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 दिनेश कुमार शुक्ल/ ललमुनिया की दुनिया

निर्मल‌
 

मैं पलाश की अग्नि
मुझे तुम मत छू लेना

रंग
लाल-नीला-पीला कैसा भी हो
रंगों की हिंसा
नहीं झेल पायेगा निर्मल रूप तुम्हारा

तुम तो आत्मा की सुगंध हो



 


 

षट्‌पद
 

गोह के गेह में
पेड़ की खोह में
जाने किस टोह में
नर्वल का चन्द्रमा ।

आंगन की नींद में
तारों की भीड़ में
पंछी के नीड़ में
नर्वल का चन्द्रमा ।

गंगा की रेत में
सरसों के खेत में
मिला सेतमेत में
नर्वल का चन्द्रमा ।

गांव में जवार में
जूड़ी बुखार में
भादों में क्वार में
नर्वल का चन्द्रमा ।

नदी के बहाव में
पत्थर की नाव में
डूबा किस भाव में
नर्वल का चन्द्रमा ।

हरीभरी घास में
छेका अनुप्रास में
और ज़रा पास में
नर्वल का चन्द्रमा ।
 

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