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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

अनुक्रम सभी मानव नर-नारियों के लिए ग्रंथरचयिता की प्रार्थना पीछे    

अखंड

निर्माता ने यदि एक धरती बनाई। उठाबा बोझ भला। सभी का। धु्०।।
घास-पेड़-बोझ उगाता हमारे लिए। फल वे मधुर। और छाँव भी।।
सुख-सुविधा के लिए चारों ओर फेरा। रात और दिन सब। वही करता।।
मानव के धर्म न हो अनेक। निर्माता वही एक। जोती कहे। निर्माता।।

अखंड

जीव-प्राणियों की सुख-सुविधा के लिए। बनाया वर्षा को।
                                                          और नदियों को । ध्रु०।।
उनका जल सारा तेजी से बहता। जल पहुँचाते। सभी प्राणियों को।।
सागर से व्‍यापार करते। सुख देते-लेते। आपस में।।
मानवों के लिए कई धर्म कैसे। लगा क्‍यों पागलपन। जोती कहे। जीव।।

अखंड

एक सूरज सभी को प्रकाश देता। धंधे से लगाता। प्राणियों को ।ध्रु०।।
मानव और सभी प्राणियों का जीवन। सभी का पालन। वही करता।।
सभी को सुख देता पिता के समान। नहीं रखता दूर। किसी एक को।।
मानवों का धर्म एक ही चाहिए। सचाई से चले। जोती कहे। एक।।

अखंड

सभी के लिए वायु बनाया खास। लेते साँस। प्राणी सारे। ध्रु०।।
पेड़-पौधे और सभी का जीवन। करता वह पालन। दुनिया का।।
वायु की वजह हवा शुद्ध होती। प्राणी को सुख देती। जोती कहे।।
मानवों, तुम सत्‍यधर्म को अपनाओ। निर्माता के गुण गावो। जोती कहे। सभी।।

अखंड

प्राणियों को आँखें निर्माता ने दीं। देखने लगे। एक-दूसरे को। ध्रु०।।
बुद्धि सबको दी सत्‍य खोजने को। राह दिखाने। अज्ञानी को।।
निर्माता का धर्म सत्‍य है एक। झगड़े अनेक। किसके लिए।।
मानवों, तुम निर्माता से नित डरो। सभी सुखी हो। जोती कहे। प्रा०।।

अखंड

नर-नारी सभी मेहनती बनें। परिवार को पालें। आनंद से। धु०।।
नित बच्‍चे-बच्‍ची को पढ़ने भेजो। अन्‍नदान दो। छात्रों को।।
सार्वभौम सत्‍य स्‍वयं पालन करे। सुख दिलाए। दुर्बलों को।।
ऐसे आचरण से सभी को सुख देंगे। स्‍वयं सुखी होंगे। जोती कहे। न०।।

अखंड

दुर्गुणों की लत जिसे लग गई। भिक्षा देने को। लायक नहीं। ध्र०।।
झूठ बोलनेवाला शराबी केवल। करो अड़तल। कुतर्की को।।
मानव भाई सभी एक समान। उनमें हो हमको। तुम श्रेष्‍ठ।।
बुद्धि के बल से सुख दे-लो। दीनों को सँभालो। जोती कहे। दुर्गु०।।

अखंड

सभी का निर्माता है एक स्‍वामी। उसका डर मन में। रखो सभी। ध्रु०।।
न्‍यास से चीजों का उपभोग लीजिए। आनंद मानिए। झगड़ो नहीं।।
धर्म-राज्‍य-भेद मानवों में न हो। सत्‍य से जीएँ। निर्माता के लिए।।
सभी सुखी हो भीख मैं माँगता। मानव को कहता। जोती कहे। सभी।।

अखंड

सूर्यमंडल की करता हूँ गिनती। तर्क नहीं लगता। कल्‍पना का।।
उनके चारों ओर उपग्रह कितने। जीव दुनिया में। गिनती न हो।।
उसी ने बनाए मानव ये सारे। उसी के बच्‍चे। वही रखवाला।।
अपने से दुनिया को जानो। सभी को सँभालो। जोती कहे। सूर्य।।
सदसद् विचारसंपन्‍न महाराज सयाजीराव गायकवाड़ असिस्‍टेंट रा.ब. विश्राम रामजी घोले, ऑनरेरी असिस्‍टैंट सर्जन टु हिज हाईनेस द व्‍हॉईसराय और गव्‍हर्नर जनरल ऑफ इंडिया, दयालु नागेश्‍वरगीर कल्‍याणगीर महाराज और मोरो विट्ठल बाळवेकर आदि सभी लोगों की ग्रंथरचयिता के प्रति ममता।

अखंड

गायकवाड़ का सहारा, घोले की निगाह। थी अबाध। कुछ न लिए। ध्रु.।।
दुष्‍ट पीड़ा से फुले को बचाया। समाधान पत्‍नी को। दिया जिसके।।
बाबा का पैसा समाज के नाम। फुले किया मर्द। रोगियों में।।
तय करके मन में सवाल पूछने वाले। रिश्‍तेदार सारे। सताए हुए।।
'सार्वजनिक सत्‍य धर्म' पूरा किया। उसको छपाने को। पैसा नहीं।।
जानकर यह खबर मित्र मोरोपंत। ले गए छपाने। किताब यह।।
जिसका मूल मुद्दा सभी का निर्माता। सत्‍य है एक। नहीं दूसरा।।
स्‍वयं सुख के लिए उसने किया सारा। क्‍यों ढोता गर्व। पूजा में।।
नर-नारी में भेद नहीं चाहिए। गुणों का आदर हो। हमेशा के लिए।।
उन्‍नीसवीं सदी में ग्रंथ किया सिद्ध। पढ़े प्रबुद्ध। जोती कहे। गा.।।


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