संयुक्त वामपक्षी मोर्चे की स्थापना पर वक्तव्य
भारतीय जनता को विश्वास दिलाया गया था कि 15 अगस्त, 1947 से वह आजाद हो रही
है। मगर अब उसका यह विश्वास टूटने लगा है। इस तथाकथित आजादी से उसे मिला है
चीजों का बढ़ता हुआ अकाल, बढ़ती हुई महँगाई, मजदूरी और तनख्वाह की कमी, बढ़ती
हुई बेरोजगारी, चारों ओर फैला हुआ चोर बाजारी का जाल, हर जगह खूनी
साम्प्रदायिक दंगे, और हर तरह का कष्ट, अभाव और बरबादी। राजनीतिक क्षेत्र
में, जनता को नागरिक अधिकारों पर गहरा हमला किया गया है; हर प्रान्त में
राजनीतिक कार्यकर्ता बिना मुकदमा चलाये जेलों में बन्द किये जा रहे हैं,
शान्त जुलूसों और प्रदर्शनों पर गोलियों का चलाना रोजमर्रा की बात हो गयी
है। लोग जनता के हकों के लिए लड़ने के कारण जेलों में डाल दिये गये हैं और
जनता के संगठनों को घोर दमन का शिकार बनाया गया है।
भारतीय संघ और पाकिस्तान की तथा विभिन्न प्रान्तों की सरकारों ने, जिनकी
बागडोर कांग्रेस और लोगों की नेताशाही के हाथ में है, वादा किया कि वे
मजदूरों और कर्मचारियों को जीवन-निर्वाह योग्य मजदूरी दिलायेंगे, किसानों
को भूमि देंगे, चोर-बाजारी के खिलाफ जेहाद बोलेंगे, शासन की मशीन तथा
पुलिस-फौज का आजादी के आधार पर पुनर्गठन करेंगे और तीव्र गति से देश की
सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए अनुकूल हालत पैदा करेंगे। मगर जनता के
प्रति अपने इन वादों को नेताओं ने त्याग दिया है। इन वादों को पूरा करने के
बदले वे पूँजीपतियों, चोरबाजारियों और सामन्ती मुफ्तखोरों का हित साधन कर
रहे हैं। वे मजदूरों का पेट काटने, चोर-बाजार की कानूनी स्थिति देने, मुख्य
उद्योगों का राष्ट्रीकरण करने से इनकार करने आदि की नीति पर चल रहे हैं। वे
देशी नरेशों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं और इस प्रकार रियासती जनता के
संघर्ष को धक्का लगा रहे हैं। जोतने वालों को जमीन देने से इनकार कर वे
जमींदारों और दूसरे सामन्ती वर्गों को खुश करने की नीति पर चल रहे हैं।
उन्होंने शासन की पुरानी मशीन को बरकरार रखा है और देश में वही पुलिस-पलटन
और नौकरशाही कायम है। वे विधान-परिषद में एक ऐसा विधान तैयार कर रहे हैं।
जिसका तत्व जनविरोधी है और जिसमें विदेशी और देशी पूँजीपतियों को पूर्ण
मुआवजे का अधिकार प्रदान किया गया है, शासन विभाग को असाधारण अधिकार दिये
गये हैं, प्रान्तीय स्वराज्य में बहुत बड़ी कमी की गयी है और जनता को केवल
लम्बी मुद्दतों के बाद वोट देने का हक दिया गया है।
नेताओं ने साम्राज्यशाही से लड़कर आजादी छीन लेने से इनकार किया और ब्रिटिश
साम्राज्यशाही से समझौता कर लिया है। इसी का नतीजा है कि देश में भीषण
साम्प्रदायिक दंगे हुए जिसमें लाखों जनता को भय, मुसीबत और बरबादी का सामना
करना पड़ा मगर लीग के नेता जो सम्प्रदायवाद के समर्थक हैं, और कांग्रेस के
नेता जो राष्ट्रीयता की दुहाई देते हैं, दोनों ही ने सम्प्रदायवाद से लड़ने
के बदले सम्प्रदायवादी प्रतिगामियों को खुश करने की नीति अपनायी है।
नेताशाही के अधिक जोरदार अंग ने स्वयं सम्प्रदायवादी और
हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच युध्द का प्रचार कर दंगों को बढ़ावा दिया है।
विदेशी शासन से पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने की कोशिश करने के बदले
भारतीय संघ और पाकिस्तान की सरकारें कांग्रेस और लीगी नेताशाही के नेतृत्व
में विश्व साम्राज्यवाद की पिछलग्गू बन गयी है। उन्होंने विदेशी पूँजी की
आर्थिक सत्ता बरकरार रखी है, विदेशियों से राष्ट्र के लिए अपमानजनक
व्यापारिक सन्धिायाँ की हैं और साम्राज्यवादी सरकारों के साथ सैनिक
गठबंधन करने के लिए दाँव-पेंच खेले हैं और इस प्रकार अमरीकी-ब्रिटिश
साम्राज्यशाही की पिछलगुआगीरी की है। हाल की घटनाओं से यह भी पता चलता है
