दूसरों से अपने रिश्तों को पहचानें
आप कोई अलग-थलग इकाई नहीं हैं, बल्कि ब्रह्मांड का एक ऐसा अंश हैं जो अद्वितीय है और जिसका कोई स्थानापन्न नहीं है। आप मानवता की अबूझ पहेली का एक आवश्यक अंग हैं। हममें से प्रत्येक एक विस्तृत, जटिल तथा पूर्णत: सुव्यवस्थित मानव समुदाय का हिस्सा है। लेकिन मानवता के इस संजाल में आपकी जगह कहाँ है? अपने अस्तित्व के लिए आप किसके प्रति कृतज्ञ हैं?
अन्य व्यक्तियों से अपने रिश्तों की खोज करें और इन रिश्तों की सही समझ बनाएँ। ब्रह्मांडीय व्यवस्था के तहत हम अपने को उचित ढंग से कैसे रख सकते हैं? एक-दूसरे से अपने प्राकृतिक संबंधों को पहचान कर और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर। प्राकृतिक स्तर पर, हमारे कर्तव्य नि:सृत होते हैं इस प्रकार के मूल संबंधों से, जैसे हमारा परिवार, हमारे पड़ोसी, हमारा कार्यस्थल, हमारा देश और फिर संपूर्ण विश्व। अत: माता या पिता, संतान, पड़ोसी, नागरिक, नेता आदि के रूप में अपनी भूमिकाओं पर विचार करने की आदत डालें। जब आप यह जान जाएँगे कि आप कौन हैं और किनके साथ जुड़े हुए हैं, तो आपके सामने यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि आपको करना क्या है।
उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति आपका पिता है, तो इससे आप पर उसके कुछ भावनात्मक और व्यावहारिक दावे पैदा हो जाते हैं। वह व्यक्ति आपका पिता है-यह तथ्य आप दोनों के बीच एक मूलभूत, टिकाऊ जुड़ाव का कारण बनता है। यह आपका प्राकृतिक कर्तव्य हो जाता है कि आप उसकी देखभाल करें, उसकी सलाहों पर ध्यान दें, धीरज के साथ उसके विचार सुनें और उसके द्वारा किए जा रहे मार्गदर्शन का आदर करें।
अब मान लीजिए कि वे अच्छे पिता नहीं हैं। हो सकता है कि वे नासमझ हों, अशिक्षित या अपरिष्कृत हों अथवा उनके विचार आपके विचारों से बिलकुल भिन्न हों। ऐसी स्थिति में सोचने की बात यह है कि प्रकृति हर एक को एक आदर्श पिता देती है या सिर्फ एक पिता देती है? जहाँ तक पुत्र या पुत्री के रूप में आपके मूलभूत कर्तव्य का सवाल है, आपके पिता का चरित्र कैसा है, उनका व्यक्तित्व कैसा है या उनकी आदतें कैसी हैं, ये सब गौण बातें हैं। सृष्टि की व्यवस्था हमारी रुचियों को ध्यान में रख कर व्यक्तियों या परिस्थितियों की रचना नहीं करती। आपके पिता आपकी पसंद पर खरे उतरते हों या नहीं, वे आखिरकार आपके पिता हैं और आपको अपने सभी पैतृक दायित्वों की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए।
फर्ज कीजिए कि आपके प्रति आपके भाई या बहन का व्यवहार अच्छा नहीं है। इससे क्या फर्क पड़ता है? इसके बावजूद अपने भाई या बहन के प्रति अपने मूलभूत कर्तव्य को पहचानना और उसका निर्वाह करना आपकी नैतिक जिम्मेदारी है। आपका भाई क्या करता है या आपकी बहन क्या करती है, इस पर अपना ध्यान केंद्रित न करें-अपने उच्चतर लक्ष्य पर दृढ़ रहें। दूसरे जैसा चाहें, उन्हें वैसा व्यवहार करने दें-यह वैसे भी आपके नियंत्रण के बाहर की चीज है और इसलिए आपको उससे मतलब नहीं होना चाहिए। इस बात को समझें कि प्रकृति कुल मिला कर एक तर्कसंगत व्यवस्था है, लेकिन प्रकृति की हर चीज तर्कसंगत नहीं है।
