मेरी आत्म कथा
चार्ली चैप्लिन
अध्याय :बारह
अकेलापन घिनौना होता है। इसमें उदासी का हल्का सा घेरा होता है,
आकर्षित कर पाने या रुचि जगा पाने की अपर्याप्तता होती है इसमें। कई बार
आदमी इसकी वज़ह से थोड़ा शर्मिंदा भी होता है। लेकिन कुछ हद तक अकेलापन हर
आदमी के लिए थीम की तरह होता है। अलबत्ता, मेरा अकेलापन कुंठित करने वाला
था क्योंकि मैं दोस्ती करने की सारी ज़रूरतें पूरी करता था। मैं युवा था,
अमीर था और बड़ी हस्ती था। इसके बावज़ूद मैं न्यू यार्क में अकेला और
परेशान हाल घूम रहा था। मुझे याद है मैं अंग्रेज़ी संगीत जगत की कॉमेडी
स्टार, खूबसूरत जोसी कॉलिन्स से उस वक्त अचानक ही मिल गया था जब वह फिफ्थ
एवेन्यू पर चली जा रही थी।
"ओह," उसने सहानुभूति पूर्ण तरीके से कहा,"आप अकेले क्या कर रहे हैं?"
मुझे ऐसा लगा मानो मुझे कुछ प्यारा सा अपराध करते हुए पकड़ लिया गया हो।
मैं मुस्कुराया और बोला,"मैं तो बस, ज़रा दोस्तों के साथ लंच करने के लिए
जा रहा था," लेकिन काश, मैंने उससे सच कह दिया होता कि मैं तन्हा हूं और
उसे लंच पर ले जाना मुझे अच्छा लगता, सिर्फ मेरे संकोच ने ही मुझे ऐसा करने
से रोका।
उसी दोपहर को मैं मैट्रोपॉलिटन ओपेरा हाउस के पास ही चहल कदमी कर रहा था कि
मैं डेविड बेलास्को के दामाद मॉरिस गेस्ट से जा टकराया। मैं मॉरिस से लॉस
एंजेल्स में मिल चुका था। उसने अपने कैरियर की शुरुआत टिकट ब्लैकी के रूप
में की थी। ये धंधा उस वक्त बहुत फल फूल रहा था जब मैं पहली बार न्यू यार्क
आया था। (टिकट ब्लैकी वह आदमी होता है जो थियेटर में सबसे अच्छी सीटें पहले
खरीद कर रख लेता है और बाद में थियेटर के बाहर खड़ा हो कर फायदे में बेचता
है।) मॉरिस ने थियेटर के धंधे में आशातीत सफलता हासिल की थी। इसका सर्वोच्च
बिन्दु था उसके द्वारा बनायी गयी द मिरैकल जिसका निर्देशन मैक्स रेनहार्ड्ट
ने किया था। मॉरिस स्लाविक था। चेहरा उसका पीला, और बड़ी बड़ी कंचे जैसी
आंखें, बड़ा सा मुंह, और मोटे होंठ। वह ऑस्कर वाइल्ड का भद्दा संस्करण नज़र
आता था। वह बहुत ही भावुक किस्म का आदमी था जो जब बोलता था तो ऐसा लगता था
मानो आपको धमका रहा हो।
"आप कहां गायब हो गये थे श्रीमान," इससे पहले कि मैं जवाब दे पाता, वह आगे
बोला, "आपने मुझे सम्पर्क क्यों नहीं किया?"
"मैंने उसे बताया कि मैं तो बस, ज़रा चहलकदमी कर रहा हूं।"
"क्या बात है। आपको अकेले नहीं होना चाहिये। आप जा कहां रहे हैं?"
"कहीं नहीं," मैंने दब्बूपन के साथ कहा,"बस, ज़रा साफ हवा ले रहा था।"
"आओ भी," उसने मुझे अपनी दिशा में मोड़ते हुए और अपनी बांह से मेरी बांह को
घेरते हुए कहा। अब मेरे पास बचने का कोई उपाय नहीं था, "मैं आपको असली
लोगों से मिलवाऊंगा। ऐसे लोग जिनमें आपको घुलना मिलना चाहिये।"
"हम कहां जा रहे हैं?" मैंने चिंतातुर हो कर पूछा।
"आप मेरे दोस्त करूसो से मिलने जा रहे हैं।" कहा उसने।
मेरी सारे प्रतिरोध बेकार गये।
"आज कारमैन का मैटिनी शो चल रहा है। उसमें करूसो और गेराल्डिन फरार हैं।"
"लेकिन मैं . ."
"भगवान के लिए, आप डरो नहीं, करूसो बहुत ही शानदार आदमी हैं। आपकी ही तरह
सीधे सादे और इन्सानियत से भरे हुए। आपको देख कर वे खुशी के मारे झूम
उठेंगे। वे आपकी तस्वीर लेंगे और भी बहुत कुछ करेंगे।"
मैंने उसे बताना चाहा कि मैं टहलना और थोड़ी देर ताज़ा हवा लेना चाहता हूं।
"इस मुलाकात से आपको ताज़ा हवा से भी ज्यादा आनंद मिलेगा।"
मैंने पाया कि मुझे मैट्रोपोलिटन ऑपेरा की लॉबी में से ठेल कर ले जाया जा
रहा है। हम दोनों गलियारे में से दो खाली सीटों पर जा बैठे।
"यहां बैठिये," गेस्ट फुसफुसाया, "मैं इंटरवल में लौट आऊंगा।" तब वह खड़ा
हुआ और गायब ही हो गया।
मैंने कारमैन का संगीत कई बार सुना था लेकिन अब जो कुछ बज रहा था, अपरिचित
सा लगा। मैंने अपने कार्यक्रम पत्रक की तरफ देखा, और आज के दिन के लिए
कारमैन की ही घोषणा की गयी थी। लेकिन वे कुछ दूसरी ही चीज़ बजा रहे थे। वह
भी मुझे परिचित सी ही लग रही थी और कुछ कुछ रिगालेटो की तरह लग रही थी। मैं
भ्रम में पड़ गया। अंक की समाप्ति से दो मिनट पहले गेस्ट चुपके से मेरे साथ
वाली सीट पर लौट आया।
"क्या ये कारमैन है?" मैं फुसफुसाया।
"हां," उसने जवाब दिया, "क्या आपके पास कार्यक्रम नहीं है?"
उसने मुझसे कार्यक्रम छीना, "हां," वह फुसफुसाया,"करूसो और गेराल्डिन फरार,
बुधवार, मैटिनी शो, कारमैन, ये रहा।"
परदा नीचे गिरा और वह मुझे लिये दिये सीटों के बीच में से बगल वाले दरवाजे
से मंच के पीछे की तरफ ले चला।
बिना आवाज़ के बूटों में आदमी लोग सीन सिनरी को उसी तरह से शिफ्ट कर रहे थे
जिस तरह से मुझे हमेशा लगती रही। वहां का माहौल किसी दुखदायी स्वप्न की तरह
था। इसमें से नुकीली दाढ़ी वाला, और जासूसी कुत्ते जैसी आंखों वाला एक
लम्बा, छरहरा शांत और गंभीर आदमी वहां खड़ा था। उसने मुझे एक ऊंचाई से
देखा। वह मंच के बीचों बीच खड़ा था। परेशान हाल। उसके पास से एक सीनरी आ
रही थी और दूसरी जा रही थी।
"मेरे अच्छे दोस्त सिग्नोर गाटी कसाज़ा कैसे हैं?" अपना हाथ बढ़ाते हुए
गेस्ट ने कहा।
गाटी कसाज़ा ने हाथ मिलाया और एक उदास मुद्रा बनायी और कुछ बुड़बुड़ाये। तब
गेस्ट मेरी तरफ मुड़ा,"आपका कहना सही था, ये कारमैन नहीं है, रिगोलेटो है।
अंतिम पलों में गेराल्डिन फरार ने फोन करके बताया कि उसे जुकाम है इसलिए
नहीं आ पायेगी। ये चार्ली चैप्लिन हैं," उसने कहा,"मैं इन्हें करूसो से
मिलवाने के लिए ले जा रहा हूं। हो सकता है, इनका जी बहल जाये। आइये हमारे
साथ।" लेकिन गाटी कसाज़ा ने अफ़सोस के साथ अपना सिर हिलाया।
"उनका ड्रेसिंग रूम किस तरफ है?"
काटी कसाज़ा ने स्टेज मैनेजर को बुलवाया और कहा,"ये आपको बता देगा।"
मेरी छठी इंद्रीय ने मुझे सचेत किया कि करूसो को इस वक्त डिस्टर्ब न किया
जाये, और ये बात मैंने गेस्ट को बतायी।
"पागल मत बनो," उसने जवाब दिया।
हमने पैसेज में से उनके ड्रेसिंग रूम के लिए चले।
"किसी ने बत्ती बुझा दी है," स्टेज मैनेजर ने कहा,"एक पल के लिए रुकिये,
मैं स्विच तलाशता हूं।
"सुनो," गेस्ट ने कहा,"कुछ लोग मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, इसलिए मुझे निकलना
होगा।"
"तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ।" मैं जल्दी से बोला।
"आपको कुछ नहीं होगा।"
मैं जवाब ही दे पाता, इससे पहले ही वह गायब हो गया। स्टेज मैनेजर ने एक
तीली जलाई। "हम पहुंच गये हैं," कहा उसने, और धीरे से दरवाजा ठकठकाया। भीतर
से इतावली में ज़ोर से कुछ कहा गया।
मेरे दोस्त ने इतालवी में ही जवाब दिया। जवाब के आखिर में "चार्ली चैप्लिन"
कहा गया।
एक और धमाका।
"सुनो," मैं फुसफुसाया, "फिर कभी सही।"
"नहीं, नहीं," उसने कहा, अब उसे एक मिशन पूरा करना था। दरवाजा चीं की आवाज
के साथ खुला और अंधेरे में से ड्रेसर ने झांका। मेरे दोस्त ने परेशानी भरे
स्वर में बताया कि मैं कौन हूं।
"ओह," ड्रेसर ने कहा, और दरवाजा फिर बंद कर दिया। दरवाजा फिर से खुला,
"भीतर आइये।"
इस छोटी सी विजय से मेरे दोस्त का सीना चौड़ा हो गया। जब हम भीतर पहुंचे तो
करूसो अपनी ड्रेसिंग टेबल पर एक शीशे के सामने बैठे अपनी मूंछे कुतर रहे
थे। हमारी तरफ उनकी पीठ थी।
"अहा महाशय," मेरे दोस्त ने उल्लसित होते हुए कहा,"ये मेरे लिए परम सौभाग्य
की बात है श्रीमन, कि मैं आपके सामने सिनेमा के करूसो, मिस्टर चार्ली
चैप्लिन को प्रस्तुत कर रहा हूं।"
करूसो ने दर्पण में सिर हिलाया और मूंछे कुतरते रहे।
आखिरकार वे उठे और अपनी बेल्ट कसते हुए ऊपर से नीचे तक मेरा मुआइना किया।
"आप तो बहुत सफल आदमी हैं, नहीं क्या, खूब पैसा कमाया होगा।"
"हां," मैं मुस्कुराया।
"आप तो बहुत ही खुश आदमी होंगे।"
"हां, बेशक," तब मैंने स्टेज मैनेजर की तरफ देखा तो वे उल्लसित हो कर ये
संकेत देते हुए बोले कि जाने का समय हो गया है।
मैं खड़ा हुआ और तब करूसो पर मुस्कुराया,"मैं टोरेडोर दृश्य मिस नहीं करना
चाहता।"
"वो कारमैन है। ये रिगोलेटो है।" मुझसे हाथ मिलाते हुए वे बोले।
"ओह, हां हां हां जी हां।"
•
मैंने परिस्थितियों में जितना संभव था, न्यू यार्क को अपने भीतर उतार लिया
था और ये सोचा कि इससे पहले कि खुशियों के मेले का रंग फीका होना शुरू हो,
यहां से कूच कर देना ही बेहतर होगा।इसके अलावा, मेरी चिंता अपने नये करार
के अंतर्गत काम शुरू करने की भी थी।
जब मैं लॉस एंंजेल्स लौटा तो मैं फिफ्थ स्ट्रीट और मेन पर एलेक्जेंड्रिया
होटल में ठहरा। ये उस वक्त शहर का सबसे ज्यादा ठाठ बाठ वाला होटल हुआ करता
था। ये भव्य अंलकरण शैली वाला होटल था। लॉबी में लगे संगमरमर के स्तम्भ, और
क्रिस्टल के झाड़ फानूस उसकी शोभा में चार चांद लगाते थे। लॉबी के बीचों
बीच दस लाख डॉलर का शानदार कालीन बिछा हुआ था। इसे बड़े बड़े फिल्मी सौदों
का मक्का मदीना कहा जाता था। इसका ये नाम मज़ाक में ही पड़ गया था क्योंकि
यहां पर शेखी बघारने वाले और आधे अधूरे प्रोमोटर वहां पर खड़े हो कर लाखों
करोड़ों डॉलर से कम की तो बात ही न करते।
इसके बावजूद, अब्राहमसन ने इसी कालीन पर अपनी किस्मत का सितारा बुलंद किया
था। वह स्टूडियो किराये पर ले कर और बेरोज़गार कलाकारों को काम धंधे पर रख
कर सस्ते में फिल्में बनाता था और उन सस्ती स्टेट राइट पिक्चरों को बेचा
करता था। इस तरह की फिल्मों को चवन्नी छाप दर्शकों की, पावर्टी रो वाली
फिल्में कहा जाता था। स्वर्गीय हैरी कॉन, कोलम्बिया पिक्चर्स के अध्यक्ष भी
इन चवन्नी छाप फिल्मों में नज़र आया करते थे।
अब्राहमसन यथार्थवादी आदमी थे। वे इस बात को स्वीकार करते थे कि वे इस किसी
कला वला में नहीं, सिर्फ धन कमाने में दिलचस्पी रखते हैं। वे भारी रूसी
लहजे में बोलते थे और जिस वक्त अपनी फिल्मों का निर्देशन कर रहे होते, वे
मुख्य अभिनेत्री पर चिल्लाते, "ठीक है, पीच्छे की तरफ से आग्गे की तरफ आओ।
अब्ब शीशे के सामने आवो, और अपणे आप को देक्खो। ओह, ऐसे नहीं जी, अब्ब आप
बीस फुट तक इधर उधर चलो। (मतलब मस्ती से, बीस फिट फिल्म के चलने तक)।" आम
तौर पर उनकी नायिका भरे भरे सीने वाली छप्पन छुरी मार्का कोई युवा लड़की
होती और उसने ढीला सा खुले गले की कोई पोशाक पहनी होती और भरपूर अंग
प्रदर्शन करती। वह नायिका से कहता कि कैमरे की तरफ देक्खो, नीचे झुक्को और
अपने तस्में बांधो, या झूला झूलो, या कुत्ते को सहलाओ। मतलब, किसी न किसी
तरह सीने के उभार दिखाओ। इसी तरीके से अब्राहमसन ने करोड़ों डॉलर पीटे।
दस लाख वाला ये कालीन सिड ग्राउमैन को सैन फ्रांसिस्को से यहां तक लाया
ताकि वे अपनी लॉस एंजेल्स की दस लाख डॉलर की बिल्डिंग का सौदा कर सकें।
जैसे जैसे शहर सम्पन्न होता गया, वे भी सम्पन्न होते चले गये। उन्हें अनोखे
प्रचार का बहुत शौक था। एक बार उन्होंने लॉस एंजेल्स को हैरान ही कर दिया
था। उन्होंने दो टैक्सियां किराये पर लीं। टैक्सियां सड़कों पर दौड़ने लगीं
और उनमें बैठे हुए सवार खाली कारतूसों से एक दूसरे पर गोलियां चलाने का
नाटक करते रहे। टैक्सियों के पीछे इश्तहार लगे हुए थे जिन पर लिखा था,
ग्राउमैन की मिलियन डॉलर थियेटर की आपराधिक दुनिया।
वे नयी नयी शोशेबाजियां खोजने और करने में माहिर थे। सिड का एक अद्भुत
आइडिया ये था कि अपने चीनी थियेटर के बाहर गीले सीमेंट पर हॉलीवुड के
सितारों के हाथों तथा पैरों के निशान अंकित कराये जायें, कुछ कारणों से
सितारों ने निशान दिये भी। बाद में ये ऑस्कर पाने जैसा सम्मान पाने की
महत्त्वपूर्ण बात हो गयी थी।
•
जिस दिन मैं एलेक्जेंड्रिया होटल पहुंचा, होटल के डेस्क क्लर्क ने मुझे
विख्यात अभिनेत्री, मिस माउदे फीली की ओर से एक खत दिया। वे सर हेनरी
इर्विंग और विलियम जिलेट की प्रमुख अदाकारा रह चुकी थीं। उन्होंने मुझे
बुधवार को हॉलीवुड होटल में पावलोवा के सम्मान में दिये जाने वाले डिनर में
आमंत्रित किया था। बेशक मैं निमंत्रण पा कर आह्लादित था। हालांकि मैं कभी
मिस फीली से मिला नहीं था, मैंने पूरे लंदन में उनके पोस्टकार्ड देखे थे और
उनके सौन्दर्य का प्रशंसक था।
डिनर से एक दिन पहले मैंने अपने सचिव से कहा कि वह फोन करके पूछ ले कि ये
पार्टी अनौपचारिक है या मैं काली टाई लगा कर आऊं।
"कौन बात कर रहे हैं?" मिस फीली ने पूछा।
"मैं मिस्टर चैप्लिन का सचिव बोल रहा हूं और बुधवार की शाम के उनके आपके
साथ होने वाले डिनर के बारे में पूछ रहा हूं।"
ऐसा लगा कि मिस फीली सतर्क हो गयीं,"ओह, निश्चित ही अनौपचारिक।" कहा
उन्होंने।
मिस फीली हॉलीवुड होटल की पोर्च में मेरी अगवानी करने के लिए मौजूद थीं। वे
हमेशा की तरह प्यारी लग रही थीं। हम आधे घंटे तक इधर उधर की बातें करते
रहे। इसके बाद मैं हैरान हो कर सोचने लगा कि बाकी मेहमान कब आयेंगे।
आखिरकार उन्होंने कहा,"हम चलें डिनर के लिए चलें?"
मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने डाइनिंग हॉल में पाया कि वहां पर
सिर्फ हम दो ही थे।
आकर्षक होने के अलावा मिस फीली बेहद अलग थलग रहने वाली महिला थीं। मेज़ के
पार उनकी तरफ देखते हुए मैं इस बात को ले कर हैरान होता रहा कि इस तरह की
मुलाकात का मकसद क्या हो सकता है। मेरे दिमाग में शरारतपूर्ण और गंदे ख्याल
आने लगे लेकिन ऐसा लगा कि वे मेरी अशोभनीय अटकलों पर उनका कोई ध्यान नहीं
था। इसके बावजूद मैंने यह पता लगाने के लिए अपने कान खड़े कर लिये कि मुझसे
आखिर उम्मीद क्या की जा रही है।
"ये वाकई मज़ेदार है," मैंने उत्तेजना से कहा, "इस तरह से आपके साथ खाना
खाना!"
वे सौम्यता से मुस्कुरायीं।
"चलो, हम डिनर के बाद कुछ मौज मज़ा करें," कहा मैंने,"चलो किसी नाइट क्लब
में चलें या ऐसा ही कुछ करें।"
उनके चेहरे पर मामूली सी अलार्म की झांई उभरी, और वे हिचकिचायीं,"मुझे डर
है कि मुझे आज जल्दी ही सोने के लिए जाना पड़ेगा क्योंकि मुझे कल जल्दी ही
मैकबेथ की रिहर्सल शुरू करनी है।"
मेरे कान खड़े हुए। मैं पूरी तरह से हैरान परेशान था। संयोग से खाने का
पहला कोर्स आ गया और हम थोड़ी देर तक चुपचाप खाते रहे। कुछ न कुछ जरूर
गड़बड़ है, ये हम दोनों ही जानते थे। मिस फिली हिचकिचायीं,"मुझे अफसोस है
कि आज की शाम आपके लिए बहुत फीकी रही।
"नहीं तो, शाम तो बहुत ही शानदार गुज़री।"
"मुझे अफसोस है कि आप तीन महीने पहले उस वक्त यहां पर नहीं थे जब मैंने
पावलोवा के सम्मान में एक डिनर दिया था। मुझे पता है कि वे आपके दोस्त हैं।
लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि उस वक्त आप यहां पर नहीं थे।"
"माफ कीजिये," मैंने कहा, और तपाक से जेब से मिस फिली का पत्र निकाला। पहली
बार मैंने उस पर तारीख देखी। तब मैंने पत्र उन्हें थमाया, "देखिये," मैं
हँसा,"मैं तीन महीने देरी से पहुंचा हूं।"
•
1910 में लॉस एंजेल्स वेस्टर्न के अगुआ लोगों और धनकुबेरों के युग के अंत
का समय था और उनमें से अधिकतर ने मेरा सत्कार किया था।
इनमें से एक स्वर्गीय विलियम ए क्लार्क थे। वे करोड़पति असामी थे और रेल के
महकमे से जुड़े थे और कॉपर किंग माने जाते थे। वे शौकिया संगीतकार थे जो
फिलहॉरमोनी आर्केस्ट्रा को हर बरस 150000 डॉलर का दान दिया करते थे। वे खुद
उस आर्केस्ट्रा में बाकी लोगों के साथ दूसरा वायलिन बजाया करते थे।
मौत की घाटी वाले स्कॉटी एक फैन्टम चरित्र थे जो हँसमुख, मोटे से चेहरे
वाले आदमी थे। वे दस गैलन हैट, लाल कमीज़, और डंगरी पहना करते थे। वे हर
रात स्प्रिंग स्ट्रीट में दारू के अड्डों और नाइट क्लबों में हज़ारों डॉलर
लुटाया करते, पार्टियां देते, वेटरों को सौ सौ डॉलर की टिप दिया करते और
फिर अचानक ही गायब हो जाते। फिर वे महीनों बाद वापिस आते और फिर से
पार्टियां देने लगते। ऐसा वे बरसों तक करते रहे। कोई भी नहीं जानता था कि
उनके पास पैसे आते कहां से थे। कुछ लोगों का विश्वास था कि डैथ वैली में
उनकी कोई गुप्त खदान थी। लोगों ने उनका पीछा करने की कोशिश की लेकिन वे
हमेशा उन्हें वहां पर चकमा दे देते और आज तक कोई भी उनका रहस्य नहीं जान
पाया है। 1940 में उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने डैथ वैली में रेगिस्तान के
बीचों बीच एक बहुत ही भव्य महलनुमा घर बनवाया था। ये बहुत ही शानदार इमारत
थी जिसके बनने में पांच लाख डॉलर से भी ज्यादा लगे थे। आज भी ये इमारत धूप
में खंडहर सी खड़ी है।
पेसाडोना की मिसेज क्रेनेय गैट्स चार करोड़ डॉलर की हैसियत वाली महिला थीं
जो घनघोर समाजवादी थीं और कई अराजकों, समाजवादियों और इंडस्ट्रियल वर्कर्स
ऑफ द वर्ल्ड के सदस्यों की कानूनी सुरक्षा के लिए धन दिया करती थीं।
ग्लेन कर्टिस उन दिनों सेनेट के लिए काम किया करते थे और हवाई जहाज के
स्टंट किया करते थे और बेसब्री से आज जिसे गेट कर्टिस एयरक्राफ्ट
इंडस्ट्रीज कहते हैं, उसके लिए बेताबी से वित्त जुटाने का काम देखा करते
थे।
ए पी गियानिनी दो छोटे बैंक चलाया करते थे। बाद में जा कर ये युनाइटेड
स्टेट्स के सबसे बड़े वित्तीय संस्थानों में से एक, द बैंक ऑफ अमेरिका बने।
हावर्ड ह्यूज को अपने पिता, आधुनिक आयल ड्रिल के आविष्कारक से बहुत बड़ी
सम्पदा विरासत में मिली। हावर्ड एयराक्राफ्ट उद्योग में चले गये और उन
लाखों डॉलरों को करोड़ों डॉलर में बदला। वे सनकी आदमी थे जो अपना कारोबार
एक घटिया से होटल के कमरे से टेलिफोन के जरिये चलाया करते थे और वे शायद ही
किसी से मिलते थे। वे मोशन फिल्मों में भी हाथ आजमाने आये, और हैल्स
एंंजेल्स जैसी फिल्मों से अपार सफल्ता हासिल की। इस फिल्म के नायक स्वर्गीय
जीन हारलो थे।
उन दिनों रोज़ के आनंद उठाने के मेरे ठीये होते थे, वेर्नान में जैक डॉयल
की शुक्रवार की रात की कुश्तियां देखना, सोमवार की रातों को ऑरफीम थियेटर
में रंगारंग कार्यक्रम देखना, गुरुवार के दिनों में मोरोस्को स्टॉक कम्पनी
के कार्यक्रम देखना और कभी कभार, क्लूंस फिलहार्मोनिक ऑडिटोरियम में कोई
सिम्फनी सुनना।
•
लॉस एंजेल्स का एथलेटिक क्लब एक ऐसा केन्द्र था जहां पर स्थानीय सम्पन्न
वर्ग और कारोबारी लोग कॉकटेल के समय इकट्ठे होते। ये जगह विदेशी बस्ती की
तरह लगती।
एक नौजवान जो बिट बजाता था, लाउंज में अकेले बैठा रहता। उसका नाम वेलन्टिनो
था और वह हॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने आया था लेकिन कुछ खास कर नहीं पा
रहा था। एक अन्य बिट प्लेयर जैक गिल्बर्ट ने उससे मेरा परिचय कराया था।
उसके बाद मैंने एकाध बरस तक वैलन्टिनो को नहीं देखा था। इस बीच वह अचानक
स्टार बन गया था। अगली बार जब हम मिले तो वह दूसरा ही शख्स था। तब मैंने
उससे कहा,"जब हम पिछली बार मिले थे उसके बाद तो तुम अमर लोगों की कतार में
जा बैठे हो।" इसके बाद वह हँसा और अपना मुखौटा उतार फेंका और काफी दोस्ताना
व्यवहार करने लगा।
वैलन्टिनो में उदासी का तत्व था। उसने अपनी सफलता को गरिमापूर्वक तरीक से
स्वीकार किया। लगता था मानो वह सफलता के बोझ से दबता चला जा रहा है। वह
समझदार, शांत और बिना किसी टीम टाम के था और औरतों का बहुत बड़ा रसिया था।
लेकिन वहां उसकी दाल ज्यादा नहीं गलती थी। और जिन औरतों से उसने शादी की
थी, वे उससे खराब तरीके से पेश आतीं। उसकी एक शादी के तुंत बाद ही उसकी
बीवी ने उसी की डेवलेपिंग लेबारेटरी में काम करने वाले आदमियों में से एक
के साथ इश्क लड़ाना शुरू कर दिया। उसके साथ वह डार्क रूम में ही गायब हो
जाती। वैलेन्टिनो में औरतों के प्रति जितना आकर्षण था, किसी में भी नहीं
रहा होगा। और कोई दूसरा आदमी भी ऐसा नहीं होगा जिसे औरतों ने इतना ज्यादा
धोखा दिया हो।
अब मैंने 670000 डॉलर का करार पूरा करना शुरू करने की तैयारियां शुरू कर
दीं। मिस्टर कॉलफील्ड, जो म्यूचुअल फिल्म कार्पोरेशन के प्रतिनिधि थे और
सारे कारोबारी इंतज़ाम देख रहे थे, ने हॉलीवुड के बीचों बीच एक स्टूडियो
किराये पर लिया। सक्षम सितारों की कोई कमी नहीं थी, उनमें एडना पुर्विएंंस,
एरिक कैम्पबेल, हेनरी बर्गमैन, एल्बर्ट ऑस्टिन, लॉयड बेकन, जॉन रैंड,
फ्रैंक जो कोलमैन और लिओ व्हाइट, इन सबके साथ मुझे काम शुरू करने का पूरा
विश्वास था।
मेरी पहली फिल्म द फ्लोर वॉकर बहुत अधिक सफल गयी। इसका सेट एक डिपार्टमेंट
स्टोर का था जिसमें मैंने चलती हुई सीढ़ियों पर पीछा करने का दृश्य दिखाया।
जब सेनेट ने इस फिल्म को देखा तो बोले,"हे भगवान, मुझे कभी चलती हुई
सीढ़ियों का ख्याल क्यों नहीं आया।"
जल्दी ही मैं अपनी पराकष्ठा पर था और हर महीने दो रील की एक फिल्म बना कर
दे रहा था। फ्लोर वॉकर के बाद, जो फिल्में आयीं, वे थीं, द फायरमैन, द
वैगाबाँड, वन ए एम, द काउंट, द पॉनशॉप, बिहाइंड द क्रीन, द रिंक, ईज़ी
स्ट्रीट, द क्योर, द इमिग्रैंट, द एडवंचरर, इन बारह कॉमेडी फिल्मों को
बनाने में कुल सोलह महीने लगे और इसमें वह समय भी शामिल था जो ठंड या
मामूली बाधाओं की वजह से गया।
कई बार कोई कहानी समस्या खड़ी देती और मैं उसने सुलझाने में मुश्किल पाता।
ऐसे मौकों पर मैं काम बंद कर देता और सोचने की कोशिश करता, इस यातना में
अपने ड्रेसिंग रूम में चहल कदमी करता या सेट के पिछवाड़े घंटों तक बैठा
रहता, और समस्या से जूझता रहता। मेरी तरफ देख रहे मैनेजमैंट के या स्टाफ के
किसी आदमी को देखते ही मेरी देह सुलग जाती, खास तौर पर इसलिए भी कि
म्युचूअल निर्माण की लागत अदा कर रही थी और मिस्टर कॉलफील्ड वहां पर यह
देखने के लिए मौजूद थे कि सब कुछ ठीक ठाक चलता रहे।
दूर से ही मैं उन्हें देख लेता कि वे लोगों के बीच से हो कर आ रहे हैं। मैं
अच्छी तरह से जानता था कि वे क्या सोच रहे होंगे, कुछ भी नहीं हो रहा है और
ऊपरी खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। और मैं उन पर मीठी छुरी से वार कर देता कि
जिस वक्त मैं सोच रहा होऊं, उस वक्त किसी का आस पास होना या ये सोचना कि वे
चिंता कर रहे हैं, मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।
बेकार जा चुका दिन के खत्म होने के बाद, जब मैं स्टूडियो छोड़ कर जा रहा
होता, वे जानबूझ कर अचानक ही मुझसे टकरा जाते और पूछते,"और कैसे चल रहा है,
बात बनी कुछ?"
