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कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम पद्मावती-गोरा-बादल-संवाद खंड पीछे     आगे

सखिन्ह बुझाई दगधा अपारा । गइ गोरा बादल के बारा॥

चरन कँवल भुइँ जनम न धारे । जात तहाँ लगि छाला परे॥

निसरि आए छत्राी सुनि दोऊ । तस काँपे जस काँप न कोऊ॥

केस छोरि चरनन्ह रज झारा । कहाँ पावँ पदमावति धाारा?॥

राखा आनि पाट सोनबानी । बिरह बियोगिनि बैठी रानी॥

दोउ ठाढ़ होइ चँवर डोलावहिं । माथे छात, रजायसु पावहिं॥

उलटि बहा गंगा कर पानी । सेवक बार आइ जो रानी॥

का अस कस्ट कीन्ह तुम, जो तुम्ह करत न छाज।

अज्ञा होइ बेगि सो, जीउ तुम्हारे काज॥1॥

कही रोइ पदमावति बाता । नैनन्ह रकत दीख जग राता॥

उथल समुद जस मानिक भरे । रोइसि रुहिर ऑंसु तस ढरे॥

रतन के रंग नैन पै वारौं । रती रती कै लोहू ढारौं॥

भँवरा ऊपर कँवल भवावौं । लेइ चलु तहाँ सूर जहँ पावौं॥

हिय कै हरदिबदन कै लोहू । जिउ बलि देउँ सो सँवरि बिछोहू॥

परहिं ऑंसु जस सावन नीरू । हरियरि भूमि, कुसुंभी चीरू॥

चढ़ीं भुअंगिनि लट लट केसा । भइ रोवति जोगिन के भेसा॥

बीर बहूटी भइ चलीं, तबहुँ रहहिं नहिं ऑंसु।

नैनहिं पंथ न सूझे, लागेउ भादौं मासु॥2॥

तुम गोरा बादल ख्रभ दोऊ । जस रन पारथ और न कोऊ॥

दुख बरखा अब रहै न राखा । मूल पतार, सरग भइ साखा॥

छाया रही सकल महि पूरी । बिरह बेलि भइ बाढ़ि खजूरी।

तेहि दुख लेत बिरिछ बन बाढ़े । सीस उघारे रोवहिं ठाढ़े।

पुहुमि पूरि सायर दुख पाटा । कौड़ी केर बेहरि हिय फाटा॥

बेहरा हिये खजूर क बिया । बेहर नाहिं मोर पाहन हिया॥

पिय जेहि बँदि जोगिनि होइ धाावौं । हौं बँदि लेउँ, पियहिं मुकरावौं॥

सूरुज गहन गरासा, कँवल न बैठे पाट।

महूँ पंथ तेहि गवनब, कंत गए जेहि बाट॥3॥

गोरा बादल दोउ पसीजे । रोवत रुहिर बूड़ि तन भीजे॥

हम राजा सौं इहै कोहाँने । तुम न मिलौ, धारिहै तुरकाने॥

जा मति सुनि हम गए कोहाँई । सो निआन हम्ह माप आई॥

जौ लगि जिउ, नहिं भागहिं दोऊ । स्वामि जियत कित जोगिनिहोऊ॥

उए अगस्त हस्ति जब गाजा । नीर घटे घर आइहि राजा॥

बरषा गए, अगस्त जो दीठिहि । परिहि पलानि तुरंगम पीठिहि॥

वेधाौं राहु, छोड़ावहुँ सूरू । रहै न दुख कर मूल ऍंकूरू॥

सोइ सूर, तुम ससहर, आनि मिलावौं सोइ।

तस दुख महँ सुख उपजै, रैनि माहँ दिन होइ॥4॥

लीन्ह पान बादल औ गोरा । केहि लेइ देउँ उपम तुम्ह जोरा?॥

तुम सावंत, न सरवरि कोऊ । तुम्ह हनुवंत ऍंगद सम दोऊ॥

तुम अरजुन और भीम भुवारा । तुम बल रन दल मंडनहारा॥

तुम टारन भारन्ह जग जाने । तुम सुपुरुष जस करन बखाने॥

तुम बलबीर जैस जगदेऊ । तुम संकर औ मालकदेऊ॥

तुम अस मोरे बादल गोरा । काकर मुख हेरौं, बँदिछोरा?॥

जस हनुवँत राघव बँदि छोरी । तस तुम छोरि मेरावहु जोरी॥

जैसे जरत लखाघर, साहस कीन्हा भीउँ।

जरत खम्भ तस काढ़हु, कै पुरुषारथ जीउ॥5॥

राम लखन तुम दैत सँघारा । तुमहीं घर बलभद्र भुवारा॥

