स्वामी
सहजानन्द सरस्वती हमारी इस धरती पर एक जादुई नाम है। ये भारत के किसान
आन्दोलन के नि:सन्देह
सर्वोपरि
नेता
हैं। ये
आज के समय में
जनता के
आराध्य देव
हैं एवं
लाखों लोगों के हीरों हैं। रामगढ़ के समझौता विरोधी सम्मेलन के अध्यक्ष के
रूप में इन्हें प्राप्त करना हम लोगों के लिए वाकई एक दुर्लभ भाग्य की बात
थी। 'फारवर्ड
ब्लॉक'
के लिये
यह एक गौरवपूर्ण विशेषाधिकार एवं सम्मान की बात थी कि हम उन्हें
वामपन्थ
के सबसे अग्रणी नेता,
मित्र,
दार्शनिक एवं पथप्रदर्शक के रूप में प्राप्त कर सके। उनकी गिरफ्तारी की खबर
सुनते ही हम लोगों ने आनन फानन में ही
28
अप्रैल को
अखिल
भारतीय
स्वामी सहजानन्द दिवस
के रूप
में मनाने का निश्चय किया ताकि उनकी कैद का विरोध कर सकें। हम स्वामी जी को
इस नजरबन्दी और कैद से अर्जित विशिष्ट सम्मान प्राप्त करने के लिये बधाई
देते हैं। स्वामीजी की गिरफ्तारी का स्वागत किया जायेगा। यह लाखों लोगों को
दुविधा एवं जकड़न तोड़ने के लिये प्रेरित करेगा और इसमें तहे दिल से जुट
जाएँगे। कोर्ठ भी व्यक्ति अब किनारे पर नहीं रह सकेगा। यह समय युद्ध में
भिड़न्त का है और हम अवश्य भिड़ेंगे।
स्वामीजी
सीखचों के भीतर हैं,
पर
उन्होंने पीछे एक वसीयत छोड़ी है। हमें,
उनसे उनके जीवन संघर्ष पर सबक सीखना चाहिये,
सेवा का सबक सीखना चाहिये,
समाजवाद की उनकी गम्भीर राजनीतिक अन्तश्चेतना से सबक लेना चाहिये।
यह
मूलत: भिड़न्त एवं कर्म के शलाका पुरुष हैं।
इन्होंने अपनी गिरफ्तारी के समय देशवासियों से विलम्ब और टालमटोल न करने की
तथा तुरन्त भिड़ जाने की अपील की। स्वामीजी की गिरफ्तारी अभिनव भारत
के लिये एक चुनौती है। इस चुनौती को हमें स्वीकारना है। ब्रिटिश सरकार देखे
और अंकित करे कि देश दृढ़ता से स्वामी जी के पीछे खड़ा है। हमें चाहिये कि हम
हम अपना कार्य
'चाहे
आजादी दो या मौत दो'
के
निश्चय के साथ जारी रखें। तभी सभी अवरोध हटकर रहेंगे। इस तिमिरग्रस्त
भारतभूमि पर आजादी अवश्य आयेगी। (फावर्ड ब्लाक पत्रिका
20
अप्रैल 1990 कलकत्ता)
विशेष :
स्वामी
सहजानन्द सरस्वती ने
धारा
38 (5)
एवं
धारा
38 (1)
ए, तथा
धारा
34 (6)
उपधारा
डी के भारत की सुरक्षा अधिनियम
के तहत मंगल तालाब,
पटना सिटी में 6 अप्रैल
1940, तथा बॉकीपुर मैदान में 7
अप्रैल 1940 एवं बिहार शरीफ
में 10 अप्रैल 1940
को उत्तोजक भाषण देने के कारण प्रत्येक भाषण हेतु एक एक वर्ष के रूप में
कुल तीन वर्ष की सजा प्राप्त की। सुभाष का यह लेख उसी के प्रतीकार के रूप
में है।)
(1)
मार्च
1940
रामगढ़ अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन में नेता जी का भाषण) (जन गर्जन
अंक ...ई.
