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कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम बादशाह भोज खंड पीछे     आगे

छागर मेढ़ा बड़ औ छोटे । धारि धारि आने जहँ लगि मोटे॥

हरिन, रोझ, लगना बन बसे । चीतर गोइन, झाँख औ ससे॥

तीतर, बटई, लवा न बाँचे । सारस, कूज, पुछार जो नाचे॥

धारे परेवा पंडुक हेरी । खेहा, गुड़रू और बगेरी॥

हारिल, चरग, चाह बँदि परे । बन कुक्कुट, जल कुक्कुट धारे॥

चकई चकवा और पिदारे । नकटा, लेदी, सोन सलारे॥

मोट बड़े सो टोइ टोइ धारे । ऊबर दूबर खुरुक न चरे॥

कंठ परी जब छूरी, रकत ढुरा होइ ऑंसु।

कित आपन तन पोखा, भखा परावा माँसु?॥1॥

धारे माछ पढ़िना औ रोहू । धाीमर मारत करै न छोहू॥

सिधारी, सौरि, धारी जल गाढ़े । टेंगर टोइ टोइ सब काढ़े॥

सींगी भाकुर बिनि सब धारी । पथरी बहुत बाँब बनगरी॥

मारे चरख औ चाल्ह पियासी । जल तजि कहाँ जाहि जलबासी?॥

मन होइ मीन चरा सुख चारा । परा जाल को दुख निरुवारा?॥

माँटी खाय मच्छ नहिं बाँचे । बाँचहिं काह भोग सुख राँचे?॥

मारै कहँ सब आस कै पाले । को उबार तेहि सरवर घाले?॥

एहि दुख काँटहिं सारि कै, रकत न राखा देह।

पंथ भुलाइ आइ जल बाझे, झूठे जगत सनेह॥2॥

देखत गोहूँ कर हिय फाटा । आने तहाँ होब जहँ आटा॥

तब पीसे जब पहिले धाोए । कपरछानि माँड़े, भल पोए॥

चढ़ी कराही, पाकहिं पूरी । मुख महँ परत होहि सो चूरी॥

जानहुँ तपत सेत औ उजरी । नैनू चाहि अधिाक वै कोंवरी॥

मुख मेलत खनजाहिं बिलाई । सहस सवाद सो पाव जो खाई॥

लुचुई पोइ पोइ घिउ मेई । पाछे छाति खाँड़ रस मेई॥

पूरि सोहारी कर घिर चूआ । छुवत बिलाइ, डरन्ह को छूआ?॥

कही न जाहिं मिठाई, कहत मीठ सुठि बात।

खात अघात न कोई, हियरा जात सेरात॥3॥

चढ़े जो चाउर बरनि न जाहीं । बरन बरन सब सुगँधा बसाहीं॥

रायभोग औ काजर रानी । झिनवा, रुदवा, दाउदखानी॥

बासमती, कजरी, रतनारी । मधाुकर, ढेला, झीनासारी॥

घिउकाँदौ औ कुँवरबिलासू । रामबास आवै अति बासू॥

लौंगचूर लाची अति बाँके । सोनखरीका कपुरा पाके॥

कोरहन, बड़हन, जड़हन मिला । औ संसारतिलक ख्रड़बिला॥

धानिया देवल और अजाना । कहँ लगि बरनौं जावत धााना॥

सोंधो सहस बरन अस, सुगँधा बासना छूटि।

मधाुकर पुहुप जो बन रहे, आइ परे सब टूटि॥4॥

निरमल माँसु अनूप बघारा । तेहि के अब बरनौं परकारा॥

कटुवा, बटुवा मिला सुबासू । सीझा अनबन भाँति गरासू॥

बहुतै सोंधो घिउ महँ तरे । कस्तूरी केसर सौं भरे॥

