे बताने लगता कि ये काम तो फ्रॉहमैन कम्पनी में इस तरह से होता था
और फलां काम उस तरह से होता था। वह बेचारा तो मुझसे स्टेज डायरेक्शन,
संवादों के संकेतों तथा स्टेज पर होने वाले कामों के बारे में पूछ लिया
करता था। लेकिन सच तो यह था कि मैं अपनी इस हरकत से बाकी कलाकारों के साथ
खास तौर पर लोकप्रिय नहीं हो पाया था और मुझे बड़बोले के रूप में देखा जाने
लगा था। बाद में, नये स्टेज पर अपनी यूनिफार्म में से एक बटन खो देने के
कारण मैनेजर ने मुझ पर दस शिलिंग का जुर्माना ठोंक दिया। इस बटन के बारे
में वे मुझसे पहले भी कई बार कह चुके थे।
विलियम गिलेट, शरलॉक होम्स के लेखक, क्लारिसा नाम के नाटक में मारियो डोरो
को ले कर आये। ये नाटक भी उन्होंने ही लिखा था। समीक्षक नाटक के प्रति और
गिलेट की स्पीच के तरीके के प्रति बहुत बेरहम थे, जिसकी वजह से गिलेट साहब
को एक पर्दा उठाऊ, कर्टेन रेजर नाटक द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलाक
होम्स' लिखने पर मजबूर होना पड़ा। इसमें उन्होंने कभी एक शब्द भी नहीं बोला
था। नाटक के पात्रों में सिर्फ तीन ही लोग थे, एक पगली, खुद होम्स और उनका
पेज बॉय। जब मुझे मिस्टर पोस्टेंट, गिलेट के प्रबंधक से एक तार मिला तो
मुझे लगा, मेरे लिए स्वर्ग से खास संदेश आ गया है। मुझसे पूछा गया था कि
क्या मैं लंदन आ कर कर्टेन रेजर में विलियम गिलेट महोदय के साथ बिली की
भूमिका अदा करना चाहूँगा?
मैं पेसोपेश के मारे कांपने लगा। मेरी चिंता ये थी कि क्या मेरी कम्पनी
वाले इतने कम समय के नोटिस पर प्रदेशों में मेरी जगह कोई दूसरा बिली खोज
लेंगे। मैं कई दिन तक उहापोह वाले रहस्य में डूबता-इतराता रहा। अलबत्ता,
उन्हें दूसरा बिली मिल गया।
लंदन में वापिस लौट कर वेस्ट एंड में नाटक करने के अनुभव को मैं सिर्फ अपने
पुनर्जागरण के रूप में ही बयान कर सकता हूँ। मेरा दिमाग प्रत्येक घटना के
रोमांच के साथ चकर-घिन्नी सा घूम रहा था। शाम के वक्त ड्यूक के यॉर्क
थियेटर में पहुँचना और स्टेज मैनेजर मिस्टर पोस्टेंट से मिलना, जो मुझे
मिस्टर गिलेट के ड्रेसिंग रूप में लिवा ले गये, और जब मेरा उनसे परिचय करवा
दिया गया तो उनका मुझसे पूछा,"...क्या तुम मेरे साथ शरलॉक होम्स में काम
करना चाहोगे?"
और मेरा उत्साह के मारे नर्वस हो जाना, ..."ओह ज़रूर, मिस्टर गिलेट, ज़रूर
ज़रूर...।" और अगली सुबह रिहर्सल के लिए स्टेज पर इंतज़ार करना और पहली बार
मारियो डोरो को देखना। वे निहायत खूबसूरत सफेद रंग की गर्मी की पोशाक पहने
हुए थीं। सुबह के वक्त इतनी खूबसूरत किसी महिला को देख लेने का अचानक झटका!
वे दो पहिये की एक बग्घी में आयी थीं और उन्होंने पाया कि उनकी पोशाक पर
कहीं स्याही का एक धब्बा लग गया है। वे नाटक की प्रापर्टी वाले से पूछना
चाह रही थीं कि कहीं कुछ होगा इस दाग से छुटकारा पाने के लिए तो जब उस आदमी
ने इस बारे में शक जाहिर किया तो उनके चेहरे पर खीझ के इतने शानदार भाव
आये,"ओह, लेकिन क्या ये इतना वाहियात नहीं है?"
