यशवंतराव फुले :
कन्या या पुत्र का नाम संस्कार किस समय करना चाहिए?
जोतीराव फुले :
कन्या हो तो उसका नाम संस्कार बारहवें दिन करना चाहिए, पुत्र हो तो उसका नाम-संस्कार तेरहवें दिन करना चाहिए।
कन्या या पुत्र का नाम-संस्कार करने के पहले माता-पिता का अपने बच्चों का जन्म होते ही 'हमने पहले से ही दुर्गुणों के जो संस्कार हैं उनका त्याग करेंगे' इस
तरह का जो संकल्प किया था, उस पर उन्हें अपने मन में अटल निर्णय करके और 'हम दोनों किसी भी मानव प्राणी से नफरत नहीं करेंगे और सभी के साथ अपने भाई-बहनों की
तरह प्यार रखेंगे' ऐसा निश्चय करके बच्चे की तेल से मालिश करवाकर, नहलाकर, कपड़े पहनाने चाहिए। माता-पिता के सद्गुणों के अलावा बच्चे के बदन पर चाँदी, सोना
रत्न आदि किसी भी प्रकार की कीमती वस्तु के अलंकार नहीं होने चाहिए, क्योंकि इस तरह के कीमती अलंकारों से बच्चे की जान को खतरा हो सकता है। लेकिन सद्गुणों
के अलंकारों से बच्चे को और सभी मानव समाज को सज्जनों की तरह लाभ-ही-लाभ होनेवाला है। घर की महिलाओं को पुरुषों की सलाह से बच्चे के नाम का संस्कार करके
उसको झूले में डालकर निर्माता के प्रति आभर-प्रशंसा के गीत गाना चाहिए।
बच्चे की माँ के स्तनों में दूध पर्याप्त मात्रा में हो तो बच्चे को छह माह तक किसी भी प्रकार का अन्न-संस्कार नहीं करना चाहिए।
लड़की को या लड़के को जब कुछ बोलना आ जाए तब उसकी माँ को उसे स्वयं छोटे-छोटे वाक्य बोलने के लिए सिखाना चाहिए। और वर्णमाला को तो उससे खेलते-खेलते याद करवाना
चाहिए। आगे पाँचवाँ साल शुरू होते ही उसको स्कूल में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन अध्यापक ऐसा हो जिसमें करुणा, दया, प्रेम और स्नेह का उभार हो।
उसे लोलुप, स्वार्थी, लोभी तथा पाखंडी और धर्माभिमानी नहीं होना चाहिए।