hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम रत्नसेन साथी खंड पीछे     आगे

रतनसेन गए अपनी सभा । बैठे पाट जहाँ अठख्रभा॥

आइ मिले चितउर के साथी । सबै बिहँसि के दीन्ही हाथी॥

राजा कर भल मानहु भाई । जेइ हम कहँ यह भूमि देखाई॥

हम कहँ आनत जौ न नरेसू । तौ हम कहाँ, कहाँ यह देसू॥

धानि राजा तुइँ राज बिसेखा । जेहि के राज सबै किछु देखा॥

भोग बिलास सबै किछु पावा । कहाँ जीभ जेहि अस्तुति आवा?

अब तुम आइ ऍंतरपट साजा । दरसन कहँ न तपावहु राजा॥

नैन सेराने भूखि गइ, देखे दरस तुम्हार।

नव अवतार आजु भा, जीवन सफल हमार॥1॥

हँसि कै राज रजायसु दीन्हा । मैं दरसन कारन एत कीन्हाँ॥

अपने जोग लागि अस खेला । गुरु भएउँ आपु, कीन्ह तुम्ह चेला॥

अहक मोरि पुरुषारथ देखेहु । गुरु चीन्हि कै जोग बिसेखेहु॥

जौ तुम्ह तप साधाा मोहिं लागी । अब जिनि हिये होहु बैरागी॥

जो जेहि लागि सहै सप जोगू । सो तेहि के सँग मानै भोगू॥

सोरह सहस पदमावति माँगी । सबै दीन्हि, ननहिं काहुहि खाँगी॥

सब कर मंदिर सोने साजा । सब अपने अपने घर राजा॥

हस्ति घोर औ कापर, सबहिं दीन्ह नव साज।

भए गृही औ लखपती, घर घर मानहुँ राज॥2॥

(1) हाथी दीन्ही=हाथ मिलाया। भल मानहु=भला मनाओ, एहसान मानो। ऍंतरपट साजा=ऑंख की ओट में हुए। तपावहु=तरसाओ। सेराने=ठंढे हुए।


>>पीछे>> >>आगे>>