गणपतराव दर्याजी थोरात :
हमें किसको सत्य आचरण करनेवाला कहना चाहिए?
जोतीराव फुले :
सत्य आचरण करने वाले के संबंध में कुछ नियम दे रहा हूँ, वे निम्न प्रकार हैं :
1. हम सभी के निर्माणकर्ता ने सभी जीव प्राणियों को पैदा किया है। लेकिन उनमें नर और नारी दोनों जन्म से ही स्वतंत्र हैं। वे दोनों सभी अधिकारों का उपभोग करने
के योग्य बनाए गए हैं, यह जो लोग स्वीकार करतें हैं, उन्हीं को सत्य आचरण करनेवाला कहना चाहिए।
2. नारी हो या पुरुष, वह अपने निर्माणकर्ता के इस विशाल आकाश में स्थित अनंत सूर्यमंडलों को और उनके ग्रहों-उपग्रहों को या किसी विचित्र तारे को या किसी
धातु-पत्थर की मूर्ति को निर्माता के अलावा न पूजता हो तो, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
3. हम सभी के निर्माणकर्ता द्वारा उत्पन्न किए हुए सभी चीजों का पूरी तरह से सभी प्राणियों को उपभोग करने की अनुमति न देते हुए निर्माता के नाम से बेमतलब
अर्पण करके उसका खोखला नाम स्मरण जो लोग नहीं करते, उनको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
4. जो हम सभी के निर्माणकर्ता द्वारा पैदा किए हुए सभी प्राणियों को सभी चीजों का मनचाहे उपभोग करके उनको निर्माता का आभार मानकर उसका गौरव करने देता है, उसको
सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
5. विश्वकर्ता द्वारा निर्मित सभी प्राणियों के लिए जो किसी भी प्रकार की बेमतलब की परेशानी नहीं पैदा करता, उसको सत्य आचरण करने वाला जानना चाहिए।
6. हम सभी के निर्माता ने सभी नारी-पुरुषों को सभी मानवी अधिकारों का मुख्य हकदार बनाया है। उनमें किसी व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का समूह किसी व्यक्ति पर
जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता और उस तरह जोर-जबर्दस्ती न करनेवाले व्यक्ति को ही सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
7. हम सभी के निर्माता ने सभी मानव नारी-पुरुषों को धार्मिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता दी है, उससे किसी दूसरे व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाई
जा सकती, यह मानकर जो कोई अपनी तरह दूसरे व्यक्ति के हकों को जानकर दूसरों को सताता नहीं, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
8. हम सभी के निर्माता ने प्राणियों को पैदा किया है। उनमें हर एक नारी मात्र एक पुरुष से अपना ब्याह करके बाकी पुरुषों को भाई माने, ऐसे ही हर एक पुरुष एक
नारी को अपनी बीवी बनाकर बाकी नारियों को अपनी बहनें माने। इस तरह जो नारी या पुरुष एक-दूसरे के साथ बड़ी खुशी से भाई-बहन की तरह आचरण करता है, उसको सत्य आचरण
करनेवाला जानना चाहिए।
9. हम सभी के निर्माता ने सभी नारियों को या पुरुषों को सभी मानवी अधिकारों के बारे में जो चाहे वे विचार या अपने मनचाहे मतों को अभिव्यक्त करने के लिए, लिखने
के लिए और प्रसिद्ध करने के लिए स्वतंत्रता दी है। लेकिन इन विचारों से और इन मतों से किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होनी चाहिए, इसकी खबर जो
रखता है, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
10. हम सभी के निर्माता की व्यवस्था जो सभी नारी-पुरुष दूसरों के धर्म के बारे में मतभिन्नता की वजह से या राजनीतिक कारणों से उनको किसी भी तरह नीच नहीं