"वाहियात, मेरा ख्याल है, मैं चुक गया हूं, मैं कुछ सोच ही नहीं पाता।"
और वे खोखली आवाज़ निकालते जिसका मतलब हँसी होता,"चिंता मत करो, सब ठीक हो
जायेगा।"
कई बार ऐसा होता कि समस्या का हल शाम को उस वक्त सूझता जिस वक्त मैं हताशा
के आलम में होता और सब कुछ पर सोच चुका होता और दरकिनार कर चुका होता। और
तभी हल अचानक ही सामने आ जाता मानो संगमरमर के फर्श पर से धूल की मोटी पर्त
हटा दी गयी हो और सामने चमचमाता फर्श निकल आया हो जिसे मैं कब से तलाश रहा
था। तनाव गायब हो जाता और सारे स्टूडियो में चहल पहल मच जाती। देखने की बात
होती कि मिस्टर कॉलफील्ड के चेहरे पर हँसी कैसे आती है।
हमारी किसी भी पिक्चर में कभी भी कोई कलाकार जख्मी नहीं हुआ। हिंसा की भी
बाकायदा रिहर्सल की जाती और उसे कोरियोग्राफी की तरह माना जाता।
चेहरे पर थप्पड़ मारने में भी ट्रिक इस्तेमाल की जाती। कितनी भी झड़प हो,
हर कोई जानता था कि अंत में क्या होने वाला है। सब कुछ समय के हिसाब से
चलता। घायल होने के लिए कोई बहाना नहीं चलता क्योंकि फिल्म में सभी इफेक्ट
हिंसा, भूकंप, जहाज का टूटना, और बड़ी बड़ी घटनाएंं, सब को झूठ मूठ किया जा
सकता है।
उस पूरी सीरीज़ में मात्र एक ही दुर्घटना हुई।
ये बात ईज़ी स्ट्रीट की है। जिस वक्त मैं स्ट्रीट लैम्प को जलाने के लिए
उसे एक बड़ी सी घिरनी पर खींच रहा था तो लैम्प का ऊपरी हिस्सा गिर गया और
उसका इस्पात का नुकीला टुकड़ा मेरी नाक के सिरे पर आ लगा जिसकी वजह से मुझे
दो टांके लगवाने पड़े।
मेरा ख्याल है कि म्युचूअल के करार को पूरा करना मेरे कैरियर के सबसे अच्छा
अरसा था। मैं अपने आप को हलका और बिना किसी बोझ के महसूस कर रहा था। मैं
सिर्फ सत्ताइस बरस का था और मेरे सामने अनंत सम्भावनाएं थीं, और थी मेरे
सामने एक दोस्तानी दुनिया। थोड़े से ही अरसे में मैं करोड़पति हो जाऊंगा।
ये सारी बातें कुछ कुछ पगला देने वाली थीं। धन मेरी तिजोरियों में बरस रहा
था। हर हफ्ते मुझे दो हज़ार डॉलर मिल रहे थे जो लाखों में बदल रहे थे। इस
समय मेरी हैसियत चार लाख डॉलर की थी और अब पांच लाख की। मैं कभी इस सब की
कल्पना भी नहीं कर सकता था।
मुझे जे पी मोर्गन के एक दोस्त मैक्सिन ईलियट की याद है। उसने एक बार मुझसे
कहा था, धन तभी तक अच्छा है जब भुला दिया जाये।
लेकिन ये कुछ ऐसी शै भी है जिसे याद रखा जाये।
इस बात में कोई शक नहीं कि सफल आदमी अलग अलग दुनिया में रहते हैं। जब मैं
लोगों से मिलता हूं तो उनके चेहरे दिलचस्पी से दिपदिपाने लगते हैं। हालांकि
मैं नया नया रईस बना था, मेरी राय को गम्भीरता से लिया जाता था। जो परिचित
थे वे मुझसे प्रगाढ़ संबंध बनाने के लिए लालायित रहते और मेरी समस्याएंं
सुलझाने के लिए वैसे ही आगे आते मानो मेरे नातेदार हों। ये सब बहुत
चाटुकारिता लगती लेकिन मेरी प्रकृति इस तरह की आत्मीयता को घास नहीं डालती।
मैं दोस्तों को वैसे ही पसंद करता हूं जैसे संगीत को पसंद करता हूं।
अलबत्ता, इस तरह की आज़ादी कभी कभार के अकेलेपन की कीमत पर ही होती।
एक दिन, जब मेरा करार पूरा होने ही वाला था, मेरा भाई एथलेटिक क्लब में
मेरे बेडरूम में आया और प्रसन्नता से बोला,"सुनो भई चार्ली, अब तुम
करोड़पतियों की जमात में आ गये हो। मैंने अभी अभी तुम्हारे लिए एक सौदा तय
किया है जिसमें तुम फर्स्ट नेशनल के लिए दो दो रील की आठ कॉमेडी फिल्में
बनाओगे और तुम्हें इसके एवज में बारह लाख डॉलर मिलेंगे।
मैंने अभी अभी स्नान किया था और अपनी कमर पर तौलिया लपेटे अपने वायलिन पर द
टेल ऑफ हॉफमैन की धुन बजा रहा था। "हम . . हम. . मेरा ख्याल है, ये वाकई
शानदार है, नहीं क्या!!"
सिडनी अचानक ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा,"ये बात मेरे संस्मरणों में जायेगी।
तुम, चार्ली, अपनी चूतड़ पर तौलिया लपेटे, वायलिन बजा रहे हो, और मैं
तुम्हें जब बताता हूं कि मैंने तुम्हारे लिए साढ़े बारह लाख डॉलर का करार
किया है, तुम्हारी ये प्रतिक्रिया!!"
मैं स्वीकार करता हूं कि इसमें आडम्बर का थोड़ा सा तंज था क्योंकि इसमें एक
काम भी था कि ये सारा धन कमाया जाना था।
सारी बातों के बावजूद, धन सम्पदा के इन सारे वायदों ने मेरी जीवन शैली पर
कोई प्रभाव नहीं डाला। मैं धन के आगे झुकता था लेकिन इसके इस्तेमाल के आगे
नहीं। जो धन मैं कमाता था वो काल्पनिक था, दंत कथा की तरह था। ये सब
आंकड़ेबाजी थी क्योंकि दरअसल ये धन मैंने सचमुच देखा भी नहीं था। इसलिए
मुझे कुछ ऐसा करना था कि सिद्ध हो सके कि मेरे पास ये धन है। इसलिए मैंने
एक सचिव रखा, एक खिदमतगार और एक शोफर रखे। एक कार ली। एक दिन एक शोरूम के
आगे से गुज़रते हुए मैंने एक सात सीटर यात्री कार देखी। उन दिनों अमेरिका
में ये सबसे अच्छी कार मानी जाती थी। वो इतनी शानदार और भव्य लग रही थी कि
मुझे ये लगा ही नहीं कि ये बिक्री के लिए हो सकती है। अलबत्ता, मैं दुकान
में गया और पूछा," कितने की है?"
"चार हज़ार नौ सौ डॉलर"
"पैक कर दीजिये," मैंने कहा।
वह आदमी हैरान परेशान, उसने इतनी जल्दी हो गयी बिक्री में कुछ रोक लगाने की
नियत से कहना चाहा, "क्या आप इंजिन वगैरह नहीं देखना चाहेंगे?"
"इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि मैं उनके बारे में कुछ भी तो नहीं
जानता।" मैंने जवाब दिया। अलबत्ता, मैंने अंगूठे से एक टायर दबा कर अपनी
व्यावसायिक समझ दिखा दी।
लेनदेन बहुत आसान था। इसका मतलब एक कागज के टुकड़े पर अपना नाम लिखना था और
कार मेरी हो गयी।
पैसे का निवेश करना एक समस्या थी और मैं इनके बारे में कुछ भी नहीं जानता
था। सिडनी अलबत्ता, इन सारी चीजों के नामों से वाकिफ था। वह बुक वैल्यू,
पूंजीगत लाभ, वरीयता प्राप्त और दूसरे स्टॉक, ए और बी रेटिंग, कर्न्विटबल
स्टॉक और बाँड, औद्यौगिक कम्पनियों, और सेविंग बैंकों की कानूनी
प्रतिभूतियों के बारे में खूब जानता था। उन दिनों निवेश करने के अवसरों की
कोई कमी नहीं थी। लॉस एंंजेल्स के ज़मीन जायदाद के एक एजेंट ने एक बार
मुझसे कई बार कहा कि मैं उसके साथ भागीदारी करके लॉस एंंजेल्स घाटी में
ज़मीन का एक टुकड़ा खरीद लूं और दोनों पच्चीस पच्चीस हज़ार डॉलर का निवेश
करें। अगर मैंने उस परियोजना में निवेश कर लिया होता तो मेरा हिस्सा बढ़ कर
पांच कऱोड़ डॉलर का हो चुका होता क्योंकि वहां पर तेल निकल आया था और वह
कैलिफोर्निया के सबसे अमीर क्षेत्रों में से एक हो गया था।
अध्याय : तेरह
उस वक्त स्टूडियो में कई लब्ध प्रतिष्ठ विभूतियाँ पधारीं। मेलबा, लिओपोल्ड
गोडोवस्की और पेडेरेवस्की, निजिंस्की और पावलोवा।
पेडेरेवस्की बहुत ही मोहक व्यक्तित्व के मालिक थे लेकिन उनमें थोड़ा सा
बुर्जुआपन था। वे गरिमा पर कुछ ज्यादा ही ज़ोर देते थे। अपने लम्बे बालों,
नीचे की तरफ झुकती चली आयी मूंछों और निचले होंठ के नीचे दाढ़ी के बालों के
नन्हें से गुच्छे की वज़ह से वे खासे आकर्षक लगते थे लेकिन मुझे ऐसा लगता
मानो उनकी इस छवि से उनके रहस्यमय घमंड की कोई झलक सामने आती थी। जब वे
पिआनो बज़ाने बैठते तो घर भर की बत्तियों की रौशनी धीमी कर देते, माहौल
ग़मगीन और रहस्यमय हो जाता। और जब वे अपने पिआनो स्टूल पर बैठने को होते तो
मुझे हमेशा ऐसा लगता मानो उनके नीचे से किसी को स्टूल खींच लेना चाहिए।
युद्ध के दौरान उनसे मेरी मुलाकात न्यू यार्क में रिट्ज होटल में हुई थी।
मैं उनसे बहुत उत्साह से मिला; पूछा था मैंने कि क्या वे वहाँ कोई
कार्यक्रम देने के सिलसिले में आये हुए हैं। आडम्बरी गम्भीरता के साथ
उन्होंने जवाब दिया,"जब मैं देश की सेवा में होता हूँ तो कार्यक्रम नहीं
दिया करता।"
पेडेरेवस्की पोलैण्ड के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उस वक्त मेरे ख्यालात
क्लेमेंसीयू की तरह ही थे, जिन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण वारसा संधि पर एक
सम्मेलन के दौरान उनसे कहा था, "क्यूं कर हो गया कि आपके जैसा कलाकार इतना
नीचे गिर गया कि उसे राजनीतिज्ञ बन जाना पड़ा?"
दूसरी तरफ महान पिआनो वादक लिआपोल्ड गोडोवस्की सरल-निच्छल और मज़ाकिया
किस्म के आदमी थे। वे छोटे कद का, मुस्कुराते हुए गोल चेहरे वाले शख्स थे।
लॉस एजेंल्स में कार्यक्रम देने के बाद उन्होंने वहीं पर एक मकान किराये पर
ले लिया था, और मैं अक्सर उनसे मिलने चला जाता। रविवार के दिन यह मेरा
सौभाग्य होता कि मैं उन्हें रियाज़ करते सुन सकता था और उनके बेहद छोटे
हाथों में छुपे असाधारण जादू और तकनीक के दर्शन कर पाता था।
निजिंस्की भी स्टूडियो में आया करते। उनके साथ उनके रूसी बैले के सदस्य थे।
वे गम्भीर किस्म के शख्स थे; आकर्षक, सुंदर चेहरा, उनके गालों की हड्डियां
ऊपर की तरफ उठी हुई थीं और आँखें में उदासी तारी रहती। उनकी ढब से लगता,
साधारण वस्त्रों में कोई भिक्षु चला आ रहा है। हम द क्योर की शूटिंग कर रहे
थे। वे कैमरे के पीछे बैठ गये और मुझे काम करते हुए देखने लगे। मैं जो
दृश्य शूट कर रहा था, वह मेरे हिसाब से मज़ाकिया था लेकिन बंदा मुस्कुरा के
न दिया। हालांकि आसपास जुट आये लोग हँस रहे थे लेकिन निजिंस्की उदास, और
उदास होते चले गये। जब वे जाने लगे तो मेरे पास आये, हाथ मिलाया और अपनी
खोखली आवाज़ में बोले कि मैं बता नहीं सकता, आपका काम देख कर मुझे कितना
आनन्द मिला है। उन्होंने पूछा कि क्या मैं यहाँ फिर आ सकता हूँ?
