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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’


 
मर्ज़

 

सुबह उठते ही अखबार में देखना
कि पड़ोसी ने अपने पैर की खबर
छपवाई है
जिसे कीचड़ में डाल उछालते हुए उसने
दूसरों के आगे बढ़ाया

टेलीविजन ऑन करना
देखना चुपचाप टर्राते मेंढकों का नीतिवाचन
या कि जिनको मेंढक होना चाहिए
उनकी शक्ल हमारे जैसी है

इस अहसास से ग्रस्त होना कि चारों ओर
उल्लास में मत्त वे
जिनके लिए
भेड़िए या सियार जैसे शब्द हैं कोश में

एक भगवान ढूँढना
सगुण निर्गुण या महज एक अलौकिक आभास
या ढूँढना अँधेरा
पहचानना कि
महाशून्य महासागर में
अन्धकार ही है रोशनी,
हम और हमारे अहसास.

(पश्यन्ती - 2000)

 

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