1985
में पुन: प्रकाशित-के.एन. शांडिल्य के सौजन्य से) सहजानन्द से चारू और अब
से साभार-उध्दृत
साथियों!
रामगढ़ में
हो रही अखिल भारतीय समझौता विरोधी कांग्रेस का अध्यक्ष चुनकर और यहाँ होने
वाले निर्णयों में भाग लेने का अवसर देकर आप लोगों ने मेरा बड़ा सम्मान किया
है। इसके साथ ही आपने जो उत्तरदायित्व मेरे कन्धों पर डाला है,
वह
बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सम्मेन देश की साम्राज्यवाद से समझौता करनेवाली
ताकतों को बेनकाब करने के लिए देश की तमाम साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों की
एकता को प्रदर्शित करने का माध्यम है। इस प्रकार के सम्मेलन की अध्यक्षता
करना कोई साधारण काम नहीं है और यह काम तब और मुश्किल हो जाता है,
जब
स्वागत समिति के अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द सरीखा साथी हो। यह स्वामी जी का
ही स्पष्ट आद्दान है जिसके फलस्वरूप हम लोग यहाँ इकत्रित हुए हैं...
(2) (आधुनिक
भारत के निर्माता
'सुभाष
चन्द्र बोस'
प्रकाशन विभाग जनवरी
1980
पृष्ठ 135
जर्मनी से अगस्त
1942
को जारी किया गया प्रसारण आजाद हिन्द रेडियो जर्मनी द्वारा-लेखक डॉ. गिरजा
कुमार मुखर्जी)
साथियों!
मैं
आश्वासन देता हूँ कि जैसे ही उपर्युक्त कार्यक्रम लागू कर दिया जायेगा,
प्रशासनिक तन्त्र ठप्प हो जायेगा। इस सम्बन्ध में मैं आपको याद दिला दूँ कि
अहिंसक गुरिल्ला आन्दोलन में किसान सदैव ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि कई प्रान्तों में बिहार और मध्य प्रान्त में
किसान पहले ही अगुआ है। मुझे पूरा विश्वास है कि जिन स्वामी सहजानन्द
सरस्वती तथा अन्य किसान नेताओं ने फारवर्ड ब्लाक से मिलकर महात्मा गाँधी से
बहुत पहले ही संघर्श शुरू कर दिया था,
वे
अब आन्दोलन को सफल बनाने में नेतृत्व प्रदान करेंगे। अत: स्वामी सहजानन्द
और किसान आन्दोलन के अन्य नेताओं से मेरी अपील है कि वे आगे आयें और संघर्ष
की इस अन्तिम स्थिति में उसे नेतृत्व देने की भूमिका निभायें। हम आम जनता,
मजदूरों और किसानों के लिए स्वराज्य चाहते हैं। इसलिये मजदूरों तथा किसानों
का कर्तव्य है कि जब भारत का भविष्य निर्मित हो रहा है तो ऐसे अवसर पर वे
अगुआ होकर सामने आये। यह एक नैसर्गिक नियम है कि आजादी के लिये जो लोग लड़ते
हैं और उसे प्राप्त कर लेते हैं,
वे
ही सत्ता और जिम्मेदारी को अपने पास रखने के अधिकारी होते हैं।
हमारा
स्वामी हमारे किसान आन्दोलन का
'डायनुमा'
है। वह सब कुछ भूल कर सदियों से पीड़ित भारतीय जनता के
दिल और दिमाग में नई रोशनी भरने के लिये चौबीस घंटे चालू रहता है। चन्द
वर्षों में ही उसने इस किसान आन्दोलन को वहाँ पहुँचा दिया है जहाँ पहुँच कर
यह अपने विपक्षियों को अपना लोहा मानने को मजबूर कर रहा है। मेरा अपना
ख्याल है कि यह स्वामी भारत के पद-दलितों के लिये वही है जो रूस के दलितों
के लिए लेनिन था। (अखिल भारतीय किसान सभा-चतुर्थ
अधिवेशन
गया, 10
अप्रैल 1939 के स्वागत भाषण से)
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