कि युध्द छिड़ने की हालत में वे अमरीकी-ब्रिटिश साम्राज्यवादी गुट में शामिल
होने की ओर कदम बढ़ा रही हैं, जिसका नतीजा देश की जनता की भयानक बरबादी
होगा।
आज के भारत की यही तस्वीर है। कांग्रेस और लीग की नेताशाही के नेतृत्व में
वह स्थिर स्वार्थ वर्ग के हाथों की कठपुतली है और अमरीकी-ब्रिटिश
साम्राज्यशाही के दामन में बँध गया है। इस स्थिति में दुनिया में पूँजीवाद
के तीव्रतर होते हुए संकट के असर से जनता की हालत और भी खराब होने का सामान
मुहैया है। भारतीय संघ और पाकिस्तान की पूँजीवादी नेताशाही उसे अकाल, बढ़ती
हुई महँगी, चीजों का उत्तारोत्तार बढ़ता हुआ अकाल, मजदूरों और कर्मचारियों
की आम छँटनी, दमन का राज और साम्प्रदायिक दंगों के नये दौर की खंदक की ओर
घसीट रही है। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि मौजूदा नेताशाही या सरकार न तो
जनता को इस खंदक की ओर जाने से बचा सकती है न बचाना चाहती है। मुल्क को इस
बरबादी और सत्यनाश से बचाने और साम्राज्यशाही की मातहती से छुड़ाने के लिए
मौजूदा सरकार को हटाना ही पड़ेगा और उसकी जगह ऐसी सरकार बनानी पड़ेगी जो कि
शोषित जनता के अधिकारों की रक्षा करेगी। सरकार के निर्मम हमलों और दमन के
बावजूद जनता का असन्तोष और बेकारी बढ़ रही है और विभिन्न अंगों का संघर्ष और
आन्दोलन जोर पकड़ रहा है। मजदूरों की हड़तालें, व्यापक किसान आन्दोलन,
रियासती जनता के तूफानी आन्दोलन, दमनकारी कानूनों के खिलाफ जनता के विशाल
प्रदर्शन, मधयमवर्गी कर्मचारियों और विद्यार्थियों की लड़ाइयाँ और कांग्रेसी
तथा लीगी जनता में उठती हुई उथल-पुथल-ये सभी इस बात के स्पष्ट चिद्द हैं कि
क्रान्तिकारी शक्तियाँ मजबूत हो रही हैं और उनको मिल-जुलकर और एक स्वर तथा
एक ताल पर चलकर आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
(शीर्ष पर वापस)
संयुक्त वामपक्षी मोर्चा
इस सम्मेलन में मौजूद उग्रदली पार्टियों के प्रतिनिधि इस आवश्यकता को महसूस
करते हैं और आज इस जगह इस ऐलान के जरिये ''संयुक्त उग्रदली मोर्चा'' बनाने
का निश्चय करते हैं। यह मोर्चा ऊपर बतलाये संघर्षों को पूर्ण स्वतन्त्रता
और समाजवाद की प्राप्ति के लिए एक आम और व्यापक संघर्ष का हिस्सा समझ कर और
भी आगे बढ़ायेगा और तेज करेगा।
साम्प्रदायिक दंगों, भारत-पाकिस्तान के बीच युध्द के प्रचार, छंटनी और
तनख्वाह की कटौती, सरकार के दमनकारी कानूनों, राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन
कांग्रेस और उस जैसी अन्य संस्थाओं के जरिये पूँजीवादी वर्ग की जन-संगठनों
में फूट डालने और उन्हें कमजोर करने की कोशिशों तथा मजदूरों और किसानों की
माँगें और आवश्यकताएँ पूरी किये बगैर औद्योगिक और कृषि मोर्चों पर शान्ति
रखने के नारे के खिलाफ तत्काल और संयुक्त आन्दोलन छेड़ करके ही यह उग्रदली
मोर्चा बनाया और बढ़ाया जायेगा। यह मोर्चा देशी रियासतों में सच्चे जनवादी
सुधारों और मजदूरों, किसानों और दूसरे मेहनतकश लोगों के हक के लिए आन्दोलन
करेगा। इस मोर्चे को तैयार करने के लिए भारतीय संघ और पाकिस्तान में
प्रतिक्रियावादी नेताशाही की नीति का लगातार पर्दाफाश करना होगा।
यह मोर्चा भारतीय संघ और पाकिस्तान के अन्दर काम करने वाले
साम्राज्य-विरोधी कांग्रेसजनों और लीगियों के संघर्ष को अत्यन्त महत्वपूर्ण
समझता है। यह मोर्चा सबके समान हितों के सवालों पर होनेवाले संयुक्त
प्रदर्शनों में इन साम्राज्य विरोधी लोगों को लाने की कोशिश करेगा और
प्रतिक्रियावादी नेताओं के असर से अपने को छुड़ाने में उनकी मदद करेगा।
इस मोर्चे का उद्देश्य मौजूदा सरकारों के बदले शोषित जनता की हित-रक्षा
करनेवाली सरकारें कायम करना होगा। यह मोर्चा नीचे से, मेहनतकश जनता की एकता
और संगठन, और उनके पीछे सभी उग्रदली पार्टियों और प्रगतिशील अंगों के
संयुक्त प्रयत्नों के जोर से बनी जन-संगठनों की एकता के जरिये तैयार होगा,
फैलेगा और मजबूत होगा।