सेंधाा लोन परा सब हाँड़ी । काटी कंदमूर कै आड़ी॥

सोआ सौफ उतारे घना । तिन्ह तें अधिाक आव बासना॥

पानि उतारहिं तावहिं ताका । घीउ परेह माहिं सब पाका॥

औ लीन्हें माँसुन्ह के खंडा । लागे चुरै सो बड़ बड़ हंडा॥

छागर बहुत समूची, धारी सरागन्ह भूँजि।

जो अस जेंवन जेंवै, उठै सिंघ अस गूँजि॥5॥

भूँजि समोसा घिउ महँ काढ़े । लौंग मरिच जिन्ह भीतर ठाढ़े॥

और माँसु जो अनबन बाँटा । भए फर फूल, आम औ भाँटा॥

नारँग, दारिउँ, तुरँज,जँभीरा । औ हिंदवाना, बालमखीरा॥

कटहर बड़हर तेउ सँवारे । नरियर, दाख, खजूर छोहारे॥

औ जावतजो खजहजा होहीं । जो जेहि बरन सवाद सो ओहीं॥

सिरका भेइ काढ़ि जनु आने । कँवल जो कीन्ह रहे बिगसाने॥

कीन्ह मसेवरा, सीझि रसोई । जो किछु सबै माँसु सौं होई॥

बारी आइ पुकारेसि, लीन्ह सबै करि छूँछ।

सब रस लीन्ह रसोई, को अब मोकहँ पूछ॥6॥

काटे माछ मेलि दधिा धाोए । औ पखारि बहु बार निचोए॥

करुए तेल कीन्ह बसवारू । मेथी कर तब दीन्ह बघारू॥

जुगुति जुगुति सब माँछ बघारे । आम चोरि तिन्ह माँझ उतारे॥

औ परेह तिन्ह चुटपुट राखा । सो रस सुरस पाव जो चाखा॥

भाँति भाँति सब खाँड़र तरे । अंडा तरि तरि बेहर धारे॥

घीउ टाँक महँ सोंधा सेरावा । लौंग मरिच तेहि ऊपर नावा॥

कुहुँकुहुँ परा कपूर बसावा । नख तें बघारि कीन्ह अरदावा॥

घिरित परेह रहा तस, हाथ पहुँच लगि बूड़।

बिरिधा खाइ नवजोबन, सौ तिरिया सौं ऊड़॥7॥

भाँति भाँति सीझीं तरकारी । कइउ भाँति कोहँड़न कै फारी॥

बने आनि लौआ परबती । रयता कीन्ह काटि रति रती॥

चूक लाइ कै रींधोभाँटा । अरुई कहँ भल अरहन बाँटा॥

तोरई, चिचिड़ा, डेंड़सी तरी । जीर धाुँगार झार सब भरी॥

परवर कुँदरू भूँजे ठाढ़े । बहुतै घिउ महँ चुरमुर काढ़े॥

करुई काढ़ि करैला काटे । आदी मेलि तरे कै खाटे॥

रींधो ठढ़ सेब के फारा । छौंकि साग पुनि सोंधा उतारा॥

सीझीं सब तरकारी, भा जेंवन सब ऊँच।

दहुँ का रुचै साह कहँ, केहि पर दिस्टि पहूँच॥8॥

घिउ कराह भरि, बेगर धारा । भाँति भाँति के पाकहिं बरा॥

एक त आदी मरिच सौं पीठा । दूसर दूधा खाँड़ सौं मीठा॥

भई मुँगौछी मरिचैं परी । कीन्ह मुँगौरा औ बहु बरी॥

भई मेथौरी, सिरका परा । सोंठि नाइ कै खरसा धारा॥

माठा महि महियाउर नावा । भीज बरा नैनू जनु खावा॥

खंडै कीन्ह आमचुर परा । लौंग लायची सौं ख्रड़बरा॥

कढ़ी सँवारी और फुलौरी । औ ख्रड़वानी लाइ बरौरी॥

रिकवँच कीन्हि नाइ कै, हींग मरिच औ आद।

एक खंड जौ खाइ तौ, पावै सहस सवाद॥9॥