मानते और न उनका शोषण करते हैं, उनको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
11. हम सभी के निर्माता ने सभी नारी-पुरुषों को धर्म के संबंध में स्थानिक या क्षेत्रीय अधिकारों के पद उनकी योग्यता के अनुसार और सामर्थ्य के अनुसार मिलना
चाहिए, इसके लिए उनको समर्थ बनाया है, ऐसी बातों को जो लोग स्वीकार करते हैं, उनको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
12. हम सभी के निर्माता के नियमों के अनुसार सभी मानव नारी-पुरुषों में धर्म, स्थानीय और क्षेत्रीयता-संबंधी हर मनुष्य की स्वतंत्रता, संपत्ति, संरक्षण और
उसके जुल्म से बचाव करने के बारे में जो लोग कठिनाइयाँ पैदा नहीं करते, उनको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
13. नारी या पुरुष जो लोग अपने माता-पिता से बुढ़ापे में सलाह-मंत्रणा करके अन्य बुजुर्गों को सम्मान देनेवालों को बड़ा आदर देते हैं, उनको सत्य आचरण
करनेवाला जानना चाहिए।
14. नारी या पुरुष, जो हकीम की आज्ञा के बिना अफीम, भाँग, मद्य आदि नशीले पदार्थों का सेवन करके हर तरह से अन्याय करने में नहीं लगा होता या नशीले पदार्थ सेवान
करनेवाले का आसरा नहीं देता, उनको सत्य आचरण करेनवाला जानना चाहिए।
15. खटमल, जूँ, पिस्सू आदि जंतु, बिच्छू, साँप, बाघ, सिंह, लकड़बग्घे आदि जानवरों और उसी तरह लोभी मानव, दूसरे मानव प्राणी की हत्या करेनवाले या आत्महत्या
करनेवालों को छोड़कर जो नारी या पुरुष दूसरे मानव प्राणियों की हत्या नहीं करता या हत्या करनेवाले की सहायता नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
16. नारी या पुरुष, जो अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान करने के लिए झूठ नहीं बोलता या झूठ बोलनेवाले की मदद नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
17. नारी या पुरुष, जो व्यभिचार नहीं करता या व्यभिचार करने वालों का सम्मान नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
18. नारी या पुरुष, जो किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करता या चोरों की मदद नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
19. नारी या पुरुष, जो घृणा से दूसरों के मकान को या उनके सामान को जलाता नहीं या आग लगानेवालों से कोई संबंध नहीं रखता, उसको सत्य आचरण करेनवाला जानना चाहिए।
20. नारी या पुरुष, जो स्वयं के स्वार्थ के लिए न्याय से राज करनेवाली रियासतों पर या राज्य पर या सारी प्रजा द्वारा मुखिया बनाए हुए प्रतिनिधि के विरोध में
विद्रोह करके लाखों परिवारों को बर्बाद नहीं करता या विद्रोह करनेवालों को पनाह नहीं देता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
21. नारी या पुरुष जो 'सारी दुनिया के कल्याण के लिए यह धर्म पुस्तक बनाई गई है कहकर बड़ी बकवास करता है, किंतु उस धर्म पुस्तक को अपनी बगल में दबाकर दूसरे
लोगों को दिखाता तक नहीं, ऐसे दुष्ट बड़ाईखोरों से जो दूर रहते हैं और उन पर भरोसा नहीं करते, उसको सत्य आचरण करने-वाला जानना चाहिए।
22. नारी या पुरुष, जो अपने परिवारों के साथ, अपने भाई-बहनों को, अपने रिश्तेदारों को और अपने दोस्तों को बड़े घमंड से खानदानी श्रेष्ठ मानकर स्वयं को पवित्र
