hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम बोहित खंड पीछे     आगे

सो न डोल देखा गजपती । राजा सत्ता दत्ता दुहँ सती॥

अपनेहि कथा, आपनेहि कंथा । जीउ दीन्ह अगुमन तेहि पंथा॥

निहचै चला भरम जिउ खोई । साहस जहाँ सिध्दि तहँ होई॥

निहचै चला छाँड़ि कै राजू । बोहित दीन्ह, दीन्ह सब साजू॥

चढ़ा बेगि, तब बोहित पेले । धानि सो पुरुष पेम जेइ खेले॥

पेम पंथ जौ पहुँचै पारा । बहुरि न मिलै आइ एहि छारा॥

तेहि पावा उत्तिाम कैलासू । जहाँ न मीचु, सदा सुख बासू॥

एहि जीवन कै आस का, जस सपना पल आधु।

मुहमद जियतहि जे मुए, तिन्ह पुरुषन्ह कह साधु॥1॥

जस बन रेंगि चलै गज ठाटी । बोहित चले, समुद गा पाटी॥

धावहिं बोहित मन उपराहीं । सहस कोस एक पल महँ जाहीं॥

समुद अपार सरगजनु लागा । सरग न घाल गनै बैरागा।

ततखन चाल्हा एक देखावा । जनु धौलागिरि परबत आवा॥

उठी हिलोर जो चाल्ह नराजी । लहरि अकास लागि भुइँ बाजी॥

राजा सेंती कुँवर सब कहहीं । अस अस मच्छ समुद महँ अहहीं॥

तेहि रेपंथहमचाहहिंगवना । होहु सँजूत बहुरि नहिं अवना॥

गुरु हमार तुम राजा, हम चेला तुम नाथ।

जहाँ पाँव गुरु राखै, चेला राखै माथ॥2॥

केवट हँसे सो सुनत गवेजा । समुद न जानु कुवाँ कर मेजा॥

यह तो चाल्ह न लागै कोहू । का कहिहौ जब देखिहौ रोहू?॥

सो अबहीं तुम्ह देखा नाहीं । जेहि मुख ऐसे सहस समाहीं॥

राजपंखि तेहि पर मेड़राहीं । सहस कोस तिन्ह कै परछाहीं॥

तेइ ओहि मच्छ ठोर भरि लेहीं । सावक मुख चारा लेइ देहीं॥

गरजै गगन पंखि जब बोला । डोल समुद्र डैन जब डोला॥

जहाँ चाँद औ सूर असूझा । चढ़ै सोइ ज अगुमन बूझा॥

दस महँ एक जाइ कोइ-करम, धारम, तप, नेम।

बोहित पार होइ जब, तबहि कुसल औ खेम॥3॥

राजै कहा कीन्ह मैं पेमा । जहाँ पेम कहँ कूसल खेमा॥

तुम्ह खेवहु जौ खेवै पारहु । जैसे आपु तरहु मोहिं तारहु॥

मोहिं कुसल कर सोच न ओता । कुसल होत जौ जनम न होता॥

धारती सरग जाँत पट दोऊ । जो तेहि बिच जिउ राख न कोऊ॥

हौं अब कुसल एक पै माँगौं । पेम पंथ सत बाँधिा न खाँगौं॥

जौ सत हिय तौ नयनहिं दीया । समुद्र न डरै पैठि मरजीया॥

तहँ लगि हेरौं समुद ढँढोरी । जहँ लगि रतन पदारथ जोरी॥

सप्त पतार खोजि कै, काढौं बेद गरंथ।

सात सरग चढ़ि धाावौं, पदमावति जेहि पंथ॥4॥

(1) सत्ता दत्ता दुहुँ सती=सत्य या दान दोनों में सच्चा या पक्का है। पेले=झोंक से चले।

(2) ठाटी=ठट्ट, झुंड। उपराहीं=अधिाक (वेग से)। घाल न गनै=पसंगे बराबर भी नहीं गिनता, कुछ नहीं समझता। घाल=घलुआ, थोड़ी सी और वस्तु जो सौदे के ऊपर बेचने वाला देता है। चाल्हा=एक मछली, चेल्हवा। नराजी=नाराज हुई। भुइँ बाजी=भूमि पर पड़ी। सँजूत=सावधाान, तैयार।

(3) गवेजा=बातचीत। मेजा=मेढक, (पूरब-मेजुका)। कोहू=किसी को।

(4) ओता=उतना। पट=पल्ला। खाँगौं=कसर न करूँ। मरजीया=जी पर खेलकर विकट स्थानों से व्यापार की वस्तु (जैसे, मोती, शिलाजतु, कस्तूरी) लाने वाले, जिवकिया। ढँढोरी=छानकर।


>>पीछे>> >>आगे>>