(शीर्ष पर वापस)
कार्यक्रम
यह ''संयुक्त उग्रदली मोर्चा'' नीचे लिखे कार्यक्रम के आधार पर तैयार किया
जायेगा-
1. पूर्ण स्वतन्त्रता-ब्रिटिश साम्राज्य से संबंध-विच्छेद और सभी ब्रिटिश
फौजों और अफसरों को यहाँ से विदायी।
2. सभी ब्रिटिश और विलायती आर्थिक हितों की जब्ती, जिनमें बैंक, बीमा
कम्पनियाँ, मिल-कारखाने, बागान, खान आदि सम्मिलित हैं। अमरीकी-ब्रिटिश
साम्राज्यवादी राष्ट्र-समूह से कोई समझौता नहीं किया जाये।
3. शासन की मशीन और सेना को पूरी तरह जनवादी बनाया जाये। नौकरशाही का खातमा
किया जाये।
4. जनता को हथियार दिया जाये और एक जनता की स्वयंसेवक सेना संगठित की जाये।
5. जनवादी विधान बनाया जाये जिसका आधार भाषा और संस्कृति की बुनियाद पर बनी
इकाइयों का-यदि ऐसी इकाइयाँ हों-आत्मनिर्णय का अधिकार होगा जिन्हें अलग
होने का भी अधिकार रहेगा। सबकी इच्छा के आधार पर एक भारतीय संघ की स्थापना
हो तथा सभी बालिगों को वोट का अधिकार और सानुपातिक प्रतिनिधित्व रहे।
6. सभी दमनकारी कानून रद्द किये जायें। सभी राजबन्दी, जिनमें किसानों,
मजदूरों और जनता के अन्य वर्गों की लड़ाइयों के सिलसिले में सजा पाये या
नजरबन्द लोग भी हैं, रिहा किये जायें। देश में पूर्ण शहरी आजादी, जिसमें
भाषण, सभा और प्रेस की स्वतन्त्रता शामिल है, कायम हो।
7. देशी रियासतों में रजवाड़ों का खातमा किया जाये और एकतन्त्र के खिलाफ
रियासती जनता की लड़ाइयों की मदद की जाये।
8. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाये, उनकी संस्कृति, भाषा और
रोजी-रोटी के हकों की हिफाजत के लिए कदम उठाये जायें, तथा साम्प्रदायिक
भेदभाव और दंगों के खिलाफ जेहाद बोल दिया जाये। भारतीय संघ और पाकिस्तान के
बीच दोस्ताना संबंध कायम किया जाये। सरकारें साम्प्रदायिक दंगे रोकने के
लिए जो भी सही कदम उठायें उनका समर्थन किया जाये; साथ ही-साथ साम्प्रदायिक
प्रतिक्रियावादियों को खुश करने की नीति का डटकर पर्दाफाश किया जाये।
9. जमींदारों के हर रूप का और इसी के समान दूसरी व्यवस्थाओं का बिना मुआवजे
के खात्मा किया जाये। जोतनेवालों को जमीन दी जाये। किसानों के सभी कर्ज
रद्द किये जायें। खेती के लिए सरकार की ओर से बैंक खोले जायें और किसानों
को सस्ती दर पर कर्ज दिया जाये।
10. बिना मुआवजा दिये सभी मुख्य और बुनियादी उद्योगों और प्रधान राष्ट्रीय
साधनों का राष्ट्रीकरण किया जाये।
11. चोर-बाजारी और मुनाफाखोरी को खत्म करने के लिए जोरदार आन्दोलन छेड़ा
जाये। पूरी और उचित खुराकबन्दी और मूल्य-नियन्त्रण की व्यवस्था जारी की
जाये।
12. काम के घण्टे हफ्ते में 40 हों, जीवन-निर्वाह योग्य तनख्वाह की एक
कम-से-कम दर तय कर दी जाये, सबको रोजगार पाने का हक हो, और सबकी नौकरी
पक्की हो। हड़ताल, पिकेटिंग और यूनियन बनाने का हक मिले।
13. हर नागरिक को मुफ्त शिक्षा दी जाये और सबके लिए मुफ्त इलाज और
स्वास्थ्य-रक्षा के आम साधनों का प्रबंध हो।
(शीर्ष पर वापस)
पहला काम
इस सम्मेलन का दृढ़ विश्वास है कि संयुक्त उग्रदली मोर्चे को मजबूत बनाने के
लिए पहला काम जो सबसे जरूरी है, वह यह है कि मेहनतकशों और जनता के
जनसंगठनों को एक किया जाये और उन्हें मजबूत बनाया जाये। इसलिए यह निश्चय
किया जाता है कि-
1. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस को ट्रेड यूनियन का एकमात्र केन्द्र
बनाया जाये और सभी पार्टियाँ उसको ''राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस'' तथा
''सोशलिस्ट ट्रेड यूनियन सेन्टर'' के फूटवादी हमलों से बचायें और मजबूत
करें। इस सम्मेलन में भाग लेने वाली पार्टियाँ ट्रेड यूनियन कांग्रेस में
पूर्ण ऐक्य बरतें और अपने मतभेदों को आपसी समझौते से सुलझावें।
2. एक ही किसान सभा हो जिसमें सम्मेलन में शामिल सभी पार्टियाँ मिलकर
मित्रतापूर्वक काम करें। शामिल पार्टियों के किसान प्रतिनिधि इस उद्देश्य