नहीं मानता और सभी मानव प्राणियों को खानदानी नफरत के जरिये अपवित्र मानकर उनको नीच नहीं मानता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
23. नारी या पुरुष, जो प्राचीनकाल में घृणा से लिखे गए ग्रंथों की शिक्षा के आधार पर कुछ मानव समाजों को खानदानी गुलाम नहीं मानता या उनको दास माननेवालों की
परवाह नहीं करता, उसको सत्यवर्तन करनेवाला जानना चाहिए।
24. नारी या पुरुष, जो अपने लोगों की प्रभुता कायम रखने के लिए स्कूल में पढ़ाते समय अन्य लोगों के बच्चों से परायेपन का व्यवहार नहीं करता या स्कूल में
पढ़ाते समय परायेपन का व्यवहार करनेवालों का निषेध करता है, उसको सत्यवर्तन करनेवाला जानना चाहिए।
25. नारी या पुरुष, जो न्यायमूर्ति के पद पर विराजमान होने के बाद अन्यायी लोगों का, उनको जुर्म के अनुसार सजा देने में कोई कसर बाकी नहीं रखता या अन्याय
करनेवालों का निषेध करता है, उसको सत्यवर्तन करनेवाला जानना चाहिए।
26. नारी या पुरुष जो खेती का काम करके या अन्य प्रकार की कारीगरी करके पेट पालनेवालों को श्रेष्ठ मानता है, और किसानों की सहायता करनेवालों का आदर-सत्कार
करता है, उसको सत्य-आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
27. नारी या पुरुष, जो चमार के घर का ही क्यों न हो, बेगारी का काम करके अपना पेट पालनेवालों को नीच नहीं मानता बल्कि उस काम में मदद करने वालों की प्रशंसा
करता है, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
28. नारी या पुरुष, जो स्वयं कोई व्यवसाय किए बगैर ही बेमतलब धार्मिकता का दिखावा करता है और अज्ञानी लोगों को नवग्रहों का डर बताकर उनको लूट करके नहीं खाता
या उसके बारे में किताबों की रचना करके अपना पेट नहीं पालता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
29. नारी या पुरुष, जो श्रद्धावान मूर्ख को फुसलाकर खाने के लिए ब्रह्मर्षि का स्वाँग रचाकर उनको राख-धूप नहीं देता या वैसे काम के लिए किसी भी प्रकार की मदद
नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
30. नारी या पुरुष, जो काल्पनिक भगवान की शांति करने के बहाने आसन लगाकर अज्ञानी जनों को लूटकर खाने के लिए जपजाप करके अपना पेट नहीं भरता या उसके लिए किसी भी
प्रकार की सहायता नहीं करता, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
31. नारी या पुरुष, जो अपना पेट पालने के लिए अज्ञानी जनों में कलह पैदा नहीं करता या उसके लिए मदद करनेवालों की छाया को छूना भी पसंद नहीं करता, उसको सत्य
आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
32. नारी या पुरुष जो हम सभी के निर्माता द्वारा पैदा किए हुए प्राणियों में से मानव नर-नारियों में किसी भी प्रकार की पसंदगी-नापसंदगी रखे बगैर उनका खाना-पीना
और पहनना आदि के बारे में किसी भी प्रकार का विधि निषेध किए बगैर ही उनके साथ पवित्र मन से आचरण करता है, उसको सत्य आचरण करेनवाला जानना चाहिए।
33. नारी या पुरुष, जो सभी मानव नर-नारियों में किसी के प्रति पसंदगी-नापसंदगी रखे बगैर उनमें से महारोगी को, अपाहिज को और बेसहारा बच्चों को अपनी क्षमता के
अनुसार मदद करता है या मदद करनेवाले को सम्मान देता है, उसको सत्य आचरण करनेवाला जानना चाहिए।