तुमहीं द्रोन और गंगेऊ । तुम्ह लेखौं जैसे सहदेऊ॥

तुमहिं युधिाष्ठिर और दुरजोधान । तुमहिं नील नल दोउ संबोधान॥

परसुराम राघव तुम जोधाा । तुम्ह परतिज्ञा तें हिय बोधाा॥

तुमहिं सत्राुहन भरतकुमारा । तुमहिं कृस्न चानूर सँघारा॥

तुम परदुम्न औ अनिरुधा दोऊ । तुम अभिमन्यु बोल सब कोऊ॥

तुम्ह सरि पूज न बिक्रम साके । तुम हमीर हरिचँद सत ऑंके॥

जस अति संकट पंडवन्ह, भयउ भीवँ बँदिछोर।

तस परबस पिउ काढ़हु, राखि लेहु भ्रम मोर॥6॥

गोरा बादल बीरा लीन्हा । जस हनुवँत ऍंगद बर कीन्हा॥

सजहु सिंघासन, तानहु छातू । तुम्ह माथे जुग जुग अहिवातू॥

कँवल चरनभुइँ धारि दुख पावहु । चढ़ि सिंघासन मँदिर सिधाावहु॥

सुनतहि सूर कँवल हिय जागा । केसरि बरन फूल हिय लागा॥

जनु निसि महँ दिन दीन्ह देखाई । भा उदोत, मसि गई बिलाई॥

चढ़ी सिंघासन झमकति चली । जानहु चाँद दुइज निरमली॥

औ सँग सखी कुमोद तराईं । ढारत चँवर मँदिर लेइ आईं॥

देखि दुइज सिंघासन, संकर धारा लिलाट।

कँवल चरन पदमावति, लेइ बैठारी पाट॥7॥

(1) बारा=द्वार पर। काँपे=चौंक पड़े। सोनवानी=सुनहरी। माथे छात=आपके माथे पर सदा छत्रा बना रहे। बार=द्वार पर। का=क्या। तुम्ह न छाज=तुम्हें नहीं सोहाता।

(2) दीख=दिखाई पड़ा। राता=लाल। उथल=उमड़ता है। रुहिर=रुधिर। रँग=रंग पर। पै=अवश्य, निश्चय। भँवरा=रत्नसेन। कँवल=नेत्रा (पद्मावती के)। हरदि=कमल के भीतर छाते का रंग पीला होता है। बदन कै लोहू=कमल के दल का रंग रक्त होता है।

(3) ख्रभ=खंभे, राज्य के आधाार स्वरूप। पारथ=पार्थ, अर्जुन। बरखा=वर्षा में। तेहिं दुख लेत...बाढ़े=उसी दु:ख की बाढ़ को लेकर जंगल के पेड़ बढ़कर इतने ऊँचे हुए हैं। बेहरि=बिदीर्ण होकर। जेहि बँदि=जिस बंदीगृह में। मुकरावौं=मुक्त कराऊँ, छुड़ाऊँ।

(4) तुरकान=मुसलमान लोग। उए अगस्त=अगस्त्य के उदय होने पर, शरत् आने पर। हस्ति जब गाजा=हाथी चढ़ाई पर गरजेंगे, या हस्त नक्षत्रा गरजेगा। आइहि=आएगा। दीठिहि=दिखाई पड़ेगा। परिहि पलानि...पीठिहि=घोड़ों की पीठ पर जीन पड़ेगी, चढ़ाई के लिए घोड़े कसे जाएँगे। ऍंकूरू=अंकुर। ससहर=शशधार, चन्द्रमा।

(5) लीन्ह पान=बीड़ा लिया, प्रतिज्ञा की। केहि...जोरा=यहाँ से पदमावती के वचन हैं। सावंत=सामंत। भुवारा=भूपाल। टारन भारन्ह=भार हटानेवाले। करन=कर्ण। मालकदेऊ=मालदेव (?)। बँदिछोर=बंधान छुड़ानेवाले। लखाघर=लाक्षागृह। खंभ=राज्य का स्तंभ, रत्नसेन।

(6) दैत सँघारा=दैत्यों का संहार करनेवाले। गंगेऊ=गांगेय, भीष्म पितामह। तुम्ह लेखौं=तुमको समझती हूँ। संबोधान=ढाँढ़स देने वाले। तुम्ह परतिज्ञा=तुम्हारी प्रतिज्ञा से। बोधाा=प्रबोधा, तसल्ली। सत ऑंके=सत्य की रेखा खींची है। भ्रम=प्रतिष्ठा, सम्मान।

(7) बर=बल। अहिवातू=सौभाग्य, सोहाग। उदोत=प्रकाश। देखि दुइज...लिलाट=दूज के चंद्रमा को देख उसे बैठने के लिए शिवजी ने अपना लिलाटरूपी सिंहासन रखा अर्थात् अपने मस्तक पर रखा।



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