रतनसेन बिनवा कर जोरी । अस्तुति जोग जीभ नहिं मोरी॥
सहस जीभ जौ होहिं गोसाईं । कहि न जाइ अस्तुति जहँ ताईं॥
काँच रहा तुम कंचन कीन्हा । तब भा रतन जोति तुम दीन्हा॥
गंग जो निरमल नीर कुलीना । नार मिले जल होइ मलीना॥
पानि समुद्र मिला होइ सोती । पाप हरा, निरमल भा मोती॥
तस हौं अहा मलीनी कला । मिला आइ तुम्ह, भा निरमला॥
तुम्ह मन आवा सिंघलपुरी । तुम्ह तैं चढ़ा राज औ कुरी॥
सात समुद तुम राजा, सरि न पाव कोइ खाट।
सबै आइ सिर नावहिं, जहँ तुम साजा पाट॥1॥
अब बिनती एक करौं गोसाईं । तौ लगि कथा जीव जब ताईं॥
आवा आजु हमार परेबा । पाती आनि दीन्ह मोहिं देवा!॥
राज काज औ भुइँ उपराहीं । सत्राु भाइ सम कोई नाहीं॥
आपन आपन करहिं सो लीका । एकहि मारि एक चह टीका॥
भए अमावस नखतन्ह राजू । हम्ह कै चंद चलावहु आजू॥
राज हमार जहाँ चलि आवा । लिखि पठइनि अब होइ परावा॥
उहाँ नियर दिल्ली सुलतानू । होइ जो भोर उठै जिमि भानू॥
रहहु अमर महि गगन लगि, तुम महि लेइ हम्ह आउ।
सीस हमार तहाँ निति, जहाँ तुम्हारा पाउ॥2॥
राजसभा पुनि उठी सवारी । अनु, बिनती राखिय पति भारी॥
भाइन्ह माहँ होइ जिनि फूटी । घर के भेद लंक अस टूटी॥
बिरवा लाइ न सूखै दीजै । पावै पानि दिस्टि सो कीजै॥
आनि रखा तुम दीपक लेसी । पै न रहै पाहुन परदेसी॥
जाकर राज जहाँ चलि आवा । उहै देस पै ताकहँ भावा॥
हम तुम नैन घालि कै राखे । ऐसि भाख एहि जीभ न भाखै॥
दिवस देहु सह कुसल सिधाावहिं । दीरघ आइ होइ, पुनि आवहिं॥
सबहि बिचार परा अस, भा गवने कर साज।
सिध्दि गनेस मनावहिं, बिधिा पुरवहु सब काज॥3॥
बिनय करै पदमावति बारी । हौं पिउ! जैसी कुंद नेवारी॥
मोहि असि कहाँ सो मालति बेली । कदम सेवती चंप चमेली॥
हौ सिंगारहार जस तागा । पुहुप कली अस हिरदय लागा॥
हौं सो बसंत करौ निति पूजा । कुसुम गुलाल सुदरसन कूजा॥
बकुचन बिनवौं रोस न मोही । सुनु बकाउ तजि चाहु न चूही॥
नागेसर जो है मन तोरे । पूजि न सकै बोल सरि मोरे॥
होइ सदबरग लीन्ह मैं सरना । आगे करु जो, कंत! तोहि करना॥
केत बारि समुझावै, भँवर न काँटै बेधा।
कहै मरौं पै चितउर, जज्ञ करौं असुमेधा॥4॥
गवनचार पदमावति सुना । उठा धासकि जिउ औ सिर धाुना॥
गहबर नैन आए भरि ऑंसू । छाँड़व यह सिंघल कबिलासू॥
छाँड़िउ नैहर, चलिउँ बिछोई । एहि रे दिवस कहँ हौं तब रोई॥
छाँड़िउ आपन सखी सहेली । दूरि गवन, तजि चलिउँ अकेली॥
जहाँ न रहन भएउ बिनु चालू । होतहि कस न तहाँ भा कालू॥
नैहर आइ काह सुख देखा ? जनु होइगा सपने कर लेखा॥
राखत बारि सो पिता निछोहा। कित बियाहि अस दीन्ह बिछोहा॥
हिये आइ दुख बाजा, जिउ जानहु गा छेंकि।
मन तेवान कै रोवै, हर मंदिर कर टेकि॥5॥
पुनि पदमावति सखी बोलाईं । सुनि कै गवन मिलै सब आईं॥
मिलहु, सखी! हम तहँवाँ जाहीं । जहाँ जाइ पुनि आउब नाहीं॥
सात समुद्र पार वह देसा । कित रे मिलन, कित आव सँदेसा॥
अगम पंथ परदेस सिधाारी । न जनौं कुसल कि बिथा हमारी॥
पितै न छोह कीन्ह हिय माहाँ । तहँ को हमहिं राख गहि बाहाँ?