विश्व नागरिक बनें
कोई अपना उच्चतम कल्याण तभी कर सकता है, जब वह दूसरों के कल्याण के लिए भी काम करे। संकीर्ण आत्म-हित पर आधारित जीवन को किसी भी सम्मानित पैमाने से अच्छा नहीं ठहराया जा सकता। हमारे भीतर जो सर्वश्रेष्ठ है, उसका संधान करने का अर्थ है दूसरे मनुष्यों के कल्याण की सक्रिय चिंता। हमारा मानवीय अनुबंध सिर्फ उन थोड़े-से व्यक्तियों से नहीं है जिनसे हमारे मामले तात्कालिक रूप से जुड़े हुए हैं और न ही संपन्न, सुशिक्षित या महत्वपूर्ण व्यक्तियों से- बल्कि दुनिया के सभी व्यक्तियों से, क्योंकि वे हमारे भाई-बहन हैं।
आप अपने आपको विश्व भरत में फैले हुए समुदाय का नागरिक मानें और इस मान्यता के अनुसार ही आचरण करें।
खुशी कहाँ से आती है
सभी लोग चाहते हैं कि उनका जीवन सुखमय हो। लेकिन बहुत-से लोग सुखमय जीवन को नहीं, उसके साधनों-जैसे धन और हैसियत-को ही अपना ध्येय मान लेते हैं। जो चीजें अच्छे जीवन का साधन मात्र हैं, उन्हें ही साध्य मान लेने से आदमी सुख से दूर होता जाता है। वास्तविक मूल्य तो उस शीलयुक्त कार्यशीलता का है, जिससे जीवन में खुशी आती है-बाह्य साधनों से नहीं, जो खुशी पैदा करते हुए दिखाई पड़ सकते हैं।
बुद्धिमान होना और बुद्धिमान दिखना
दूसरे लोगों को प्रसन्न करने की कोशिश में हम पाते हैं कि हम एक ऐसे इलाके की ओर जा रहे हैं जो हमारे प्रभाव क्षेत्र के बाहर है। जब हम ऐसा करते हैं, तब हम अपने जीवन के उद्देश्य पर अपनी पकड़ खो बैठते हैं।
आपकी संतुष्टि के लिए इतना ही काफी है कि आप बुद्धिमता के प्रेमी हैं, सत्य के अन्वेषी हैं। आपको चाहिए कि जो सारगर्भित और पाने योग्य है, उसकी ओर बार-बार लौटें।
दूसरों को यह जताने की कोशिश न करें कि आप बुद्धिमान हैं।
अगर आप बुद्धिमान जीवन जीना चाहते हैं, तो अपनी शर्तों पर और अपनी नजरों में जिएँ।
दूसरे आपको बुद्धिमान नहीं बना सकते
बुद्धिमत्ता की आपकी लगातार तलाश का नतीजा यह होता है कि आप बुद्धिमत्ता से लगातार वंचित होते जाते हैं। नए-नए टॉनिकों और शिक्षकों का मोह छोड़िए। नवीनतम लोकप्रिय संत या पुस्तक या आहार या विश्वास आपको समृद्ध जीवन की ओर नहीं ले जा सकते।
अपने लिए अपने को पर्याप्त बनाने का अभ्यास करें। ऐसा मरीज न बनें जो इलाज के लिए हमेशा दूसरों का मुँह जोहता है और जिसे कोई भी मूर्ख बना सकता है। अपनी आत्मा का डॉक्टर आप स्वयं बनें।
अपना दिमाग किसी और को न दें
अपना दिमाग किसी और को समर्पित न करें।
अगर कोई आपसे कहता है कि अपना शरीर किसी बूढ़े राहगीर को दे दो, तो स्वाभाविक रूप से आप गुस्से से भर जाएँगे।