की पूर्ति के लिए रास्ता निकालने के लिए जितनी जल्दी हो मिलें।
3. एक ही संयुक्त विद्यार्थी संगठन हो। पिछले साल कायम ''विद्यार्थी
एकता-बोर्ड'' से इसके लिए अनुरोध किया जाता है कि एक एकता सम्मेलन बुलायें
और विभिन्न विद्यार्थी संगठनों को मिलाकर एक करने के लिए जरूरी कदम उठावें।
सम्मेलन में शरीक सभी पार्टियाँ इकरार करती हैं कि एकता की रक्षा के लिए वे
किसी भी संयुक्त सभा या प्रदर्शन में एक दूसरे की आलोचना या एक-दूसरे पर
छींटाकशी न करें और उनका प्रचार ''संयुक्त उग्रदली मोर्चे'' के फैसले और
कार्यक्रम के दायरे में सीमित रहेगा।
अलग-अलग हर पार्टी को जनता के सामने अपना पूरा कार्यक्रम पेश करने की आजादी
रहेगी लेकिन इस आजादी में संयुक्त मोर्चे के कार्यक्रम की आलोचना नहीं
शामिल है। एक-दूसरे की आलोचना केवल राजनीतिक सतह पर ही की जा
सकेगी-व्यक्तिगत दोषारोपण, द्वेषपूर्ण आरोप, किसी की नीयत के बारे में कीचड़
उछालनी और तथ्य को तोड़ना-मरोड़ना आदि बातें बिलकुल नहीं होनी चाहिए।
(शीर्ष पर वापस)
प्रान्तीय एकीकरण कमेटियाँ
संयुक्त उग्रदली मोर्चे की तात्कालिक जरूरत चूँकि विभिन्न प्रान्तों और
रियासतों में संयुक्त प्रचार और आन्दोलन की नींव डालना है इसलिए मोर्चे के
कार्यक्रम को फौरन अमल में लाने के लिए, आपसी मतभेदों को तय करने के लिए,
और जन-संगठनों के कामों को एक करने के लिए प्रान्तों में ''उग्रदली मोर्चा
एकीकरण कमेटियों'' का निर्माण किया जायेगा। इन कमेटियों में यहाँ उपस्थित
पार्टियों के प्रतिनिधि (और दूसरी पार्टियों और जन-संगठनों के, जब वे
मोर्चे में प्रवेश करेंगे) होंगे।
एकीकरण कमेटियों में जो फैसले किये जायेंगे सबकी राय से। फैसले ऐसे नहीं
होंगे जो जन-संगठनों द्वारा उनके विधान के अनुसार अमल में न लाये जा सकें।
केन्द्र में इस वक्त केवल एक संयोजक रहेगा जो कि जरूरी समझने पर या शरीक
पार्टियों में एक चौथाई की माँग पर सभी शरीक और आगे शरीक होनेवाली
पार्टियों और संगठनों की बैठक बुलायेगा।
हमें इस बात का दुख है कि इस सम्मेलन में दो-एक उग्रदली पार्टियाँ मौजूद
नहीं हैं। उग्रदली मोर्चे का काम किसी पार्टी या संगठन के लिए रुका नहीं रह
सकता। मगर उसका दरवाजा हमारे कार्यक्रम को माननेवाली हर पार्टी और संगठन के
लिए सदा खुला रहेगा और हम उनका हृदय से स्वागत करेंगे। हमें यह ऐलान कबूल
है।
(1) स्वामी सहजानन्द सरस्वती, (2) सोमनाथ लाहिड़ी (हिन्दुस्तानी कम्युनिस्ट
पार्टी), (3) राजदेव सिंह, प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया, (4)
यमुना कार्यी, प्रधानमंत्री, बिहार प्रान्तीय किसान सभा, (5) शीलभद्र
यात्री, प्रधानमंत्री अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लाक; (6) ओंकार नाथ शास्त्री,
प्रधानमंत्री, रिवाल्यूशनरी वर्कर्स पार्टी ऑफ इण्डिया (त्रात्स्कीवादी,
चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय), (7) रामचन्द्र राय, बोलशेविक पार्टी, ऑफ इण्डिया
22 डी.एन. सेन लेन, काशी, पो.ठ कुरिया, कलकत्ता; (8) अजित राय, बोलशेविक
लेनिनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया पो. 913, संचार एवेन्यु, कलकत्ता 13; (9)
मुघीन्द्र नाथ कुमार, रिवाल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया, 5-1
राममय रोड, कलकत्ता; (10) सुशील भट्टाचार्य, रिवाल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी;
(11) साधन गुप्ता, हिन्दुस्तान खान मजदूर संघ (12) जीवन लाल चटर्जी,
डिमोक्रेटिक वैनगार्ड, (13) पंकज कुमार दास; कम्युनिस्ट वर्कर्स लीग ऑफ
इण्डिया, (14) परमानन्द प्रसाद, किसान सभा; (15) टी. परमानन्द, मजदूर सभा;
(16) सोशलिस्ट सेंटर; (17) कम्युनिस्ट वर्कर्स पार्टी ऑफ इण्डिया; (18)
श्रीमती रामदुलारी सिंह प्रान्तीय सुगर फेडरेशन।
प्रस्ताव
(1) संयुक्त उग्रदली मोर्चे की स्थापना पर बयान का यह मसविदा तसदीक होने तक