हम तुम मिलि एकै सँग खेला । अंत बिछोह आनि गिउ मेला॥
तुम्ह अस हित संघती पियारी । जियत जीउ नहिं करौं निनारी॥
कंत चलाई का करौं, आयसु जाइ न मेटि।
पुनि हम मिलहिं कि ना मिलहिं, लेहु सहेली भेंटि॥6॥
धानि रोबत रोबहिं सब सखी । हम तुम्ह देखि आपु कहँ झ्रखी॥
तुम्ह ऐसी जौ रहै न पाई । पुनि हम काह जो आहिं पराई॥
आदि अंत जो पिता हमारा । ओहु न यह दिन हिये बिचारा॥
छोह न कीन्ह निछोही ओहू । का हम्ह दोष लाग एक गोहूँ॥
मकु गोहूँ कर हिया चिराना । पै सो पिता न हिये छोहाना॥
औ हम देखा सखी सरेखा । एहि नैहर पाहुन के लेखा॥
तब तेइ नैहर नाहीं चाहा । जौ ससुरारि होइ अति लाहा॥
चालन कहँ हम अवतरीं, चलन सिखा नहिं आय।
अब सो चलन चलावै, को राखैं गहि पाय?॥7॥
तुम बारी पिउ दुहुँ जग राजा । गरब किरोधा ओहि पै छाजा॥
सब फर फूल ओहि के साखा । चहै सो तूरै, चाहै राखा॥
आयसु लिहे रहिहु निति हाथा । सेवा करिहु लाइ भुइँ माथा॥
बर पीपर सिर ऊभ जो कीन्हा । पाकरि तिन्हहिं छीन फर दीन्हा॥
बौरि जो पीढ़ि सीस भुइँ लावा । बड़ फल सुफल ओहि जगपावा॥
आम जो फरि कै नवै तराहीं । फल अमृत भा सब उपराहीं॥
सोइ पियारी पियहि पिरीती । रहै जो आयसु सेवा जीती॥
पत्राा काढ़ि गवन दिन देखहि, कौन दिवस दहुँ चाल।
दिसासूल चक जोगिनी, सौंह न चलिए, काल॥8॥
अदित सूक पच्छिउँ दिसि राहू । बीफै दखिन लंकदिसि दाहू॥
सोम सनीचर पुरुब न चालू । मंगल बुध्द उत्तार दिसि कालू॥
अवसि चला चाहै जौ कोई । ओषद कहौं रोग नहिं होई॥
मंगल चलत मेल मुख धानिया । चलत सोम देखै दरपनिया।
सूकहि चलत मेल मुख राई । बीफै चलै दखिन गुड़ खाई॥
अदित तँबोल मेलि मुख मंडै । बायबिरंग सनीचर खंडै॥
बुध्दहि दही चलहु करि भोजन । ओषद इहै और नहिं खोजन॥
अब सुनु चक्र जोगिनी, ते पुनि थिर न रहाहिं।
तीसौ दिवस चंद्रमा, आठौ दिसा फिराहिं॥9॥
बारह ओनइस चारि सताइस । जोगिनि पच्छिउँ दिसा गनाइस॥
नौ सोरह चौबिस औ एका । दक्खिन पुरब कोन तेइ टेका।
तीन इगारह छबिस अठारहु । जोगनि दक्खिन दिसा बिचारहु॥
दुइ पचीस सत्राह औ दसा । दक्खिन पछिउँ...कान बिच बसा॥
तेइस तीस आठ पंद्रहा । जोगिनि होहिं पुरुब सामुहा॥
चौदह बाइस ओनतिस साता । जोगिनि उत्तार दिस कहँ जाता॥
बीस अठाइस तेरह पाँचा । उत्तार पछिउँ कोन तेइ नाचा॥
एकइस औ छ जोगिनी उतर पुरुब के कोन!