"बेशक," कहा मैंने। वे दो और दिन मिट्टी के माधो बने मुझे काम करते हुए
देखते रहे। आखिरी दिन मैंने कैमरामैन से कहा कि वह कैमरे में रोल न डाले।
मैं जानता था कि निजिंस्की की मनहूस मौजूदगी मज़ाकिया दिखने की मेरी सारी
कोशिशों पर पानी फेर देगी। इसके बावजूद, वे हर दिन की समाप्ति पर मुझे बधाई
देते, `आपकी कॉमेडी, आप सचमुच नर्तक हैं।' कहा उन्होंने।
मैंने अब तक रूसी बैले नहीं देखा था, या यूं कहूँ कि अब तक कोई बैले ही
नहीं देखा था। लेकिन जब सप्ताह खत्म हुआ तो मुझे मैटिनी शो देखने के लिए
आमंत्रित किया गया।
थियेटर में मेरा स्वागत दियाघिलेव ने किया। वे बेहद ऊर्जावान और उत्साह से
भरे हुए शख्स थे। उन्होंने इस बात के लिए क्षमा माँगी कि उस वक्त उनका कोई
ऐसा कार्यक्रम नहीं चल रहा है जो उनकी निगाह में मैं बहुत ज्यादा पसन्द कर
सकूँ। उन्होंने अफ़सोस व्यक्त किया कि इस समय ल' अप्रेस-मिडी-द' डन फाउन'
नहीं चल रहा है। उनके ख्याल से मैं ये वाला कार्यक्रम ज्यादा पसन्द करता।
तब वे तुंत अपने मैनेजर की तरफ मुड़े, "निजिंस्की साहब को बताओ कि हम
चार्लोट के लिए इन्टरवल के बाद फाउने का प्रदर्शन करेंगे।"
पहला बैले शहाराज़ादे था। मेरी प्रतिक्रिया कमोबेश नकारात्मक थी। इसमें
बहुत ज्यादा एक्टिंग थी और नृत्य नाममात्र को भी नहीं था। मेरे ख्याल से
रिम्स्की - कोर्साकोव का संगीत दोहराव लिये हुए था। लेकिन इसके बाद पास दे
`देव प्रस्तुत किया गया। इसमें स्वयं निजिंस्की थे। जिस पल वे मंच पर
अवतरित हुए जैसे मुझे बिजली का करन्ट लग गया हो। मैंने दुनिया में बहुत कम
जीनियस देखे हैं और निजिंस्की उनमें से एक थे। उनमें सम्मोहित कर लेने की
ईश्वरीय शक्ति थी। अपने हावभावों से वे हमारे सामने दूसरी ही दुनिया पेश कर
रहे थे। उनकी हर भंगिमा में जैसे कविता की लय थी। उनकी एक एक मुद्रा हमें
विचित्र कल्पना लोक में ले जाती थी।
उन्होंने दियाघिलेव से कह रखा था कि इन्टरवल में वे मुझे उनके ड्रेसिंग रूम
में लिवा लायें। मेरे पास उनकी तारीफ के लिए शब्द नहीं थे।
उनके ड्रेसिंग रूम में मैं चुपचाप बैठा रहा और उन्हें फाउने के लिए मेक-अप
करते हुए अजीब-अजीब चेहरे बनाते हुए देखता रहा। वे अपने गालों पर हरे रंग
के घेरे बना रहे थे। वे बीच-बीच में बातचीत का सिरा जोड़ने की नाकाम कोशिश
कर रहे थे। वे मेरी फिल्मों के बारे में इधर-उधर के सवाल पूछते रहे। मैं
सिर्फ़ एक-एक शब्द के वाक्यों में जवाब दे पा रहा था। जब इन्टरवल की
समाप्ति पर घंटी बजी तो मैंने सलाह दी कि अब मुझे अपनी सीट पर लौट जाना
चाहिए।
"न, न, अभी नहीं," कहा उन्होंने।
तभी दरवाजे पर खट-खट हुई। "मिस्टर निजिंस्की, इन्टरवल में बजने वाले धुन
पूरी हो चुकी है।"
मेरे चेहरे पर परेशानी झलकने लगी।
"ठीक है, ठीक है," जवाब दिया उन्होंने, "अभी बहुत समय है।"
मुझे झटका लगा और मैं इस बात को कत्तई समझ नहीं पाया कि वे ऐसा बरताव क्यों
कर रहे हैं, "क्या आपको नहीं लगता कि मुझे जाना चाहिए?"
"नहीं, नहीं, उन्हें एक और धुन बजाने दो।"
अंतत: दियाघिलेव हड़बड़ाते हुए ड्रेसिंग रूम में आये और चमकने लगे," जल्दी
करो, जल्दी करो, दर्शक हल्ला कर रहे हैं।"
"इंतज़ार करने दो उन्हें, इसमें ज्यादा ही मज़ा है," कहा निजिंस्की ने और
मुझसे बेसिर-पैर के और सवाल पूछने शुरू कर दिये। परेशानी के मारे मेरा बुरा
हाल। मैं मिनमिनाया, "मेरे ख्याल से मुझे अपनी सीट पर लौट जाना चहिए।"
आज तक कोई भी कलाकार ल' अप्रेस-मिडी-द' उन फाउने में निजिंस्की की बराबरी
नहीं कर सका है। जिस रहस्यमय सृष्टि का सृजन वे करते थे, अपनी रहस्यमयी,
आत्मीय-सी उदासी के ज़रिये वे जिस निस्सीम विस्तार लिये प्यार की अनदेखी
उदास छायाओं की सैर कराने दर्शक को अपने साथ ले जाते थे, उस सबका कोई सानी
नहीं था। वे बिना किसी सायास प्रयास के कुछ ही भाव भंगिमाओं से सब कुछ कह
डालते थे।
छ: महीने बाद निजिंस्की पागल हो गये थे। इस बात के संकेत तो उस दिन दोपहर
के वक्त ड्रेसिंग रूम में ही नज़र आने लगे थे जब उन्होंने अपने दर्शकों को
इंतज़ार करने के लिए छोड़ दिया था। मैं इस बात का गवाह था कि किस तरह से एक
संवेदनशील मस्तिष्क युद्ध की विभीषिका झेल रहे क्रूर विश्व से विचरते हुए
एक दूसरी ही दुनिया में, अपने सपनों की दुनिया में चला गया था।
किसी भी साधना या कला में उत्कृष्टता के शिखर पर विरल ही लोग पहुंचते हैं,
और पावलोवा उन दुर्लभ कलाकारों में से एक थीं जिसने इसे सच कर दिखाया था।
मुझ पर हर बार उसका जादुई असर होता था। हालांकि उनकी कला उत्कृष्ट थी, फिर
भी उनमें एक स्तरीय पीलापन, उदासी का तत्व रहता। गुलाब की सफेद पंख़ुड़ी की
तरह बेहद नाज़ुक। जब वे नृत्य करती थीं तो उनकी हर लय-ताल गुरुत्वाकर्षण का
केंद्र बन जाती। जिस पल वे मंच पर अवतरित होतीं, वे जितनी भी खुश या आकर्षक
क्यों न हो, मेरा मन रोने का करता। वे सम्पूर्णता की त्रासदी को साकार कर
देती थीं। ऐसा अद्भुत होता उनका नृत्य।
वे अपने मित्रों के लिए पाव थी। मैं उनसे उस वक्त मिला था जब वे युनिर्सल
स्टूडियो में हॉलीवुड में एक फिल्म बना रही थीं। हम अच्छे दोस्त बन गये थे।
इसे त्रासदी ही तो कहा जायेगा कि पुरानी सिनेमा की गति उनकी नृत्य की
भंगिमाओं की गीतात्मकता को ग्रहण करने में असफल रही थी और इस वज़ह से उनकी
यह महान कला दुनिया से हमेशा के लिए विलुप्त हो गयी।
एक बार की बात है, रूसी कौन्सूलेट ने उनके सम्मान में एक भोज दिया जिसमें
मैं भी मौजूद था। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन था और निश्चय ही
गरिमा लिये हुए था। डिनर के दौरान कई जाम छलकाये गये और भाषण वाषण चले। कुछ
फ्रांसीसी में और कुछ रूसी में। मेरे ख्याल से सिर्फ़ मैं ही अकेला
अंग्रेज़ था जिसे बुलाया गया था। अलबत्ता, इससे पहले कि कुछ कहने के लिए
मेरी बारी आती, एक प्रोफेसर ने पावलोवा की कला पर रूसी भाषा में एक शानदार
कसीदा पढ़ा। ऐसे भी पल आये जब प्रोफेसर की आँखों में आँसू आ गये। वह रो
पड़ा और तब वह पावलोवा के पास गया और उन्हें बेतहाशा चूमने लगा। मुझे पता
चल चुका था कि उस प्रोफेसर के बाद कुछ करने की मेरी कोई भी कोशिश बेकार
जायेगी। इसलिए मैं उठा और बोला कि चूँकि मेरी अंग्रेजी मादाम पावलोवा की
कला की महानता का बयान करने के लिए पूरी तरह से नाकाफी होगी, इसलिए मैं
चीनी भाषा में बोलूँगा। मैं चीनी भाषा में अनाप शनाप बकता रहा और मैंने भी
उसी तरह का समां बांध दिया जिस तरह का प्रोफेसर ने बांधा था। मैंने अपनी
बात का समापन प्रोफेसर से भी ज्यादा शिद्दत से पावलोवा को चूमने से किया।
मैंने एक नैपकिन लिया और जब तक मैं उन्हें लगातार चूमता रहा, नैप्किन को हम
दोनों से सिर के आगे थामे रहा। पार्टी का हँस-हँस के बुरा हाल हो गया और इस
तरह से माहौल की गंभीरता टूटी।
साराह बर्नहार्ड्ट ऑरपीयम रंगारंग थियेटर में अभिनय किया करती थीं। इसमें
कोई शक नहीं कि वे बहुत बूढ़ी थीं और उनका कैरियर ढलान पर था, फिर भी उनके
अभिनय का सच्चा मूल्यांकन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। लेकिन जब
ड्यूस लॉस एजेंल्स आयी तो उनकी ढलती उम्र और नज़दीक आता उनका अंत भी उनकी
प्रतिभा की चमक को फीका नहीं कर पाये थे। उनके पीछे बेहतरीन इतालवी कलाकार
मंडली थी। जब वे मंच पर आयीं - उससे पहले एक सुदर्शन युवा अभिनेता आकर अपनी
अभिनय क्षमता के जलवे दिखा चुका था। और अभी भी मंच के बीचों बीच जमा हुआ
था। मैं इस बात पर हैरान होता रहा कि किस तरह से ड्यूस उस युवा अभिनेता के
शानदार अभिनय के भी आगे जा पायीं?
तभी एकदम बांयी तरफ से ड्यूस एक मेहराब के नीचे से होती हुई सहजता से मंच
पर आयीं। वे सफेद क्रिसैन्थेमम फूलों की टोकरी के पीछे पल भर के लिए
ठिठकीं। ये फूल बड़े से पिआनो पर रखे हुए थे। उन्होंने चुपचाप फूलों को
तरतीब देना शुरू कर दिया। पूरे थियेटर में फुसफुसाहट की आवाज़ें आने लगीं
और मेरा ध्यान तुंत युवा कलाकार से हट कर ड्यूस की तरफ चला गया। न तो वे
युवा कलाकार की तरफ देख रही थीं और न ही किसी अन्य चरित्र की तरफ ही। वे
चुपचाप फूलों को सजाती रहीं। बीच बीच में वे उन फूलों को भी लगा रही थीं जो
वे अपने साथ लायी थीं। जब उन्होंने यह काम खत्म कर लिया तो वे तिरछे चलते
हुए मंच से नीचे आयीं और फायर प्लेस के पास आ कर एक आराम कुर्सी में बैठ
गयीं। उनकी निगाहें आग की तरफ थीं। एक बार और सिर्फ़ एक बार उन्होंने युवा
कलाकार की तरफ देखा। उस निगाह में क्या कुछ नहीं था? सारी की सारी
बुद्धिमता और मानवीय करुणा। इसके बाद वे सुनती रहीं और अपने हाथ गरम करती
रहीं। बेहद खूबसूरत और संवेदनशील हाथ।
युवा कलाकार के उत्तेजक संभाषण के बाद डÎूस आग की तरफ देखते हुए शांत स्वर
में बोलीं। उनकी संवाद अदायगी में सामान्य कृत्रिमता नहीं थी। उनकी आवाज़
त्रासद भावावेग की आंच से आ रही थी। उनका एक शब्द भी मेरे पल्ले नहीं पड़
रहा था लेकिन मैंने महसूस किया कि मैं साक्षी बन रहा था अब तक की देखी
महानतम अभिनेत्री के अभिनय का।
कौंस्टांस कौलियर सर हरबर्ट बीरबोहम ट्री की प्रमुख अभिनेत्री थीं और वे
ट्रिंगल फिल्स कम्पनी के लिए सर हरबर्ट बीरबोहम के साथ लेडी मैक्बेथ की
भूमिका कर रही थीं। जब मैं छोटा बच्चा था तो मैंने उन्हें हिज़ मैजेस्टी
थियेटर की गैलरी से कई बार देखा था और द इटरनल सिटी में और ओलिवर ट्विस्ट
में नैन्सी की उनकी यादगार भूमिकाओं का दीवाना था। इसलिए जब लेवी'ज कैफे
में मेरी मेज पर एक नोट आया कि मिस कौलियर मुझसे मिलना चाहती हैं और मैं
उनकी मेज पर चला आऊं। मुझे ऐसा करने में अपार खुशी हुई। उस मुलाकात के बाद
हम जीवन भर के लिए बेहतरीन दोस्त बन गये। वे बहुत दयामयी महिला थीं जिसमें
उष्मा ही उष्मा भरी हुई थी। उनमें अपार जीजिविषा थी। उन्हें लोगों को आपस
में मिलवाना अच्छा लगता था। उनकी इच्छा थी कि मेरी मुलाकात सर हरबर्ट से और
डगलस फेयरबैंक्स नाम के एक नौजवान से हो। कोलियर का ख्याल था कि हम तीनों
में बहुत कुछ एक समान है।
मेरा ख्याल है, सर हरबर्ट अंग्रेजी थियेटर के डीन थे और अभिनेताओं में सबसे
ज्यादा विनम्र थे। वे सामने वाले के दिमाग पर तो असर छोड़ते थे, उसकी
संवेदनाओं को भी छूते थे। ओलिवर ट्विस्ट में उनका फागिन हँसी मजाक से भरपूर
और डरावना एक साथ था। जरा सी कोशिश करके वे ऐसा तनाव पैदा कर देते जिसे सहन
करना लगभग असंभव हो जाता। उन्हें बस, इतना करना होता कि तनाव पैदा करने के
लिए जाम छलकाने वाले फोर्क से मज़ाक में ही कलापूर्ण पैंतरेबाज को छेड़ भर
देते। चरित्र को ले कर ट्री की अवधारणा हमेशा उत्कृष्ट होतीं। भोंदू
स्वेंगाली इसका नमूना था। वे इस वाहियात से लगने वाले चरित्र में सामने
वाले को विश्वास करा देते और उसे न केवल हास्य से भर देते बल्कि कवितामय भी
बना देते। आलोचकों का मानना था कि ट्री को व्यवहारों को परखने की अद्भुत
समझ थी। यह सच है लेकिन वे उन्हें असरदार ढंग से इस्तेमाल करना भी जानते
थे। जूलियस सीजर में उन्होंने जो व्याख्याएंं कीं, वे बौद्धिकतापूर्ण थीं।
अंतिम संस्कार के दृश्य में उनका मार्क एन्टोनी भीड़ को परम्परागत जोश से
संबोधित करने के बजाये उनके सिरों के ऊपर से सनक और भीतरी तिरस्कार से भरा
लापरवाही से बात करता है।
जब मैं चौदह बरस का था तो मैंने ट्री को उनकी कई महान निर्मितियों की
प्रस्तुति में देखा था। इसलिए जब कौन्टांस ने जब सर हरबर्ट, उसकी बेटी
आइरिस और मेरे लिए एक छोटे से डिनर का आयोजन किया तो इस विचार से ही मैं
उत्साहित हो गया था। हमें एलेक्जंड्रिया होटल में ट्री के कमरे में मिलना
था। मैं जान बूझ कर देर कर रहा था और यह उम्मीद कर रहा था कि वहाँ पर तनाव
कम करने के लिए कौन्टेंस होंगी ही, लेकिन जब सर हरबर्ट ने अपने कमरे में
मेरी अगवानी की तो वे वहाँ अकेले थे। उनके साथ उनके फिल्म निर्देशक जॉन
एमरसन ही थे।
"आहा, आओ, आओ चैप्लिन," सर हरबर्ट ने कहा,"मैंने कौन्सटांस से आपके बारे
में बहुत कुछ सुना है।"
एमरसन से परिचय कराने के बाद उन्होंने बताया कि वे मैक्बैथ के कुछ दृश्यों
पर बात कर रहे थे। जल्द ही एमरसन विदा हो गये और मैं अचानक शर्म के मारे
पसीना-पसीना हो गया।
"क्षमा करना, मैंने आपको इंतज़ार कराया," सर हरबर्ट मेरे सामने वाली
आरामकुर्सी में पसरते हुए बोले, "हम चुड़ैल वाले दृश्य के लिए इफेक्ट्स के
बारे में चर्चा कर रहे थे।"
"ओह - ह: ह:।" मैं हकलाया।
"मेरा ख्याल है कि गुब्बारों के ऊपर की तरफ एक रस्सी बांध दी जाये और उस
दृश्य इस तरह से प्रभावशाली बनेगा। क्या ख्याल है आपका?"
