1. अजरामरवत् प्राज्ञ: विद्याम्
अर्थ च चिन्तेयेत् ।
ग्रहीत इव केशेषु मृत्युना
धर्म आचरेत्।।
विद्या और विभव की खोज में अपने को जरा-मरण से मुक्त समझकर आचरण करो और
धर्माचरण में अपनी शिखा काल के हाथों में समझकर तत्पर रहो।
2. एक एव सुह्द्धर्म
निधनेप्यनुयाति य:।
धर्म ही एकमात्र सखा है, जो मृत्यु के बाद भी साथ जाता है ।
शेष सब मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है ।
विवेकानंन्द।
3. एक अनंत परम पावन प्रभु
गिरा-ज्ञान-गो-गुणातीत प्रभु
तुमको मेरा नमस्कार है।
स्वामी विवेकानन्द।
4.समता सर्वभूतेषु
एतन्मुक्तस्य लक्षणम्।।
जीव मात्र में समभाव-यही मुक्तात्मा का लक्षण है ।
विवेकानन्द।
5. त्वमेकं शरण्यम् त्वमेकं वरेण्यम् ...
इस विश्व की एकमात्र निधि तुम ही हो ।
विवेकानन्द।
6. त्वमेव मांता च पिता त्वमेव......
तुम्हीं पिता हो, तुम्हीं स्वामी हो;
तुम्हीं माता, तुम्हीं पति और तुम्हीं प्रेयसी हो।
स्वामी विवेकानन्द।