वे बला की सुंदर थीं। मैं उनसे खफ़ा हो गया। में उनके नाज़ुक, कलियों से
खिलते हेंठों से नाराज़ हो गया, उनके एक जैसे सफेद दांतों से नाराज़ हो
गया, उनकी मदमस्त ठुड्डी ने मुझे खफ़ा कर दिया, उनके लहराते बाल, और उनकी
गहरी भूरी आँखों ने मुझे नाराज़ कर दिया। मैं उनके नाराज़ होने की अदा पर
नाराज़ हुआ और उस आकर्षण पर खफ़ा हुआ जो उन्होंने इस बात को पूछते समय
दिखाया था। इस पूछताछ के दौरान मैं उनके और प्रापर्टी वाले के बस एकदम पास
ही खड़ा हुआ था, पर वे मेरी उपस्थिति से पूरी तरह अनजान थीं। हालांकि मैं
उनके पास ही, उनकी खूबसूरती से ठगा और मंत्र बिद्ध सा खड़ा था। मैं हाल ही
में सोलह बरस का हुआ था और इस अचानक चकाचौंध के सानिध्य ने मेरा यह पक्का
इरादा सामने ला दिया कि मैं इससे अभिभूत नहीं होऊँगा। लेकिन हे भगवान! वे
इतनी खूबसूरत थीं। ये पहली ही नज़र में प्यार था।
द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलॉक होम्स' में आइरीन वानब्रुग नाम की एक
बहुत ही उत्कृष्ट अभिनेत्री ने पगली की भूमिका की थी और नाटक में बोलने का
सारा काम वही करती थीं जबकि होम्स चुपचाप बैठे रहते और सुनते। ये समीक्षकों
पर करारा तमाचा था। मेरी हिस्से में शुरुआती लाइनें थी, मैं होम्स के
अपार्टमेंट मे जा घुसता हूँ और दरवाजा थामता हूँ जबकि बाहर से पगली दरवाजा
लगातार पीट रही है और जब मैं उत्साह में भर कर होम्स को ये समझाना चाहता
हूँ कि क्या हो रहा है, पगली धड़धड़ाती हुई अंदर आती है। लगातार बीस मिनट
तक वह किसी ऐसे मामले के बारे में आँय बाँय बकती रहती है जिसके बारे में वह
चाहती है कि होम्स हाथ में ले लें। चोरी छुपे होम्स एक पर्ची लिखते है और
घंटी बजाते हैं और वह पर्ची मुझे थमा देते हैं। बाद में दो हट्टे कट्टे
आदमी आ कर उस पगली को लिवा ले जाते हैं। मैं तथा होम्स अकेले रह जाते हैं।
मैं कहता हूँ,"... आप ठीक कहते हैं सर, यह सही पागल खाना था।"
समीक्षकों को लतीफा अच्छा लगा लेकिन क्लारीसा नाटक जो गिलेट ने मैरी डोरो
के लिए लिखा था, फ्लॉप गया। हालांकि उन्होंने मैरी की खूबसूरती के गुणगान
किये थे लेकिन उन्होंने लिखा कि यही काफी नहीं मदोन्मत्त नाटक को बांधे
रखने के लिए। इसलिए गिलेट ने उस सीजन का बाकी वक्त शरलॉक होम्स को फिर से
नये सिरे से पेश करके गुज़ारा। मुझे इस नाटक में फिर से बिली की भूमिका के
लिए रख लिया गया।
विख्यात विलियम्स गिलेट के साथ काम करने के अति उत्साह में मैं अपने काम की
शर्तों वगैरह के बारे में बात करना ही भूल गया। सप्ताह खत्म होने पर मिस्टर
पोस्टेंट मेरे पास आये और मुझे वेतन का लिफाफा देते हुए शर्मिंदा होते हुए
कहने लगे,"...मैं तुम्हें ये राशि देते हुए वाकई शर्मिंदा हूँ लेकिन
फ्रॉहमैन के दफ्तर में मुझे यही बताया गया था कि मुझे तुम्हें उतनी ही राशि
देनी है जितनी पहले तुम हमसे लेते रहे थे।...दो पाउंड और दस शिलिंग।" मुझे
ये राशि पा कर सुखद आश्चर्य हुआ।
होम्स की रिहर्सलों के दौरान, मैं मेरी डोरो से फिर मिला...वह पहले से भी
ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं। मेरे इस संकल्प के बावजूद कि मैं उनकी
खूबसूरती के जाल में नही फँसूंगा, मैं उनके मौन प्यार के निराशाजनक सागर
में और गहरे धंसता चला गया। मैं इस कमज़ोरी से नफ़रत करता था और अपने