"ओह ह: ह: ह: बेशक शानदार!"
सर हरबर्ट एक पल के लिए रुके और मेरी तरफ देखने लगे।
"आप तो वाकई सफलता के शिखर पर विराजे हुए हैं, नहीं क्या?"
"ऐसा तो कुछ नहीं है," जैसे मैं माफी मांगते हुए मिमियाया।
"लेकिन पूरी दुनिया में आपकी धाक जमी हुई है। इंगलैण्ड में और फ्रांस में
सैनिक आपके बारे में गीत तक गाते हैं।"
"ऐसा है क्या?" मैंने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हुए कहा।
उन्होंने दोबारा मेरी तरफ देखा - शक और पूर्वाग्रह उनके पूरे चेहरे पर पसरे
हुए थे। तभी वे उठे, कमरे से बाहर जाते हुए बोले, "कौंसटांस को देरी हो रही
है। मैं फोन करके पूछता हूँ कि माजरा क्या है। इस बीच आप मेरी बेटी आइरिस
से तो ज़रूर ही मिलें।"
मैंने राहत की सांस ली। इसकी वज़ह यह थी कि मेरे दिमाग में तो एक बच्चे की
स्मृतियाँ थी जिससे मैं स्कूल और फिल्मों के बारे में अपने खुद के स्तर पर
बात कर पाता। तभी एक लम्बा सा सिगरेट होल्डर लिये एक तन्वंगी नवयौवना ने
कमरे में प्रवेश किया,"आप कैसे हैं मिस्टर चैप्लिन? मेरा ख्याल है मैं पूरी
दुनिया में ऐसी अकेली लड़की हूँ जिसने आपको परदे पर नहीं देखा है।"
मैंने खींसें निपोरीं और अपना सिर हिलाया।
आइरिश स्कैंडिनेवियाई लगती थी। उसके फूले-फूले लाल रंगत लिये बाल थे, उभरी
हुई नाक और हल्की नीली आँखें। उस वक्त उसकी उम्र अट्ठारह बरस की थी। वह
बेहद आकर्षक थी और उसमें स्वाभाविक रूप से अंगड़ाई लेता अभिजात्य वर्ग वाला
दर्जा था। पन्द्रह बरस की उम्र में उसकी कविताओं की किताब छप चुकी थी।
"कौंसटेंस आपके बारे में बहुत कुछ बताती रहती हैं।" कहा उसने।
मैंने एक बार फिर खींसें निपोरीं और सिर हिलाया।
आखिरकार, सर हरबर्ट लौटे और उन्होंने बताया कि चूँकि कौंसटैंस को कॉस्टÎूम
फिटिंग्स के चक्कर में देर हो गयी है इसलिए वे नहीं आ पायेंगी और कि हमें
उनके बिना ही खाना खाना होगा।
हे भगवान!! इन अजनबियों के बीच मैं रात कैसे गुजारूंगा?
जलते हुए इस ख्याल का बोझ अपने दिमाग पर लिये मैं उनके साथ चुपचाप कमरे से
निकला। हम चुपचाप लिफ्ट में घुसे और चुपचाप ही डाइनिंग रूम में गये और वहाँ
जा कर मेज़ पर इस तरह से बैठ गये मानो किसी की मैय्यत से अभी-अभी लौटे हों।
बेचारे सर हरबर्ट और आइरिश ने इस बात की भरपूर कोशिश की कि बातचीत में जान
आ जाये। बेचारी ने कोशिश करनी ही छोड़ दी और आराम से बैठकर डाइनिंग रूम का
मुआइजा करने लगी। काश, खाना ही परोस दिया जाता। खाते समय शायद मुझे इस
भयावह तनाव से मुक्ति मिल जाती!! बाप-बेटी थोड़ी देर बात करते रहे। फिर
उन्होंने साउथ ऑफ फ्रांस की और रोम की और साल्जबर्ग की बात की - क्या मैं
वहाँ कभी गया हूँ? क्या मैंने मैक्स रेनहाईट प्रोडक्शन की कोई प्रस्तुति
देखी है?
मैंने जैसे माफी मांगते हुए सिर हिलाया।
ट्री ने अब मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, "पता है, आपको खूब घूमना चाहिए।"
मैंने उन्हें बताया कि मेरे पास घूमने के लिए वक्त ही नहीं बचता है। तब
मैंने बातचीत का सिरा पकड़ा," देखिये, सर हरबर्ट, मेरी सफलता इतनी अचानक
रही है कि मैं सफलता के साथ-साथ चल पाने में भी वक्त की कमी महसूस कर रहा
हूँ। लेकिन जब मैं चौदह बरस का बच्चा था तो मैंने आपको स्वेंगाली के रूप
में, फागिन के रूप में, एन्टोनी के रूप में और फालस्टाफ के रूप में देखा
था। कुछ नाटक तो मैंने कई कई बार देखे थे और तब से आप मेरे लिए आदर्श
प्रतिमा रहे हैं। मैं आपको स्टेज से परे देखने की कल्पना भी नहीं कर सकता
था। आप की दंत कथा की तरह थे। और आज रात लॉस एंजेल्स में आपके साथ बैठकर
भोजन करना मुझे खुशियों से भर रहा है।"
ट्री अभिभूत हो गये "वाकई!!" वे बार बार कहते रहे, "वाकई!!"
उस रात के बाद से हम बहुत अच्छे दोस्त बन गये। वे अक्सर मुझे बुलवा भेजते,
और तब हम तीनों, आइरिस, सर हरबर्ट और मैं इकट्ठे बैठ कर खाना खाते। कई बार
कौंसटेंस भी आ जाती तो हम विक्टर ह्यूगो के रेस्तरां में चले जाते और कॉफी
की चुस्कियां लेते हुए भावपूर्ण चैम्बर म्यूजिक सुनते।
•
मुझे कांसटैंस से डगलस फैयरबैंक्स के आकर्षण और योग्यता के बारे में बहुत
कुछ पता चला था, न केवल व्यक्तित्व के बारे में बल्कि डिनर के बाद होने
वाले मेधावी भाषण कर्ता के रूप में भी। उन दिनों मैं मेधावी युवकों, खास
तौर पर डिनर के बाद भाषण देने वालों को पसंद नहीं करता था, अलबत्ता, डिनर
का इंतज़ाम उन्हीं के घर पर था।
डगलस और मैंने उस रात को एक बहाना मारा। जाने से पहले मैंने कांसटेंस से यह
बहाना बनाया कि मैं बीमार हूं, लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी। इसलिए मैंने
तय किया कि मैं सिरदर्द का नाटक करूंगा और जल्दी निकल जाऊंगा। फेयरबैंक्स
ने कहा कि वे भी बहुत नर्वस हैं और कि जिस वक्त दरवाजे की घंटी बजी तो वे
जल्दी से तलघर में सरक लिये। वहां पर एक बिलियर्ड की मेज़ रखी थी। उन्होंने
पूल खेलना शुरू कर दिया। उस रात आजीवन चलने वाली मित्रता की शुरुआत थी।
ये बिना वज़ह ही नहीं था कि डगलस ने जनता की कल्पना और प्यार पर अधिकार
जमाया। उनकी फिल्मों की आत्मा, उनका आशावाद और उनके अमोघ अर्थ अमेरिकी रुचि
के बहुत निकट पड़ते थे और निश्चित ही ये पूरी दुनिया की रुचि के भी निकट
पड़ते थे। उनमें असाधारण चुम्बकीय शक्ति और आकर्षण थे और उनमें असली लड़कपन
वाला उत्साह था जिसे उन्होंने जनता तक पहुंचाया। जैसे जैसे मैं उन्हें
अंतरंगता से जानने लगा, मैंने पाया कि वे हद दर्जे के ईमानदार थे क्योंकि
उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे स्नॉब रहने में आनंद अनुभव करते हैं
और कि सफल आदमियों में उनक प्रति आकर्षण है।
हालांकि डगलस बहुत अधिक लोकप्रिय थे, वे खुले दिल से दूसरों की मेधा की
तारीफ किया करते थे लेकिन अपनी खुद की मेधा के बारे में विनम्र रहते। वे
अक्सर कहते कि मैरी और मुझमें जीनियस है जबकि खुद उनमें मामूली सी ही
बुद्धि है। हालांकि ये सच नहीं था। डगलस सृजनशील थे और अपने काम बड़े
पैमाने पर किया करते थे।
उन्होंने रॉबिन हुड के लिए दस एकड़ का सेट बनवाया था। ये बहुत बड़े बड़े
कंगूरों और बंद होने वाले पुलों से लैस एक महल जैसा था। अब तक कोई इतना
बड़ा महल अस्तित्व में भी नहीं रहा होगा। बहुत गर्व के साथ डगलस ने मुझे
बंद होने वाला विशाल पुल दिखाया। "अद्भुत," मैंने कहा,"मेरी किसी कॉमेडी के
लिए कितनी शानदार शुरुआत रहेगी। बंद होने वाला पुल नीचे आता है और मैं
बिल्ली बाहर निकालता हूं और दूध भीतर लेता हूं।"
उनके बिल्कुल ही अलग-अलग तरह को दोस्त थे। इनमें काउबॉय से ले कर राजाओं तक
का शुमार होता। वे उन सबमें अच्छे अच्छे गुण तलाश ही लेते। उनका दोस्त
चार्ली मैक, जो एक काउबॉय था, लापरवाह, बड़बोला किस्म का शख्स, वह डगलस का
बहुत मनोरंजन किया करता। जिस समय हम डिनर कर रहे होते, चार्ली दरवाजे में
जा खड़ा होता और कहता, "आपक्के पास तो ये बढ़िया जगह है डग," तब वह डाइनिंग
रूम में चारों तरफ निगाह फेरता, "बस, एक ही दिक्कत है कि ये फायर प्लेस से
इतनी दूर है कि आप यहां बैट्ठ कर सीद्धे फायर प्लेस में थूक नहीं सकते।" तब
वह अपने पंजों के बल उचक कर खड़ा हो जाता और हमें बताता कि उसकी बीवी उस पर
क्रूरता के आधार पर तल्लाक के लिए केस कर रही है। मैं कहता हूं कि जज्ज
महाशय, इस औरत की कानी उंगली में जितनी क्रूरता भरी हुई है, उतनी क्रूरता
तो मेरे पूरे बद्दन में भी नहीं है। और किस्सी भी मोहतरमा ने आज तक मुझ पर
इतनी बंदूकें नहीं तानी हैं जितनी इस्स साली ने तानी हैं। इसने मुझे जान
बचाने के लिए हमारे उस ओल पेड़ के चारों तरफ इतने चक्कर कटवाये हैं कि वो
पेड़ ही छलनी हो गया है और अब उसके आर पास देख सकते हैं।" मुझे ऐसा लगता है
कि चार्ली डगलस के घर पर आने से पहले अपनी इस मसखरी के लिए अभ्यास करके आते
होंगे।
डलगस का घर एक शूटिंग लॉज रहा था।ये एक पहाड़ी के बीचों बीच बना हुआ दो
मंज़िला बंगला था। ये पहाड़ी उन दिनों बेवरली हिल्स कहलाती थी और झाड़ियों
से भरी बंजर पहाड़ी थी। खारेपन और सेजब्रश की झाड़ियों से एक बदबू, खट्टी
महक आती रहती जिससे गला शुष्क रहता और नासिका में खुजली मची रहती।
उन दिनों बेवरली हिल्स उजाड़ रीयल एस्टेट विकास की मानिंद लगती। गलियां खूब
थीं और वे खेतों में जा कर गुम हो जातीं। सफेद गोलों वाले लैम्प पोस्ट
सूनसान गलियों की शोभा बढ़ाते। ज्यादातर ग्लोब गायब ही होते क्योंकि उन्हें
सड़क के किनारे रहने वाले मौज मनाने वालों का निशाना बना दिया जाता।
डगलस बेवरली हिल्स पर रहने वाले पहले फिल्मी कलाकार थे। वे अक्सर मुझे
सप्ताहांत में वहां रहने के लिए बुलवा लेते। रात को मैं अपने बेडरूम में से
भेड़ियों के चीखनें की आवाजें सुनता। वे झुंड के झुंड कचरे के टिन पर हल्ला
बोलते। उनकी चीखें डरावनी होतीं जैसे कोई छोटी छोटी घंटियां टुनटुना रहा
हो।
उनके पास हमेशा ही दो या तीन ठलुए टिके रहते। टॉम गेराहटी, जो उनकी
पटकथाएंं लिखा करता था, कार्ल, एक भूतपूर्व ओलम्पिक एथलीट, और दो एक
काउबॉय। टॉम, डगलस और मुझमें तीन तिलंगों वाली यारी थी।
रविवारों की सुबह डगलस टट्टुओं का एक दस्ता तैयार कराते और हम सब अल सुबह
अंधेरे में ही जाग जाते और सूर्योदय देखने के लिए पहाड़ी की तरफ निकल
पड़ते। काउबॉय घोड़ों का दाना पानी करते और कैम्प फायर जलाते, कॉफी, हॉटकेक
और शूकरी के पेट का नाश्ता तैयार करते। जिस समय हम सूर्योदय होता हुआ
देखते, डगलस लम्बी लम्बी डींगें हांकते और मैं नींद की कमी के लतीफे सुनाता
और ये तर्क देता कि सूर्योदय देखने का असली मज़ा तो किसी महिला के साथ ही
है। इसके बावजूद सुबह सवेरे की ये यात्राएंं बहुत रोमांटिक होतीं। डगलस ही
ऐसे अकेले व्यक्ति थे जो मुझे घोड़े पर सवार करवा पाये, मेरी इन शिकायतों
के बावजूद कि दुनिया भर में इस पशु के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता
दिखायी गयी है जबकि ये जानवर कमीना है और चिड़चिड़ा है और इसका दिमाग भोंदू
का है।
•
ये उस वक्त की बात है जब वे अपनी पहली पत्नी से अलग हुए थे। शाम के वक्त वे
अपने दोस्तों को खाने पर बुलवा लेते। इन दोस्तों में मैरी पिकफोर्ड भी
होतीं जिन पर वे उन दिनों बुरी तरह से आसक्त थे। वे दोनों ही इस बारे में
डरे हुए खरगोशों की तरह व्यवहार करते। मैं उन्हें सलाह दिया करता कि वे
शादी वादी के चक्कर में न पड़ें और एक साथ रहते रहें और अपने अपने दायरे से
बाहर निकलें। लेकिन वे मेरी परम्परा के खिलाफ वाली सलाह को नहीं मान पाये।
मैंने उनकी शादी के खिलाफ इतने ज़ोरदार शब्दों में कहा था कि जब आखिर में
उन्होंने सचमुच शादी की तो सब दोस्तों को बुलवाया था, बस, मैं ही नहीं
बुलाया गया था।
उन दिनों डगलस और मैं अक्सर घिसे पिटे दर्शन बघारने में लगे रहते और मैं
जीवन की नश्वरता के अपने तर्क पर टिका रहता। डगलस ये मानते थे कि हमारी
ज़िंदगियां तय हैं और कि हमारी नियति महत्त्वपूर्ण है। जिस वक्त डगलस इस
रहस्यमय उत्तेजना में घिरे होते तो मुझ पर इसका विपरीत असर होता। मुझे
गर्मियों की एक गर्म रात की बात याद है। हम दोनों एक बड़ी-सी पानी की टंकी
के ऊपर चढ़ गये और वहां पर बैठ कर बेवरली के जंगली फैलाव में बातें करते
रहे। तारे रहस्यमय रूप से चमकीले थे और चंद्रमा उदास था और मैं कह रहा था
कि जीवन का कोई मकसद नहीं है।
"देखो," डगलस जोश से पूरी कायनात को अपने इशारे की जद में लेते हुए बोले,
"चंद्रमा, और वहां पर तारों का झुरमुट, तय है कि इस सारे सौन्दर्य के पीछे
कोई न कोई वज़ह तो होगी ही। ये सब किसी न किसी नियति की परिपूर्णता की ओर
जा रही होंगी। ये सब किसी न किसी बेहतरी के लिए होंगे और तुम और मैं इसके
हिस्से ही हैं।" तब अचानक ही प्रेरित हो कर वे मेरी तरफ मुड़े, "बताओ
तुम्हें ये मेधा किस लिये दी गयी है? मोशन फिल्मों का ये आश्चर्यजनक माध्यम
जो पूरी दुनिया में लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचता है!!"