फिर अपना मूल्यवान दिमाग किसी ऐसे व्यक्ति को देते हुए, जो आपको प्रभावित करना चाहता है, आपको शर्म नहीं आती? अपना दिमाग किसी ऐसे व्यक्ति को, जो आपकी भर्त्सना करे और मतिभ्रम का शिकार बना कर आपको उलट-पुलट दे, देने के पहले बार-बार सोचिए।
अगर आपने अपना दिमाग किसी और को दे दिया, तो आप वह कसौटी ही खो देंगे, जिसकी सहायता से हर आदमी तय करता है कि क्या ठीक है और क्या ठीक नहीं है।
दूसरों के विचार जरूर लें, पर कोई इतना बुद्धिमान नहीं है कि आप बिना सोचे-समझे उसकी कोई भी बात मान लें।
अपने को परिभाषित करें
आप क्या बनना चाहते हैं? आप ठीक-ठीक किस तरह का आदमी होना चाहते हैं? आपके व्यक्तिगत आदर्श क्या हैं? आप किनके प्रशंसक हैं? वे कौन-से विशेष गुण हैं जिन्हें आप अपनाना चाहते हैं?
अगर आप असाधारण व्यक्ति होना चाहते हैं, अगर आपकी कामना बुद्धिमान बनने की है, तो आपको स्पष्ट रूप से उस तरह के व्यक्ति की पहचान करनी होगी जैसा होने की आप कामना करते हैं।
अगर आपके पास कोई डायरी है, तो आप उसमें लिख डालें कि आप कैसा बनने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि समय-समय पर इस कसौटी पर नजर डाल कर वांछित दिशा में अपनी प्रगति का मूल्यांकन कर सकें।
चिंतन की स्वतंत्रता
परंपराओं पर संदेह करें। अपने चिंतन की स्वतंत्रता को बनाए रखें।
लोकप्रिय धारणाएँ और कार्यशैलियाँ हमेशा सर्वोत्तम नहीं होतीं। बहुत-से सामाजिक विश्वास बुद्धि की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। परंपरागत विचार प्रणाली अकसर गैर-रचनात्मक और अरुचिकर होती है। उसका काम यथास्थिति को बनाए रखना है।
दूसरी तरफ, नए विचार मूल्यवान ही हों-यह भी आवश्यक नहीं है। परंपराओं और विचारों का मूल्यांकन इस दृष्टि से करें कि उनसे जीवन कितना समृद्ध होता है।
बहुत-से लोग बड़ी गंभीरता से घोषणा करते हैं कि वे जो कुछ कह या कर रहे हैं, वह उनका अपना सिद्धांत है, जबकि सच्चाई कुछ और होती है। बहुत-से प्रचलित विचार इस तरह हमारे व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं कि हम उन्हें अपना कह कर पेश करने लगते हैं।
दिमाग घर की तरह होता है। जैसे घर को नियमित रूप से साफ करने की जरूरत होती है, वैसे ही दिमाग की नियमित सफाई भी आवश्यक है। इसके लिए वांछित है कि हम लगातार अपनी जाँच करते रहें।
दोस्त चुनने में सावधानी बरतें
जब आप दूसरों के संपर्क में आते हैं, तो दो में से एक बात ही हो सकती है : या तो आप उनकी तरह हो जाएँगे या आप उन्हें अपने ढंग का बना लेंगे। जैसे ठंडा कोयला जलते हुए कोयले के संपर्क में आता है, तो वह या तो उसे बुझा देगा या खुद जलने लगेगा। अत: व्यक्तिगत संपर्क बनाने में बहुत ही सावधानी से काम लें।
हममें से ज्यादातर व्यक्तियों के पास पर्याप्त रूप से विकसित दृढ़ता नहीं होती। इसलिए हम अपने साथियों को अपने उद्देश्य की ओर नहीं खींच पाते। अकसर होता यह है कि हम ही भीड़ के साथ बह जाते हैं। हमारे अपने आदर्श दागदार हो जाते हैं। हमारे संकल्प डिगने लगते हैं।