मंजूर किया जाता है।
(2) केन्द्र में का. शीलभद्र यात्री मोर्चे की सभाओं के संयोजक नियुक्त
किये जाते हैं।
(3) संयुक्त किसान सभा बनाने के लिए बैठक बुलाने के लिए का. स्वामी
सहजानन्द सरस्वती संयोजक नियुक्त किये जाते हैं।
15-16 अप्रैल,
1948, पटना, नया बिहार प्रेस लि. पटना
(शीर्ष पर वापस)
भारतीय समाजवादी सभा लक्ष्य तथा कार्यक्रम
भारत के विभिन्न वामपक्षी, समाजवादी एवं प्रगतिवादी दलों तथा संगठनों ने,
जिनकी संख्या 20 से अधिक थी, मिलकर सर्व-सम्मति से 'भारतीय संयुक्त
समाजवादी सभा' की स्थापना अभी हाल ही में नेताजी-भवन, कलकत्ता में की।
इसमें बहुसंख्य ऐसे व्यक्तियों और विद्वानों ने भी योग दिया, जो समाजवाद
एवं साम्यवाद में विश्वास रखते हुए भी किसी वामपक्षी या समाजवादी दल के
सदस्य नहीं हैं। विभिन्न दलों और संगठनों के प्रतिनिधि भारत के सभी
प्रान्तों से आये थे। शायद ही कोई प्रान्त बचा हो। जिससे युक्त समाजवादी
सम्मेलन में यह महान कार्य सम्पन्न हुआ, उसमें उपस्थित प्रतिनिधियों की
संख्या प्राय: तीन सौ थी। श्री शरदचन्द्र बोस ने इस सम्मेलन का आयोजन किया
था। उद्धाटन भी उन्हीं ने किया। 28, 29, 30 अक्तूबर, 1949 को यह सम्मेलन
क्रमश: स्वामी सहजानन्द सरस्वती, श्री शंकरराव मोरे और जनरल मोहन सिंह की
अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के अध्यक्ष श्री
शरदचन्द्र बोस चुने गये। सम्मेलन में शरीक सभी दलों के दो-दो प्रतिनिधियों
को मिलाकर अस्थायी जनरल कौंसिल बनायी गयी, जिसके लिए देश भर से 10
प्रतिनिधियों को सभापति उन व्यक्तियों में से नामजद करेंगे, जो किसी दल से
सम्बध्द न होते हुए भी जन-प्रतिनिधित्व की हस्ती रखते तथा सम्मेलन के
मन्तव्यों को मानते हैं। इस प्रकार कम-बेश 50 सदस्यों की वह कौंसिल होगी,
जिसकी पहली बैठक कलकत्ता में 4 दिसम्बर, 1949 को होगी। उसी में मंत्रिायों
आदि का चुनाव होगा। वही कौंसिल भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा का विधान भी
तैयार करेगी, जो उस सभा के अगले खुले अधिवेशन में स्वीकार होने के लिए पेश
होगा। यह अधिवेशन अगले मार्च-अप्रैल तक होगा। सम्मेलन में श्री मावसेतुंग
के नेतृत्व में चीनी जनता की विजय, वहाँ जनता की प्रजासत्ताक सरकार की
स्थापना एवं च्यांग कैशेक के शासन के धवंस पर खुशी जाहिर की गयी और चीनी
जनता तथा उसकी नवीन सरकार को बधाई दी गयी। भारत सरकार उसे फौरन मान ले, यह
माँग भी की गयी। कांग्रेसी सरकारों के द्वारा जो दमन की चक्की चालू है,
उसकी निन्दा भी इस सम्मेलन ने की। भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के लक्ष्य,
नाम तथा कार्यक्रम के संबंध में नीचे लिखी घोषणा तैयार की गयी-
''द्वितीय विश्वयुध्द के खत्म होते-न-होते पूर्वी एशिया तथा यूरोप की जनता
में भीषण क्रान्तिकारी उफान नजर आया। क्रान्ति और नयी सामाजिक व्यवस्था
सम्भव हो गयी। पश्चिमी यूरोप में साम्राज्यवादियों के सीधो हस्तक्षेप एवं
चन्द वामपक्षी राजनीतिक दलों के आगा-पीछा तथा वर्ग-सामंजस्य वाली चालों के
फलस्वरूप किसी हद तक क्रान्ति का काम रुका सही; फिर भी दूसरे देशों में
साम्राज्यवादी पूँजीवादी प्रणाली को निश्चित रूप से धक्का लगा। फलत: जनता
के प्रयत्नों से राजनीतिक एवं सामाजिक बातों में मौलिक परिवर्तनों का
श्रीगणेश सम्भव हो गया। यह भी बात है कि दक्षिण-पूर्व एशियावालों के
विप्लवों पर हाल की चीन के स्वातन्त्रय-आन्दोलन की विजय ने पाश्चात्य
साम्राज्यवादी प्रभुत्व को खोखला कर दिया है। समाजवाद तथा जनतन्त्र का पलड़ा
बेशक भारी हो गया है।
''वर्षों के युध्द के करते जीर्ण-शीर्ण तथा आर्थिक दृष्टि से छिन्न-भिन्न
ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उसके स्थिर स्वार्थ जो भारत एवं एशियाई देशों में