"तो ये लुइस बी मेसर और वार्नर बंधुओं को भी क्यों दी गयी है?" मैंने कहा
और डगलस हँस दिये।
डगलस असाध्य रूप से रोमांटिक व्यक्ति थे। उनके साथ सप्ताहांत बिताते समय कई
बार मुझे तीन बजे गहरी नींद से जगा दिया जाता और मैं धुंध के बीच देखता कि
लॉन में हवाईयन आर्केस्ट्रा बज रहा है। मैरी को प्रेम गीत सुनाये जा रहे
हैं। ये बहुत प्रिय लगता लेकिन उस वक्त इसकी भावना में प्रवेश करना मुश्किल
होता खास कर तब जब आप खुद व्यक्तिगत रूप से उससे जुड़े हुए न हों। लेकिन
लड़कपन की ये हरकतें उन्हें प्रिय व्यक्ति बनातीं।
डगलस स्पोर्ट भी बहुत पसंद करते थे। अपनी खुली कैडिलैक कार की पिछली सीट पर
वुल्फहाउंड और पुलिस कुत्ते रखते थे। वे सचमुच इस तरह की चीजें पसंद करते
थे।
•
हॉलीवुड तेज़ी से लेखकों, अभिनेताओं और बुद्धिजीवियों की मक्का मदीना बनता
जा रहा था। पूरी दुनिया से लब्ध प्रतिष्ठ लेखक वहां आते: सर गिल्बर्ट
पारकर, विलियम जे लॉक, रैक्स बीच, जोसेफ हरगेशीमर, सॉमरसेट मॉम, गोवरनीयर
मॉरिस, इबानेज़, एलिनॉर ग्लिन, एडिथ व्हारटन, कैथलीन नॉरिस और कई अन्य।
सॉमरसेट मॉम ने कभी भी हॉलीवुड में काम नहीं किया लेकिन उनकी कहानियों की
बहुत मांग रहती। हालांकि वे साउथ सी आइलैंड में जाने से पहले कई हफ्ते तक
वहां रहे थे। साउथ सी आइलैंड में ही उन्होंने अपनी यादगार कहानियां लिखीं।
एक बार डिनर के वक्त उन्होंने डगलस और मुझे सैडी थॉम्पसन कहानी सुनायी थी।
उनका कहना था कि ये वास्तविक तथ्यों पर आधारित है। बाद में इस कहानी का रेन
के नाम से ड्रामा भी बना था। रेन को मैं हमेशा एक आदर्श नाटक मानता हूं।
रेवरेंड डेविडसन और उनकी पत्नी को खूबसूरती से परिभाषित किया गया है। वे
सैडी थाम्पसन से भी अधिक रोचक बन पड़े हैं। रेवरेंड डेविडसन की भूमिका में
ट्री कितने शानदार लगते। उन्होंने इस भूमिका को विनम्र, बेरहम, चापलूस और
आतंकित करने वाले तरीके से निभाया होता।
इसी हॉलीवुड परिवेश में बना हुआ था हॉलीवुड होटल। ये जगह बेहद घटिया,
बेतरतीब और बखार जैसी थी। ये अचानक ही भौंचक देहाती छोकरी की तरह प्रमुखता
में आ गयी थी और सोना उगल रही थी। यहां पर कमरे हमेशा सामान्य दर से ज्यादा
पर मिलते। उसका कारण सिर्फ यही था कि लॉस एंंजेल्स से हॉलीवुड को जाने वाली
सड़क एकदम अलंघ्य थी और कलम के ये धनी लोग स्टूडियो के आस पास रहना चाहते।
लेकिन वहां पर हर कोई खोया हुआ लगता मानो सब के सब गलत पते पर आ गये हों।
वहां पर एलिनॉर ग्लिन ने दो कमरों पर कब्जा जमा रखा था। उन्होंने एक कमरे
को बैठक की शक्ल दे रखी थी। तकियों को उन्होंने पेस्टल के से रंग के कपड़े
से मढ़ दिया था और ये तकिये बिस्तर पर फैला दिये थे ताकि इससे सोफे का
अहसास हो। वे अपने मेहमानों की आवाभगत यहीं पर करती थीं।
मैं एलिनॉर से पहली बार तब मिला था जब उन्होंने दस व्यक्तियों को डिनर पर
बुलाया था। हमें डाइनिंग रूम में खाना खाने जाने से पहले उनके कमरों में ही
कॉकटेल के लिए मिलना था। मैं ही वहां सबसे पहले पहुंचा था। "आह," अपने
हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए और जानबूझ कर नज़र भर देखते हुए कहा
उन्होंने,"मैं तुम्हें जी भर कर निहार तो लूं। कितने असाधारण। मैं तो सोचती
थी कि तुम्हारी आंखें भूरी हैं लेकिन ये तो एकदम नीली हैं।"
हालांकि शुरू शुरू में वे अति उत्साही लगीं लेकिन मैं उनका काफी मुरीद हो
गया।
एलिनॉर हालांकि अंग्रेजी समाज में काफी प्रतिष्ठित नाम था, फिर भी उन्होंने
अपने उपन्यास थ्री वीक्स से एडवर्डकालीन समाज को झटका दिया था। उसका नायक
पॉल, अच्छे भले घर का अंग्रेज है जिसका रानी से प्रेम प्रसंग चल रहा है।
बूढ़े राजा से शादी करने से पहले वह उसके साथ अंतिम बार रंगरेलियां मनाता
है। बालक क्राउन पिंस गुप्त रूप से पॉल का ही बेटा है।
जब हम उनके मेहमानों का इंतज़ार कर रहे थे, एलिनॉर मुझे दूसरे कमरे में ले
कर गयीं जहां पर दीवारों पर पहले विश्व युद्ध के युवा अंग्रेज अधिकारियों
की तस्वीरें फ्रेम में मढ़ी हुई लगी हुई थीं। सारे तस्वीरों पर चलताऊ निगाह
मारते हुए वे बोलीं,"ये सब के सब मेरे पॉल हैं।"
वे तंत्र मंत्र में बहुत विश्वास करती थीं। मुझे एक दोपहर की याद है। मैरी
पिकफोर्ड थकान और नींद न आने की शिकायत कर रही थीं। हम मैरी के ही बेडरूम
में थे।
"मुझे उत्तर दिशा दिखाओ," एलिनॉर ने आदेश दिया। तब उन्होंने बहुत आहिस्ता
से अपनी उंगली मैरी की भौंह पर रखी और बार-बार कहने लगीं,"अब वह गहरी नींद
में है।" डगलस और मैं आगे सरक आये और मैरी को देखने लगे। उसकी आंखें
फड़फड़ा रही थीं। मैरी ने बाद में हमें बताया था कि उसे एक घंटे से भी
ज्यादा तक नींद में होने का नाटक करना पड़ा था क्योंकि एलिनॉर कमरे में ही
मौजूद थीं और उस पर निगाह रखे हुए थीं।
एलिनॉर की ख्याति सनसनीखेज शख्सियत के रूप में थीं। लेकिन कोई भी उसने अधिक
संतुलित नहीं था। फिल्मों के लिए उनकी व्यापक संकल्पनाएंं किशोरियों जैसी
और नौसिखियापन लिये हुए थीं। महिलाएंं अपनी भौहें अपने-अपने प्रेमी के
गालों पर रगड़ रही हैं और चीते की खाल के कालीनों पर प्रेम में व्याकुल हो
रही हैं।
हॉलीवुड के लिए उन्होंने जो तीन फिल्में लिखी थीं, वे समयातीत प्रकृति की
थीं। पहली का नाम था थ्री वीक्स, दूसरी का नाम हिज़ आवर और तीसरी का नाम था
हर मोमेंट। हर मोमेंट में भयंकर विवाद हो गया। कहानी में दिखाया गया था कि
एक प्रतिष्ठित महिला, जिसकी भूमिका ग्लोरिया स्वैनसन ने निभायी थी, की शादी
एक ऐसे आदमी से होने वाली है जिसे वह प्यार नहीं करती। उनकी तैनाती एक घने
जंगल में है। एक दिन वह अकेली ही घुड़सवारी के लिए निकल जाती है। चूंकि उसे
वनस्पतियों में दिलचस्पी है, वह अपने घोड़े से उतरती है ताकि एक दुर्लभ फूल
का मुआइना कर सके। जैसे ही वह फूल पर झुकती है, एक खतरनाक वाइपर सांप आता
है और उसके दायें सीने पर डंस देता है। ग्लोरिया अपना सीना दबोचती है और
मदद के लिए पुकारती है। ये चीखें वही आदमी सुन लेता है जिससे वह प्यार करती
है। संयोग से वह वहीं से गुज़र कर जा रहा होता है। इस भूमिका में खूबसूरत
टॉमी मैघम थे। तुंत वे झाड़ी के पीछे से आते हैं।
"क्या हुआ?"
वह जहरीले सांप की तरफ इशारा करती है,"मुझे काट खाया है।"
"कहां?"
वह अपने सीने की तरफ इशारा करती है।
"ये तो सब सांपों से भी ज्यादा जहरीला है।" टॉमी कहते हैं। निश्चित रूप से
उनका मतलब सांप से ही है,"जल्दी जल्दी ही कुछ करना होगा। एक मिनट भी बरबाद
करने को नहीं है।"
वे डॉक्टर से मीलों दूर हैं। और ऐसे मौके पर रक्तबंध का जो सामान्य उपचार
होता है कि प्रभावित हिस्से पर रुमाल बांध कर खून में जहर को फैलने से रोका
जाये, संभव नहीं है। अचानक ही वे उसे उठाते हैं, नायिका की कमीज को फाड़ते
हैं और उनकी नरम गोरी गोलाई अनावृत करते हैं। तब वे कैमरे की बदतमीज निगाह
से बचाने के लिए उसका चेहरा दूसरी तरफ करते हैं, उस पर झुकते हैं और उनका
मुंह जहर चूसने लगता है और जैसे जैसे वे जहर चूसते हैं, थूकते चलते हैं।
इस चूसन ऑपरेशन के परिणाम स्वरूप वह उससे शादी कर लेती है।
अध्याय :चौदह
म्यूचुअल कांट्रैक्ट के खत्म होने के बाद मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं फर्स्ट
नेशनल शुरू करूं लेकिन हमारे पास कोई स्टूडियो नहीं था। मैंने फैसला किया
कि मैं हॉलीवुड में ज़मीन खरीद कर एक स्टूडियो बनवाऊंगा। ये ज़मीन सनसेट और
लॉ ब्री के कोने में थी और इसमें बहुत ही शानदार 10 कमरे का घर बना हुआ था
और दस एकड़ में नींबू, संतरे और आड़ू के दरख्त थे। हमने हर तरह से
चुस्त-दुरुस्त यूनिट बनायी और इसमें डेवलपिंग प्लांट, संपादन कक्ष और दफ्तर
बनवाये।
जिस वक्त स्टूडियो बन रहा था, मैं आराम करने के वास्ते एक महीने के लिए
एडना पुर्विएंंस के साथ होनोलुलु की सैर पर निकल गया। उन दिनों हवाई बेहद
खूबसूरत द्वीप हुआ करता था। फिर भी, मुख्य धरती से दो हज़ार मील दूर बेपनाह
खूबसूरती, उसके चीड़ के दरख्तों, गन्ने, मस्त करने देने वाले फलों और फूलों
के बावजूद वहां रहने के ख्याल मात्र से मेरा दिल डूबा जा रहा था। मुझे ऐसे
लग रहा था मानों किसी तंग जगह में फंस गया हूं, जैसे किसी लिली के फूल में
कैद कर लिया गया हूं। मैं वापिस आने के लिए बेचैन था।
इसमें कोई शक नहीं था कि एडना पूर्विएंंस जैसी खूबसूरत ल़ड़की की मौजूदगी
मेरे दिल को अपनी गिरफ्त में न ले लेती। जब हम पहली बार लॉस एजेंल्स में
काम करने के लिए आये तो एडना ने एथलेटिक क्लब के पास ही एक अपार्टमेंट
किराये पर ले लिया और कमोबेश हर रात मैं उसे वहां पर डिनर के लिए ले जाता।
हम एक दूसरे के बारे में गम्भीर थे। और मेरे दिमाग में कहीं यह बात भी थी
कि किसी दिन हम शादी कर लेंगे लेकिन एडना के बारे में मेरे खुद के कुछ
पूर्वाग्रह थे। मैं उसके बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता था और
इसलिए मैं अपने खुद के बारे में भी अनिश्चित था।
1916 में यह हालत हो गयी थी कि हम एक दूजे से जुदा नहीं हो सकते थे। हम तब
रेड क्रॉस के और दूसरे हर तरह के मेले-ठेलों में घूमते फिरे। इन भीड़-भरे
मेलों में एडना ईर्ष्या से भर उठती और इसे दिखाने का उसका खुद का नाज़ुक और
खतरनाक तरीका था। अगर कोई मेरी तरफ कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगता तो एडना
गायब हो जाती और मेरे पास तब एक संदेशा आता कि वह बेहोश हो गयी है और मुझे
पूछ रही है। मैं उसके पास भागा-भागा जाता और बाकी शाम उसके सिरहाने बिताता।
एक ऐसे ही मौके पर एक आकर्षक मोहतरमा ने मेरे सम्मान में एक गार्डन पार्टी
दी। मुझे एक सोसाइटी सुंदरी से दूसरी सुंदरी के पास घुमाती फिरी और आखिरकार
मुझे एक लता मंडप के भीतर ले गयी। एक बार फिर संदेशा आया कि एडना बेहोश हो
गयी है। हालांकि मैं इस बात से फूला नहीं समाता था कि जब भी वह खूबसूरत
लड़की बेहोश होती थी, हमेशा मुझे ही पूछती थी। लेकिन उसकी ये आदत अब कोफ्त
में डालने लगी थी।
इसकी अंतिम परिणति फेनी वार्ड की पार्टी में हुई जहां कई हसीनाएंं और