गणपतराव :
आपके इन उपरोक्त नियमों से यह सिद्ध होता है कि सभी मानव प्राणियों को किस प्रकार से सत्य का आचरण करना चाहिए, इस संबंध में अपने दयालु निर्माता ने स्वयं
किसी किताब की रचना ही नहीं की है, ऐसे ही आपको लगता है।
जोतीराव :
बहुत अच्छे, शाबाश! क्योंकि हम सभी के निर्माता ने इस गूढ़ अवकाश के अनंत सूर्यमंडल और उनके ग्रहों तथा उपग्रहों के अनंत जीव प्राणियों को कुछ नियम बना के दिए
हैं, इसीलिए वे अपने कुशल आचरण से किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, इसके बारे में तसल्ली करने की बात एक ओर रखकर इस धरती के मानव नारी-पुरुषों को सत्य आचरण
करना चाहिए। इसलिए कि हमारे निर्माता ने स्वयं यदि किसी धर्मग्रंथ की रचना की होती तो उसने यहाँ के नारी-पुरुषों की पसंदगी-नापसंदगी का ख्याल रखे बिना उन
दोनों के मानवी अधिकारों के बारे में निष्पक्ष होकर लिखा होता। उसकी प्रकार उसने उस धर्मग्रंथ को दुनिया की तमाम भाषाओं में भी लोगों को समझ में आने योग्य
बनाया होता।
गणपतराव :
तो फिर यह अलग-अलग धर्मग्रंथों की रचना इस दुनिया में किसने की? और इन ग्रंथों में तो पुरुषों के मानवी अधिकारों के बारे में विस्तार से लिखा गया है?
जोतीराव :
लेकिन यह सब अलग-अलग धर्मग्रंथ कई दयालु-परोपकारी सत्पुरुषों ने लिखा है, उसमें उनकी समझ के अनुसार पुरुषों के हकों के बारे में कुछ-न-कुछ कहा गया है।
गणपताव :
अच्छी याद आई! फिर भी, पहली बात यह कि आर्यों के धर्म में हम सभी के निर्माता के अस्तित्व को नकारते हुए सभी आर्य लोग अपने-आपको अज्ञानी जनों के भूदेव कहलवाते
हैं। दूसरी बात यह कि ईसाई धर्म में येशु को सभी के निर्माता का पुत्र कहते हैं - और तीसरी बात यह कि इस्लाम धर्म में मुहम्मद को हम सभी के निर्माता का पैगंबर
कहते हैं। इन सभी के बारे में विस्तार से बताएँगे तो बहुत ही अच्छा होगा।
जोतीराव :
पहला कारण यह है कि आर्यों ने अपने कुतर्कों पर आधारित दर्शन की बदमाशी से वेदांती होकर हम सभी के निर्माता को बेकाम बनाकर भगा दिया। और वे स्वयं को अहम्ब्रह्म
मानकर पराजित किए हुए अज्ञानी लोगों के भूदेव बन गए। इसी की वजह से सारी दुनिया के जानकार लोग उनको निकम्मे, पाखंडी, नास्तिक कहने लगे। और दूसरी बात यह कि हम
सभी के निर्माता के बारे में येशु ने जो कुछ उपदेश किया था, उसमें उसने हम सभी के निर्माता को पिता के समान माना था और अज्ञानी मानवों को तारने के लिए उनको बड़ी
उम्मीदों के साथ उपदेश किया था। इसी से, मतलब, आज के सभी ईसाई लोग उसको भगवान के पुत्र के समान मानते हैं और दुनिया को तारने वाला मानते हैं। और तीसरी बात यह
कि मुहम्मद ने निर्माता के अधिकारों के बारे में बहुत सारी बातें कुरान में लिखकर रखी हैं। उसमें उसने जो कुछ उपदेश किए हैं उनसे जाहिर है कि सभी मानवों को
सुमार्ग पर लाने के लिए हम सभी के निर्माता ने मुहम्मद को यहाँ भेजा है। यह उसने बड़े जोश में सभी को सूचित किया है। इसी की वजह से सभी सुन्नी या शिया मुसलिम
लोग उसको पैगंबर या हम सभी के निर्माता द्वारा भेजा हुआ दूत मानते हैं।
गणपतराव :
क्यों तात्या साहब, ये सारी धर्म किताबें कई सत्पुरुषों ने यदि लिखी हैं तो इनमें से किसी एक धर्म किताब को किसी सन्नारी ने भी लिखा है या नहीं?