फैले हैं, अपनी हस्ती की सबसे बड़ी उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं। यूरोप तथा
एशिया में सोवियत रूस का बढ़ता हुआ प्रभाव और संसार के बाजार पर अमरीका का
प्रभुत्व ये दोनों ही इसे दोनों ओर से कतरने लगे। ऐसी दशा में ब्रिटिश
साम्राज्यवाद ने ठीक ही महसूस किया कि अपने लूट-खसोटवाले व्यापार के विशेष
क्षेत्र के रूप में भारतीय बाजार को किसी भी मूल्य पर बचाना होगा; फलत:
अमेरिका के संसारव्यापी प्रभुत्व तथा सोवियत रूस के पूर्व-पश्चिम (दोनों
ओर) फैलनेवाले प्रभाव के विरुध्द भारतीय पूँजीपतियों के साथ साठ-गाँठ
अनिवार्य रूप से आवश्यक है। भारतीय जनता के क्रान्तिकारी विचारों में
वृध्दि देखकर भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अच्छी तरह मान लिया कि उसकी अपनी
हस्ती के लिए भी भारतीय पूँजीवादियों से सट्टा-गुट्टा एक ऐतिहासिक आवश्यकता
है और इसके लिए, जितना शीघ्र हो, अनिवार्य कदम बढ़ाना ही होगा।
''कांग्रेस तथा मुसलिम लीग के नेताओं एवं ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बीच सौदे
के फलस्वरूप 1947 के अगस्त में शासन-सत्ता हस्तान्तरित करने की रस्म अदायी
हुई। इस प्रकार एक ओर ब्रिटिश साम्राज्यवाद और दूसरी ओर भारतीय
पूँजीवादियों को मिलाकर एक मोर्चा भारतीय जन-क्रान्ति के विरुध्द तैयार
हुआ। नेहरू सरकार, जो भारतीय स्थिर स्वार्थों की सरकार है, अपने
वर्ग-स्वभाव के करते ही उन समस्याओं को सुलझा नहीं सकती, जो भारतीय जनता के
सामने खड़ी हैं। भारत में विद्यमान पूँजीवादी सामाजिक व्यवस्था के रहते
भारतीय जनता को गरीबी और भूख के पंजों से त्राण नहीं मिल सकता। नेहरू और
पटेल की सरकार तो स्थिर स्वार्थों की है। अमीरों के हाथों गरीबों की लूट को
यह सरकार क्षमा प्रदान करती है। उद्योग-धन्धों के राष्ट्रीयकरण को इसने
पाँव तले रौंद दिया है। जमींदारों के द्वारा चुरायी गयी चीज (जमीन) को उनसे
उगलवाने-जमींदारी को मिटाने के लिए मुआविजा देने के ख्याल से यह सरकार
किसानों से रुपये के रूप में उनका खून निचोड़ रही है। अमीरों पर जो अतिरिक्त
आय-कर लगा था, उसके भार को यह कम कर रही है। लेकिन, श्रमजीवी वर्ग के
द्वारा गुजारे लायक मजदूरी की माँग को इसने बेरहमी से दबा दिया है।
शरणार्थियों एवं विपन्न मध्यमवर्गियों के सभी प्रतिवाद आन्दोलनों के उभड़ने
को इसने बर्बरतापूर्ण बहशियाना कामों के द्वारा दबा दिया है। जनता के
स्वतन्त्र भाषण तथा आजाद संगठन के अपरिहरणीय अधिकारों को इसने लूट लिया है
और विशेष आईन-कानूनों के द्वारा शासन जारी कर दिया है।
''यह सरकार पूँजीपतियों, चोरबाजारियों तथा भ्रष्ट पुलिस अफसरों के, जो
खुफिया विभाग के बैरकों में राजबन्दियों के साथ अमानुषिक बर्ताव संबंधी
साम्राज्यवादी परम्परा को जारी रखना चाहते हैं, उभाड़ने पर लोगों को
गिरफ्तार करती है। इसमें आजाद हिन्द फौज एवं दूसरे फौजियों के साथ, जिनने
बहादुरी से भारतीय स्वतन्त्रता के लिए युध्द किया, अपमानजनक व्यवहार किया
है। जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद आज राष्ट्रसंघ के बुर्के के नीचे मौजूद है,
उसके सामने इसने आत्मसमर्पण किया है। नेहरू सरकार ने जो मुद्रा के मूल्य को
घटाया है, वह ग्रेट ब्रिटेन के पूर्ण पिछलग्गू बनने का सबसे ताजा और
जबर्दस्त नमूना है। यह चीज हमारी सारी राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के लिए
घातक है। नेहरू-सरकार ब्रिटिश-अमरीका गुट का अर्दली बन गयी है।''
पूँजीवादियों, चोरबाजारियों, कम्पनियों के हिस्सेदारों और जमींदारों की इस
स्थिर स्वार्थ वाली सरकार को खत्म करना होगा तथा इसकी जगह किसानों, मजदूरों
एवं विपन्न मध्यवर्गीयों की सरकार स्थापित करनी होगी। जनतांत्रिक जनता की
यह सरकार ही भारतीय राष्ट्रीय स्वार्थों की प्रगति कर सकती है। सिर्फ वही
एक-एक करके सबों को खाना, कपड़ा, शिक्षा तथा स्वास्थ्य निश्चित रूप से दे