चरित्र की कमज़ोरी के कारण खुद से खफ़ा था। ये एक तरफा प्यार का मामला था।
मैं उनसे प्यार भी करता था और नफ़रत भी करता था। इतना ही नहीं, वह बला की
खूबसूरत और भव्य थी।
होम्स में वे एलिस फॉकनर की भूमिका निभाती थीं। लेकिन नाटक के दौरान हम कभी
भी नहीं मिले। अलबत्ता, मैं सीढ़ियों पर उनका इंतज़ार करता और वे जब गुज़र
कर जातीं तो गुड मार्निंग कह दिया करता। वे जवाब में खुश होकर गुड मार्निंग
कहतीं और यही था जो हम दोनों के बीच हो पाया।
•
होम्स ने हाथों-हाथ सफलता के झंडे गाड़ दिये। नाटक जब चल रहा था तो रानी
एलेक्जेंड्रा भी देखने आयीं। उनके साथ रॉयल बॉक्स में ग्रीस के राजा और
प्रिंस क्रिश्चियन भी बैठे थे। प्रिंस महोदय राजा जी को जबरदस्ती नाटक
समझाये जा रहे थे और ऐसे अत्यंत तनाव भरे और अशांत पलों में जब होम्स और
मैं स्टेज पर अकेले होते हैं, पूरे थियेटर में गूँजती-सी एक आवाज़ सुनाई
दी,"...मुझे मत बताओ, मुझे मत बताओ।"
डिऑन बाउसीकाल्ट का दफ्तर भी ड्यूक ऑफ यॉर्क थियेटर में ही था और आते-जाते
वे मेरे सिर पर प्यार भरी चपत लगा दिया करते। हाल केन भी ऐसा ही करते। वे
अक्सर गिलेट से मिलने बैक स्टेज में आ जाया करते। एक मौके पर तो मुझे लॉर्ड
किचनर से मुस्कुराहट का भी सम्मान मिला।
जब शरलॉक होम्स चल रहा था, उन्हीं दिनों सर हेनरी इर्विंग का देहांत हो गया
और मुझे वेस्टमिन्स्टर ऐब्बी में उनके अंतिम संस्कार में जाने का मौका
मिला। मैं चूँकि वेस्ट एंड का एक्टर था इसलिए मुझे विशेष पास मिला और मैं
इस बात से बेहद खुश हुआ। अंतिम संस्कार के वक्त मैं शांत लेविस वालर और डॉ.
वाल्फोर्ड बोडी के बीच बैठा। लेविस उन दिनों लंदन के रोमांटिक अभिनेताओं के
बेताज़ बादशाह थे और डॉक्टर बोडी की ख्याति रक्तरहित सर्जरी के कारण थी। उन
पर मैंने बाद में एक रंगारंग कार्यक्रम में उनके पात्र का स्वांग किया था।
वालर मौके की नज़ाकत के अनुरूप खूबसूरत तरीके से कपड़े पहने हुए थे और
गर्दन अकड़ाये, सीधे बैठे वे न दायें देख रहे थे और न बायें। लेकिन डॉक्टर
बोडी, बस इस कोशिश में कि वे हेनरी के ताबूत को नीचे अब उतारे जाते समय
बेहतर तरीके से देख पायें, ड्यूक की छाती से उचक उचक कर देखते रहे। जबकि
वालर साहब को अच्छी खासी कोफ्त हो रही थी। मैंने कुछ भी देखने की कोशिश ही
छोड़ दी और मेरे आगे जो लोग बैठे हुए थे, सिर्फ उन्हीं की पीठ की तरफ देखता
रहा।
शारलॉक होम्स के बंद होने से दो सप्ताह पहले मिस्टर बाउसीकॉल्ट ने विख्यात
मिस्टर और मिसेज कैंडल के नाम मुझे इस बात की संभावना के साथ एक परिचय पत्र
दिया कि शायद मुझे उनके नये नाटक में कोई भूमिका मिल जाये। वे सेंट जेम्स
थियेटर में अपने सफल नाटक के शो खत्म कर रहे थे। मिलने के लिए सवेरे दस बजे
का समय तय हुआ। मैडम कैंडल मुझे फोयर में मिलने वाली थीं। वे बीस मिनट देरी
से आयीं। आखिरकार, गली में एक आकृति उभरी। ये मिसेज कैंडल थीं। लम्बी
तगड़ी, अभिमानी मोहतरमा। उन्होंने यह कहते हुए मेरा अभिवादन किया,"ओह, तो
तुम हो, छोकरे से!! हम जल्द ही प्रदेशों की तरफ एक नया नाटक ले कर जा रहे
हैं। मैं चाहूंगी कि तुम हमें अपनी भूमिका पढ़ कर सुनाओ। लेकिन फिलहाल तो
हम बहुत ही व्यस्त हैं। इसलिए तुम कल सुबह इसी वक्त यहां आ रहे हो!!"