तहरी पाकि, लौंग औ गरी । परी चिरौंजी औ खरहरी॥

घिउ महँ भूँजि पकाए पेठा । औ अमृत गुरंब भरे मेटा॥

चुंबक लोहँड़ा, औटा खोवा । भा हलुवा घिउ गरत निचोवा॥

सिखरन सोंधा छनाई गाढ़ी । जामी दूधा दही कै साढ़ी॥

दूधा दही के मुरंडा बाँधो । और सँधााने अनबन साधो॥

भइ जो मिठाई कही न जाई । मुख मेलत खन जाइ बिलाई॥

मोतीचूर, छाल औ ठोरी । माठ, पिराकैं और बुँदौरी॥

फेरी पापर भूँजे, भा अनेक परकार।

भइ जाउरि पछियाउरि, सीझी सब जेवनार॥10॥

जत परकार रसोइ बखानी । तत सब भई पानि सौं सानी॥

पानी मूल परिख जौ कोई । पानी बिना सवाद न होई॥

अमृत पान सह अमृत आना । पानी सौं घट रहै पराना॥

पानी दूधा औ पानी घीऊ । पानि घटै, घट रहै न जीऊ॥

पानी माँझ समानी जोती । पानिहि उपजै मानिक मोती॥

पानिहि सौं सब निरमल कला । पानी छुए होइ निरमला॥

सो पानी मन गरब न करई । सीस नाइ खाले पग धारई॥

मुहमद नीर गँभीर जो, भरे सो मिले समुंद।

भरै ते भारी हाइ रहे, छूँछे बाजहिं दुंद॥11॥

(1) रोझ=नीलगाय। लगना=एक वनमृग। चीतर=चित्रामृग। गोइन=कोई मृग। (?)। झाँख=एक
प्रकार का बड़ा जंगली हिरन; जैसे-ठाढ़े ढिग बाघ, बिग, चिते चितवत झाँख मृग शाखामृग
सब रीझि-रीझि रहे हैं।-देव! पसे=खरहे। पुछार=पोर। खेहा=केहा, बटेर की तरह की एक
चिड़िया। गुड़रू=कोई पक्षी। बगेरी=भरद्वाज, भरुही। चरग=बाज की जाति की एक
चिड़िया। चाह=चाहा नामक जलपक्षी। पिदारे=पिद्दे। नकटा=एक छोटी चिड़िया। सोन,
सलारे=कोई पक्षी। खुरुक=खटका।

(2) पढ़िना=पाठीन मछली, पहिना। रोहू, सिधारी, सौरी, टेंगरा, सींगी, भाकुर, मथरी, बनगरी, चरख, पियासी=मछलियों के नाम। बाँब=बाम मछली जो देखने में साँप की तरह लगती है। चाल्ह=चेल्हवा मछली। निरुवारा=छुड़ाए। राँचे=अनुरक्त, लिप्त। तेहि सरवर घाले=उस सरोवर में पड़े हुए को कौन बचा सकता है (जीवपक्ष में संसार सागर में पड़े हुए का कौन उध्दार कर सकता है)। एहि दुख...देह=इसी दु:ख से तो मछली ने शरीर में काँटे लगाकर रक्त नहीं रखा।

(3) तपत=जलती हुई, गरम गरम। नैनू=नवनीत, मक्खन। कोंवरी=कोमल। घिउ मेई=घी का मोयन दी हुई। कहत मीठ...बात=उनके नाम लेने से मुँह मीठा हो जाता है।

(4) काजर रानी=रानी काजल नाम का चावल। रायभोग, झिनवा, रुदवा, दाउदखानी, बासमती, कजरी, मधाुकर, ढेला, झीनासारी, घिउकाँदो, कुँवर बिलास, रामबास, लवँगचूर, लाची, सोनखरिका, कपूरी, संसारतिलक, ख्रड़बिला, धानिया, देवल=चावलों के नाम। पुहुप=फूलों पर।