यह गनि चक्र जोगिन बीचु जो चह सिंधा होन॥10॥
परिवा, नवमी पुरुब न भाएँ । दूइज दसमी उतर अदाएँ॥
तीज एकादसि अगनिउ मारै । चौथि, दुवादसि नैऋत वारै॥
पाँचइँ तेरसि दखिन रमेसरी । छठि चौदसि पच्छिउँ परमेसरी॥
सतमी पूनिउँ बायब आछी । अठइँ अमावस ईसन लाछी॥
तिथि नछत्रा पुनि बार कहीजै । सुदिन साथ प्रस्थान धारीजै॥
सगुन दुधारिया लगन साधाना । भद्रा औ दिकसूल बाँचना॥
चक्र जोगिनी गनै जो जानै । पर घर जीति लच्छि घर आनै॥
सुख समाधिा आनंद घर, कीन्ह पयाना पीउ।
थरथराइ तन काँपै, धारकि धारकि उठि जीउ॥11॥
मेष, सिंह, धान पूरुब बसै । बिरिख, मकर कन्या जम दिसै॥
मिथुन तुला औ कुंभ पछाहाँ । करक, मीन, बिरछिक उतराहाँ॥
गवन करै कहँ उगरै कोई । सनमुख सोम लाभ बहु होई॥
दहिन चंद्रमा सुखसरबदा । बाएँ चंद त दुख आपदा॥
अदित होइ उत्तार कहँ कालू । सोम काल बायब नहिं चालू॥
भौम काल पच्छिउँ बुधा निऋता । गुरु दक्खिन औ सुक अगनइता॥
पूरुब काल सनीचर बसै । पीठि काल देइ चलै त हँसै॥
धान नछत्रा औ चंद्रमा, औ तारा बल सोइ।
सभय एक दिन गवनै, लछमी केतिक होइ॥12॥
पहिले चाँद पुरुब दिसि तारा । दूजे बसै इसान बिचारा॥
तीजे उतर औ चौथे बायब । पँचएँ पच्छिउँ दिसा गनाइब॥
छठएँ नैऋत, दक्खिन सतएँ । बसै जाइ अगनिउँ सो अठएँ॥
नवएँ चंद्र सो पृथिबी बासा । दसएँ चंद जो रहै अकासा॥
ग्यरहें चंद पुरुब फिरि जाई । बहु कलेस सौं दिवस बिहाई॥
असुनी, भरनि, रेवती भली । मृगसिर, मूल, पुनरबसु बली॥
पुष्य ज्येष्ठा, हस्त, अनुराधाा । जो सुख चाहे पूजै साधाा॥
तिथि, नछत्रा औ बार एक, अस्ट सात ख्रड भाग।
आदि अंत बुधा सो एहि, दुख सुख अंकम लाग॥13॥
परिवा, छट्ठि, एकादसि नंदा । दुइज, सत्तामी, द्वादसि मंदा॥
तीज, अस्टमी, तेरसि जया । चौथि चतुरदसि नवमी खया॥
पूरन पूनिउँ दसमी, पाँचै । सुक्रै नंदै, बुधा भए नाचै॥
अदित सौं हस्त नखत सिधिा लहिए । बीफै पुष्य स्रबन ससिकहिए॥
भरनि रेवती बुधा अनुराधाा । भए अमावस रोहिनि साधाा॥
राहु चंद्र भू संपति आए । चंद गहन तब लाग सजाए॥
सनि रिकता कुज अज्ञा लीजै । सिध्दि जोग गुरु परिवा कीजै॥
छठे नछत्रा होइ रवि, ओहि अमावस होइ।
बीचहि परिवा जौ मिलै, सुरुज गहन तब होइ॥14॥
'चलहु चलहु' भा पिउ कर चालू । घरी न देख लेत जिउ कालू॥
समदि लोग पुनि चढ़ी बिवाना । जेहि दिन डरी सो आइ तुलाना॥