जोतीराव :
किसी सन्नारी ने आज तक यदि किसी धर्म किताब की रचना की होती तो मानव पुरुषों द्वारा सभी नारियों के अधिकारों के बारे में आपत्ति करके अपने पुरुष जाति के
अधिकारों के बारे में वे बकवास न करते। क्योंकि नारियाँ यदि ग्रंथ लिखने योग्य होतीं तो पुरुषों ने इस तरह से उनका शोषण करके उनसे भेदभाव किया ही नहीं होता।
गणपताव :
खैर, इन महान सत्पुरुषों की अलग-अलग धर्म किताबों में उनकी समझ के अनुसार पुरुषों ने हकों के बारे में कुछ-न-कुछ यदि सत्य का प्रतिपादन किया गया तो उनके
अनुयायियों में इतना जो भेद-भाव फैला हुआ है, इसकी वजह क्या है?
जोतीराव :
उनमें इतना भेद-भाव पैदा होने का कारण यह है कि हर कोई अपने धर्म के आधार पर दूसरे के धर्म के बारे में पूरी तरह सोच-विचार करने की बजाय 'मेरा ही धर्म सही है'
इस तरह के दुराग्रह से जकड़ा हुआ है किंतु एक-दूसरे के धर्म के बारे में पूरी तरह सोच-विचार करने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी के भी धर्म को असत्य नहीं मानेगा,
ऐसा मुझे लगता है।
गणपतराव :
लेकिन दूसरी बात यह कि वे एक-दूसरे की धर्म किताबों के सत्य के बारे में जबकि पूरी तरह सोच-विचार करते हैं, फिर भी वे लोग एक-दूसरे के इतने दुश्मन क्यों हैं?
जोतीराव :
लेकिन एक-दूसरे के धर्मसंस्थापक सतपुरुषों के साथ उस समय के अज्ञानी लोगों के सत्य आचरण की अनुमानित स्थिति के बारे में वे पूरी तरह सोच-विचार नहीं करते,
इसीलिए यह होता है।
गणपतराव :
आपके इस सिद्धांत के अनुसार आज की तरह एकदम प्राचीन काल के मानव समझदार थे या नहीं?
जोतीराव :
इसमें संदेह किस बात का। क्योंकि आज की तरह एकदम प्राचीन काल के लोग यदि समझदार होते तो शूद्रादि-अतिशूद्र मनुष्यों को धिक्कारते हुए नीच कहने का रिवाज ही न
पड़ा होता। उसी तरह प्राचीन काल के मानवों ने पराजित हुए मानवों के बाल-बच्चों को अपने खरीदे गुलाम या दास बनाकर उनको अपनी सेवा करने के लिए मजबूर न किया होता,
और इस तरह का अधिकार कुछ लोगों के पास ही होता। तब किसी धर्म किताबों में महासतपुरुषों ने यह सब घोषित रूप से लिखकर न रखा होता। इससे यही सिद्ध होता है कि वे
जिद्दी स्वभाव के थे और दूसरों से बदले की भावना रखने वाले स्वभाव के भी। यही सिद्ध होता है।
गणपतराव :
इस तरह की धर्म किताब किसी जंगली, पशु समान आदमी को भी लिखकर रखने की हिम्मत न हुई होती। इसलिए धर्म किताब किस तरह की होनी चाहिए, इसके बारे में आप कुछ कहेंगे
तो बहुत ही अच्छा होगा।
जोतीराव :
सभी गाँव के, प्रांतों के, देश के और महाद्वीप के संबंध में या किसी भी धर्म के विचारों के संबंध में नारी और पुरुष इन दोनों को या सभी नारियों को या सभी
पुरुषों को एक-दूसरे में एक-दूसरे के प्रति किसी भी प्रकार की पसंदगी-नापसंदगी का विचार न करते हुए इस धरती पर अपना एक परिवार समझकर एकता, दिल से सभी के साथ