सुदर्शन युवक बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे। एक बार फिर एडना बेहोश हो
गयी। लेकिन इस बार जब वह बेहोश हुई तो उसने पैरामाउंट के लम्बे, आकर्षक
हीरो थॉमस मीघन को बुलवाया। उस वक्त मैं इस सब के बारे में कुछ भी नहीं
जानता था। ये तो अगले दिन फेनी वार्ड ने ही मुझे सब कुछ बताया। एडना के लिए
मेरी भावनाओं को जानने की वजह से वह नहीं चाहती थी कि इस तरह से मुझे
बेवकूफ बनाया जाये।
मैं इस पर विश्वास ही न कर सका। मेरे आत्म सम्मान को ठेस लगी थी। मैं
गुस्से से आग बबूला हो रहा था। अगर इसमें सच्चाई होगी तो ये हमारे संबंधों
पर विराम होगा। लेकिन इसके बावज़ूद मैं उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ सका।
उसके जाने से जो खालीपन आता, वह बहुत ज्यादा होता। जो कुछ हम दोनों के बीच
घटा था, उन सबके ख्याल मुझे सताने लगे।
इस घटना के अगले दिन मैं काम ही न कर सका। दोपहर के वक्त उससे सफाई मांगने
के इरादे से मैंने उसे फोन किया। मैं ऐसा जताने लगा मानो मैं बेहद गुस्से
में हूं, लेकिन इसके बजाये मेरे अहं ने बाजी मार ली और मैं ताने मारता जैसा
लगा। यहां तक कि मैंने मामले के बारे में एकाध मज़ाक भी कर दिया,"मेरा
ख्याल है कि फेनी वार्ड की पार्टी में तुमने गलत आदमी को बुलवा लिया था -
लगता है तुम्हारी याददाश्त कमज़ोर हो रही है।"
वह हँसी और मैंने परेशानी का हल्का-सा झटका महसूस किया।
"आप किस बारे में बात कर रहे हैं?" कहा उसने।
मैं तो यही उम्मीद कर रहा था कि वह एक सिरे से ही मुकर जायेगी लेकिन उसने
चालाकी से काम लिया। उसने उलटे मुझसे ही सवाल कर डाला कि कौन है वो जो मुझे
इस तरह की बेसिर-पैर की बातें बताता रहता है।
"इससे क्या फर्क पड़ता है कि मुझे किसने बताया। लेकिन मेरा ख्याल है कि मैं
तुम्हारे लिए ज्यादा मायने रखता हूं बजाये इसके कि तुम सरे आम मुझे मूरख
बनाती फिरो।"
वह बेहद शांत रही और यही कहती रही कि मैं आजकल इधर-उधर की बातों पर कुछ
ज्यादा ही ध्यान दे रहा हूं।
मैं उसकी तरफ उदासीनता दिखा कर उसे चोट पहुंचाना चाहता था,"तुम्हें मेरे
सामने ज्यादा बनने की ज़रूरत नहीं है," कहा मैंने,"तुम कुछ भी करने के लिए
आज़ाद हो। तुम मेरी ब्याहता तो हो नहीं। जब तक तुम अपने काम के प्रति
ईमानदार हो, वही मेरे लिए मायने रखता है।"
इस सब के प्रति एडना पूरी तरह से सहमत थी और हमारे एक साथ काम करने पर उसे
कोई एतराज़ नहीं था। उसने कहा कि हम हमेशा ही अच्छे दोस्त बने रह सकते हैं।
और इस बात ने मुझे पहले से भी ज्यादा बेचारा बना दिया।
मैं नर्वस और हैरान-परेशान फोन पर एक घंटे तक बात करता रहा और समझौता करने
के लिए कोई बहाना तलाशता रहा। जैसा कि इस तरह की परिस्थितियों में आम तौर
पर होता है, मैं उसमें नये सिरे से और ज्यादा शिद्दत से रुचि लेने लगा। और
जब बातचीत खत्म हुई तो मैं उससे पूछ रहा था कि क्या शाम को वह मेरे साथ
डिनर पर चलेगी ताकि हम मामले पर और बात कर सकें।
वह हिचकिचायी लेकिन मैं ही अड़ा रहा। सच तो ये है कि मैं गिड़गिड़ा रहा था
और मिन्नतें कर रहा था। उस समय मेरा सारा आत्म सम्मान और मेरे सारे तर्क
पता नहीं कहां चले गये थे। आखिरकार वह मान गयी। उस रात हम दोनों ने हैम और
अंडों का डिनर लिया जोकि उसने अपने अपार्टमेंट में तैयार किया था।
हम दोनों में एक तरह का समझौता-सा हो गया था और अब मैं कम परेशान था। कम से
कम इतना तो था ही कि मैं अगले दिन काम कर पाया। इसके बावजूद हताशा से उपजे
गुस्से का और आत्म ग्लानि का तंज बाकी था। मुझे अपने आप पर ग्लानि हो रही
थी कि मैं ही क्यों बीच-बीच में उसकी उपेक्षा करने लगता था। मैं गहरे
असमंजस में था। क्या मैं उससे पूरी तरह से नाता तोड़ दूं या न तोड़ूं। शायद
मीघम के बारे में जो किस्सा बताया गया था, वह सच नहीं था।
लगभग तीन सप्ताह के बाद वह स्टूडियो में अपना चेक लेने के लिए आयी। जिस समय
वह वापिस जा रही थी तभी मैं रास्ते में उससे टकरा गया। वह अपने किसी दोस्त
के साथ थी। "आप जानते हैं टॉमी मीघम को?" उसने सौम्यता से पूछा। मुझे
हल्का-सा झटका लगा। उस नन्हें से पल में एडना अजनबी बन गयी मानो मैं उससे
पहली बार मिल रहा होऊं।
"बेशक," मैंने कहा।
"कैसे हो टॉमी?" वह थोड़ा-सा परेशानी में पड़ गया। हमने हाथ मिलाये और उसके
बाद हमने एकाध सुख-दुख की बातें कीं और वे दोनों एक साथ स्टूडियो से चले
गये।
•
अलबत्ता, ज़िंदगी संघर्ष का ही दूसरा नाम है जो हमें बहुत कम परिणाम देती
है। अगर ये समस्या प्रेम की नहीं होती तो किसी और चीज़ की होती है। सफलता
हैरान करने वाली थी लेकिन उसके साथ ही सफलता नाम के इस शिशु के साथ गति
बनाये रखने की कोशिश करने का तनाव भी जुड़ा हुआ था। इसके बावजूद मेरी
सान्त्वना मेरे काम में ही थी।
लेकिन बरस-भर में बावन हफ्ते तक लेखन करने, अभिनय करने और निर्देशन करने का
काम थका देने वाला था। इसके लिए नसों को तोड़ कर रख देने वाली बेइन्तहां
ऊर्जा की ज़रूरत थी। एक फिल्म के पूरा होते ही मैं गहरे अवसाद और थकान से
घिर जाता। और नतीजा ये होता कि मुझे एकाध दिन के लिए बिस्तर के हवाले हो
जाना पड़ जाता।
शाम के वक्त मैं उठता और शांत चहल कदमी के लिए निकल जाता। मैं तन्हा-तन्हा
और उदास महसूस करते हुए शहर में मारा-मारा फिरता, दुकानों की खिड़कियों में
सूनी-सूनी आंखों से देखता रहता। मैं ऐसे मौकों पर कभी भी कुछ सोचने की
कोशिश न करता। मेरा दिमाग सुन्न पड़ जाता। लेकिन मैं जल्दी ही ठीक भी हो
जाता। आम तौर पर अगली सुबह गाड़ी में स्टूडियो की तरफ आते हुए मेरी
उत्तेजना लौट चुकी होती और मेरा दिमाग फिर से तेज़ी से काम करना शुरू कर
देता।
सिर्फ़ एक ख्याल मात्र आ जाने से भी मैं सेट बनाने का ऑर्डर दे देता और जब
तक सेट बन रहे होते, कला निर्देशक मेरे पास ब्यौरे लेने के लिए आ जाता। मैं
उस वक्त यूं ही कुछ भी हांक देता और इस तरह के ब्यौरे देने लगता कि मुझे
दरवाजे कहां पर चाहिये और मेहराब कहां चाहिये। इस तरह की बेहद हताशा के आलम
में मैंने कई कॉमेडी शुरू कीं।
कई बार मेरा दिमाग बुनी हुई रस्सी की तरह कड़ा पड़ जाता और तब उसे ढीला
करने के लिए किसी उपाय की ज़रूरत पड़ती। ऐसे मौकों पर रात बाहर गुज़ारना
राहत का काम करता। शराब के नशे से नसें ढीली करना मुझे कभी भी नहीं रास
नहीं आया। दरअसल, काम करते समय ये मेरा अंधविश्वास सा था कि किसी भी किस्म
का नशा व्यक्ति की कुशाग्रता को प्रभावित करता है। किसी कॉमेडी को सोचने और
उसे निर्देशित करने से ज्यादा दिमाग की सतर्कता किसी और काम में ज़रूरी
नहीं होती।
जहां तक सेक्स का सवाल है, इसका ज्यादातर हिस्सा तो मेरे काम में ही चला
जाता था। और कभी सैक्स अपना शानदार सिर उठाता भी तो मेरी ज़िंदगी इतनी
अनियमित थी कि या तो मुझे बाज़ार में ही मुंह मारना पड़ता या फिर सैक्स का
घनघोर अकाल होता। अलबत्ता, मैं पक्का अनुशासन पसंद व्यक्ति था और अपने काम
को गम्भीरता से लेता। बालज़ाक की तरह, जो यह मानता था कि सैक्स वाली एक रात
का मतलब होता है कि आपके उपन्यास का एक अच्छा पन्ना कम होगा, इसी तरह मैं
भी विश्वास करता था कि सैक्स का मतलब स्टूडियो में एक अच्छे-भले दिन के काम
का कबाड़ा।
•
एक सुविख्यात महिला उपन्यासकार को जब पता चला कि मैं अपनी आत्म कथा लिख रहा
हूं तो उसने कहा, "मेरा विश्वास है कि आप में सच बताने का साहस तो होगा
ही।" मैंने सोचा कि वह राजनैतिक रूप से कह रही है लेकिन वह तो मेरे सैक्स
जीवन की बात कर रही थी। मेरा ख्याल है कि आत्म कथा में व्यक्ति से ये
उम्मीद की जाती है कि वह अपनी ऐन्द्रिकता पर पूरा शोध प्रबंध ही लिख डाले।
हालांकि मैं ये नहीं जानता कि ऐसा क्यों होता है। मेरे ख्याल से तो सैक्स
से चरित्र को समझने में या उसे सामने लाने में शायद ही कोई मदद मिलती हो।
फ्रायड की तरह मैं यह नहीं मानता कि सैक्स ही व्यवहार की जटिलता का सबसे
अधिक महत्त्वपूर्ण तत्व है।
ठंड, भूख और गरीबी की शर्म से व्यक्ति के मनोविज्ञान पर कहीं अधिक असर पड़
सकता है।
हर दूसरे व्यक्ति की तरह मेरे जीवन में भी सैक्स के दौर आते-जाते रहे।
कभी-कभी मैं पूर्ण पुरुष होता और कई बार मैं बेहद निराश कर बैठता। लेकिन एक
बात थी कि मेरे जीवन में सारी दिलचस्पियों का केन्द्र सैक्स ही नहीं था।
मेरे जीवन में सृजनात्मक दिलचस्पियां भी थीं जो मुझे उतना ही उलझाये रहती
थीं। लेकिन इस किताब में मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है कि मैं अपने सैक्स के
कारनामों का एक-एक करके बखान करूं। मुझे ऐसे वर्णन अकलात्मक, नैदानिक और
अकविता जैसे लगते हैं। हां, जो परिस्थितियां आपको सैक्स की तरफ ले जाती
हैं, वे मुझे ज्यादा रोमांचक लगती हैं।
इसी विषय के प्रसंग के अनुकूल, जब मैं न्यू यार्क से लॉस एंंजेल्स वापिस
लौटा तो एलेक्जेंड्रा होटल में पहली ही रात मेरे साथ एक बहुत ही शानदार
वाक्या घटा। मैं कमरे में जल्दी ही लौट आया था और हाल ही के न्यू यार्क के
एक गाने की धुन गुनगुनाते हुए कपड़े उतार रहा था। ख्यालों में खोया हुआ
बीच-बीच में मैं रुक जाता। और जब मैं रुकता तो साथ वाले कमरे से एक महिला
स्वर उस धुन को वहीं से उठा लेता जहां मैंने उसे छोड़ा होता। और तब मैं उस
धुन को वहां से उठाता जहां उसने छोड़ा होता। और इस तरह से ये एक मज़ाक बन
गया। और आखिरकार हमने उस धुन को इस तरह से समाप्त किया। क्या मैं उससे
परिचय पाऊं? इसमें जोखिम था। इसके अलावा मुझे रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि
वह देखने में कैसी होगी? मैंने एक बार फिर धुन बजायी तो फिर से वही हुआ। उस
तरफ से भी धुन को आगे बढ़ाया गया।
"हा हा हा। क्या मज़ेदार किस्सा हो गया ये तो!" मैं हँसा और अपनी आवाज़ में
इस तरह का उतार-चढ़ाव रखा कि ऐसा लगे कि मैं खुद से बात कर रहा हूं और ऐसा
भी लगे कि उससे मुखातिब हूं।
दूसरी तरफ से आवाज आयी, "माफ कीजिये, कुछ कहा आपने?"
तब मैं चाभी की झिर्री में से फुसफुसाया,"मेरा ख्याल है आप हाल ही में न्यू
यार्क से लौटी हैं!"
