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व्याख्यान

धर्म: साधना

स्वामी विवेकानंद


दूराग्रही कई प्रकार के होते हैं। कुछ लोग शराब पीने के कट्टर विरोधी होते हैं, तो कोई सिगरेट पीने के। कुछ लोग सोचते हैं कि यदि मनुष्य सिगार पीना छोड़ दें,तो संसार में फिर से सतयुग लौट आएगा। यह दुराग्रह बहुधा स्त्रियों में देखा जाता है। एक दिन यहाँ इस कक्षा में एक युवती उपस्थित थी। वह शिकागो की उन महिलाओं में से एक थी, जिन्‍होंने मिलकर एक संस्‍था बनायी है, जहाँ वे मजदूरों के लिए व्‍यायाम और संगीत का प्रबंध करती हैं। वह युवती एक दिन संसार में प्रचलित बुराइयों की चर्चा कर रही थी। उसने कहा कि मैं उन्‍हें दूर करने का उपाय जानती हूँ। मैंने पूछा, "तुम क्‍या जानती हो?" उसने उत्तर दिया, "आपने 'हुल हाउस' (Hull House) देखा है?" उसकी राय में यह 'हुल हाउस' संसार की सभी बुराइयों को दूर करने का एकमात्र उपाय है। उसका यह अंधविश्वास बढ़ता ही जाएगा। मुझे उसके लिए दु:ख है। भारत में कुछ दूराग्रही हैं, जो सोचते हैं कि विधवा-विवाह प्रचलित हो जाने से समस्‍त बुराइयाँ दूर हो जाएंगी। यह दुराग्रह है, हठधर्म है। जब मैं छोटा था, तो सोचता था कि दुराग्रह से कार्य में बड़ी प्रेरणा मिलती है, पर ज्‍यों ज्‍यों मैं वयस्‍क होता जा रहा हूँ, मुझे अनुभव होता है कि बात ऐसी नहीं है।

एक ऐसी स्‍त्री हो सकती है, जो चोरी करती हो और किसी दूसरे की थैली लेकर चंपत होने में न हिचकती हो; पर शायद वह सिगरेट नहीं पीती। वह सिगरेट की एक कट्टर विरोधिनी हो जाती है और किसीको सिगरेट पीते देखकर केवल इसी कारण से उसकी तीव्र निंदा करने लगती है। इसी प्रकार एक मनुष्‍य दूसरों को ठगता फिरता है; उस पर किसी का विश्‍वास नहीं; कोई स्‍त्री उसके साथ सुरक्षित नहीं रह सकती। पर शायद वह दुष्‍ट शराब नहीं पीता; और इसलिए शराब पीनेवालों में वह कुछ भी अच्‍छाई नहीं देखता। वह स्‍वयं जो इतनी दुष्‍टता करता है, उस पर उसकी दृष्टि नहीं जाती। यही मनुष्‍यों की स्‍वाभाविक स्‍वार्थपरता और एकांगीपन है।

तुम्‍हें यह भी याद रखना चाहिए कि संसार का शासनकर्ता ईश्‍वर है और उसने संसार को हमारी दया पर नहीं छोड दिया है। वही इसका शासक और पालनकर्ता है, और इन शराब, सिगार एवं नानाविध विवाह संबंधी दुराग्रहियों के बावजूद भी यह चलता रहेगा। यदि ये लोग मर जाएं, तो भी संसार उसी भाँति चलता रहेगा।

क्‍या तुम्‍हें अपने इतिहास की वह बात याद नहीं है कि किस प्रकार यहाँ 'में फ़्लावर' (May flower) वाले लोगों का आगमन हो, जो अपने को शुद्धाचारवादी (Puritans) कहते थे। वे थे तो बहुत शुद्ध और पवित्र, परंतु बाद में वे ही अन्‍य लोगों पर अत्‍याचार करने लगे। मानव जाति के इतिहास में सदैव ऐसा ही होता रहा है। जो लोग दूसरों के अत्‍याचार से भागकर आते हैं, वे भी मौका पाते ही दूसरों पर अत्‍याचार करने लगते हैं।

सौ में नब्‍बे दुराग्रहियों का या तो यकृत खराब होता है, या वे मंदाग्नि अथवा किसी अन्‍य रोग से पीडि़त रहते हैं। धीरे-धीरे चिकित्‍सक लोगों को भी ज्ञात हो जाएगा कि दुराग्रह एक प्रकार का रोग है। मैंने ऐसा बहुत देखा है। परमात्‍मा मुझे ऐसे रोग से बचाये!