जब दोस्त और मिलने-जुलने वाले हल्की बातें करने लगते हैं, तब उसमें मजा लेने से अपने आपको रोकना मुश्किल हो जाता है। अगर हम बहुत सतर्क नही हैं, तो उनके द्वारा तुच्छ चर्चाएँ छेड़ देने पर हम प्रवाह में बह जाते हैं। बातचीत का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि उसकी बहुअर्थी व्यंजनाएँ, अस्वस्थ संकेत और द्वेषपूर्ण अभिप्राय इतनी तेजी के साथ हम पर छा जाते हैं कि बातचीत अस्वस्थ दिशा पकड़ सकती है, बातचीत में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को मटमैला कर सकती है। अत: जब तक बुद्धिमान भावनाएँ आपके भीतर दृढ़ता से स्थापित न हो जाएँ, जब तक आप अपने को बचाए रखने में पूरी तरह समर्थ न हो जाएँ, तब तक आपको अपने साथी चुनने में सतर्क रहना चाहिए और बातचीत का प्रवाह किस दिशा में जा रहा है, इस पर बराबर निगाह रखनी चाहिए।
शरीर की देखभाल
अपने शरीर की आवश्यकताओं का सम्मान करें। उसके स्वास्थ्य और कुशल-क्षेम की देखभाल के लिए पूरा प्रयास करें।
शरीर की जो भी मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, उनकी पूर्ति जरूर करें- स्वास्थ्यप्रद भोजन और पेयों का सेवन करें, शालीन वस्त्र पहलें और आरामदेह घर में रहें।
परंतु किसी भी स्थिति में शरीर का उपयोग प्रदर्शन या विलासिता के लिए न करें।
कोई आपको आहत नहीं कर सकता
दूसरों में यह शक्ति नहीं है कि वे आपको आहत कर सकें। अगर कोई आपके साथ जोर-जोर से गाली-गुफ्तार करता है, आपको अपमानित करता है या आप पर हमला कर बैठता है, तो यह फैसला करना आपके अपने हाथ में है कि जो हो रहा है, वह वास्तव में आपके लिए अपमानपूर्ण है या नहीं। अगर कोई आपको चिढ़ा रहा है और आपको बुरा लग रहा है, तो जरूरी नहीं कि आप भी उत्तेजित हो जाएँ। यह आपकी अपनी प्रतिक्रिया है, जिससे आप चाहें तो मुक्त रह सकते हैं। अत: जब ऐसा लगे कि कोई आपको उत्तेजित कर रहा है, तो याद रखें कि उसके व्यवहार को इस रूप में देखने के कारण ही आप उत्तेजित हो रहे हैं।
किसी भी बात पर तुरंत प्रतिक्रिया करने से बचने की कोशिश करें। अपने को स्थिति से वापस खींच लें। व्यापक दृष्टि अपनाएँ। अपने को प्रकृतिस्थ करें।
आलोचना के लिए तैयार रहें
जो उच्चतर जीवन की कामना करते हैं, शाश्वत सिद्धांतों का पालन करते हुए जीने का प्रयास करते हैं, उन्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि लोग उन पर हँस सकते हैं और उनकी निंदा भी कर सकते हैं।
जिन्होंने सामाजिक मान्यता और ऐशो-आराम पाने की कोशिश में अपने निजी स्तर को क्रमश: गिराया है, ऐसे बहुत-से लोगों को उनसे गहरी जलन होती है जो विचारशील स्वभाव के हैं और अपने आदर्शों के साथ समझौता करने से इनकार कर देते हैं। इन पतित आत्माओं की प्रतिक्रिया में अपना जीवन कभी न जिएँ। उनके प्रति करुणा की दृष्टि अपनाएँ और जिस राह को आप ठीक समझते हैं, उस पर अडिग रहें।
