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स्वामी विवेकानंद के लेख

स्वामी विवेकानंद

अनुक्रम छ: संस्कृत आदर्श-वाक्य् पीछे     आगे

1. अजरामरवत् प्राज्ञ: विद्याम्

अर्थ च चिन्‍तेयेत् ।

ग्रहीत इव केशेषु मृत्‍युना

धर्म आचरेत्।।

विद्या और विभव की खोज में अपने को जरा-मरण से मुक्‍त समझकर आचरण करो और धर्माचरण में अपनी शिखा काल के हाथों में समझकर तत्‍पर रहो।

2. एक एव सुह्द्धर्म

निधनेप्‍यनुयाति य:।

धर्म ही एकमात्र सखा है, जो मृत्‍यु के बाद भी साथ जाता है ।

शेष सब मृत्‍यु के साथ समाप्‍त हो जाता है ।

विवेकानंन्‍द।

3. एक अनंत परम पावन प्रभु

गिरा-ज्ञान-गो-गुणातीत प्रभु

तुमको मेरा नमस्‍कार है।

स्‍वामी विवेकानन्‍द।

4.समता सर्वभूतेषु

एतन्‍मुक्‍तस्‍य लक्षणम्।।

जीव मात्र में समभाव-यही मुक्‍तात्‍मा का लक्षण है ।

विवेकानन्‍द।

5. त्‍वमेकं शरण्‍यम् त्‍वमेकं वरेण्‍यम् ...

इस विश्व की एकमात्र निधि तुम ही हो ।

विवेकानन्‍द।

6. त्‍वमेव मांता च पिता त्‍वमेव......

तुम्‍हीं पिता हो, तुम्‍हीं स्‍वामी हो;

तुम्‍हीं माता, तुम्‍हीं पति और तुम्‍हीं प्रेयसी हो।

स्‍वामी विवेकानन्‍द।


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