(5) कटुवा=खंड खंड कटा हुआ। बटुवा=सिल पर बटा या पिसा हुआ। अनबन=विविधा, अनेक। गरासू=ग्रास, कौर। तरे=तले हुए। आड़ी=अंटी, गाँठ। तावहिं ताका=ताव देखते हैं। परेह=रसा,शोरबा। सरागन्ह=सीखचों पर, शलाकाओं पर। गूँजि उठै=गरज उठे।

(6) ठाढ़े=खड़ी, समूची। भए फर…भाँटा=मांस ही अनेक प्रकार के फलफूल के रूप में बना है। हिंदबाना=तरबूज, कलींदा। बालमखीरा=खीरे की एक जाति। खजहजा=खाने के फल। सिरका भेइ...आने=मानो सिरके में भिगोए हुए फल समूचे लाकर रखे गए हैं (सिरके में पड़े हुए फल ज्यों के त्यों रहते हैं)।मसेवरा=मांस की बनी चीजें। सीझि=पकी, सिध्द हुई। बारी=काछी या माली। बारी आइ...छूँछ=माली ने पुकार मचाई कि मेरे यहाँ जो फलफूल थे सब तो मुझे खाली करके ले लिये गए अर्थात् वे सब मांस ही के बना लिये गए।

(7) पखारि=धाोकर। बसवारू=छौंक। परेह=रसा। चुटपुट=चुटपुटा। खाँड़र=कतले। तरि=तलकर। बेहर=अलग। टाँक=बरतन, कटोरा। सेरावा=ठंडा किया। नख=एक गंधाद्रव्य। अरदावा=कुचला या भुरता। पहुँच लगि=पहुँचा या कलाई तक। ऊड़=विवाह करे या रखे (ऊढ़)।

(8) फारी=फाल, टुकड़े। लौआ=घीया, कद्दू। रयता=रायता। रति-रती=महीन-महीन। चूक=खटाई। रींधो=पकाए। अरहन=चने की पिसी दाल जो तरकारी में पकाते समय डाली जाती है; रेहन। बाटा=पीसा। डेंड़सी=कुम्हड़े की तरह की एक तरकारी, टिंड (टिंडिस)। तरी=तली। धाुँगार=छौंक। चुरमुर=कुरकुरे। करुई काढ़ि=कड़घवापन निकालकर (नमक-हल्दी के साथ मलकर)। कै खाटे=खट्टे करके। फारा=फाल, टुकड़े।

(9) बेगर=उर्द या मूँग का रवादार आटा, धाुवाँस। बरा=बड़ा। पीठा=पीसा गया। मुँगौछी=मूँग का एक पकवान। मुँगौरा=मूँग की पकौड़ी। मेथौरी=एक प्रकार की बड़ी। खरसा=एक पकवान। महियाउर=मट्ठे में पका चावल। नैनू=नवनीत, मक्खन। बरौरी=बड़ी। रिकवँच=अरुई या कच्चू के पत्तो पीठी में लपेटकर बनाए हुए बड़े। आद=अदरक।

(10) तहरी=बड़ी और हरी मटर के दानों की खिचड़ी। खरहरी=खरिक, छुहारा। गुरंब=शीशे में रखे हुए आम। मेटा=मिट्टी के बरतन, मटके। लोहँड़ा=लोहे का तसला। मुरंडा=पानी निथारकर पिंडाकार बँधाा दही या छैना। सँधााने=अचार। छाल=एक मिठाई। ठोरी=ठोर। पिराकैं=गोझिया। बुँदौरी=बुँदिया। पछियाउर=मट्ठे में भिगोई बुँदिया। सीझी=सिध्द हुई, पकी।

(11) जत=जितनी। तत=उतनी। पानी मूल...कोई=जो कोई विचार कर देखे तो पानी ही सबका मूल है। अमृत पान=अमृतपान के लिए। दुंद=ठक-ठक।



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