अगर आप अपने नैतिक आदर्शों पर दृढ़ता और विनम्रता से चलते रहे, तो वही लोग जो आज आपकी हँसी उड़ा रहे हैं, कल आपका सम्मान करने लगेंगे।
प्रसन्नता के स्रोत आपके भीतर हैं
स्वतंत्रता ही जीवन में एकमात्र उचित लक्ष्य है। जो चीजें हमारे नियंत्रण के बाहर हैं, उनकी उपेक्षा करके ही इसे हासिल किया जा सकता है। हमारा हृदय तब तक भारहीन नहीं हो सकता, जब तक हमारा दिमाग डर और महत्वाकांक्षा का तप्त कड़ाह बना हुआ है।
आपकी प्रसन्नता तीन चीजों पर निर्भर है : आपकी अपनी इच्छाशक्ति, जिन घटनाओं में आप मुब्तिला हैं उनके बारे में आपके विचार और आपका आचरण यानी आप अपने विचारों का क्या करते हैं।
असली प्रसन्नता हमेशा बाह्य घटनाओं से निरपेक्ष होती है। अत: बाह्य घटनाओं से उदासीन रहने का अभ्यास खूब सावधानी से करें। आप अपनी प्रसन्नता को अपने भीतर ही पा सकते हैं।
हम कितनी आसानी से पद, डिग्री, सम्मान, भड़कीली वस्तुओं, महँगे वस्त्र आदि की चकाचौंध में आ जाते हैं और ठगे जाते हैं। यह मानने की भूल कभी न करें कि प्रसिद्ध और सार्वजनिक व्यक्ति, राजनेता, पैसेवाले, बुद्धिजीवी या कलाकार लोग सुखी ही होते हैं। ऐसा मानना जो सतह पर दिखाई देता है, उसकी धौंस में आ कर अपनी राह खो देना और अपने बारे में संदेहशील हो जाना है।
याद रखें : अच्छाई का वास्तविक सार सिर्फ उन चीजों में है जो आपके अपने वश में हैं। अगर आप यह याद रखते हैं, तो आप ईर्ष्या या असहाय होने के बोध से, अपनी और अपनी उपलब्धियों की तुलना दूसरों से करके दुखी होने से बचे रहेंगे।
आपका जो सर्वोत्तम रूप है-वही आपके वश में है; उसे छोड़ कर कुछ और बनने की इच्छा का तुरंत परित्याग करें।
घटनाओं पर न जाएँ
अच्छी घटना क्या है? बुरी घटना क्या है? कोई भी घटना न अच्छी होती है न बुरी। सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि हम किसी घटना का उपयोग क्या करते हैं।
अच्छा आदमी कौन है? अच्छा आदमी वह है, जो प्रत्येक अवसर पर यह सवाल पूछने की आदत बनाए हुए है कि 'इस समय करने को उचित काम क्या है?' और इसके माध्यम से आतंरिक प्रशांति अर्जित करता है।
मृत्यु से ज्यादा उसका डर सताता है
वस्तुएँ अपने आप में हमें आघात नहीं पहुँचातीं, न ही बाधा बनती हैं। दूसरे लोग भी ऐसा नहीं करते। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इन चीजों को कैसे देखते हैं। यह हमारा नजरिया और प्रतिक्रिया है, जिससे हमें मुश्किल होती है।
मृत्यु भी अपने आप में कोई बड़ा मामला नहीं है। यह मृत्यु के बारे में हमारी अपनी धारणा है- हमारा यह विचार कि वह भयावह चीज है, जिससे हमें डर लगता है। मृत्यु के बारे में-और दूसरी सभी चीजों के बारे में - अपनी धारणाओं को परखें। क्या वे धारणाएँ सत्य की कसौटी पर खरी उतरती हैं? क्या उनसे कोई भला हो रहा है?
हम अपनी बाह्य परिस्थितियों का चुनाव नहीं कर सकते। लेकिन हम हमेशा यह चुन सकते हैं कि उन पर हमारी प्रतिक्रिया क्या होगी।
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