रोवहिं मात पिता औ भाई । कोउ न टेक जौ कंत चलाई॥
रोवहिं सब नैहर सिंघला । लेइ बजाइ कै राजा चला॥
तजा राज रावन का केहू ? छाँड़ा लंक बिभीषन लेहू॥
भरीं सखी सब भेंटत फेरा । अंत कंत सौं भएउ गुरेरा॥
कोउ काहू कर नाहिं निआना । मया मोह बाँधाा अरुझाना॥
कंचन कया सो रानी, रहा न तोला माँसु।
कंत कसौटी घालि कै, चूरा गढ़ै कि हाँसु॥15॥
जब पहुँचाइ फिरा सब कोऊ । चला साथ गुन अवगुन दोऊ॥
औ सँग चला गवन सब साजा । उहै देह अस पारै राजा॥
डोली सहस चली सँगचेरी । सबै पदमावती सिंघल केरी॥
भले पटोर जराव सँवारे । लाख चारि एक भरे पेटारे॥
रतन पदारथ मानिक मोती । काढ़ि भँडार दीन्ह रथ जोती॥
परखि सो रतन पारखिन्ह कहा । एक एक दीप एक एक लहा॥
सहसन पाँति तुरय कै चली । औ सौ पाँति हस्ति सिंघली॥
लिखनी लागि जौ लेखै, न पारै जोरि।
अरब, खरब दस, नील, संख औ अरबुद पदम करोरि॥16॥
देखि दरब राजा गरबाना । दिस्टि माहँ कोइ और न आना॥
जो मैं होहुँ समुद केपारा । को है मोहिं सरिस संसारा॥
दरब तें गरब, लोभ बिष मूरी । दत्ता न रहै, सत्ता होइ दूरी॥
दत्ता सत्ता हैं दूनौ भाई । दत्ता न रहै, सत्ता पै जाई॥
जहाँ लोभ तहँ पाप सँघाती । सँचि कै मरै आनि के थाती॥
सिध्द जो दरब आगि कै थापा । कोई जार, जारि कोइ तापा॥
काहू चाँद काहु भा राहु । काहू अमृत, बिष भा काहू॥
तस भुलान मन राजा, लोभ पाप ऍंधाकूप।
आइ समुद्र ठाढ़ भा, कै दानी कर रूप॥17॥
(1) कुरी=कुल, कुलीनता। खाट=खटाता है, ठहरता है। सरि न पाव...खाट=बराबरी करने में कोई नहीं ठहर सकता।
(2) देवा=हे देव! उपराहीं=ऊपर। लीका करहिं=अपना सिक्का जमाते हैं। लीका=थाप। हम्ह कै चाँद आजू उन नक्षत्राों के बीच चंद्रमा (उनका स्वामी) बनाकर हमें भेजिए। भोर=(क) प्रभात, (ख) भूला हुआ, असावधाान। महि लेइ...आउ=पृथ्वी पर हमारी आयु लेकर।
(3) राजसभा=रत्नसेन के साथियों की सभा। सवारी=सब। अनु=हाँ, यही बात है। फूटी=फूट। दीपक लेसी=पदमावती ऐसा दीपक प्रज्वलित करके। पाहुन=अतिथि।
(4) मालति=अर्थात् नागमती। कदम सेवती=(क) चरणसेवा करती है, (ख) कदंब और सफेद गुलाब। हौ सिंगारहार तागा=हारके बीच पड़े हुए डोरे के समान तुम हो। पुहुप कली...लागा=कली के हृदय के भीतर इस प्रकारपैठेहुएहो। बकुचन=(क) बध्दांजलि, जुड़ा हुआ हाथ; (ख) गुच्छा। बकाउ=बकावली। नागेसर=(क) नागमती, (ख) एक फूल। बोल=एक झाड़ी जो अरब, शाम की ओर होती है। केत बारि=(क) केतकी रूपवाला, (ख) कितना ही वह स्त्राी।
