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केदारनाथ अग्रवाल समग्र

 

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मार प्यार की थापें
गुलमेंहदी
हे मेरी तुम
जमुन जल तुम
जो शिलाएँ तोड़ते हैं
कहें केदार खरी - खरी
खुली आँखें - खुले डैने
कुहकी कोयल, खड़े पेड़ की देह
देश देश की कविता
(पाब्लो नेरुदा और अन्य कवियों की कविताओं का अनुवाद)

संचियता
केदारनाथ अग्रवाल
संपादक - डॉ. अशोक त्रिपाठी

 

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