मेरा अनुभव यह है कि दुराग्रहपूर्ण सभी सुधारों से अलग रहना ही बुद्धिमानी है। संसार धीरे-धीरे चलता ही जा रहा है, उसे उसी प्रकार चलने दो। तुम्‍हें इतनी जल्‍दी क्‍यों पड़ी है? अच्‍छी नींद सोओ और स्‍नायुओं को स्‍वस्‍थ मज़बूत रखो; उचित प्रकार का भोजन करो और संसार के साथ सहानुभूति रखो। दुराग्रही केवल घृणा ही अर्जन करते हैं। क्‍या तुम यह कहना चाहते हो कि ये मादक द्रव्‍य-निषेध के दुराग्रही बेचारे शराब पीनेवालों से प्रेम करते हैं? दुराग्रही का दुराग्रह केवल इसीलिए होता है कि वह बदले में स्‍वयं के लिए कुछ पाना चाहता है। ज्‍यों ही संघर्ष समाप्‍त हुआ, वह लूटने को आगे बढ़ जाता है। जब तुम दुराग्रहियों का साथ छोड़ोगे, तभी तुम जानोगे कि सच्‍चा प्रेम और सच्‍ची सहानुभूति किस प्रकार की जाती है। तुममें सहानुभूति और प्रेम जितना ही बढ़ेगा,तुम इन बेचारों को उतना ही कम दोष दोगे बल्कि उनके दोषों से तुम्‍हारी सहानुभूति हो जाएगी। तब तुम शराबी से सहानुभूति कर सकोगे और समझ सकोगे कि वह भी तुम्‍हारी भाँति एक मनुष्‍य है। तब तुम उन परिस्थितियों को समझ सकोगे, जो उसे पतन की ओर खींच रही हैं, और अनुभव करोगे कि यदि तुम उसके स्‍थान में होते, तो कदाचित् आत्‍महत्‍या कर लेते। मुझे एक स्‍त्री की बात याद आती है, जिसका पति बड़ा शराबी था। उसने अपने पति की इस आदत के बारे में मुझसे शिकायत की। मैंने प्रत्‍युत्‍तर में कहा, "श्रीमती जी, यदि आपकी तरह दो करोड़ पत्नियाँ हों, तब तो सारे के सारे पति शराबी बन जाए।" मुझे यह पक्‍का विश्‍वास हो गया है कि शराबियों में से अधिकांश अपना पत्नियों द्वारा ही शराबी बनाए गए हैं। मेरा काम है सत्‍य बात कहना, किसी की खुशामद करना नहीं। ये उदंड स्त्रियाँ जो न सहन करना जानती हैं, न क्षमा करना, जो अपनी स्वतंत्रता का यह अर्थ लगाती हैं कि पुरुष उनके चरणों में लोटते रहें, और जो पतियों से अपनी इच्‍छा के प्रतिकूल कोई बात सुनते ही झगड़ा करने और चिल्‍लाने लगती हैं-ऐसी स्त्रियाँ संसार के लिए अभिशापस्‍वरूप हैं, और आश्‍चर्य की बात तो यह है कि इनके कारण संसार के आधे आदमी आत्‍महत्‍या क्‍यों नहीं कर लेते। इस प्रकार की बातें नहीं होनी चाहिए। जीवन इतनी सरल वस्‍तु नहीं है, जैसा कि लोग समझते हैं। वह एक बड़ा गंभीर व्‍यापार है!

मनुष्‍य में केवल विश्‍वास ही नहीं, वरन् युक्तिसंगत विश्‍वास होना चाहिए। यदि मनुष्‍य को सभी कुछ मानने ओर करने पर बाध्‍य किया जाए,तो उसे पागल हो जाना पड़ेगा। एक बार किसी स्‍त्री ने मुझे विश्‍वास करना चाहिए। उसमें लिखा था कि आत्‍मा नामक कोई चीज़ नहीं है, किंतु स्‍वर्ग में देवी-देवता हैं ओर हममें से प्रत्‍येक के सिर में से ज्‍योति की एक किरण निकलकर स्‍वर्ग तक पहुँचती है। पता नहीं कि लेखिका को ये बातें कहाँ से ज्ञात हुई। उस स्‍त्री की धारणा थी कि उसे दिव्‍य प्रेरणा मिली है, ओर चाहती थी कि मैं भी इस पर विश्‍वास करूँ; और चूँ कि मैंने ऐसा करने से इंकार कर दिया, उसने कहा, "तुम निश्‍चयही बड़े ही ख़राब आदमी हो, तुम्‍हारे लिए कोई आशा नहीं!" यही दुराग्रह है।


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