(5) धासकि उठा=दहल उठा। गहबर=गीले। होतहि...कालू=जन्म लेते ही क्यों न मर गई। बाजा=पड़ा। तेवान=सोच, चिंता। हर मंदिर=प्रत्येक घर में।
(6) बिथा=दु:ख। गिउ मेला=गले पड़ा।
(7) झंखी=झीखी, पछताई। का हम्ह दोष...गोहूँ=हम लोगों को एक गेहूँ के कारण क्या ऐसा दोष लगा (मुसलमानों के अनुसार जिस पौधो के फल को खुदा के मना करने पर भी हौवा ने आदम को खिलाया था वह गेहूँ था। इसी निषिध्द फल के कारण खुदा ने हौवा को शाप दिया और दोनों को बहिश्त से निकाल दिया)। चिराना=बीच से चिर गया। छोहाना=दया की। सरेखा=चतुर।
(8) तूरै=तोड़े। ऊभ=ऊँचा, उठा हुआ। बौरि=लता। पौढ़ि=लेटकर। तराहा=नीचे। सेवा जीता=सेवा में सबसे जीती हुई अर्थात् बढ़कर रहे।
(9) अदित=आदित्यवार। सूक=शूक्र। खंडै=चबाय।
(10) दसा=दस। सामुहा=सामने। बाँचु=तू बच।
(11) न भए=नहीं अच्छा है। अदाएँ=वाम, बुरा। अगनिउ=आग्नेय दिशा। मारै=घातक है। बारैं=बचावे। रमेसरी=लक्ष्मी। परमेसरी=देवी। बायब=वायव्य। ईसन=ईशान कोण। लाछी= लक्ष्मी। सगुन दुधारिया=दुधारिया महूर्त जो होरा के अनुसार निकाला जाता है और जिसमें दिन का विचार नहीं किया जाता, रात-दिन को दो-दो घड़ियों में विभक्त करके राशि के अनुसार शुभाशुभ का विचार किया जाता है।
(12) बिरछिक=वृश्चिक राशि। उगरै=निकले। अगनइता=आग्नेय दिशा।
(14) नंदा=आनंददायिनी, शुभ। मंदा=अशुभ। जया=विजय देनेवाली। खया=क्षय करनेवाली। सनि रिकता=शनि रिक्ता, शनिवार रिक्ता तिथि या खाली दिन।
(15) समदि=विदा के समय मिलकर (समदन=बिदाई, जैसे पितृ-समदन-अमावस्या)। आइ तुलाना=आ पहुँचा। टेक=पकड़ता है। का केहू=और कोई क्या है? गुरेरा=देखा देखी, साक्षात्कार। निआना= निदान, अंत में। चूरा=कड़ा। हाँसु=हँसली नाम का गले का गहना।
(16) जराव=जड़ाऊ। एक-एक दीप...लहा=एक-एक रत्न का मोल एक-एक द्वीप था।
(17) दत्ता=दान। सत्ता=सत्य। साँचि कै=संचित करके। सिध्द जो...थापा=जो सिध्द हैं वे द्रव्य को अग्नि ठहराते हैं। थापा=थापते हैं, ठहराते हैं। दानी=दान लेनेवाला, भिक्षुक। कै दानी कर रूप=मंगन का रूप धारकर।