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 दिनेश कुमार शुक्ल/ ललमुनिया की दुनिया

पुनः उन्मीलन्‌
 

बहू-बेटे, बेटियों के सामने
जब बहुत बरसों बाद
माँ फिर दिनों से हो जाय
लाज-सील-सनेह-सहज-सुभाय
किसे क्या बतलाय

डिम्बिडम्बित कायकृश, कुलकेलिकलरवक्लान्त
कातर कुमुदिनी का पुनर्उन्मीलन...


 


 

प्रेम की वैतरणी
 

जहाँ है आदि-अंत
वहीं है आवागमन
जैसे कि जीवन में

अनंत में होता है केवल प्रवेश
होता ही नहीं कोई निकास
पार पाया नहीं जा सकता
जैसे प्रेम में

प्रेम की भी
एक वैतरणी होती है
जिसका दूसरा तट नहीं होता
 

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