हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 


 दिनेश कुमार शुक्ल/ ललमुनिया की दुनिया

मर्मांतिका
 

पंखुरी-दर-पंखुरी दिन खुल रहा है
समय की गति मन्द करता हुआ
जैसे पक रहा हो डाल पर फल,
घुमड़ता हो राग
कोई कण्ठ बस अब फूटने को हो

अपनपौ पा के जैसे खोलता हो कोई अपना मन
पराये देस में आहिस्ता-आहिस्ता
हिचकिचाती फूटती पहली किरन
ज्यों रात की रानी
रुपहली चाँदनी के सरोवर में अभी उतरी हो
कि मुर्गा बाँग दे दे,
सहस-रजनी-चरित का कोई कथानक
मंच पर आये कि पर्दा ही गिरा दे सूत्रधार,

धीरे-धीरे दिन चढ़ेगा
कभी पल छिन की तरह ये बीत जायेगा
कभी काटे कटेगा ही नहीं,
हर हाल में लेकिन थका-हारा
किसी दीवार से टकरायेगा और
बिखर जाएगा,
पीछे-पीछे दबे पाँव एक छाया आ रही होगी
जो झुक कर बीन लेगी काँच के टुकड़े
एक नयी मर्मान्तिका
सहस-रजनी-चरित में जुड़ जायगी ।
 



 


 

पान-फूल
 

पान-फूल काया में
पानी की माया में
हरी-भरी छाया में
थोड़ी गरबीली-सी
थोड़ी शरमीली-सी
लता पान की !

छप्पर पर घनी-घनी
छाई है बनी-ठनी
परवल के साथ-साथ
हँसती है पात-गात
लता शीतलता की
लता पान की !

खुलती कोंपल-कोंपल
चढ़ती जाती प्रतिपल
अपने ही रंग रची
बसती अपनी सुवास
रसती रसना के रस
पान-वल्लरी !

प्राणों से हींच-हींच
आँखों को सींच-सींच
पनवारी के दरपन में
खुद को निरख रही
चोरी-चोरी गोरी
प्राण-वल्लरी !

                                      <<निर्मल, षट्पद<<                  सूची          >>दिल्ली में वसंत, ललमुनियाँ की दुनिया>>

 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.