सकती है। केवल वही हमारे देश के जन-समूह का सर्वांगीण उध्दार कर सकती है।
(इसी दृष्टि से) भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा नीचे लिखे लक्ष्य तथा
कार्यक्रम के संबंध में अपने-आपको संकल्पबध्द करती है। यह लक्ष्य एवं
कार्यक्रम भारतीय जनता के आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं
को अपनाता है-
नाम-इस संस्था (संगठन) का नाम होगा, ''भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा''
(युनाइटेड सोशलिस्ट ऑर्गनिजेशन ऑफ इण्डिया)।
लक्ष्य-(अ) ''भारत में समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के संघ की स्थापना
इसलिए करना कि यहाँ वर्गविहीन समाज की स्थापना हो जाये, जिसमें मनुष्य के
द्वारा मनुष्य का शोषण लापता होगा और यह सिध्दान्त मान्य होगा कि हरेक से
उसकी योग्यता के अनुसार काम लिया जाये और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति की
जाये, यही इस सभा का लक्ष्य होगा।
(ब) समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के इस संघ की बुनियादी रूपरेखा यही होगी
कि उत्पादन, वितरण तथा विनिमय के साधनों पर समाज का अधिकार होगा और
अन्यान्य बातों के सिवाय यह संघ फौरन ही आदेश जारी करेगा कि-
(1) बिना मुआविजा जमींदारी (भूमि का आधिपत्य) खत्म हो।
(2) पूँजीवादी ढंग का शोषण खत्म हो तथा बुनियादी, विस्तृत एवं मूलभूत
उद्योग-धन्धे समाज की सम्पत्ति हों।
(3) जनता के उपयोग के सभी विभाग समाज के हाथ में हों।
(4) जमीन जोतने-कोड़ने वालों (किसानों) की ही हो। इस संबंध में वही और उतने
ही बंधन हों, जो राष्ट्र तथा जोतने-कोड़नेवालों के हित-साधक हों।
(5) खेती संबंधी सभी ऋण माफ हों।
(6) बैंक तथा ऋण देनेवाली अन्य संस्थाएँ समाज की हों।
(7) विदेशी कारोबार पर राष्ट्र का एकाधिपत्य हो।
(8) देश के भीतर कारोबार और रोजगार के लिए नियम-कायदे राष्ट्र सरकार बनाये।
(9) मौजूदा विदेशी स्थिर स्वार्थ मिटा दिये जायें।
(10) जनता के निवास-स्थान की व्यवस्था सरकार करेगी।
(11) खानें, खनिज पदार्थ, जंगल, नदियाँ और समुद्री किनारे के जल जैसे
प्राकृतिक पदार्थों पर राष्ट्र (सरकार) का अधिकार होगा।
(12) शक्ति के मूलभूत साधन विद्युत शक्ति कोयले, तेल एवं शक्तिदायक आसव
(शराब) तथा इस शक्ति के उत्पादक कल-कारखाने राष्ट्र (सरकार) के हाथों में
होंगे और वही उन्हें चलाये तथा नियन्त्रण में रखेगा।
(13) जन-स्वास्थ्य संबंधी सभी विभाग समाज के हाथ में होंगे और सबों के लिए
दवा-दारू का पूरा प्रबंध होगा।
(14) सबों को पूरा काम मिलेगा, भिखमंगी न रहेगी और ऐसी व्यवस्था होगी कि
यदि दैवात् बेकारी हो जाये, तो भी आराम का जीवन गुजरे। बुढ़ापे, बीमारी,
शारीरिक अयोग्यता, सन्तानोत्पत्ति की दशा तथा अनाथ बच्चों के लिए भी वही
व्यवस्था हो।
(15) सभी शिक्षा-संस्थाएँ समाज के हाथ में हों, जिनमें धार्मिक शिक्षा न दी
जाये। सबों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था हो।
(16) सबों को सोचने-विचारने एवं पूजा-पाठ की पूर्ण स्वतन्त्रता हो।
(17) समाजवादी राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल सबों को सांस्कृतिक बातों
में पूर्ण स्वतन्त्रता हो।
(18) अस्पृश्यता एवं इसी तरह के जाति-भेद और ऊँच-नीच आदि के खयालों के
नामोनिशान को बखूबी मिटा दिये जाने की व्यवस्था हो और सबों को समान अधिकार
हों।
(19) स्त्री-पुरुषों के बीच पूर्ण समानता हो।
(20) सभी नागरिकों की नागरिक स्वतन्त्रता अक्षुण्ण हो।
काम-भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा का काम होगा साम्राज्यवाद तक सामन्तवाद के
सभी अवशेषों और पूँजीवाद के विरुध्द क्रान्तिकारी संघर्ष चलाना, ताकि
अप्रजातांत्रिाक, अधिकनायकवादी एवं प्रतिगामी भारतीय स्थिर स्वार्थों की
सरकार की जगह मजदूरों और किसानों की सरकार स्थापित हो।