सत्य आचरण करके हम सभी के निर्माता को संतुष्ट करना चाहिए। लेकिन उक्त प्रकार के नियमों का पालन करके सभी नारी-पुरुषों ने यदि सत्य का आचरण किया होता तो
सारी दुनिया के देवता परशुराम आदि जैसे चपरासियों की, पुलिस की, न्यायाधीशों की और जेल के पहरेदारों की कोई आवश्यकता ही नहीं रही होती।
गणपतराव :
तो फिर सारी दुनिया के नारी-पुरुषों को किस धर्म को स्वीकार करना चाहिए, इसके बारे में आप निर्णय करेंगे, तो बहुत ही अच्छा होगा।
जोतीराव :
अरे बाबा, इस धरती पर महासत्पुरुषों ने जितनी धर्म किताबें लिखी हैं उन सभी में उस काल के अनुरूप उनकी समझ के अनुसार कुछ-न-कुछ सत्य है, इसलिए किसी परिवार की
एक नारी बौद्ध धर्म की किताब पढ़कर अपनी इच्छानुसार यदि वह उस धर्म को स्वीकार करना चाहती है तो कर सकती है। और उसी परिवार का उसका पति बाइबिल का नया या
पुराना करार (New and old testament) पढ़कर अपनी इच्छा के अनुसार चाहे तो ईसाई धर्म को स्वीकार कर सकता है, और उसी परिवार में उसकी लड़की को कुरान पढ़कर उसकी
मर्जी का इस्लाम धर्म की तरफ हो गई तो उसको इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेना चाहिए। उसी परिवार के उसके लड़के को सार्वजनिक सत्य धर्म किताब पढ़कर उसकी इच्छा
यदि सार्वजनिक सत्यधर्म में हो गई तों उसको सार्वजनिक सत्यधर्मी होना चाहिए। और इन सभी माता-पिताओं तथा बाल-बच्चों को अपना पारिवारिक जीवन व्यतीत करते समय
किसी को भी किसी कें धर्म से नफरत या घृणा नहीं करनी चाहिए। वे सभी हम सभी के निर्माता द्वारा निर्मित संतान हैं और हम सभी उसी के परिवार के लोग हैं, ऐसा समझकर
हम सभी को एक-दूसरे के साथ प्यार और मोहब्बत से एक-दूसरे के साथ व्यवहार करना चाहिए। मतलब, वे हम सभी के निर्माणकर्ता के राज में धन्य होंगे।
गणपतराव :
बहुत अच्छे, क्योंकि इन सभी धर्म किताबों में कुछ-न-कुछ यदि सत्य है तो इस धरती पर जितने धर्म हैं, वे सभी सार्वजनिक सत्य की संतान हैं, इस बात पर मेरा पूरा
भरोसा है।
जोतीराव :
इसी आधार पर सभी धर्मों और उनके अनुयायी लोगों को विनम्र होकर सार्वजनिक सत्य को प्रणाम करना चाहिए या सार्वजनिक सत्य को भी सभी धर्मों को और उनके अनुयायियों
को किस प्रकार का सम्मान देना चाहिए, इसके बारे में आप स्वयं ही सरल और सही सोच-विचार करके देखिए। खैर, हर नारी-पुरुष को दूसरे व्यक्ति की किसी भी प्रकार की
हानि किए बगैर उनको स्वेच्छा से आचरण करने का अधिकार यदि है तो आप किसी भी धर्म की तथा उसके अनुयायियों की पसंदगी-नापसंदगी की बात बगैर किये उन सभी के साथ
भाई-बहनों की तरह सत्य आचरण करना शुरू कर दीजिए। मतलब, तभी आप लोग हम सभी के निर्माता के सामने धन्य होंगे।