अपने शिक्षक और हिंदी के प्रगतिशील आलोचक प्रकाश चंद्र गुप्त का एक प्रिय
वाक्य याद आ रहा है - अ बुक इज नायदर गुड नार बैड, इट इज आइदर वेल रिटेन आर इल
रिटेन अर्थात् कोई किताब अच्छी या बुरी नहीं होती है। यह अच्छी तरह या बुरी
तरह से लिखी हुई होती है। ओमर शहीद हामिद का पहला उपन्यास 'द प्रिजनर' एक बुरी
तरह से लिखी हुई किताब है। इसके बावजूद अगर आप पाकिस्तानी समाज को उसकी सारी
अंतर्निहित जटिलताओं के साथ समझना चाहते हैं तो यह एक बेहद जरूरी किताब है। एक
पेशेवर पुलिस अधिकारी हामिद कराची के अंडरवर्ल्ड, निचले पायदानों पर खड़े पुलिस
अधिकारियों, जिहादियों और राजनीतिज्ञों के रिश्तों को लेकर बुनी गई इस दिलचस्प
गाथा को आप एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो फिर छोड़ नहीं पाएँगे।
कहानी दो दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है। कांस्टेंटाइन डी सूजा और अकबर खान
कराची पुलिस में ए.एस.आई. के रूप में एक ही पुलिस थाने पर अपनी नौकरी शुरू
करते हैं। साथ-साथ काम करते हुए जो दोस्ती कायम होती है वह अंत तक कायम रहती
है। पुलिस के कटिंग एज पर होने के कारण दोनों का सीधा संपर्क अपराधियों और
उनकी दुनिया से पड़ता है। अंडरवर्ल्ड अपनी सारी भयावहता और गलाज़त के साथ यहाँ
मौजूद है। अपराध जगत राजनीति और व्यापार में तरक्की की सीढ़ियाँ निर्मित करता
है। यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ कोई किसी का सगा नहीं है, अपने फ़ायदे के लिए
किसी का गला काटा जा सकता है। मुख्यमंत्री नवाज चांडियो यूनाइटेड फ्रंट या
यू.एफ. का है जिसका नेता डान अमेरिका में आत्म निर्वासित है। उसके कार्यकर्ता
किसी अपराध सिंडीकेट की तरह काम करते हैं। शहर को कई वार्डों में विभक्त कर
दिया गया है और हर वार्ड की कमेटी अपनेर-अपने इलाके में पुलिस, राजनीति,
अपराध, व्यापार, व्यभिचार - गरज यह कि हर गतिविधि पर नियंत्रण रखती है। थानों
में किसकी तैनाती होगी, कौन सा मुकदमा लिखा जाएगा और किस शिकायती को डाँट कर
भगा दिया जाएगा, यहाँ तक कि रिश्वत का रेट क्या होगा इसका फैसला भी यू. एफ. की
वार्ड कमेटी करती है। राजनैतिक कारणों से देश की सबसे मजबूत संस्था फौज यू.एफ.
के खिलाफ हो जाती है और कराची पुलिस के जरिए यू.एफ. को कुचलने का अभियान छेड़
देती है। कांस्टेंटाइन डी सूजा और अकबर खान इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं और
व्यक्तिगत दुश्मनियों का जोखिम मोल लेते हुए भी इसे सफल बनाने में मदद करते
हैं। तभी परिस्थितियाँ बदल जाती हैं और फ़ौजी तानाशाह को यू। एफ। के समर्थन की
जरूरत पड़ती है। इस बीच 9/11 हो चुका है और जिहादियों को जन्म देकर पालने
पोसने वाली फौज को उनसे लड़ने का नया रोल मिलता है। इसमें यू.एफ. उनके साथ है
और यू.एफ. का होम मिनिस्टर जिसे पकौड़ा के नाम से जाना जाता है, अहम किरदार बन
जाता है। एक अमेरिकी पत्रकार के अपहरण के इर्द-गिर्द घूमती कहानी पाकिस्तानी
प्रभुवर्गों की लंपटता, लालच और किसी भी तरह से सत्ता से चिपके रहने की
प्रवृत्ति से बखूबी अवगत कराती है। इसमें सफेद पोश दलाल हैं, रंडिया हैं,
लोकतंत्र को ठेंगे पर रखने वाले फ़ौजी हैं, खूंखार अपराधी हैं, भ्रष्ट किंतु कई
बार जान पर खेल जाने वाले कांस्टेंटाइन डी सूजा और अकबर खान जैसे पुलिस
अधिकारी हैं तथा इन सबके साथ वह पीड़ित प्रताड़ित जनता है जिसका साबका रोज इस
तंत्र से पड़ता है और जिसके लिए मुक्ति की कोई राह नहीं है।
हामिद खुद कराची सी.आई.डी. के प्रमुख अधिकारी रहे हैं और उनका इन साइडर विवरण
पहचान के संकट से जूझ रहे पाकिस्तानी समाज को समझने में मदद करेगा। उनके पिता
शाहिद हामिद कराची इलेक्ट्रिसिटी अथारिटी के प्रमुख थे और कहा जाता है कि
एम.क्यू.एम. को नाराज करने के कारण उनकी हत्या हुई थी। उनके हत्यारे शौलत
मिर्ज़ा को वर्षों बाद फाँसी हो सकी। शौलत एम.क्यू.एम. का सक्रिय कार्यकर्ता था
और मरने के पहले जेल में दिए गए एक वीडियो इंटरव्यू में उसने स्वीकार किया था
कि वह एम.क्यू.एम. के टार्गेट किलर के तौर पर सालों साल काम करता रहा था और
शाहिद की हत्या भी उसने पार्टी के एक बड़े नेता के कहने पर ही की थी। हामिद को
पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर पुलिस में डिप्टी एस.पी. की नौकरी
मिली और पिछले कुछ वर्षों तक छुट्टी पर रहकर उन्होंने दो उपन्यास लिखे। दोनों
कराची के अंडरवर्ल्ड पर हैं और दोनों को ही हाथो हाथ लिया गया। हाल ही में वे
वापस नौकरी पर लौटे हैं।