कार्यक्रम-भारतीय संयुक्त समाजवादी सभा के संघर्ष का कार्यक्रम यों होगा कि
वह-
(1) प्रतिनिधित्व-शून्य एवं अजनतांत्रिाक मौजूदा विधान-परिषद् के द्वारा
निर्मित तथाकथित भारतीय विधान का अमान्य ठहराने के लिए जनता को ललकारेगी और
कहेगी कि जनता की विधान-परिषद् बुलायी जाये, जो सार्वजनिक बालिग मताधिकार
के आधार पर चुनी जाये और भारत में समाजवादी प्रजासत्ताक राज्यों के संघ के
लिए विधान बनाये, ताकि (अ) सरकार के संचालन में मजदूरों एवं किसानों को
वाजिब स्थान मिले; (ब) संघ में सम्मिलित सभी भागों को पूर्ण स्वतन्त्रता हो
और (स) भाषा के आधार पर सभी प्रान्तों के भू-भागों का फिर से बँटवारा हो।
सभा माँग करेगी कि-
(2) भारत ब्रिटिश राष्ट्रसंघ से पूर्ण संबंध-विच्छेद कर ले।
(3) ब्रिटिश अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ कोई सट्टा-गट्टा न होगा।
(4) अंग्रेजों के हाथों निर्मित साम्राज्यवादी नौकरशाही तथा फौजी यन्त्र के
रूप में मुल्की, फौजी और पुलिस विभाग की जो नौकरियाँ हैं, उन्हें खत्म करके
नये ढंग से शासन-व्यवस्था के यंत्र का निर्माण हो तथा भारतीय परिस्थिति एवं
जनता की भावना के अनुसार जनता का फौजी दल तैयार किया जाये।
(5) अनिवार्य फौजी शिक्षा दी जाये और हथियार-कानून खत्म हो।
(6) आजाद हिन्द फौज के सभी सिपाहियों को फिर से भर्ती किया जाये और उन्हें
बसाया न जाये।
(7) कल-कारखानेदारों ने जो युध्द में नफा कमाया है, वह और चोरबाजारियों तथा
सट्टेबाजों की सम्पत्तिा जब्त हो।
(8) फौरन ही वे दमनकारी कानून और ऑर्डिनेन्स (फरमान) रद्द किये जायें, जो
बिना वारण्ट गिरफ्तारी, बिना मुकदमा चलाये नजरबन्दी, नागरिक स्वतन्त्रता
में बंधन तथा हड़ताल के हक पर रोक की आज्ञा देते हैं।
(9) राजबन्दियों और नजरबन्दों की फौरन ही बिना शर्त रिहाई हो।
(10) सभी राजनीतिक दलों एवं मजदूर-किसान संगठनों पर लगे बंधन हटाये
जायें।
(11) सभी मीटिंगों और जलूसों की रोक हटायी जाये, ताकि बोलने एवं संगठन की
पूरी आजादी हो।
(12) सभी प्रकार की जमींदारियों तथा किसान एवं सरकार के मध्यवर्ती सभी
प्रकार के स्वार्थों का खात्मा बिना मुआविजा किया जाये।
(13) खेती संबंधी ऋण माफ किये जायें, खेती की उन्नति के लिए सस्ते कर्ज तथा
अन्य प्रकार की सरकारी सहायता की व्यवस्था हो और अलाभकर जमीनों से लगान
लिया जाये।
(14) किसानों की उपज का लाभदायक मूल्य निश्चित हो, जिसमें खेती के खर्च के
अलावे-(अ) उचित मुनाफा भी शामिल हो, (ब) खेत-मजदूरों की गुजारे लायक
कम-से-कम मजदूरी निश्चित की जाये, और (स) किसानों के जीवन एवं खेती के लिए
आवश्यक चीजों का मूल्य घटाया जाये।
(15) कल-कारखाने के मजदूरों को गुजारे लायक वेतन मिले।
(16) कानून के जरिये 40 घण्टे का हफ्ता और 7 घण्टे रोज काम करना तय हो।
(17) लोगों को काम पाने का हक हो, नहीं तो, बेकारी का भत्ता मिले।
(18) हड़ताल करने का हक हो।
(19) सामाजिक सुरक्षा का हक सबको हासिल हो, जिसमें कोई भूखा-नंगा न रहे।
(20) ठेकेदारी पर काम करना उठा दिया जाये।
(21) सबों को भोजन, वस्त्र, निवास और दवा-दारू मिलने की गारण्टी हो।
(22) मैट्रिक्युलेशन तक की शिक्षा मुफ्त एवं अनिवार्य हो।
(23) चोरबाजारी, जीवन की जरूरी चीजें जमा करके छिपा रखने और शासन के
भ्रष्टाचार के विरुध्द सख्त-से-सख्त दण्ड आदि की व्यवस्था हो।
(24) शरणार्थियों तथा अपने स्थानों से हटे-हटाये अन्य लोगों के लिए जमीन,
मकान और काम देकर सहायता पहुँचाने तथा बसाने का प्रबंध हो।
(28,29,30
अक्टूबर, 1949
कलकत्ता)
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*कम्यूनिस्ट पार्टी में इस समय तक रशादिवे गुट की विजय हो
गयी। वे संयुक्त मोर्चे के खिलाफ़ थे। इस सभा में कम्यूनिस्ट पार्टी,
कांग्रेस समाजवादी पार्टी, रेडिकल पार्टी (एम.एन. राय) शरीक नहीं हुए। -
संपादक
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