"मैं आपकी आवाज नहीं सुन पा रही हूं!" वह बोली।
"तब तो ज़रा दरवाजा खोलिये।" मैंने जवाब दिया।
"मैं ज़रा-सा दरवाजा खोलूंगी लेकिन खबरदार जो अंदर आने की ज़ुर्रत की।"
"वादा करता हूं।"
उसने चार इंच के करीब दरवाजा खोला और मेरे सामने एक बेहद खूबसूरत लाल बालों
वाली नवयौवना लड़की खड़ी थी। मुझे नहीं पता कि उसने ठीक-ठीक किस तरह के
कपड़े पहने हुए थे लेकिन उसने ऊपर से नीचे तक रेशमी ढीला ढाला सा गाउन पहना
हुआ था और उसका जो असर हुआ, वह एकदम स्वप्निल था।
"अंदर मत आना, नहीं तो मैं आपकी पिटाई कर दूंगी," उसने बेहद आकर्षण के साथ
कहा। वह अपनी प्यारी दंत पंक्ति झलका रही थी।
"आप कैसी हैं?" मैं फुसफुसाया और अपना परिचय दिया। वह पहले ही से जानती थी
कि मैं कौन हूं और उसे पता था कि मैं उसके साथ वाले कमरे में ठहरा हुआ हूं।
बाद में उसने उस रात बताया कि किसी भी हालत में मैं सार्वजनिक रूप से उसे
पहचानूंगा नहीं। यहां तक कि अगर हम होटल के गलियारे में एक-दूसरे के पास से
गुज़रें भी तो मैं उसकी तरफ देख कर सिर न हिलाऊं। उसने अपने बारे में बस,
सिर्फ यही बताया था।
दूसरी रात भी जब मैं अपने कमरे में लौटा तो उसने नि:संकोच मेरा दरवाजा
खटखटाया और हम एक बार फिर रूमानी और जिस्मानी रिश्ते में बंध गये।
तीसरी रात मुझे कुछ-कुछ ऊब-सी होने लगी थी। इसके अलावा, मेरे पास सोचने के
लिए कैरियर और काम थे। इसलिए चौथी रात मैं दबे पांव अपने कमरे में आया और
ये सोचता रहा कि उसे मेरे आने के बारे में पता नहीं चलेगा। मैं उम्मीद कर
रहा था कि उसे पता भी नहीं चलेगा और मैं अपने बिस्तर में घुस जाऊंगा लेकिन
उसे मेरे आने की खबर मिल गयी थी। उसने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। इस बार
मैंने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और सीधे ही सोने के लिए बिस्तर में घुस
गया। अगले दिन जब वह होटल के गलियारे में मेरे पास से गुज़री तो उसकी आंखों
में बरफ का-सा ठंडा परिचय था।
अगली रात उसने दरवाजा तो नहीं खटखटाया लेकिन मेरे दरवाजे के हैंडल के घूमने
की आवाज़ आयी और मैंने दरवाजे की घुंडी घूमते हुए देखी। हालांकि मैंने अपनी
तरफ से दरवाजे को अंदर से बंद कर रखा था। उसने बेरहमी से दरवाजे का हैंडल
घुमाया और फिर ज़ोर-ज़ोर से दरवाजा पीटने लगी।
अगली सुबह मैंने यही बेहतर समझा कि होटल से ही बोरिया-बिस्तर बांध लिया
जाये। और मैं एक बार फिर एथलेटिक क्लब के क्वार्टर्स में आ गया।
•
मेरे स्टूडियो में बनी मेरी पहली फिल्म थी ए डॉग्स लाइफ। कहानी में
थोड़ा-बहुत व्यंग्य का पुट था और उसमें एक ट्रैम्प की जिंदगी की तुलना
कुत्ते की ज़िंदगी से की गयी थी। यह प्रधान कथा वस्तु ही वह ढांचा था जिस
पर मैंने छोटे-मोटे हँसी के पल और प्रहसन के रूप में हास्य पैदा किये थे।
मैं एक विधिवत ढांचे की शक्ल देते हुए कॉमेडी बनाने की सोच रहा था और इसलिए
उसके ढांचागत स्वरूप के बारे में बहुत सतर्क हो गया था। प्रत्येक दृश्य से
अगले दृश्य का आभास हो जाता था और इस तरह से एक पूरी कड़ी एक दूजे से
जुड़ती चलती थी।
पहले दृश्य में दिखाया गया था कि कुछ कुत्ते झगड़ रहे हैं और उनमें से एक
कुत्ते को बचाया जाता है। दूसरे दृश्य में एक डाँस हॉल में एक ऐसी लड़की की
रक्षा करते हुए दिखाया गया था जो कि कुत्ते का-सा जीवन जी रही थी। इस तरह
के बहुत सारे दृश्य थे जो आपस में मिल कर घटनाओं को एक तर्क संगत परिणति
में पहुंचाते थे। हालांकि देखने में ये दृश्य एक दम सीधे-सादे और स्पष्ट से
जान पड़ते थे लेकिन इनके पीछे गहरी सोच और खोज लगी हुई थी। अगर हँसी की कोई
बात घटनाओं के तर्क में आड़े आती थी तो मैं उसे इस्तेमाल नहीं करता था बेशक
वह कितनी भी मज़ाकिया क्यों न हो।
कीस्टोन के दिनों में मेरा ट्रैम्प ज्यादा आज़ाद हुआ करता था और प्लॉट से
बंधा हुआ नहीं होता था। उस वक्त उसका दिमाग शायद ही कभी इस्तेमाल में आता
हो। केवल उसके मूल भाव ही होते थे जो मूल ज़रूरतों, खाने, गर्मी और सोने की
जगह से ही ताल्लुक रखते थे। लेकिन आगे बढ़ती हरेक कॉमेडी के साथ ट्रैम्प और
अधिक जटिल होता चला जा रहा था। अब संवेदनाएंं उसके चरित्र में से निथर कर
आने लगी थीं। ये मेरे लिए समस्या बन गयी थी क्योंकि वह प्रहसन की सीमाओं से
बंधा हुआ था। ये बात कुछ बड़बोलापन लग सकती है लेकिन प्रहसन के लिए एकदम
सही मनोविज्ञान की ज़रूरत होती है।
इसका समाधान तब मिला जब मैंने ट्रैम्प को एक तरह के भाँड़ के रूप में सोचा।
इस संकल्पना के साथ अब मेरे पास अभिव्यक्ति के लिए और ज्यादा आज़ादी थी और
मैं अब संवेदनाओं के पिरोते हुए कॉमेडी कर सकता था। लेकिन तार्किक रूप से
देखें तो ट्रैम्प में दिलचस्पी रखने वाली कोई खूबसूरत लड़की खोज पाना
मुश्किल काम था। मेरी फिल्मों में ये हमेशा की समस्या रही है। द गोल्ड रश
में लड़की ट्रैम्प में इस रूप में दिलचस्पी लेना शुरू करती है कि वह पहले
ट्रैम्प पर एक फिकरा कसती है। बाद में वही फिकरा उसे बेचारगी की तरफ ले
जाता है और ट्रैम्प इसे उसका प्यार समझ बैठता है। सिटी साइट्स में लड़की
अंधी है। इस संबंध में ट्रैम्प लड़की के प्रति तब तक रोमांटिक और शानदार है
जब तक उसकी आँखों की रौशनी नहीं लौट आती।
जैसे-जैसे कहानी के गठन में मेरा हाथ साफ होता गया, वैसे-वैसे ही कॉमेडी की
मेरी आज़ादी कम होती चली गयी। मेरे एक प्रशंसक ने, जो कीस्टोन के वक्त की
मेरी हास्य फिल्मों को हाल ही की हास्य फिल्मों की तुलना में ज्यादा पसंद
करता था, लिखा,"उस वक्त जनता आपकी गुलाम थी और इस वक्त आप जनता के गुलाम
हैं।"
अपनी शुरुआती हास्य फिल्मों के लिए भी मैं मूड पकड़ने के लिए छटपटाता था और
आम तौर पर संगीत ही मुझे राह सुझाता था। मिसेज ग्रुंडी नाम के एक पुराने
गाने ने द इमिग्रेंट के लिए मूड तैयार किया। इसकी धुन में गज़ब की नरमी थी
और बताती थी कि किस तरह से दो अकेले सड़क छाप एक मनहूस बरसात के दिन शादी
करते हैं।
कहानी में दिखाया जाता है कि एक चार्लोट अमेरिका की तरफ जा रहा है। जहाज
में वह एक लड़की और उसकी मां से मिलता है जो उसी की तरह फटेहाल हैं। जब वे
न्यू यार्क में पहुंचते हैं तो दोनों बिछुड़ जाते हैं। बाद में वह उस लड़की
से एक बार फिर मिलता है लेकिन इस बार लड़की अकेली है। और खुद उसकी तरह
ज़िंदगी में असफल है। जिस वक्त वे बात करने के लिए बैठते हैं, वह अनजाने
में काले कोने वाला रुमाल इस्तेमाल करती है जिससे वह यह संदेशा देती है कि
उसकी मां मर चुकी है। और हां, आखिर में वे एक मनहूस बरसात के दिन शादी कर
लेते हैं।
छोटी-छोटी, आसान-सी लगने वाली धुनों ने मुझे दूसरी हास्य फिल्मों के लिए
छवियां दीं। ट्वेंटी मिनट्स ऑफ लव नाम की एक फिल्म थी। ये पार्कों में,
पुलिस वाले और नर्सनुमा नौकरानियों की फालतू की और बेसिर-पैर की लतीफेबाजी
से भरी हुई फिल्म थी। इस फिल्म में मैंने 1914 की एक मशहूर दो लाइनों वाली
धुन टू मच मस्टर्ड पर परिस्थितियां बुनी थीं। वायोलेट्रा नाम के गीत ने
सिटी लाइट्स के लिए मूड बनाने में मदद की थी जबकि गोल्ड रश के लिए मूड ऑल्ड
लैंग साइन की मदद से बना था।
बहुत पहले, 1916 में फीचर फिल्मों के लिए मेरे मन में ढेरों ख्यालात थे। एक
फिल्म में चंद्रमा का एक दौरा दिखाया जाता जहां पर ओलम्पिक खेलों के
हंसी-मज़ाक भरे दृश्य होते और वहां गुरुत्वाकर्षण के नियमों के साथ खिलवाड़
करने की संभावनाओं का पता लगाया जाता। यह प्रगति पर एक तरह का कटाक्ष होता।
मैंने खाना खिलाने वाली एक फीडिंग मशीन के बारे में भी सोचा था। एक
रेडियोइलैक्ट्रिक हैट का भी ख्याल मेरे मन में था। इस हैट को लगाते ही
उसमें व्यक्ति के विचार दर्ज होने शुरू हो जाते। और उस वक्त की मुसीबत के
बारे में बताया जाता जब मैं इस हैट को सिर पर पहनता हूं और मेरा परिचय
चंद्रमा पर रहने वाले आदमी की बेहद कमनीय बीवी से कराया जाता है। बाद में
मैंने इस फीडिंग मशीन को माडर्न टाइम्स में इस्तेमाल किया था।
साक्षात्कार करने वाले मुझसे पूछते हैं कि मुझे अपनी फिल्मों के लिए विचार
या आइडिया कहां से मिलता है और मैं आज दिन तक इस बात का कोई संतोषजनक जवाब
नहीं दे पाया हूं। बरसों के बाद मैंने यही पाया है कि विचार तभी आते हैं जब
आप में विचारों के लिए उत्कट इच्छा हो। लगातार इच्छा करते रहने से आपका
दिमाग ऐसी घटनाओं की तलाश में भटकने वाला बुर्ज हो जाता है जिनमें आपकी
कल्पना को उत्तेजित करने का माद्दा हो। संगीत और सूर्यास्त भी विचारों को
अमली जामा पहना सकते हैं।
मैं तो यही कहूंगा कि कोई भी ऐसा विषय लीजिये जो आपको उत्तेजित करे। इसे
फैलाइये और इसमें रम जाइये। और अगर आप इसे और आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो
इसे छोड़ दीजिये और दूसरे विचार पर काम करना शुरू कर दीजिये। जो कुछ आप
संजोते हैं, उसमें से उलीचते रहना ही वह प्रक्रिया है जिसमें आपको वह मिल
जाता है जो आप खोजना चाहते हैं।
तो आदमी के पास विचार आते कैसे हैं। पागलपन की हद तक जाने के बाद अचानक ही।
आदमी में तकलीफ सहने की कूव्वत होनी चाहिये और उत्साह को देर तक बरकरार
रखने का माद्दा होना चाहिये। हो सकता है ऐसा कर पाना कुछ व्यक्तियों के लिए
दूसरों की तुलना में आसान होता होता हो लेकिन मुझे इसमें शक है।
हां, इसमें कोई शक नहीं कि प्रत्येक संभावनाशील कॉमिक को कॉमेडी के बारे
में आध्यात्मिक साधारणीकरण से हो कर गुज़रना पड़ता है। कीस्टोन में जो
फिल्में बनती थीं, उनमें हर दूसरे दिन एक जुमला उछाला जाता था कि "आश्चर्य
और रहस्य का तत्व होना चाहिये फिल्मों में।"
मैं मानव व्यवहार को समझाने के लिए मनोविश्लेषण की गहराइयों में उतरने की
कोशिश नहीं करूंगा जो कि अपने आप ही ज़िंदगी की तरह विवेचना से परे है।
सैक्स या बाल सुलभ मतिभ्रंश से भी अधिक। मेरा यह मानना है कि हमारे अधिकांश
विचारशील दबाव पूर्वज अनुरूप कारणों से होते हैं। अलबत्ता, मुझे यह जानने
के लिए किताबें पढ़ने की ज़रूरत नहीं है कि ज़िदंगी की थीम संघर्ष और तकलीफ
है। ये सहज संवेदनाओं का ही कमाल था कि मेरा सारा जोकरपना इन्हीं पर आधारित
था। कॉमेडी बुनने के मेरे साधन सरल थे। यह प्रक्रिया थी आदमियों को तकलीफों
के भीतर ले जाने की और उससे बाहर ले आने की।
लेकिन हास्य थोड़ा-सा अलग और ज्यादा बारीक होता है। मैक्स ईस्टमैन ने अपनी
किताब द सेंस ऑफ ह्यूमर में इसका विश्लेषण किया है। वे इसका निचोड़ इस तरह
से निकालते हैं कि ये मानो खिलंदड़े दर्द में से निकाला गया हो। वे लिखते
हैं कि आदमी नाम का यह प्राणी आत्मपीड़क होता है और वह दर्द का कई रूपों
में आनंद उठाता है। और दर्शक भी वैसे ही दूसरे का चोला धारण करके पीड़ा
भोगना पसंद करते हैं जिस तरह से बच्चे खेल-खेल में उठाते हैं। बच्चे
खेल-खेल में मारा जाना और मौत की भयावहता से गुज़रना पसंद करते हैं।
मैं इस सब से सहमत हूं। लेकिन ये हास्य के बजाये ड्रामा का ज्यादा विश्लेषण
है। हालांकि दोनों देखने में एक जैसे ही लगते हैं लेकिन हास्य के बारे में
मेरा विश्लेषण थोड़ा अलग है। जो साधारण व्यवहार लगता है ये उससे मामूली-सा
हट कर होता है। दूसरे शब्दों में, हास्य के जरिये जो तार्किक होता है,
उसमें हम अतार्किक देखते हैं और जो महत्त्वपूर्ण लगता है उसमें
अमहत्त्वपूर्ण देख लेते हैं। ये हमारी जीजिविषा के स्तर को भी ऊपर उठाये
रहता है और हमारे होशो-हवास को बचाये रखता है। ये हास्य ही होता है जिसकी
वजह से हम ज़िंदगी की बदतमीजियों को देख कर खुशी से बहुत ज्यादा खुश नहीं
होते। इससे अनुपात की हमारी सोच को गति मिलती है और ये बात हमारे सामने
रखता है कि गम्भीरता से कही गयी किसी बात में भी वाहियातपना छुपा होता है।
मिसाल के तौर पर, किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार का दृश्य है। मित्र और
संबंधीगण मृतक की चिता के आस-पास सम्मान से सिर झुकाये जमा हैं। तभी कोई
लेट लतीफ ठीक उसी वक्त वहां आ पहुंचता है जब कि प्रार्थनाएं, बस, शुरू होने
ही वाली हैं। वह हड़बड़ी में एक खाली सीट की तरफ लपकता है जहां संवेदना
प्रकट करने आया कोई व्यक्ति अपना हैट भूल गया है। अपनी हड़बड़ी में लेट
लतीफ अचानक उसी हैट के ऊपर जा बैठता है। तब मूक क्षमा याचना के साथ वह
मुचड़ा हुआ हैट उस व्यक्ति को सौंपता है। हैट का मालिक मूक गुस्से के साथ
हैट ले लेता है और अपना ध्यान प्रार्थनाओं की तरफ लगाये रखता है। और आप
देखते हैं कि उस पल की गम्भीरता हास्यास्पद हो गयी है।
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