"माफ करना मैडम," मैंने ठंडेपन के साथ जवाब दिया, "लेकिन मैं शहर से बाहर
कोई भी काम स्वीकार नहीं कर सकता।" इसके साथ ही मैंने अपना हैट ऊपर किया,
फोयर से बाहर आया, वहां से गुज़रती एक टैक्सी रुकवायी और - मैं दस महीने तक
बेकार रहा था।
जिस रात ड्यूक ऑफ यार्क थियेटर में शारलॉक होम्स का अंतिम शो हुआ, और मैरी
डोरो को अमेरिका वापिस लौटना था, मैं अकेला ही बाहर निकल गया और शराब पी कर
बुरी तरह से धुत्त हो गया। दो या तीन बरस बाद फिलेडाल्फिया में मैंने
उन्हें दोबारा देखा। उन्होंने उस नये थियेटर का समर्पण किया था जिसमें मैं
कार्नो कॉमेडी कम्पनी में अभिनय कर रहा था। वे अभी भी पहले की ही तरह
खूबसूरत थीं। मैं विंग्स में अपना कॉमेडी का मेक अप किये हुए उन्हें देखता
रहा था। वे भाषण दे रही थीं। मैं इतना अधिक शरमा रहा था कि आगे बढ़ कर
उन्हें अपने बारे में बता ही नहीं पाया था।
लंदन में होम्स के समापन पर प्रदेशों में काम करने वाली कम्पनी के नाटक भी
समाप्त हो चले थे और इस तरह से सिडनी और मैं, दोनों ही बिना काम के थे।
सिडनी ने अलबत्ता, नया काम तलाशने में कोई वक्त नहीं गंवाया। नाटकों से
संबंधित एक अखबार ऐरा में एक विज्ञापन देख कर वह सड़क छाप कॉमेडी करने वाली
चार्ली मैनान की कम्पनी में शामिल हो गया। उन दिनों इस तरह की बहुत सारी
कम्पनियां हुआ करती थीं जो हॉलों के चक्कर लगाती फिरती थीं। चार्ली
बाल्डविन की बैंक क्लर्कस, जो बोगानी की लुनैटिक बेकर्स और बोइसेटे ट्रुप,
ये सब के सब मूक अभिनय करते थे। हालांकि ये लोग प्रहसन कॉमेडी करते थे,
उनमें साथ साथ बजाया जाने वाला संगीत होता था और ये बहुत लोकप्रिय हुआ करते
थे। सबसे उत्कृष्ट कम्पनी कार्नो साहब की थी जिनके पास कॉमेडियों का खजाना
था। इन सबको बर्ड्स कहा जाता था। ये होते थे, जेल बर्ड, अर्ली बर्ड्स,
ममिंग बर्ड्स। इन तीन स्केचों से कार्नो साहब ने तीस से भी ज्यादा
कम्पनियों का थियेटर का ताम झाम खड़ा कर लिया था। इनमें क्रिसमस पेंटोमाइम
और खूब ताम झाम वाले संगीत कार्यक्रम होते। कार्नो साहब के इन्हीं नाटकों
की देन थी कि वहां से फ्रेड किचन, जॉर्ज ग्रेव्स, हैरी वैल्डन, बिल रीव्ज़,
चार्ली बैल और दूसरे कई महान कलाकार और कॉमेडियन सामने आये।
ये उसी वक्त की बात है जब सिडनी मेनान ट्रुप के साथ काम कर रहा था और उसे
फ्रेड कार्नो ने देखा और चार पाउंड प्रति सप्ताह के वेतन पर रख लिया। चूंकि
मैं सिडनी से चार बरस छोटा था, इसलिए मैं किसी भी थियेटर के काम के लिए न
तो बड़ों में गिना जाता और न ही छोटों में ही, लेकिन मैंने अपने लंदन के
दिनों में किये गये काम से कुछ पैसे बचा कर रखे थे, और जिस वक्त सिडनी
प्रदेशों में काम करता घूम रहा था, मैं लंदन में ही रहा और पूल के खेल
खेलता रहा।
अध्याय : 6 -7
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